- परमाणु बिजली कत्तई सस्ती नहीं है । पूँजी का फँसे रहना , परमाणु – ईंधन प्रसंस्करण , परमाणु – कचरे का निपटारा , समग्र बिजली घर की ‘उमर बीत जाने’ पर उसकी कब्र का खर्चा इत्यादि प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष तथा आनुषंगिक सभी खर्चों का हिसाब करने पर परमाणु बिजली अत्यन्त मंहगी पड़ती है। आज कुल बिजली का ३% परमाणु उर्जा से मिलता है । पिछले दो तीन सालों में बाजार में यूरेनियम की कीमत सात डॉलर प्रति पाउन्ड से बढ़कर १३५ डॉलर प्रति पाउन्ड हो गयी है । इस करार से अगर यूरेनियम खरीदने को मिलता है और भारतीय परमाणुविदों को जैसे संयंत्रों की आदत है (CANDU) वैसे नए संयंत्र बनते तब भी यह बिजली मंहगी पड़ती । मगर अमेरिका अपनी मृतप्राय तकनीक के साथ बिजली घर तथा ईंधन बेचना चाहता । यह गौरतलब है कि १९७८ के बाद अमरीका में एक भी नया परमाणु बिजली घर नहीं बना । परमाणु बिजली केन्द्रों पर एक लाख करोड़ रुपये लगने का अन्दाज है। दुर्घटना आदि के खर्च अलग रखें तब भी परमाणु बिजली मंहगी है तथा और मंहगी हो जायेगी। चेर्नोबिल जैसी दुर्घटना हो जाये तब तो खर्च का अन्दाज लगाना भी मुश्किल है ।
- परमाणु बिजली घरों की प्रत्येक प्रक्रिया में रेडियोधर्मी विकिरण होता है । सुरक्षा के समस्त उपाय अपनाने के बावजूद दीर्घ कालीन घातक असर होते हैं । इनके साथ साथ बिलकुल अकल्पनीय – अचिन्तनीय दुर्घटनाएं भी होती है । जदुगुड़ा(झारखण्ड स्थित यूरेनियम खदान) और रावतभाटा में तो जन्मजात विकलांगता की मात्रा बढ़ी है ,प्रजनाशक्ति पर प्रभाव पड़ा है , लोगों का बुढ़ापा जल्दी आता है(यह वैज्ञानिक शोध से ज्ञात हुए नतीजे हैं ।)
- रेडियोधर्मी परमाणु कचरे के निपटारे के उपाय आज किसी की भी समझ के बाहर है। कई विशेषज्ञों का कहना है कि इसका समाधान होना नामुमकिन है । यह परमाणु कचरा पांच लाख साल तक सक्रिय रह कर वातावरण में जहरीला असर फैलाता रहेगा। मृत्यु का यह भभूत हजारों बरस तक कई पीढ़ियों का जीवन विषमय तथा नरक बना देता है । जहाँ – जहाँ परमाणु बिजली घर बने हैं वहाँ – वहाँ छोटी-बड़ी दुर्घटनाएं हुई हैं । ब्रिटेन में विन्डस्केल की आग , सोवियत यूनियन में यूराल विस्फोट तथा चेर्नोबिल , अमेरिका में थ्री माइल आइलैण्ड तथा जापान में मिहामा-रोकशो का भूंकम्प आदि । दुर्घटनाएं भारत में भी हुई हैं नरोरा की १९९३ की आग , काकरापार की १९९४ की बाढ़ , कैगा के डैम का गिरना तथा २००४ में काकरापार में अचानक power surge यह तो छोटे-मोटे उदाहरण मात्र हैं ।यह सभी घटनाएं भयानक ताण्डव का रूप ले सकती थीं ।
- परमाणु बिजली सम्बन्धी अनुमान गलत साबित हुए हैं । तजुर्बा बताता है कि यह एक अत्यन्त गम्भीर , मंहगी और विनाशक भूल थी । अमेरिका अलावा इंग्लैण्ड ,स्वीडन आदि कई अमीर देशों ने परमाणु बिजली के नये केन्द्र लगाना बन्द कर दिया है एवं वैकल्पिक उर्जा स्रोतों के विकास पर विचार किया जा रह्जा है ।
२१ वीं शताब्दी में ऐसी जहरीली , जोखिमभरी तथा पर्यावरण का सर्वनाश न्योतने वाली तकनीकी का कोई स्थान नहीं होना चाहिए । परमाणु बिजली के पीछे अब भी दौड़ते रहना अद्यतन जागतिक धाराओं का समग्र अज्ञान दिखाता है ।
हजारों करोड़ का होम करने के बाद भी दस फीसदी से कम बिजली पैदा होगी। इससे अत्यन्त कम खर्च में अन्य स्रोतों से बिजली बनाई जा सकती है । यह अधकचरा विज्ञान है , विज्ञान की विकृति है ।
[ डॉ. संघमित्रा देसाई गाड़ेकर और कांति शाह के आलेखों के आधार पर। प्रस्तुति अफ़लातून ]
इतना सब होने के बावजूद सोवियत रूस ने कितने-कितने परमाणु ऊर्जा संयंत्र लगा डाले.
