भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष न्यायमूर्ती गानेन्द्र नारायण रे ने आम चुनाव में मुष्टीमेय समाचार पत्रों द्वारा चुनाव रिपोर्टिंग की बाबत प्रेस परिषद के दिशा निर्देशों के खुले आम उल्लंघन को गंभीरता से लिया है । न्यायमूर्ती रे आज लखनऊ में हिन्दी समाचार-पत्र सम्मेलन के मीडिया सेन्टर के नवनिर्मित भवन का उद्घाटन करने पधारे थे । इस अवसर पर हिन्दी समाचार-पत्र सम्मेलन के अध्यक्ष श्री उत्तम चन्द शर्मा ने प्रेस परिषद के अध्यक्ष का ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि प्रेस परिषद के चुनाव-रिपोर्टिंग सम्बन्धी दिशा निर्देशों का कुछ प्रमुख हिन्दी अखबारों ने खुले आम उल्लंघन किया है । श्री शर्मा ने कहा है व्यावसायिकता के मोह में इन अखबारों द्वारा चुनाव के दौर में खबरों और विज्ञापन के बीच की सीमा रेखा का लोप कर दिया गया है । यह पाठकों और मतदाताओं के प्रति अन्याय है।
इस ब्लॉग के पाठक जानते हैं कि हिन्दी के दो प्रमुख दैनिक – हिन्दुस्तान तथा दैनिक जागरण द्वारा मौजूदा आम चुनाव के दौरान उम्मीदवारों से १० से २० लाख रुपये ले कर विज्ञापननुमा खबरें छापने की एक नई अलोकतांत्रिक परम्परा की शुरुआत की गई है । इस सन्दर्भ में १६ अप्रैल के वाराणसी हिन्दुस्तान के वाराणसी तथा चन्दौली-मुगलसराय संस्करण के मुखपृष्ट पर मुख्य सम्पादक के स्पष्टीकरण की छवि प्रस्तुत की गई थी । पता चला है कि कि समाजवादी जनपरिषद द्वारा चुनाव आयोग तथा सम्पादक को लिखे जाने के अलावा इस बाबत कांग्रेस के महामंत्री श्री राहुल गांधी ने हिन्दुस्तान टाइम्स समूह की प्रमुख सुश्री शोभना भरतिया से फोन पर शिकायत की थी ।
बहरहाल प्रेस परिषद के अध्यक्ष के लखनऊ के आज के दौरे में अखबारों द्वारा चुनाव में निभाई जा रही भूमिका का मुद्दा छाया रहा । हिन्दी समाचार पत्र सम्मेलन के अध्यक्ष उत्तम चन्द शर्मा के अलावा कई पत्रकारों ने इस सवाल को उठाया । कार्यक्रम में न्यायमूर्ती रे का स्वागत सम्मेलन की ओर से जुगलकिशोर शरण शास्त्री ने किया । कार्यक्रम का संचालन दैनिक जनमोर्चा की सुमन गुप्ता ने किया । सुश्री सुमन गुप्ता प्रेस परिषद की सदस्य भी हैं तथा प्रेस परिषद की आगामी बैठक में इस मसले को उठाने का उन्होंने आश्वासन दिया है । आज के कार्यक्रम में मुख्य रूप से पत्रकार अरविन्द सिंह और जनमोर्चा के सम्पादक शीतला सिंह ने भी अपने विचार व्यक्त किए । कार्यक्रम के अन्त में वाराणसी से प्रकाशित सांध्य दैनिक गाण्डीव के सम्पादक तथा हिन्दी समाचार पत्र सम्मेलन के महामन्त्री राजीव अरोड़ा ने धन्यवाद ज्ञापन किया।
Archive for अप्रैल, 2009
प्रेस परिषद चुनाव में मीडिया के -अतिव्यावसायी करण पर गंभीर
Posted in corporatisation, election, journalism, media, news, tagged चुनाव रिपोर्टिंग, प्रेस परिषद, समाचार-पत्र on अप्रैल 28, 2009| 8 Comments »
लखनऊ के पाठकों से विनम्र निवेदन
Posted in chernobyl, election, environment, nuclear power, politics, samajwadi janparishad, tagged chernobyl, election, lok-rajniti manch, lucknow on अप्रैल 25, 2009| 6 Comments »
दुनिया को परमाणु बिजली संयंत्र के राक्षसी स्वरूप का तार्रुफ़ चेर्नोबिल करा गया है । २६ अप्रैल , १९८६ को चेर्नोबिल परमाणु संयंत्र का एक रिएक्टर विस्फोट के साथ फटा। २८०० डिग्री सेन्टिग्रेड की गर्मी से उसकी अग्निज्वाला भभक रही थी , रेडियोधर्मी विकिरण उगलती हुई ।
इस दुर्घटना की कल तेईसवीं बरसी है । इस अवसर पर उत्तर प्रदेश लोक राजनैतिक मंच ने अमेरिका से हुए परमाणु समझौते के खतरों पर एक गोष्ठी का आयोजन किया है । इस समझौते के बाद हो रहे आम चुनाव में यह महत्वपूर्ण मसला अन्य राष्ट्रीय मुद्दों की तरह गौण है । लोक राजनैतिक मंच ने लखनऊ संसदीय क्षेत्र से अपने प्रत्याशी श्री एस आर दारापुरी का परिचय कराते हुए इस विषय पर एक सार्थक चर्चा करने का निश्चय किया है । गोष्ठी की अध्यक्षता लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति प्रो. रूपरेखा वर्मा करेंगी ।
