अखिल भारतीय शिक्षा अधिकार मंच की ओर से 24 फरवरी 2010 को दिल्ली में रामलीला मैदान से संसद मार्ग तक कूच किया गया जो संसद मार्ग पर एक विशाल जनसभा में तब्दील हो गया। इस रैली में 16 राज्यों के लगभग 35 शिक्षक व विधार्थी संगठन,शिक्षा अधिकार समूह एवम् विभिन्न बस्तियों के संगठन शामिल हुए। इस संसद मार्च का मकसद यू.पी.ए. सरकार द्वारा राज्य/केन्द्र शासित क्षेत्रों की सरकारों के साथ मिलकर बढ़ाये जा रहे नव-उदारवादी शैक्षिक एजेण्डे का पर्दाफाश करना था। यह एक लम्बे संघर्ष की शुरूआत है जिसके जरिए भारतीय शिक्षा को कॉरपोरेट पूंजी व वैश्विक बाजार के हमले का प्रतिरोध किया जाएगा और देश के सामने शिक्षा व्यवस्था व नीति में व्यवस्थामूलक बदलाव का एक वैकल्पिक, राजनीतिक एजेण्डा पेश किया जाएगा।
अखिल भारतीय शिक्षा अधिकार मंच जिस तरह यू.पी.ए. सरकार द्वारा शिक्षा के निजीकरण एवम् बाजारीकरण और साथ में बेलगाम मुनाफाखोरी की रफ्तार तेज की जा रही है, उस ओर जनता का ध्यान आकर्षित करेगा। एक और सरकार बाजार की ताकतों को शिक्षा में व्यापार के लिए खुली छूट दे रही है, तो दूसरी और वह सार्वजनिक शैक्षिक संस्थानों एवम् योजनाओं को बढ़ते क्रम में कॉरपोरेट घरानों, धार्मिक संगठनों व एन.जी.ओ. को न केवल सौप रही है बल्कि आउटसोर्स भी कर रही है। अब शिक्षा का यह संकट सार्वजनिक-निजी साझेदारी (पी.पी.पी.) के जरिये बढ़ाया जा रहा है जिसे भारतीय शिक्षा पर नव-उदारवादी आक्रमण के नवीनतम रूप में पहचाने की जरूरत है। संसद मार्च ने देश को उस गंभीर खतरे की ओर भी आगाह् किया जो यू.पी.ए. सरकार द्वारा विश्व व्यापार संगठन के तहत गैट्स (जनरल एग्रीमेंट ऑन ट्रेड़ एंड सर्विसेज़) के पटल पर उच्च शिक्षा रखने के चलते मंडरा रहा है। हमारा केन्द्रीय सरकार को कहना है कि वह शिक्षा व्यवस्था में और उसके जरिये सभी बच्चों एवम् युवाओं को समान अवसर देने की अपनी संवैधानिक जवाबदेही पल्ला झाड़ने की नीति को पलटकर वापस संविधान के खाके में लौटे। संविधान का यह नजरिया जो हमें आजादी की लड़ाई की विरासत के रूप में मिला वह तब तक हासिल नही किया जा सकता जबतक सरकार राष्ट्रीय प्राथमिकता बतौर शिक्षा में पर्याप्त सार्वजनिक धनराशि उपलब्ध कराने की अपनी जवाबदेही को फिर से स्वीकार नहीं कर लेती और साथ में शिक्षा में हर तरह के कारोबार पर पूरी पाबंदी नही लगा देती।
इसलिए 24 फरवरी 2010 को संसद मार्च केंद्रीय सरकार को कहा कि वह (राज्य सरकारों समेत),
* 86वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 की समीक्षा करे ताकि 18 साल की उम्र तक समतामूलक गुणवत्ता की मुफ़्त शिक्षा का मौलिक अधिकार मिल सके जिसमें हर हाल में 6 साल से कम उम्र के बच्चों को संतुलित पोषण, स्वास्थ्य सेवा एवं पूर्व-प्राथमिक शिक्षा का मौलिक अधिकार भी शामिल हो।
