मध्यप्रदेश के मुख्यमन्त्री शिवराजसिंह चौहान ने केन्द्र सरकार द्वारा बिजली पैदा करने के लिए जरूरी कोयले की आपूर्ति न किए जाने के विरुद्ध अपने प्रतिकार-कार्यक्रम को ‘कोयला सत्याग्रह’ कहा है । गांधी द्वारा इस औजार के प्रयोग की शताब्दी पूरी होने के बाद तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा ‘प्रात: स्मरणीयों’ में गांधी को शुमार किए जाने के करीब ३५ वर्षों बाद भाजपा के इस युवा मुख्यमन्त्री ने मालूम नहीं कितनी शिद्दत से गांधी को याद किया होगा ? यह गौरतलब है कि इस विचारधारा वाले इस प्रात: स्मरणीय की हत्या नहीं ‘वध’ का वर्णन करते हैं ।
विधानसभा चुनाव में हाल ही में जनता ने शिवराजसिंह चौहान को साफ़ बहुमत दिया है । बहैसियत सूबे के मुख्यमन्त्री उन्होंने हम्मालों और मजदूरों की पंचायत भी आयोजित की । इनके ‘सत्याग्रहों’ और ‘पंचायतों’ से मुझे ‘७४ के दौर में बिहार के तत्कालीन मुख्यमन्त्री अब्दुल गफ़ूर के समर्थन में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा आयोजित भाड़े की रैलियों की याद आती है । एक तरफ़ सम्पूर्ण क्रान्ति आन्दोलन के मद्दे नजर राज्य सरकार द्वारा बस , स्टीमर बन्द किए जाने के बावजूद पूरे बिहार से लाखों की तादाद में छात्र-युवा-मजदूर-किसान कई किलोमीटर चौड़ी हुई पटना की गंगाजी को केले के तनों से बने बेडों पर बैठ कर पार कर जयप्रकाश की रैलियों में पहुँचते थे वहीं राज्य सरकार द्वारा प्रायोजित भाकपा अथवा इन्दिरा ब्रिगेड के जनविहीन प्रदर्शनों में गुलाब जल और शरबत की व्यवस्था रहती थी ।
यह वही दौर था जब नागार्जुन बाबा ने लिखा , ‘ अख़्तर हुसैन बन्द है पटना की जेल में , अब्दुल गफ़ूर मस्त है सत्ता के खेल में ‘। अख़्तर हुसैन छात्र-युवा-संघर्ष-समिति तथा लोहिया विचार मंच से जुड़े हमारे साथी थे और पुलिस की बर्बर पिटाई के बाद उनकी गिरफ़्तारी हुई थी ।
पिछले एक पखवारे से दो साल पुराने निहायत फर्जी मुकदमों के तहत हरदा और होशंगाबाद जेलों में निरुद्ध समाजवादी जनपरिषद की प्रान्तीय उपाध्यक्ष साथी शमीम मोदी की गिरफ़्तारी के विरुद्ध दल द्वारा भोपाल में आयोजित प्रदर्शन में भाग लेने जब मैं भोपाल पहुँचा तब लगातार नागार्जुन बाबा की उक्त पंक्तियाँ दिमाग में कौंधती रहीं । अपनी नेता की रिहाई करने वाले जो आदिवासी , किसान , मजदूर और हम्माल वहाँ जुटे थे वे इस प्रान्त के सबसे कमजोर तबके के प्रतिनिधी थे । तम्बाकू से भरी अपनी चिलम को दगाने के लिए जो दियासलाई नहीं खरीदते हैं – चकमक पत्थर और सेमर की रूई का प्रयोग करते हैं । पूरा दिन पैदल चल कर अपने गाँव से रेलवे स्टेशन तक पहुँची महिलाएँ और न्यूनतम मजदूरी और काम के घण्टों को तय करने के लिए श्रम कानूनों को लागू करवाने की माँग कर रहे हम्माल और आरा मशीनों के मजदूर ।

