गत भाग का शेष :
पाकिस्तान :
अफ़गानिस्तान में चल रहा युद्ध तब तक जीता नहीं जा सकता जब तक पाकिस्तानी फौज तालिबान से दीर्घ कालीन न्यस्त स्वार्थ बरकरार रखे हुए है । मसला पश्चिमोत्तर सरहदी क्षेत्र (FATA) पर हवाई हमले से उतना हल नही होने वाला जितना इस हक़ीकत में है कि पाकिस्तानी फौज की राजनैतिक आकांक्षाओं को अमेरिका की मौन स्वीकृति हासिल है । मि. ओबामा ने वादा किया है कि वे इस दिशा में कदम उठाएंगे लेकिन उसके पहले उन्हें पेन्टागॉन (अमेरिकी रक्षा मन्त्रालय ) के सांगठनिक स्वार्थों से ऊपर उठना होगा । पेन्टागॉन पाकिस्तानी सैन्य प्रतिष्ठान में निहित स्वार्थ स्थापित किए हुए है ।
आतंकवाद के खिलाफ़ जंग :
यातना देने और लम्बे समय तक बन्दी रखने की बुश की नीति को मि. ओबामा द्वारा समाप्त करना, कम-से-कम कागजी तौर पर, सब से आसान है । अगले कदम के तौर पर ओबामा को उन लोगों की आपराधिक जिम्मेदारी तय करना चाहिए जिन्होंने अंतर्राष्ट्रीय मानवतावादी कानूनों के उल्लंघन को मंजूरी दी थी ।
रूस :
बुश प्रशासन मॉस्को के साथ बरबाद हुए सम्बन्धों की सर्वाधिक क्षयकारी विरासत छोड़ कर जा रहा है । ज्यॉर्जिया – संकट एक गहन बीमारी का ऊपरी लक्षण मात्र है । इस बीमारी की जड़ में अमेरिका द्वारा मजबूत हो रहे रूस को एक फंदे में फँसाने के लिए सोच-समझकर और लगातार डाला गया दबाव है । उसकी यह रणनीति निष्फल हो गयी है। शीत युद्ध को पुनर्जीवित करने के बजाए परस्पर विश्वास पैदा करना नए प्रशासन के लिए प्रमुख चुनौती होगी ।
हथियारों की होड़ :
हाँलाकि यह प्रतीत होता है कि अमेरिका मिसाइल रक्षा की गति को पलटने में काफ़ी आगे बढ़ चुका है, परंतु एक ऐसा राष्ट्रपति जो अस्त्र नियंत्रण , अप्रसार और नि:शस्त्रीकरण के प्रति कटिबद्ध होगा वह अस्त्रों और मिसाइलों की फिर शुरु हो चुकी होड़ को रोकने के उपाय निकालेगा । सीटीबीटी के अनुमोदन पर जोर देने के अलावा मि. ओबामाको किसिंजर आदि द्वारा परमाणु हथियारों के खात्मे के प्रस्ताव पर चलना होगा ।
वैश्विक अर्थव्यवस्था और विश्व-लोकहित :
वित्तीय संकट ने अमेरिका और विश्व को आर्थिक गैरबराबरी और आर्थिक स्थिरता के बीच प्रतिलोमी सम्बन्ध को बेहतर तरीके से समझने का एक अवसर दिया है । मि. ओबामा ने अमेरिकी जनता से एक संतुलित और न्यायपूर्ण पुनर्वितरण का वादा किया है – इसे ही विश्व के स्तर पर लागू करने पर वैश्विक अर्थव्यवस्था की स्थिरता की दिशा में बढ़ा जा सकता है । निर्वाचित राष्ट्रपति ने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती करने के प्रति भी एक जिम्मेदार रवैय्या अपनाने की प्रतिबद्धता जतायी है । इस आश्वासन को पूरा करने के लिए यदि वे समझदार उर्जा नीति अपनायेंगे तो वह मौसम परिवर्तन का सामना करने के लिए चल रहे अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों को बल प्रदान करेगा।
लैटिन अमेरिका :
बोलिविया , वेनेज़ुएला , इक्वाडोर तथा अम्य लैटिन अमेरिकी मुल्कों की जनता की लोकतांत्रिक आकांक्षाओं का विरोध करना बुश प्रशासन का प्रतीक-चिह्न था । मि. ओबामा के लिए ऐतिहासिक मौका है कि वे इस धारा को पलटें । क्यूबा पर लगाए गैर कानूनी प्रतिबन्धों को भी उन्हें समाप्त करना चाहिए तथा अपनी आर्थिक-राजनैतिक व्यवस्था पर फक्र करने वाले इस नन्हें से टापू – राष्ट्र को मान्यता प्रदान करनी चाहिए ।
इन दस मसलों पर कार्रवाई हेतु अमेरिकी नीति में किसी क्रान्तिकारी परिवर्तन की जरूरत नहीं है । सिर्फ़ थोड़ी-सी समझदारी , सामान्य बुद्धि तथा बदलाव की इच्छा से यह मुमकिन है । क्या ओबामा यह कर सकेंगे ? अपनी जनता से किए गए वादों को पूरा करने के लिए यह सब करना जरूरी होगा । जैसे ‘ मेन स्ट्रीट की बदहाली के साथ वॉल स्ट्रीट फल-फूल नहीं सकती ‘ । जिस शेष विश्व पर अमेरिका दीप स्तंभ जैसे रौशन होना चाहता है जब तक हिंसाग्रस्त और अन्यायग्रस्त रहेगा तब तक अमेरिका भी आर्थिक संकट से त्रस्त और भयग्रस्त रहेगा ।
लेखक – सिद्धार्थ वरदराजन , एसोशिएट एडिटर , द हिन्दू
तर्जुमा – अफ़लातून.
मूल लेख – यहाँ