लखनऊ के चिट्ठेकारों और चिट्ठा पाठको बन्धुओं से अपील है कि
कल रविवार ,२६ अप्रैल,२००९ को दोपहर साढ़े तीन बजे – पी.एम.टी. कॉलेज ,होटल कपूर के सामने,बाटा के ऊपर,हजरतगंज आयोजित इस कार्यक्रम में सादर शरीक हों । मैं बनारस से इस कार्यक्रम में भाग लेने मौजूद रहूंगा ।
‘हिन्द स्वराज’ का रूप और प्रेस की आजादी पर गांधीजी
Posted in gandhi, journalism, tagged अखबार, गांधी, वाणी स्वातंत्र्य, हिन्द स्वराज, gandhi, hind swaraj, press liberty on अप्रैल 24, 2009| Leave a Comment »
जो महत्व कम्युनिस्ट कार्यकर्ताओं के लिए मार्क्स और एंगेल्स के ’कम्युनिस्ट घोषणापत्र’ का है ,बाबासाहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर द्वारा लाहौर के जाति तोड़क सम्मेलन(जिसमें आयोजकों ने उन्हें बुलाने के बाद फिर निमन्त्रण वापस ले लिया था) के लिए लिखे गये ’भारत में जाति-प्रथा का उच्छेद’ नामक पुस्तिका का जो महत्व हर समतावादी कार्यकर्ता के लिए है, वैसा ही महत्व ’आधुनिक सभ्यता की सख़्त टीका’ करने वाली गांधीजी द्वारा लिखी गई पुस्तिका ’हिन्द स्वराज’ का है ।
’किलडोनन कैसल’ नामक जहाज पर १९०९ में इस किताब को गांधीजी ने ’पाठक’ और ’सम्पादक’ के बीच हुए सवाल-जवाब के रूप में लिखा । २००९ शताब्दी वर्ष है ।
गांधीजी की पत्रकारिता इसके पहले शुरु हो चुकी थी । दक्षिण अफ़्रीका के उनके सत्याग्रह के बहुभाषी मुखपत्र ’इंडियन ओपीनियन’ के बारे में उन्होंने अपनी मौलिक पुस्तक ’दक्षिण अफ़्रीका में सत्याग्रह का इतिहास’ में एक अध्याय लिखा है । ’सत्य के प्रयोग अथवा आत्मकथा’ में भी उन्होंने अपने अखबार ’नवजीवन’ तथा ’यंग इंडिया’ पर एक अध्याय लिखा है ।
’हिन्द स्वराज’ में पाठक द्वारा पूछे गए पहले सवाल के जवाब में ही वे बतौर ’सम्पादक’ अखबार का काम बताते हैं :
अखबारका एक काम तो है लोगों की भावनायें जानना और उन्हें जाहिर करना ; दूसरा काम है लोगोंमें अमुक जरूरी भावनायें पैदा करना ; और तीसरा काम है लोगोमें दोष हों तो चाहे जितनी मुसीबतें आने पर भी बेधड़क होकर उन्हें दिखाना ।’
जहां तक वाणी स्वातंत्र्य की बात है गांधी उसमें किसी तरह के हस्तक्षेप के खिलाफ़ थे । इस आज़ादी को वे अकाट्य मानते थे। अखबारों को गलत छापने के भी वे हक़ में थी । जब अखबारों के खिलाफ़ अंग्रेजों का दमन चल रहा था तब उन्होंने कहा कि –
’हमें प्रेस की मशीनों और सीसे के अक्षरों की स्थापित प्रतिमा को तोड़ना होगा । कलम हमारी फौन्ड्री होगी नकल बनाने वाले कातिबों के हाथ प्रिंटिंग मशीन! हिन्दू धर्म में मूर्ति-पूजा की इजाजत तब होती है जब वह किसी आदर्श हेतु सहायक हो । जब मूर्ति ही आदर्श बन जाती है तब वह पापपूर्ण वस्तु-रति का रूप धारण कर लेती है । अपने विचारों की बेरोक अभिव्यक्ति के लिए हम मशीन और टाइप का जब तक उपयोग कर सकते हों करें । बाप बनी सत्ता जब टाइप-अक्षरों के हर संयोजन तथा मशीन की हर हरकत पर निगरानी रखने लगे तब हमे असहाय नहीं हो जाना चाहिए ।…. यह मैं जरूर कबूलूंगा कि हाथ से निकाले गये अखबार वीरोचित समय में अपनाया गया वीरोचित उपाय है ।….इस अधिकार की बहाली के लिए हमे सिविल नाफ़रमानी भी अपनानी होगी क्योंकि संगठन और अभिव्यक्ति के अधिकार का मतलब – लगभग पूर्ण स्वराज के है।’