अतुलजी ,
चेर्नोबिल के बावजूद आपको रूस के परमाणु बिजली घरों पर फक्र है ! आपके दल को तब तो इस नये करार पर भी फक्र होना चाहिए?
सप्रेम,
अफ़लातून
आदरणीय मित्र, आज बहुत समय के बाद आप के चिट्ठे पर आना हुआ. (मैं लगभग 4 महीने चिट्ठाकारी से “छुट्टी” पर था).
आपके सारे लेखन मैं ध्यान से पढता हूँ क्योंकि उन में चिंतन के लिये काफी सामग्री मिल जाती है.
आप का आज का चिट्ठा मेरे विषय (भौतिकी) से संबंध रखता है अत: इसने मुझे बहुत आकर्षित किया. आप सही कहते हैं कि परमाणु ऊर्जा कई तरह की समस्यायें पैदा करती है, लेकिन जल-ऊर्जा इससे भी अधिक समस्या पैदा करती है. वातावरण को, जंगलों को, हर चीज को नष्ट कर देती है. इतना ही नहीं आज भारत की नदियों में इतना जल प्रवाह नहीं बचा है कि वह देश को उर्जासंकट से बचा सके.
मेरा सुझाव है कि आप इस विषय के सारे पहलुओं पर पुनर्चिंतन करके इससे अधिक समग्र एवं अधिक संतुलित लेख हम सब को प्रदान करें जिसमें विद्युत ऊर्जा से सारे स्रोतों पर आप अपनी समग्र राय पाठकों के समक्ष रखें.
सस्नेह, शास्त्री
शास्त्रीजी ,
यह लेख जरूर देखिएगा। रमणा प्रिन्स्टन में भौतिकी के प्रोफ़ेसर हैं । उर्जा पर जरूर बात होगी ।
मुझे लगता है कि हमारे पास अधिक विकल्प नहीं हैं सिवाय उर्जा के नए विकल्प ढूँढने के और उर्जा का कुशल उपयोग करने के। वैसे यदि विज्ञान का सही उपयोग किया जाए तब भी उर्जा की खपत को कम किया जा सकता है। जैसे विडीयो कॉन्फ्रेंस की सुविधा का उपयोग करके अलग अलग शहर के लोगों को मिलने के लिए यात्रा से बचाना। महानगरों के बीच ही छोटे छोटे अपने में सम्पूर्ण उपनगर बसाना आदि। इमारतों को भी पश्चिम की नकल में न बनाकर ऐसे बनाया जाए कि कम से कम उर्जा की आवश्यकता हो।
घुघूती बासूती
अफ्लातून जी, आप द्वारा सुझाया लेख आज ही देखता हूँ.
हम तो ख़ैर अज्ञानी ठहरे, मगर यह अर्जी ज़रूर आगे ठेल रहे हैं कि जितने भी विज्ञानी हैं, सब ज़रा खुलकर ऊर्जा के प्रश्न पर जनगण का ज्ञानदान करें. और भैया, अफ़लातून महाराज, आप एक अलहदा टैग में इस रहस्यवादी पंचाग की गुत्थियां सामने लाने का पुण्य कमायें.
घुघूती जी की सलाह की भी जय हो.
अफलातून जी यह लेख पहुंचाने के लिए धन्यवाद।
मैं परमाणु उर्जा के पक्ष में हूं। हां, यह जरूर है कि यह थोड़ी महंगी उर्जा है लेकिन इससे काफी उर्जा पैदा हो सकती है। साथ ही मैं पवन उर्जा, और जल उर्जा का भी पक्षधर हूं।
यह लेख सिक्के का एक पहलू दिखाता मालूम पड़ता है। दूसरा पहलू भी दिखाएं तो यह लेख और मत पूर्ण होगा
धन्यवाद
राजेश रोशन
अगर सबसे पहली टिप्पणी सीपीआई वाले अतुल ‘अनजान’ की ही तो है तब तो बड़ी अज़ीब बात है . उनकी टिप्पणी एक तरह से परमाणु बिजली और परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के पक्ष में दिखती है . तब सरकार के विरोध का इतना हो-हल्ला और सरकार से अलगाव क्यों ?
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