घोषणा पत्र क्यों ?
आमतौर पर पार्टियों के लिए चुनाव घोषणापत्र एक रस्म अदायगी होता है । चुनाव के बाद वे इसे भूल जाती हैं । जो पार्टी सरकार बनाती है , वे अपनी घोषणाओं को लागू करने की कोई जरूरत नहीं समझती है । कई दफ़े वे अपने घोषणा पत्र के खिलाफ़ काम करती हैं । जो पार्टी हार जाती है , वह भी अपने घोषणापत्र के मुद्दों को लेकर आवाज उठाने और संघर्ष करने के बजाय चुपचाप बैठकर पांच साल तक तमाशा देखती है ।
समाजवादी जनपरिषद यह घोषणापत्र पूरी गंभीरता से मध्य प्रदेश की जनता के सामने पेश कर रही है । इसमें न केवल प्रदेश की मौजूदा खराब हालत के बारे में विश्लेषण है , और मौजूदा सरकारों और पार्टियों की नीतियों पर टिप्पणी है , बल्कि मध्यप्रदेश की जनता की मुक्ति कैसे होगी , मध्यप्रदेश का विकास कैसे होगा , नया मध्यप्रदेश कैसे बनेगा , इस बारे में समाजवादी जनपरिषद की समझ तथा कार्य योजना का यह एक दस्तावेज है । बड़ी पार्टियों द्वारा उछाले गए नकली मुद्दों और नारों को एक तरफ करके जनता के असली मुद्दों को सामने लाने की एक ईमानदार कोशिश है ।
समाजवादी जनपरिषद जीते या हारे , इस घोषणापत्र में घोषित मुद्दों , नीतियों व घोषणाओं को लेकर वह लगातार विधानसभा के अंदर व बाहर संघर्ष करेगी । यह संघर्ष तब तक जारी रहेगा , जब तक जनता की छाती पर चढ़कर उसका खून चूसने वाले भ्रष्टाचारियों , बेईमानों , लुटेरों का राज खतम नहीं हो जाता और मेहनतकश लोगों की बराबरी एवं हक वाली एक नयी क्रांतिकारी व्यवस्था कायम नहीं हो जाती ।
मध्यप्रदेश के राजनैतिक हालात
जो हालत भारत की राजनीति की है , वही कमोबेश मध्यप्रदेश की है , बल्कि यहाँ पर पिछले काफी समय दो पार्टियों का एकाधिकार होने से हालत और खराब है । कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी दोनों अदल-बदल कर इस प्रदेश पर राज कर रही हैं । दोनों की नीतियों , चरित्र व आचरण में कोई खास फर्क नहीं है । दोनों ने मिलकर प्रदेश की जनता को फुटबॉल बना दिया है । जनता एक से त्रस्त होकर दूसरी पार्टी को सत्ता में लाती है , फिर उनसे परेशान होकर वापस पहली को गद्दी पर बैठाती है । जो पार्टी सरकार में नहीं होती है , वह जनता के मुद्दों और कष्टों को लेकर कोई जोरदार आन्दोलन करने की जरूरत नहीं समझती , बल्कि वह चाहती है कि जनता की परेशानी बढ़े , जिससे उन्हें वापस सत्ता में आने का मौका मिले ।
कांग्रेस ने सड़क , बिजली , पानी , शिक्षा और स्वास्थ्य का निजीकरण शुरु किया जिसे भाजपा ने आगे बढ़ाया । मतलब जनता की इन जरूरी आवश्यकताओं को पूरा करने की जवाबदारी सरकार की बजाए निजी कम्पनियों ( सेठों ) की हो गयी । यह कम्पनियां यह सुविधायें उन्हीं लोगों को देंगी जो उसका , उनकी तय की गई दरों पर भुगतान कर सकेगा।
सरकारी स्कूलों में मास्टर और किताबें नहीं हैं । चारों तरफ़ निजी स्कूलों का बोलबाला है । अस्पतालों के हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं, लोग प्रायवेट डॉक्टरों से भरोसे इलाज करा रहे हैं । बात यहीं रुक जाती है ऐसा नहीं है । प्रदेश की लाखों एकड़ जमीन भूमिहीनों को देने के बजाए बड़ी बड़ी कम्पनियों को लम्बी लीज पर दी जा रही है ।
प्रदेश सरकार की सारी योजनाएँ भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई हैं । चाहे वो रोजगार गारंटी योजना हो , या शक्तिमान या जननी सुरक्षा । न तो रोजगार गारंटी में पूरा काम मिल रहा है न मजदूरी । सरकार ने रही सही कसर गरीबी रेखा से लोगों के नाम काटकर पूरी कर दी है । प्रदेश में भूख और कुपोषण से बच्चों की मौत का ताण्डव चल रहा है । ” गरीब की थाली नहीं रहेगी खाली” का जो नारा भाजपा ने दिया था वो उलटा हो गया । प्रदेश का किसान खाद , बिजली पानी के साथ-साथ समर्थन मूल्य और समय पर अपनी फसल का भुगतान पाने के लिए भटकता रहा । राजनैतिक विकल्पहीनता और जड़ता की इस हालत को बदलना जरूरी है । समाजवादी जनपरिषद इसके लिए पूरी कोशिश करेगी ।
[ जारी ]
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कोई भी पार्टी हो, होता यह रहा है की केवल वादे होते है, उन्हे कैसे पूरा किया जा सकता है इस पर चिंतन प्रस्तुत नहीं किया जाता. इसलिए हवाई वादे करना आसान रहता है.