( यंग इंडिया , १२-१-’२२,पृष्ट २९ )जो महत्व कम्युनिस्ट कार्यकर्ताओं के लिए मार्क्स और एंगेल्स के ’कम्युनिस्ट घोषणापत्र’ का है ,बाबासाहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर द्वारा लाहौर के जाति तोड़क सम्मेलन(जिसमें आयोजकों ने उन्हें बुलाने के बाद फिर निमन्त्रण वापस ले लिया था) के लिए लिखे गये ’भारत में जाति-प्रथा का उच्छेद’ नामक पुस्तिका का जो महत्व हर समतावादी कार्यकर्ता के लिए है, वैसा ही महत्व ’आधुनिक सभ्यता की सख़्त टीका’ करने वाली गांधीजी द्वारा लिखी गई पुस्तिका ’हिन्द स्वराज’ का है ।\n’किलडोनन कैसल’ नामक जहाज पर १९०९ में इस किताब को गांधीजी ने ’पाठक’ और ’सम्पादक’ के बीच हुए सवाल-जवाब के रूप में लिखा । २००९ शताब्दी वर्ष है ।\nगांधीजी की पत्रकारिता इसके पहले शुरु हो चुकी थी । दक्षिण अफ़्रीका के उनके सत्याग्रह के बहुभाषी मुखपत्र ’इंडियन ओपीनियन’ के बारे में उन्होंने अपनी मौलिक पुस्तक ’दक्षिण अफ़्रीका में सत्याग्रह का इतिहास’ में एक अध्याय लिखा है । ’सत्य के प्रयोग अथवा आत्मकथा’ में भी उन्होंने अपने अखबार ’नवजीवन’ तथा ’यंग इंडिया’ पर एक अध्याय लिखा है ।\n’हिन्द स्वराज’ में पाठक द्वारा पूछे गए पहले सवाल के जवाब में ही वे बतौर ’सम्पादक’ अखबार का काम बताते हैं :\nअखबारका एक काम तो है लोगों की भावनायें जानना और उन्हें जाहिर करना ; दूसरा काम है लोगोंमें अमुक जरूरी भावनायें पैदा करना ; और तीसरा काम है लोगोमें दोष हों तो चाहे जितनी मुसीबतें आने पर भी बेधड़क होकर उन्हें दिखाना ।’ \nजहां तक वाणी स्वातंत्र्य की बात है गांधी उसमें किसी तरह के हस्तक्षेप के खिलाफ़ थे । इस आज़ादी को वे अकाट्य मानते थे। अखबारों को गलत छापने के भी वे हक़ में थी । जब अखबारों के खिलाफ़ अंग्रेजों का दमन चल रहा था तब उन्होंने कहा कि -\n’हमें प्रेस की मशीनों और सीसे के अक्षरों की स्थापित प्रतिमा को तोड़ना होगा । कलम हमारी फौन्ड्री होगी नकल बनाने वाले कातिबों के हाथ प्रिंटिंग मशीन! हिन्दू धर्म में मूर्ति-पूजा की इजाजत तब होती है जब वह किसी आदर्श हेतु सहायक हो । जब मूर्ति ही आदर्श बन जाती है तब वह पापपूर्ण वस्तु-रति का रूप धारण कर लेती है । अपने विचारों की बेरोक अभिव्यक्ति के लिए हम मशीन और टाइप का जब तक उपयोग कर सकते हों करें । बाप बनी सत्ता जब टाइप-अक्षरों के हर संयोजन तथा मशीन की हर हरकत पर निगरानी रखने लगे तब हमे असहाय नहीं हो जाना चाहिए ।…. यह मैं जरूर कबूलूंगा कि हाथ से निकाले गये अखबार वीरोचित समय में अपनाया गया वीरोचित उपाय है ।….इस अधिकार की बहाली के लिए हमे सिविल नाफ़रमानी भी अपनानी होगी क्योंकि संगठन और अभिव्यक्ति के अधिकार का मतलब – लगभग पूर्ण स्वराज के है।’ \n( यंग इंडिया , १२-१-’२२,पृष्ट २९ )
परचे बाँटने वालों की तरह अब ’हिन्दुस्तान’ भी बैक-फ़ुट पर ?
Posted in corporatisation, election, journalism, media, news, politics, print media, samajwadi janparishad, tagged advertisement, commercialisation, election coverage, hindustan on अप्रैल 16, 2009| 26 Comments »
मौजूदा आम चुनाव में पूर्वी उत्तर प्रदेश के प्रमुख दैनिक ’हिन्दुस्तान’ तथा ’दैनिक जागरण’ द्वारा चुनाव रिपोर्टिंग के प्रेस परिषद द्वारा जारी दिशा निर्देशों की खुले आम धज्जियाँ उड़ाने के बारे में मैंने ४ अप्रैल , २००९ को लिखा था । प्रेस परिषद की शिकायत प्रक्रिया के तहत मैंने उक्त दैनिकों के सम्पादकों से ऐसे आचरण पर तत्काल रोक लगाने की अपील भी की थी । यह उल्लेखनीय है कि हिन्दुस्तान के लखनऊ के स्थानीय सम्पादक श्री नवीन जोशी ने भी एकदा अखबारों के इस प्रकार के व्यावसायीकरण के खिलाफ़ अपनी लेखनी मजबूती से चलाई थी ।
चुनाव आयोग को लिखे पत्र में मैंने कहा था कि चूँकि प्रेस परिषद में शिकायत की प्रक्रिया लम्बी है (पहले सम्पादक को लिखना आदि) इसलिए चुनाव आयोग तत्काल हस्तक्षेप करे । परसों शाम पहले चरण का प्रचार थमने के बाद १५ अप्रैल का जो हिन्दुस्तान आया उसके मुखपृष्ट पर प्रतिदिन की तरह दो टूक (पहले पन्ने पर छपने वाली सम्पादकीय टिप्पणी), सूर्योदय-सूर्यास्त का समय तथा तापमान,’हिन्दुस्तान की आवाज’(अखबार द्वारा कराये गये जनमत संग्रह का परिणाम तथा ’आज का सवाल’) एवं राजेन्द्र धोड़पकर का नियमित कार्टून स्तम्भ –’औकात’ छापे गये थे । इन नियमित तथा नियमित प्रथम पृष्ट होने का अहसास दिलाने वाले उपर्युक्त तमाम तत्वों के अलावा खबरों और चित्रों में जो कुछ छपा था आप खुद देख सकते हैं ।
