‘हरिजन’ शब्द शाश्वत रहे , यह गांधी जी नहीं चाहते थे । ‘अछूत’ शब्द के प्रति उनका विरोध था , इसीलिए वे यहाँ तक मानते थे कि ‘ स्वराज्य में दफ़ा १२४ राजद्रोह के लिए नहीं होगी , परन्तु हरिजनों को अछूत कहने वाले के विरुद्ध होगी।’ ( महादेवभाई की डायरी , खण्ड दो , पृ. १९४ )
हरिजन शब्द के प्रति अपने लगाव के बावजूद दलितों की इस शब्द के प्रति आपत्ति को वे तरजीह देते थे । मद्रास के शंकर नामक एक कार्यकर्ता ने वहाँ के दलितों के लिए हरिजन शब्द के बारे में आपत्ति की बाबत गांधी जी को लिखा कि वे हरिजन कैसे कहलाए ? हम तो हरजन हैं हरिजन नहीं । शंकर ने लिखा था ,इन लोगों को यदि हिन्दू कहें , तो इन्हें अच्छा लगेगा । आप इजाजत दीजिए ।’ उसे गांधी जी ने लिखा ,’ हरिजन नाम पर आपत्ति होने पर के लिए मुझ अफ़सोस होता है । तुम्हारे मित्रों को जो नाम पसन्द हो , वह इस्तेमाल कर सकते हो । मगर उन्हें यह समझाना कि मेरे मन में विष्णु य शिव का जरा भी ख्याल न था । मेरे लिए तो इसका अर्थ ‘भगवान का आदमी’ ही होता है । विष्णु , शिव या ब्रह्मा में मैं कोई भेद नहीं मानता । सभी ईश्वर के नाम हैं ।मगर इस मामले में उनके निर्णय पर अमल करना चाहिए ।’ ( वही , पृ. १३७ )
२९ अक्टूबर , १९३२ को एक बंगाली सज्जन का पत्र गांधी जी को मिला, ‘आप ‘हरिजन’ नाम देकर अछूतों का दूसरा नाम कायम करना चाहते हैं । इन्हें नाम देने की बात ही क्यों न छोड़ दी जाए ? उसके जवाब में गांधी जी ने लिखा- ‘हरिजन’ शब्द अछूत भाइयों को ध्यान में रखकर हमेशा के लिए इस्तेमाल करना हो , तो आपका ऐतराज ठीक है ।मगर अभी तो उन्हें अलग करके दिखलाए बिना काम नहीं चल सकता ।साथ ही मुझे यह लगता है कि ‘अछूत’ या उससे मिलते-जुलते देशी भाषाओं में काम में लिए जाने वाले दूसरे शब्द उनके लिए इस्तेमाल करना अब उचित नहीं है।’ ( वही, पृ. १५५ )
गांधी जी ने सवर्णों के लिए भी एक नाम दिया था । अहमदाबाद में सवर्णों की एक सभा में उनके भाषण में यह नाम आया है । ‘ मेरे लिए अछूत , यदि हम अपने से (सवर्णों से ) तुलना करें , तो हरिजन है – भगवान का आदमी और हम दुर्जन हैं ।अछूतों ने सारे श्रम करके , शोणित सुखाकर तथा अपने हाथ गंदे करके हमें आराम और सफाई से रहने की सुविधा दी है । —– यदि हम चाहें तो अब से भी खुद हरिजन बन सकते हैं , लेकिन इसके लिए हमें उनके प्रति किये गये पापों का प्रायश्चित करना पड़ेगा ।’ (महात्मा गांधी ,अहमदाबाद के सवर्णों को , यंग इण्डिया ,६ अगस्त ,१९३१,पृ. २०३ )
समतावादी नेता किशन पटनायक का ‘हरिजन बनाम दलित’ , नाम की इस बहस के सन्दर्भ में ठोश सुझाव है कि ‘हरिजन’ शब्द अछूतों के लिए था । जिस हद तक अछूत नहीं रह गये हैं उस हद तक हरिजन शब्द भी हटाना चाहिए और अगर प्रत्यक्ष या परोक्ष ढंग से सवर्ण जातियाँ अस्पृश्यता को चलाए रखना चाहती हैं तो गांधी के द्वारा प्रयुक्त दूसरे शब्द का इतेमाल व्यापक होना चाहिए और सभी उच्च जातियों को दुर्जन जातियाँ कह कर पुकारना चाहिए ।—-‘दलित’ शब्द की विशेषता यह है कि स्वत: स्फूर्त ढंग से शिक्षित , सचेत हरिजन समूह इस शब्द के साथ जुड़ रहे हैं ।’ ( हरिजन बनाम दलित,सं राजकिशोर ) यहाँ यह ध्यान रखना चाहिए कि इस वर्ग के बड़ी संख्या में साधारण ग्रामीण आज भी अपनी जाति का नाम न बता कर खुद को हरिजन कहते हैं । क्या इसका यह कारण है कि ग्रामीण समाज में अस्पृश्यता समाप्त नहीं हुई है और इस कारण गांधी जी द्वारा दिया गया नाम सवर्णों से बताने में एक तरह की सुरक्षा का भाव छिपा होता है ?
वे भले ही अस्पृश्यता बनाए रखना न चाहते हों, पर जातीय श्रेष्ठता के अपने अभिमान को वे निश्चय ही त्यागना नहीं चाहते। वे जाति-भेद और उसमें निहित पदानुक्रम को बनाए रखना चाहते हैं। आप खुलकर उन्हें दुर्जन न भी कहें, केवल उनके सवर्ण दंभ को उजागर कर दें तब भी उन्हें उतनी ही मिर्ची लगेगी।
हमे तो लगता था कि अब तो शायद हरिजन शब्द का प्रयोग कोई नही करता है।
यथार्थ लेख। अच्छी जानकारी मिली।
बहुत खूब… मज़ा आ गया
जिस हद तक अछूत नहीं रह गये हैं उस हद तक हरिजन शब्द भी हटाना चाहिए और अगर प्रत्यक्ष या परोक्ष ढंग से सवर्ण जातियाँ अस्पृश्यता को चलाए रखना चाहती हैं तो गांधी के द्वारा प्रयुक्त दूसरे शब्द का इतेमाल व्यापक होना चाहिए और सभी उच्च जातियों को दुर्जन जातियाँ कह कर पुकारना चाहिए ।
जिसका सामाजिक समता में भरोसा नहीं और जो समतावादी नहीं वह ‘दुर्जन’ है .
आपके साथ सहमति है .
hi
how ru
im jai singh
kumar
[…] गांधी , अम्बेडकर और मिट्टी की पट्टियाँ… […]
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क्या इसका यह कारण है कि ग्रामीण समाज में अस्पृश्यता समाप्त नहीं हुई है ,,,,,, haqiqkat ko swikar karana chahiye
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[…] (4 ): मनु स्मृति , गीता आदि:अफ़लातून गांधी , अम्बेडकर और मिट्टी की पट्टियाँ… […]