Technorati tags: परिवर्तन, नारी सहभाग, चिट्ठेकारी
बोध गया के महन्तों की सैंकड़ों एकड़ खेती की जमीन पर ‘जो जमीन को जोते बोए, वो जमीन का मालिक होवे’ के पुराने नारे के अनुरूप भूमिहीनों के हक की लड़ाई छात्र युवा संघर्ष वाहिनी ने लड़ी और जीती थी । इस आन्दोलन के दरमियान एक अन्य सूत्र भी उभरा , स्थापित हुआ – ‘ नारी के सहभाग बिना , हर बदलाव अधूरा है । ‘ सम्पूर्ण क्रान्ति आन्दोलन के दौर में पटना की सड़कों पर लड़कियाँ देर रात तक घूम पाती थीं ,छीटा कशी और छेड़खानी की घटनाओं में उल्लेखनीय कमी आ गयी थी – चूँकि आन्दोलन में उनकी व्यापक भागीदारी थी । लोकनायक जयप्रकाश की लाखों की रैलियों में दहेज न लेने , न देने की कसमों का नर-नारी समता की लड़ाई में परोक्ष योगदान रहता था लेकिन उसी दौर में ‘ औरत भी जिन्दा इन्सान , नहीं भोग का वह सामान’ जैसे प्रत्यक्ष नारे भी युवा आन्दोलन का हिस्सा बने । सम्पूर्ण क्रान्ति के एक प्रमुख आयाम – सांस्कृतिक क्रान्ति की चर्चा में गालियों के स्त्री विरोधी स्वरूप पर भी व्यापक चर्चा होती थी – दो पुरुष परस्पर गरियाने के क्रम में असम्पृक्त नारी पर हमले की घोषणा क्यों करते हैं ?
चिट्ठालोक को बिना मालिक का , विकेन्द्रीकृत , वैकल्पिक , स्वायत्त माध्यम हम सब मानते हैं ।हम सब को इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि विकल्प के सपने का अक्स क्या हम इस औजार ( चिट्ठेकारी ) में देख पा रहे हैं ?
चिट्ठेकारी में महिला लेखिकाओं का अहम स्थान बना है । सार्थक विवादों में महिला चिट्ठेकारों ने अपना स्पष्ट मत रखा है । ‘ नारद ‘ से राहुल के चिट्ठे को हटाए जाने तथा अपने चिट्ठे पर खेद प्रकट करने के बावजूद उसे ‘नारद’ से परे रखने के प्रकरण को यथास्थितिवादी बनाम बदलाव वाली ताकतों के संघर्ष के रूप में देखा जा सकता है । इस महत्वपूर्ण विवाद के दौरान सृजनात्मक मौलिक लेखन करने वाली महिला चिट्ठेकार स्पष्ट मत व्यक्त करने से पीछे नहीं हटीं थीं । इस विवाद के फलस्वरूप कई सार्थक बदलाव हुए हैं। यथास्थिति ,बनी नहीं रह गयी ।
बेमानी विवादों और फाजिल प्रयोगों को महिला चिट्ठेकारों ने हम मर्दों के लिए छोड़ दिया है । ‘निएन्डरथल चिट्ठाकार’ बनाम ब्लॉगवाणी के हालिया बेमानी विवाद में किसी महिला चिट्ठेकार ने रुचि नहीं दिखाई । इसी प्रकार बोधिसत्व के चिरकिया प्रयोग को भी महिला चिट्ठाकारों ने पुरुषों की रुचि का समझा । महिलाओं की अरुचि स्पष्ट थी ।
इन अधूरे , प्रतिक्रान्तिकारी बदलावों की विफलता से हम खुश हैं ।
ऐसा नहीं हैं या to आप की नज़र मे मेरी तिपानी नहीं आयी है या फिर वह अब उन ब्लोग्स पर नहीं हैं । मुझे जयादा नहीं पर कुछ तकनीक की जानकारी है और मैने इस बात को बहुत पहले मसिजीवी के ब्लोग पर रोमन वाद विवाद के संबंध मे भी कहा था की RSS फीड खुला रखना का अर्थ ये कतई नहीं होता की उसे कहीं भी किसी रूप मे इस्तमाल किया जासकता है । और मुझे अजीब लग रहा हे की आप को मेरी टिपण्णी ब्लोग्वानी-चिताह जगत के संदर्भ मे भी कहीं नहीं दीकी जबकी मैने आलोक और सिरिल दोनो के ब्लोग पर लिखा हैं ।
http://maeriawaaj.blogspot.com/
इस पर और विचार की आवश्यकता है । आप सही कह रहे है….
यदि आप चाहते हैं कि अधिक लोग आपको पढ़ें व टिप्पणी करें तो आपके विषय का चुनाव बिल्कुल गलत है । हाल में कुछ दुर्गंधयुक्त विषय धड़ाधड़ हाथों हाथ लिए जा रहे हैं व उनपर बीसियों टिप्पणियाँ भी आईं । एक आप हैं कि नारी जैसे अमहत्वपूर्ण विषय पर लिख रहें हैं । नारी के विषय में लिखना है तो या तो उसपर चुटकले सुनाइये या उसका रूप विवरण कीजिये ,वह बासी ,बेमजा विषय क्या चुन रहे हैं ?
यदि लेखक अपनी पुस्तकें बेचना चाहें तो उन्हें प्यासी डायन, खूनी पंजा, जकड़ा शिकंजा, या फिर किसी ऐसे ही मनोरंजक विषय पर लिखना होगा । क्या आप जानते नहीं पुरुषों की रूचि में स्त्री की समस्याएँ विष्ठा के बहुत बाद में आती हैं ? धीरे धीरे आँखें खुल रहीं हैं और संसार की विडंबनाएँ देखने को मिल रहीं हैं ।
वैसे एक ऐसे मन के निकट के विषय पर लिखने के लिए धन्यवाद !
घुघूती बासूती
जी सही कहा आपने. “नारी के सहभाग बिना , हर बदलाव अधूरा है”. लेकिन जिस बात को आप चिट्ठाजगत की स्थितियों से जोड़ रहे हैं उससे मैं सहमत नहीं. यह पुरुष और महिलाओं का ध्रुवीकरण नहीं है. यह सवाल रुचियों का है. जिन विषयों में एक व्यक्ति की रुचि हो जरूरी नहीं दूसरे की भी हो. ब्लॉगवाणी विवाद और चिरका प्रसंग में बहुत से पुरुषों ने भी टिप्पणी नहीं की. इसे केवल महिलाओं से जोड़ना गलत है.
ये सब् गड्ड-मड्ड् बातें लिखने का क्या मतलब् है भाई! महिला चिट्ठाकार् बेहद् संवेदनशील् हैं, समझदार् हैं और् फ़ालतू की बहस में नहीं पड़तीं। लेकिन यह सब आपने बहाने क्यों प्रयोग् किये। अपनी बात् सही साबित् करने के लिये महिला चिट्ठाकारों को बीच् में लाना ठीक् नहीं भाई।
anup jii
few people feel that woman should not discuss and when they do they get worthless comments . read the comment section of this blog http://masijeevi.blogspot.com/2007/10/blog-post.html
I feel bloggers still want to keep a patronizing tone for woman bloggers . their writing is either a matter of laughter or praise or just plain and simple “ignore” . strong comments or writings evoke ire in form of bad and foul langauge and its being approved by one and all other wise comments as on above mentioned blog will nver be approved
rachna
[…] ‘नारी के सहभाग बिना , हर बदलाव अधूरा ह… […]
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