आज मतदान का दिन है । अपने बूथ पर शीघ्र पहुंचने वाला मैं छठा मतदाता था । मतदान के बाद इत्मीनान से आज १६ अप्रैल ,२००९ का हिन्दुस्तान देखा जिसमें ’मुख्य सम्पादक’ ने एक ’माइक्रो नाप का स्पष्टीकरण छापा है । इसे भी आप चित्रों में देखें । सभी चित्रों को देखने के लिए चित्र पर खटका मारें । अलबम खुल जाने के बाद हर चित्र पर खटका मार कर बड़े आकार में देख सकते हैं ।
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वाराणसी लोक सभा क्षेत्र से भाजपा उम्मीदवार मुरलीमनोहर जोशी ने शुरुआत में इन अखबारों का प्रचार-पैकेज खरीदने से इनकार किया था लेकिन अन्तिम दौर में उन्होंने भी ’पैकेज” ग्रहण कर लिया ।
बहरहाल , दीवाल – लेखन और बैनर लेखन जैसे पारम्परिक प्रचार करने वाले मेहनतकशों को इस प्रक्रिया के बाहर ढ़केलने के बाद कथित निर्वाचन-सुधारों के तहत न सिर्फ़ बड़े अखबारों की तिजोरी भरी जा रही है , अखबारों की निष्पक्षता खत्म की जा रही है , भारी खर्च न कर पाने वाले प्रत्याशियों की खबरें ऐलानियां नहीं छप रही हैं तथा आम मतदाता – पाठक निष्पक्ष खबरें पाने से वंचित किया जा रहा है तथा इस प्रकार लोकतंत्र को बीमार और कमजोर करने में मीडिया का लोभी हिस्सा अपना घिनौना रोल अदा कर रहा है ।
समाजवादी जनपरिषद , उत्तर प्रदेश समस्त राजनैतिक दलों ,पत्रकार एवं नागरिक अधिकार संगठनों तथा जागरूक नागरिकों से अपील करता है कि (१) अध्यक्ष प्रेस परिषद ,६ कॉपर्निकस मार्ग,नई दिल्ली तथा (२) मुख्य चुनाव आयुक्त,भारत का निर्वाचन आयोग,निर्वाचन सदन,अशोक मार्ग, नई दिल्ली (ईमेल cecATeciDOTgovDOTin ) को इस प्रक्रिया पर रोक लगाने के लिए लिखें ताकि कुछ कमजोर चौथे खम्भों की यह हरकत रुके ।
बाबासाहब की जन्मतिथि पर दलित नेता की हत्या
Posted in ambedkar, criminalisation, election, tagged bahadur sonkar, dhananjay singh, jaunpur, murder on अप्रैल 14, 2009| 9 Comments »
आज बाबासाहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की जन्मतिथि है । इस जन्मतिथि की पूर्व सन्ध्या पर उनकी विचारधारा की कथित धरोहर पार्टी बहुजन समाज पार्टी के जौनपुर से प्रत्याशी माफिया धनन्जय सिंह ने एक अन्य दलित नेता बहादुर सोनकार की हत्या कर पेड़ पर लटका दिया । बहादुर सोनकर एक अन्य दलित नेतृत्व वाली पार्टी इन्डियन जस्टिस पार्टी का उम्मीदवार था ।
धनन्जय सिंह की आपराधिक पृष्टभूमि किसी से छिपी नहीं है । वह दलित नेता रामबिलास पासवान की लोकजनशक्ति पार्टी तथा शरद यादव – नितीश कुमार की जद(यू) से भी टिकट लेकर विधान सभा का चुनाव लड़ चुका है । बहरहाल , इस मामले में धनन्जय के साथ दो पुलिस अधिकारियों का नाम भी आ रहा है । गत दिनों लिखी मेरी एक पोस्ट पर आनन्द प्रधान की टिप्पणी का स्मरण दिला रहा हूँ –
लेकिन गुण्डों की ताकत इसलिए बढ़ी है और उन्हें एक वैधता मिली है क्योंकि राज्य लोगों को न्याय और सुशासन देने में विफल हो गया है। ..गुण्डों ने एक समानान्तर व्यवस्था खड़ी कर दी है ।….राज्य ने उनके आगे घुटने टेक दिये हैं ।”
चूँकि इन्डियन जस्टिस पार्टी पंजीकृत किन्तु गैर मान्यता प्राप्त दल है इसलिए उसके प्रत्याशी की हत्या पर चुनाव रद्द नहीं होगा । चुनाव कानून में यह संशोधन हाल का है । एक काल्पनिक स्थिति पर विचार करें – यदि मतदाता बहादुर सोनकर को ही सर्वाधिक मत प्रदान करते हैं तब ही चुनाव रद्द होंगे । चूंकि मृत प्रत्याशी का नाम मशीन से नहीं हटेगा इसलिए उसे मिले मतों से चुनाव परिणाम को प्रभावित नहीं माना जाएगा ?