घोषणा पत्र में सारी बातें सही कही गई हैं। आगे प्रतीक्षा है।
वह समय इतिहास हो गया जब पार्टियां अपना घोषणा पत्र निकालती भी थीं और उसकी चिन्ता भी करती थीं । निस्सन्देह, तब मतदाताओं का बडा वर्ग इन घोषणा पत्रों की प्रतीक्षा भी करता था । किन्तु अब स्थिति एकदम उलट गई है । पार्टियों के घोषणा पत्र छपते भी हैं या नहीं-पता नहीं हो पाता । लगता है, मानो एक औपचारिकता पूरी करने के लिए घोषणा पत्र छापा जाता हो । इसी के समानान्तर, अब घोषणा पत्र की मांग करने वाले मतदाता भी नजर नहीं आते ।
चुनावी घोषणा पत्र किसी भी पार्टी के लिए ‘पवित्रतम ग्रन्थ’ होना चाहिए । लेकिन अब तो वह तत्काल निरस्त कर देने वाला अभिलेख हो गया है । कोई भी पार्टी इसकी परवाह नहीं करती ।
2003 के विधान सभा चुनावों में भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में वादा किया था कि वह ‘वृत्ति कर’ (प्रोफेशनल टैक्स) समाप्त कर देगी । विधान सभा में भाजपा को दो तिहाई बहुमत मिला, भाजपा की सरकार बनी । लोगों ने जब वृत्ति कर समाप्त करने की बात याद दिलाई तो बडी बेशर्मी से कह दिया गया कि यह घोषणा ‘मुद्रण की गलती’ थी ।
इसी प्रकार भाजपा ने वादा किया था कि शिक्षाकर्मी, सम्विदा शिक्षक, गुरुजी आदि के तमाम वर्गभेद समाप्त कर सबको एक ही वर्ग में परिवर्तित करेगी ।
अध्यापकों ने जब यह वादा याद दिलाया तो सीनाजोरी से कह दिया गया कि घोषणा पत्र का प्रत्येक वादा पूरा किया ही जाए, यह जरूरी नहीं ।
ऐसे में समाजवादी जनपरिषद यदि अपना घोशणा पत्र जारी कर रही है तो यह प्रसन्नता की ही बात है । लेकिन खेदजनक स्थिति यह होगी कि इसे बहुमत मिलना नहीं है और जो सरकार में बैठेंगे, वे अपने घोषणा पत्र को कूडेदान में फेंक चुके होंगे ।
बहरहाल, राजनीति के अनुत्तरदायी हो जाने वाले इस समय में यह स्वैच्छिक पहल प्रशंसनीय और अभिनन्दनीय है – अन्य दलों के लिए अनुकरणीय भी ।
दिल्ली में निजी क्षेत्र में नौयडा टॉल ब्रिज बना. पहले इसमें साइकिलें चला करती थीं लेकिन अब इसमें साइकिलें चलना बन्द है क्योंकि साइकिल सवारों से नौयडा टॉल ब्रिज को आमदनी नहीं होती. इसके लिये जमीन सरकार ने दी है लेकिन जनसामान्य का हक इस पर नहीं है. दिल्ली में ही अपोलो को जमीन सरकार ने लगभग मुफ्त ही दी है, इस शर्त पर कि इसमें कुछ प्रतिशत गरीबों का भी मुफ्त इलाज किया जायेगा. लेकिन अभी सुप्रीम कोर्ट ने इस पर चिन्ता व्यक्त की है कि इसमें गरीबों का इलाज क्यों नहीं किया जाता?
शीला दीक्षित ने दिल्ली की बिजली तो अम्बानी को बेच ही दी है जल विभाग को भी लगभग बेचने की तैयारी कर ली थी लेकिन यहां के लोगों के द्वारा विरोध करने पर इसे पीछे हटना पड़ा.
सड़क , बिजली , पानी , शिक्षा और स्वास्थ्य का निजीकरण जब तक नहीं हुआ था तब तक मुझे भी निजीकरण हल दिखता था लेकिन इसके नतीजे भयावह हुये हैं.
[…] भाग : एक , […]
[…] हिस्से : एक , दो , तीन , […]
[…] भाग : एक , दो , तीन , चार , […]
guru ji ‘Aadab’
yahan koi bhi comment karna mere bas ki baat nahi han. itna zaroor hai ki aap hi ham sabhi ka hausla hain.mai is ummid ke sath apko badhai de raha hun ki aane wale waqt me ham uttar pradesh ko ek adarsh pradesh bante dekhenge.jo mashal apne jalai hai insha allah uski mand lav ek din desh ki rajneeti ko patri par le kar ayegi.
apka hindustani shishya
gufran
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