जेल में जब तक चना रहेगा,आना-जाना बना रहेगा

गुलामी की कड़ी तोड़ो,तड़ातड़ हथकड़ी तोड़ो

फूलमती के अपहरण का फर्जी आरोप !
-
म.प्र उच्च न्यायालय के मुख्य न्या्याधीश श्री ए.के पटनायक ने ३० जुलाई २००७ को अपने सामने शमीम द्वारा कथित तौर पर अपहृत महिलाओं के बयान लिए,जिसमें उन्होंने रेंजर के अत्याचारों की बाबत स्पष्ट बताया । उच्च न्यायालय के निर्देश पर उनका मेडिकल परीक्षण एवं इलाज कराया गया ।
-
दो दिन पहले की घटना में जिन आदिवासियों को भड़काने का आरोप शमीम पर लगाया गया है , दो दिन बाद उन्हीं आदिवासियों का अपहरण वे कैसे कर सकती हैं ? अपहृत व्यक्तियों अथवा उनके स्वजनों द्वारा कोई शिकायत नहीं दर्ज कराई गई है ।
-
उच्च न्यायालय द्वारा उक्त गाँव में रेंजर द्वारा अपनी बन्दूक से गोली चलाने की पुष्टि सागर की फोरेन्सिक प्रयोगशाला में हुई है ।
हम एक अरसेसे इस बात को मानने के आदी बन गये हैं कि आम जनताको सत्ता या हुकूमत सिर्फ धारासभाओंके (विधायिका) जरिए मिलती है । इस खयाल को मैं अपने लोगोंकी एक गंभीर भूल मानता रहा हूँ । इस भ्रम या भूल की वजह या तो हमारी जड़ता है या वह मोहिनी है , जो अंग्रेजोंके रीति-रिवाजोंने हम पर डाल रखी है । अंग्रेज जातिके इतिहासके छिछले या ऊपर-ऊपरके अध्ययनसे हमने यह समझ लिया है कि सत्ता शासन-तंत्रकी सबसे बड़ी संस्था पार्लमेण्टसे छनकर जनता तक पहुँचती है । सच बात यह है कि हुकूमत या सत्ता जनता के बीच रहती है ,जनता की होती है और जनता समय-समय पर अपने प्रतिनिधियोंकी हैसियतसे जिनको पसंद करती है , उनको उतने समय के लिए उसे सौंप देती है । यही क्यों , जनतासे भिन्न या स्वतंत्र पार्लमेण्टों की सत्ता तो ठीक , हस्ती तक नहीं होती । सत्ता का असली भण्डार या खजाना तो सत्याग्रहकी या सविनय कानून-भंग की शक्ति में है ।”(मो.क.गाँधी,रचनात्मक कार्यक्रम ,पृष्ट १० – ११ )
आप सत्याग्रह की आत्मा की बात कर रहे हैं जबकि शिवराज एण्ड कम्पनी के लिए यह जो एक झुनझुना मात्र है। गांधी के सत्याग्रह में सरकार ‘डण्डा-बन्दूक’ लिए होती थी। शिवराज के सत्याग्रह में सरकार, लाल कालीन बिछाए काजू-किशमिश लिए खडी रहती है।
शिवराज की प्राथमिकता सूची में सत्ता प्रथम क्रम पर है जबकि गांधी की प्राथमिकता सूची में तो यह कहीं नहीं है।
आपका तथ्यात्मक ब्यौरा बडी ही बेबाकी से शिवराज का सत्य उजागर करता है।
वर्तमान राजनीति पूरी तरह सत्ता की चेरी बन चुकी है । ऎसे में शिवराज का ’सत्याग्रह’ सत्य के प्रति आग्रह बनने की बजाय सत्ता तक पहुँचने का साधन मात्र है ।
अच्छा विश्लेषण …अफसोस की बात यह है कि इस बडे़ प्रदर्शन की रपट भोपाल के एक दो अखबारों को छोड़कर किसी ने नहीं छापी….जन-सरोकारों से मीडिया की घटती रुचि चिंताजनक है….
आप का यह आलेख पूरी तरह साबित करता है कि मध्य प्रदेश की सरकार जनता के हित में नहीं सत्ता (जनता के शोषकों) के हित में है। सत्ता का चरित्र सदैव दमनकारी होता है।
शोषण के विरुद्ध हमारी पक्षधरता दर्ज की जाए
‘Satyagrah’ shabd ke arth ko bhi khilwad bana denge aise sarkari aayojan.
Madhya Pradesh government must withdraw false charges and release Shameem immediately.
Related Articles
[…] की गिरफ्तारी पर मेरी रपट पढ़ें […]
शमीम मोदी की गिरफ़्तारी लोकतंत्र की बुनियादी नागरिक स्वतंत्रताओं पर चोट है। अगर आदिवासियों, दलितों, वंचितों और अन्याय के शिकार गरीबों के पक्ष में आवाज़ उठाने या शांतिपूर्ण आंदोलन चलाने वालों के विरुद्ध ऐसी कार्रवाई लगातार होती रही, तो मान कर चलिये कि इस शासन प्रणाली की नैतिक और संवैधानिक वैधता खत्म हो चुकी है। सरकार को फ़ौरन अपनी गलती मानते हुए शमीम मोदी को रिहा करना चाहिए।
हमारे समय की इससे बड़ी विडंबना क्या होगी कि मुंबई में ब्लैक फ़्राइडे के आतंकवाद और देश-विरोधी हिंसा के आरोपी संजय दत्त आज़ाद हैं और चुनाव लड़ रहे हैं और विनायक सेन तथा शमीम मोदी जेल में बंद हैं। फ़ैज़ की पंक्तियां याद आती हैं ‘संग-ओ-खि़श्त मुकय्यद हैं और सग आज़ाद’ । क्या हमारे देश में शासक पाकिस्तान के ज़िया उल हक़ की तानाशाही पर अमल कर रहे हैं?
यह सचमुच लोकतंत्र पर एक गहरे संकट का दौर है!
[…] पर अपनी राय दर्ज की है | कुछ अन्य रपट : https://samatavadi.wordpress.com/2009/02/24/satyagrahi_shivaraj_shamim_modi_arrest/ http://www.bhaskar.com/2009/02/21/0902210701_protest_against_government_by_ngo_in_bhopal.html […]
M.P. GOVT. KE VIRUDHA HAMARI “JAGO PARTY” KA BIRODHA DARJA KARE.
[…] ‘सत्याग्रही’ शिवराज के राज में […]
[…] ‘सत्याग्रही’ शिवराज के राज में […]
[…] ‘सत्याग्रही’ शिवराज के राज में […]
[…] ‘सत्याग्रही’ शिवराज के राज में […]