सुभाष ठाकुर का मुरली जोशी के लिए फरमान
Posted in Uncategorized, tagged criminalisation, joshi, subhash, thakur on अप्रैल 13, 2009| 2 Comments »
प्रदेश की मुख्य मन्त्री बहन मायावती कल बनारस आईं और अपने दल के उम्मीदवार माफिया मोख्तार अन्सारी को ’अपराधी नहीं’ का प्रमाण – पत्र दे गईं ।
गुण्डई के खिलाफ़ चुनाव लड़ने का दावा कर रहे भारतीय जनता पार्टी के पूर्व अध्यक्ष मुरली जोशी के पक्ष में दाऊद इब्राहिम के साथी और और उत्तर प्रदेश की जेल में बन्द सुभाष ठाकुर ने स्वजातीय बन्धुओं से अपील की है ।
बनारस से सपा उम्मीदवार अजय राय भाजपा के विधायक थे (विधायिकी से इस्तीफ़ा न देने के हक में वे तर्क देते हैं कि जोशी राज्य सभा से इस्तीफ़ा दें।) । प्रयाग में जोशी सपा के भूमिहार नेता रेवती रमण सिंह से पिछला लोक सभा चुनाव हारे थे और काशी में भी उसी पार्टी और उसी जाति से उन्हें मुकाबला करना पड़ रहा है। अजय राय और इन आम चुनाव के सबसे पैसे वाले प्रत्याशी – समाजवादी पार्टी के अबू आज़मी के साथ बनारस शहर के कई विशाल भूखण्डों पर काबिज होने की पार्टनरशिप है , अमर सिंह भी ऐसे कुछ स्थानों पर निवेश किए हुए हैं ।
बनारस के मौजूदा सांसद कांग्रेसी राजेश मिश्रा स्पर्धा के बाहर हो गये हैं । लोहियावादी पत्रकार बद्री विशाल के अनुसार बनारस में दो सेमी- फाइनल खेले जाने वाले हैं । पहला जोशी बनाम राजेश मिश्रा और दूसरा मोख्तार बनाम अजय राय के बीच । इन दोनों के विजेताओं के बीच १६ तारीख को जनता अपना फैसला सुनाएगी ।
लोगों की एक गंभीर भूल : महात्मा गांधी
Posted in election, gandhi, politics, tagged गांधी, जनता, लोकतंत्र, संसद, democracy, gandhi, parliament, people on अप्रैल 12, 2009| 4 Comments »
” हम एक अरसे से इस बात को मानने के आदी बन गये हैं कि आम जनता को सत्ता या हुकूमत सिर्फ़ धारासभाओं के (विधायिका) जरिये मिलती है । इस खयाल को मैं अपने लोगों की एक गंभीर भूल मानता रहा हूँ । इस भ्रम या भूल की वजह या तो हमारी जड़ता है या वह मोहिनी है , जो अंग्रेजों के रीति – रिवाजों ने हम पर डाल रखी है । अंग्रेज जाति के इतिहास के छिछले या ऊपर – ऊपर के अध्ययन से हमने यह समझ लिया है कि सत्ता शासन – तंत्र की सबसे बड़ी संस्था पार्लमेण्ट से छनकर जनता तक पहुंचती है । सच बात यह है कि हुकूमत या सत्ता जनता की बीच रहती है , जनता की होती है और जनता समय – समय पर अपने प्रतिनिधियों की हैसियत से जिनको पसंद करती है , उनको उतने समय के लिए सौंप देती है । यही क्यों , जनता से भिन्न या स्वतंत्र पर्लमेण्टों की सत्ता तो ठीक , हस्ती तक नहीं होती । पिछले इक्कीस बरसों से भी ज्यादा अरसे से मैं यह इतनी सीधी – सादी बात लोगों के गले उतारने की कोशिश करता रहा हूँ । सत्ता का असली भण्डार या खजाना तो सत्याग्रह की या सविनय कानून-भंग की शक्ति में है । एक समूचा रा्ष्ट्र अपनी धारासभा के कानूनों के अनुसार चलने से इनकार कर दे , और इस सिविल नाफ़रमानी के के नतीजों को बरदाश्त करने के लिए तैयार हो जाए तो सोचिए कि क्या होगा ! ऐसी जनता सरकार की धारासभा को और उसके शासन – प्रबन्ध को जहाँ का तहाँ , पूरी तरह , रोक देगी । सरकार की , पुलिस की या फौज की ताकत , फिर वह कितनी ही जबरदस्त क्यों न हो , थोड़े लोगों को ही दबाने में कारगर होती है । लेकिन जब समूचा राष्ट्र सब कुछ सहने को तैयार हो जाता है , तो उसके दृढ़ संकल्प को डिगाने में किसी पुलिस की या फौज की कोई जबरदस्ती काम नहीं देती ।
फिर पार्लमेण्ट के ढंग की शासन – व्यवस्था तभी उपयोगी होती है , जब पार्लमेण्ट के सब सदस्य बहुमत के फैसलों को मानने के लिए तैयार हों । दूसरे शब्दों में , इसे यों कहिए कि पार्लमेण्टरी शासन – पद्धति का प्रबन्ध परस्पर अनुकूल समूहों में ही ठीक – ठीक काम देता है ।
यहाँ हिन्दुस्तान में तो ब्रिटिश सरकार ने कौमी तरीके पर मतदाताओं के अलग – अलग गिरोह खड़े कर दिए हैं , जिसकी वजह से हमारे बीच ऐसी बनावटी दीवारें खड़ी हो गयी हैं , जो आपस में मेल नहीं खातीं ; और ऐसी व्यवस्था के अंदर हम पार्लमेण्ट के ढंग की शासन – पद्धति का दिखावा करते आये हैं । ऐसी अलग – अलग और बनावटी इकाइयों को , जिनमें आपसी मेल नहीं है , एक ही मंच पर एक से काम के लिए इकट्ठा करने से जीतती – जागती एकता कभी पैदा नहीं हो सकती । सच है कि इस तरह की धारासभाओं के जरिए राजकाज का काम ज्यों-त्यों चलता रहता है ; लेकिन इन धारासभाओं के मंच पर इकट्ठा हो कर हम तो आपस में लड़ते ही रहेंगे , और जो भी कोई हम पर हुकूमत करता होगा , उसकी तरफ़ से समय – समय पर मिलने वाले हुकूमत के टुकड़ों को बाँट खाने के लिए हम तरसते रहेंगे । हमारे ये हाकिम कड़ाई के साथ हमें काबू में रखते हैं ,और परस्पर विरोधी तत्वों को आपस में झगड़ने से रोकते हैं । ऐसी शर्मनाक हालत में से पूर्ण स्वराज्य प्रकट होना मैं बिलकुल असंभव मानता हूँ ।
धारासभाओं के और उनके काम के बारे में मेरे खयाल इतने कड़े हैं ; फिर भी मैं इस नतीजे पर पहुँचा हूँ कि जब तक चुनावों के जरिए बनने वाली प्रातिधिक संस्थाओं के लिए गलत उम्मेदवार खड़े रहते हैं , तब तक उन संस्थाओं में प्रगतिविरोधी लोगों को घुसने से रोकने के लिए हमें अपने उम्मीदवार खड़े करने चाहिए ।
– ( गांधी जी , अनुवादक – काशीनाथ त्रिवेदी , रचनात्मक कार्यक्रम,१३-११-१९४५, नवजीवन प्रकाशन मन्दिर,पृष्ट- १० से १२ )
अपराधियों की ही जाति होती है
Posted in criminalisation, election, politics, tagged banaras, bihar, caste, casteism, criminals, elections on अप्रैल 9, 2009| 24 Comments »
काशी विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति से जुड़े़ सभी बहुत फक्र से कहा करते थे कि यहाँ का विद्यार्थी गुंडों को हरा देता है । पूर्व अध्यक्ष और राजनारायण के निकट सहयोगी मार्कण्डेय सिंह के जमाने में गुंडा दामोदर सिंह हो अथवा बाद में मोहन प्रकाश के जमाने में माफ़िया वीरेन्द्र साही का सहयोगी उपेन्द्र विक्रम सिंह अथवा मेरे चुनाव लड़ना शुरु करने पर उपेन्द्र विक्रम का साथी भगवती सिंह – आपराधिक पृष्टभूमि के सभी धुरंधरों को छात्रों ने नकारा ।
मेरे छात्रावास (बिड़ला) का छात्रावास – अध्यक्ष बिना चुनाव के बना राजेन्द्र पहलवान था । उसका बहनोई हिटलर सिंह भी उसी छात्रावास में रहता था । ’हॉस्टल – डे’ पर रंडी का नाच कराने के नाम पर कमरे – कमरे हिटलर चन्दा मांगने निकले । मेरे कमरे कमरा नं २८६ में पहुंचे तब मैंने चन्दा देने से इनकार कर दिया ।
हिटलर – ’अभी पांच रुपैय्या नहीं दे रहे हो , कल शाम तक इन्हीं पांवों पर पांच सौ रुपये रखोगे ”
मैं – “रमाकान्त सिंह (उसका वास्तविक नाम यही है) जब पैसा देने से इनकार कर कर दिया तब उसका परिणाम भी झेलने की तैयारी है ।”
इसके बाद राजेन्द्र पहलवान कमरे में पहुंचे और हिटलर को पकड़ कर ले गये । मैंने अपनी लॉबी के अन्य कमरों में भी उस ’सांस्कृतिक – कार्यक्रम’ के लिए चन्दा देने से लड़कों को मना कर दिया । फलस्वरूप वे मेरी लॉबी को छोड़कर चले गये । अगले दिन परिसर में इस छोटी सी घटना की चर्चा तेजी से फैल गयी । मेरे कमरे में मनोबल बढ़ाने के लिए समाजवादी युवजन राधेश्याम , समाजवादी शिक्षक आनन्द कुमार और छात्र संघ अध्यक्ष मनोज सिन्हा अलग – अलग पहुंचे । उक्त ’सांस्कृतिक कार्यक्रम’ नहीं हुआ और रमाकान्त सिंह ने मुझे नमस्कार करना शुरु कर दिया । यह उलझन वाली बात थी लेकिन हमारे संगठन की इकाई के उद्घाटन के लिए जब हमारे नेता किशन पटनायक ब्रोचा छात्रावास में बोले तब उन्होंने कहा -’गुंडा वह है जो अपने से कमजोर को सताता है और खुद से मजबूत के पांव चाटता है’।
पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रमुख माफ़िया सरगना मोख्तार अन्सारी बनारस से बहुजन समाज पार्टी का उम्मीदवार है । अपराध की दुनिया में उसके प्रमुख प्रतिद्वन्द्वी बृजेश सिंह का भतीजा सुशील सिंह भी इसी पार्टी का विधायक है । बनारस के अलग अलग मोहल्लों से एक साथ ३० से ४५ के समूह में लोगों को गाजीपुर के जिला कारागार में मोख्तार से मिलाने ले जाया जाता है । जेल से रुपये भी बाँटे जाते हैं। चुनाव आयोग के निर्देश पर आज उसका स्थानान्तरण कानपुर जेल हुआ है ।
मोख्तार को अपराधियों की ’आचार – संहिता’ की भी परवाह नहीं करता । बनारस के प्रमुख व्यवसाई नन्दकिशोर रुँगटा के अपहरण के बाद उसने फिरौती की मोटी रकम भी वसूली उसके बाद उनकी निर्मम हत्या कर दी थी ।
अक्सर भाषणों में लोग कहते हैं कि अपराधियों की जाति नहीं होती । यह कह कर मानो वे जाति को कोई पुनीत संस्था साबित करना चाहते हैं । जातियों का ध्रुवीकरण हमेशा मजबूतों के लिए होता है । इसलिए मुझे यह कहना ज्यादा उचित लगता है कि अपराधियों की ही जाति होती है । बनारस में तीन प्रमुख सवर्ण उम्मीदवारों के मुकाबले मोख्तार के लिए मुसलिम और दलित के अलावा कुछ पिछड़ों का भी जुड़ाव हो रहा है । बहुजन समाज पार्टी यदि यादवों के बीच सभा कर रही है तो उसके मंच पर पुलिस मुटभेड़ में मारे गये सपा के अपराधी सभासद बाबू यादव की विधवा अथवा एक अन्य मृत अपराधी अभिषेक यादव ’गुड्ड” के स्वजनों को बैठाती है। यानी- बिरादरी के गुंडे का नुकसान मतलब बिरादरी का नुकसान । जातिवाद जाति के प्रति प्रेम से ज्यादा जाति का उपयोग जाति के मजबूत लोगों की स्वार्थ – सिद्धि के लिए करना होता है ।
आज ही बिहार आन्दोलन के एक सिपाही मुजफ़्फ़रपुर के रमण कुमार से भेंट हुई। तिब्बती केन्द्रीय विश्वविद्यालय में चल रहे ’हिन्द स्वराज” की शताब्दी के मौके पर आयोजित एक शिबिर में भाग लेने वे सारनाथ आये हुए हैं । उन्होंने बताया उत्तर प्रदेश की तरह बिहार में भी सहयोगी विहीन कांग्रेस पार्टी द्वारा प्रत्याशी जुटाने का संकट था इसलिए उसने अपराधियों को थोक में अपना उम्मीदवार बना डाला है ।
चुनाव से सम्बन्धित रिपोर्टिंग के लिए प्रेस परिषद के दिशा – निर्देश
Posted in capitalism, election, internet, media, news, online journalism, politics, print media, recessation, tagged election, guidelines, hindustan, jagran, press council on अप्रैल 6, 2009| 7 Comments »
- प्रेस का यह कर्तव्य होगा कि चुनाव तथा प्रत्याशियों के बारे में निष्पक्ष रिपोर्ट दे । समाचारपत्रों से अस्वस्थ्य चुनाव अभियानों में शामिल होने की आशा नहीं की जाती । चुनावों के दौरान किसी प्रत्याशी , दल या घटना के बारे में अतिशियोक्तिपूर्ण रिपोर्ट न दी जाए । वस्तुत: पूरे मुकाबले के दो या तीन प्रत्याशी ही मीडिया का सारा ध्यान आकर्षित करते हैं । वास्तविक अभियान की रिपोर्टिंग देते समय समाचारपत्र को किसी प्रत्याशी द्वारा उठाये गये किसी महत्वपूर्ण मुद्दे को छोड़ना नहीं चाहिए और न ही उसके विरोधी पर कोई प्रहार करना चाहिए ।
- निर्वाचन नियमावली के अन्तर्गत सांप्रदायिक अथवा जातीय आधार पर चुनाव अभियान की अनुमति नहीं है । अत: प्रेस को ऐसी रिपोर्टों से दूर रहना चाहिए जिनसे धर्म, जाति , मत , सम्प्रदाय अथवा भाषा के आधार पर लोगों के बीच शत्रुता अथवा घृणा की भावनाएं पैदा हो सकती हों ।
- प्रेस को किसी प्रत्याशी के चरित्र या आचरण के बारे में या उसके नामांकन के संबंध में अथवा किसी प्रत्याशी का नाम अथवा उसका नामांकन वापस लिये जाने के बारे में ऐसे झूटे या आलोचनात्मक वक्तव्य छापने से बचना चाहिए जिससे चुनाव में उस प्रत्याशी की संभावनाएं दुष्प्रभावित होती हों । प्रेस किसी भी प्रत्याशी/दल के विरुद्ध अपुष्ट आरोप प्रकाशित नहीं करेगा ।
- प्रेस किसी प्रत्याशी/दल की छवि प्रस्तुत करने के लिए किसी प्रकार का प्रलोभन – वित्तीय या अन्य स्वीकार नहीं करेगा । वह किसी भी प्रत्याशी/दल द्वारा उन्हें पेश किया गया आतिथ्य या अन्य सुविधायें स्वीकार नहीं करेगा ।
- प्रेस किसी प्रत्याशी/दल – विशेष के प्रचार में शामिल होने की आशा नहीं की जाती । यदि वह करता है तो वह अन्य प्रत्याशी/दल को उत्तर का अधिकार देगा ।
- प्रेस किसी दल/ सत्तासीन सरकार की उपलब्धियों के बारे में सरकारी खर्चे पर कोई विज्ञापन स्वीकार / प्रकाशित नहीं करेगा ।
- प्रेस निर्वाचन आयोग/निर्वाचन अधिकारियों अथवा मुख्य निर्वाचन अधिकारी द्वारा समय समय पर जारी सभी निर्देशों/अनुदेशों का पालन करेगा ।
- जब भी समाचारपत्र मतदान पूर्व सर्वेक्षण प्रकाशित करते हैं तो उन्हें सर्वेक्षण करवाने वाले व्यक्तियों और संस्थाओं का उल्लेख सावधानीपूर्वक करना चाहिए एव्म प्रकाशित होने वाली उपलब्धियों के नमूने का माप एवं उसकी प्रकृति , पद्धति में गलतियों के संभावित प्रतिशत का भी ध्यान रखना चाहिए । [ सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मतदान पूर्व सर्वेक्षणों पर रोक लगा दी गयी है ।-सं. ]
- अगर चुनाव अलग चरणों में हो तो किसी भी समाचारपत्र को मतदान पूर्व सर्वेक्षण चाहे वे सही भी क्यों न हो प्रकाशित नहीं करना चाहिए ।
भारत की प्रेस परिषद द्वारा चुनावों के सन्दर्भ में उपर्युक्त दिशा निर्देश जारी किए गए हैं । अपने मुख्य ब्लॉग की एक प्रविष्टी को पुष्ट करने के लिए इन निर्देशों को यहाँ प्रकाशित किया जा रहा है । उक्त प्रविष्टि के तथ्यों के प्रति भारत के चुनाव आयोग तथा सम्बन्धित अखबारों के सम्पादकों का ध्यान आकर्षित करने के लिए पत्र लिख दिए गए हैं । सम्पादकों द्वारा उचित कार्रवाई न किए जाने पर प्रेस परिषद को लिखा जायेगा । मीडिया के इस गैर जिम्मेदाराना आचरण के विरुद्ध , लोकतंत्र के हक में पाठकों की आम राय प्रकट हुई है । इसकी हमें उम्मीद थी तथा इससे हमें नैतिक बल मिला है ।
चुनावों में अखबारों की गलीज भूमिका
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दीवाल – लेखन नहीं , परचे नहीं , नुक्कड़ सभायें पहले से कहीं कम , इसके बावजूद चुनाव खर्च की ऊपरी सीमा में लगातार वृद्धि ! माना जा रहा है कि यह सब कदम गलत – राजनीति पर नकेल कसने के लिए लिए गए हैं !
पिछले ही रविवार को ही हिन्दुस्तान की सम्पादक मृणाल पाण्डे ने अपने नियमित स्तम्भ में बताया कि दुनिया के बड़े अखबार मन्दी का मुकाबला करने के लिए कैसे खुद को दीवालिया घोषित करने से ले कर छँटनी की कार्रवाई कर रहे हैं तथा –
” मीडिया की छवि बिगाड़ने वाली घटिया पत्रकारिता के खिलाफ ईमानदार और पेशे का आदर करने वाले पत्रकारों का भी आंदोलित और संगठित होना आवश्यक बन गया है । “
विश्वव्यापी मन्दी के दौर में हो रहे दुनिया के सब से बड़े लोकतंत्र के इस आम चुनाव में पूर्वी उत्तर प्रदेश में “चुनावी रिपोर्टिंग” के नाम पर प्रमुख हिन्दी दैनिक पत्रकारिता में गलीजपन की नई हदें स्थापित कर रहे हैं । न सिर्फ़ इस गलीजपन की पत्रकारिता से जनता के जानने के हक पर कुठाराघात हो रहा है अपितु इन अखबारों को पढ़ कर राय बनाने में जनता के विवेक पर हमला हो रहा है । इस प्रकार स्वस्थ और निष्पक्ष चुनावों में बाधक के रूप में यह प्रमुख हिन्दी दैनिक अपनी भूमिका तय कर चुके हैं । यह गौरतलब है इन प्रमुख दैनिकों द्वारा अनैतिक, अवैध व्यावसायिक लेन- देन को खुले आम बढ़ावा दिया जा रहा है । क्या अखबार मन्दी का मुकाबला करने के लिए इन अनैतिक तरीकों से धनार्जन कर रहे हैं ?
गनीमत है कि यह पतनशील नीति अखबारों के शीर्ष प्रबन्धन द्वारा क्रियान्वित की जा रही है और उन दैनिकों में काम करने वाले पत्रकार इस पाप से सर्वथा मुक्त हैं । आपातकाल के पूर्व तानाशाही की पदचाप के तौर पर सरकार द्वारा अखबारों के विज्ञापन रोकना और अखबारी कागज के कोटा को रोकना आदि गिने जाते थे । आपातकाल के दौरान बिना सेंसरशिप की खबरों के स्रोत भूमिगत साइक्लोस्टाइल बुलेटिन और बीबीसी की विश्व सेवा हो गये थे । “हिम्मत” (सम्पादक राजमोहन गांधी , कल्पना शर्मा ) , “भूमिपुत्र” (गुजराती पाक्षिक ,सम्पादक – कान्ति शाह ) जैसी छोटी पत्रिकाओं ने प्रेस की आज़ादी के लिए मुद्रणालयों की तालाबन्दी सही और उच्च न्यायालयों में भी लड़े । भूमिपुत्र के प्रेस पर तालाबन्दी होने के बाद रामनाथ गोयन्का ने अपने गुजराती दैनिक के मुद्रणालय में उसे छापने दिया । तानाशाही का मुकाबला करने वाली इन छोटी पत्रिकाओं से जुड़े युवा पत्रकार आज देश की पत्रकारिता में अलग पहचान रखते है – कल्पना शर्मा , नीरजा चौधरी , संजय हजारिका ।
दूसरी ओर मौजूदा चुनावों में पूर्वी उत्तर प्रदेश के प्रमुख अखबार हिन्दुस्तान और दैनिक जागरण ने चुनावी विज्ञापनों को बतौर “खबर” छापने के लिए मुख्यधारा के दलों के हर उम्मीदवारों से बिना रसीद अवैध रूप से दस से २० लाख रुपये लिये हैं। धन देने के बाद न सिर्फ़ विज्ञापननुमा एक – एक पृष्ट चित्र- संग्रह छापे जा रहे हैं तथा समाचार भी धन प्रभावित तरीके से बनाये जा रहे हैं ।
आम चुनावों के पहले हुए विधान परिषद के लिए हुए स्नातक सीट के निर्वाचन में प्रत्याशी रह चुके समाजवादी डॉ. सुबेदार सिंह बताते हैं कि अखबारों को आर्थिक लाभ पहुंचाने की चाह पूरी न कर पाने के कारण मतदान के एक सप्ताह पहले ही अखबारों से उनका लोप हो गया था । अम्बेडकरवादी चिन्तक डॉ. प्रमोद कुमार कहते हैं अखबारों द्वारा अपनाई गई यह चुनाव नीति लोकतंत्र के भविष्य के लिए खतरनाक है ।
समाजवादी जनपरिषद की उत्तर प्रदेश इकाई अखबारों द्वारा अपनाये जा रहे इस लोकतंत्र विरोधी आचरण के सन्दर्भ में चुनाव आयोग तथा प्रेस परिषद से हस्तक्षेप करने की अपील करती है । दल ने यह निश्चय किया है कि इस खतरनाक रुझान के सन्दर्भ में लोक राजनैतिक मंच के न्यायमूर्ति राजेन्द्र सच्चर तथा वरिष्ट पत्रकार कुलदीप नैयर का ध्यान भी खींचा जायेगा।