* तथाकथित शिक्षा अधिकार अधिनियम, 2009 के ढोंग की जगह पूर्व-प्राथमिक स्तर से कक्षा 12 तक सार्वजनिक धन से संचालित ‘पड़ोसी स्कूल पर टिकी हुई समान स्कूल प्रणाली‘ के खाके में बनाया हुआ कानून लाया जाए; निजी स्कूलों समेत सभी स्कूलों में अधोसंरचना (शिक्षक से संबंधित भी), पाठ्यचर्या-संबंधी व शिक्षाशास्त्रीय मानदंड कम-से-कम केंद्रीय विद्यालयों के समकक्ष हों।
* नियमित औपचारिक स्कूलों को वे सभी सुविधाएं दी जाएं जो विकलांग बच्चों को उनमें शामिल करने के लिए जरूरी हैं।
* 1990 के दशक से अबतक स्कूलों में नियुक्त किए गए सभी पैरा-शिक्षकों के वेतनमानों को उन्नत करते हुए नियमित शिक्षकों के कैडर में शामिल किया जाए और यह भी सुनिश्चित किया जाए कि उनकी सेवापूर्व प्राशिक्षण की सभी जरूरतों (लागत समेत) को पूरा करने की जिम्मेदारी सरकार की हो; किसी भी शिक्षक से किसी भी हाल में शिक्षण के अलावा कोई और काम न लिया जाए।
* मुफ़्त शिक्षा को इस प्रकार पुनर्परिभाषित किया जाए कि उसमें ट्यूशन शुल्क के साथ-साथ अन्य सभी प्रकार के शुल्क व प्रासंगिक खर्च शामिल हों और गरीब, वंचित व विकलांग बच्चों को पढ़ने का अवसर देने की लागत भी चुकाना एवम् अन्य सभी प्रकार की जरूरी सुविधाएं मुहैया करना मुफ़्त शिक्षा का अभिन्न हिस्सा हो।
* सरकार द्वारा सभी फीस लेने वाले निजी स्कूलों, कॉलेजों एवं विश्वविद्यालयों का अधिग्रहण करके उनको सरकारी संस्थाओं के समकक्ष रखते हुए लोकतांत्रिक, विकेंद्रित एवं सहभागी प्रबंधन के तहत चलाया जाए।
* सरकारी कॉलेजों एवं विश्वविद्यालयों में चल रहे सभी स्व-वित्तपोषित पाठ्यक्रमों को पूरी तौर पर सार्वजनिक धन से संचालित पाठ्यक्रमों में तब्दील किया जाए।
* सभी प्रकार की सार्वजनिक-निजी ‘साझेदारी‘ (पी.पी.पी.) पर पाबंदी लगाई जाए जिसमें आयकर माफ़ी, मुफ़्त या रियायती दरों पर दी गई जमीनें एवं अन्य सभी सीधी या छिपी रियायतें, वाउचर स्कूल, सरकारी स्कूलों और उनके परिसरों की बिक्री, लीज़ या किराये पर चढ़ाना, सरकारी स्कूलों और स्कीमों की कॉरपोरेट घरानों व एन.जी.ओ. को आउटसोर्सिंग, फीस लेने वाले निजी स्कूलों तक मध्याह्न भोजन स्कीम का विस्तार करना आदि भी शामिल है।
(याद रहे कि मानव संसाधन विकास मत्री कपिल सिब्बल ने हाल ही में कहा है कि पी.पी.पी. के जरिए निजी संस्थानों को मनमानी फीस ऐंठकर मुनाफ़ाखोरी करने की पूरी छूट रहेगी जिसके चलते एकदम जरूरी हो गया है कि पी.पी.पी. पर सम्पूर्ण पाबंदी लगाई जाए।)
* सैम पित्रोदा के ज्ञान आयोग एवं उच्च शिक्षा की यशपाल समिति की रिपोर्टों को खारिज किया जाए चूंकि ये दोनों देश के मौजूदा कॉलेजों व विश्वविद्यालयों को बेहतर बनाने का एजेंडा पेश करने की जगह उच्च व तकनीकी शिक्षा को बिकाऊ माल बनाने, ‘सार्वजनिक-निजी साझेदारी‘ (पी.पी.पी.) और विदेशी विश्वविद्यालयों को देश में स्थापित करने वाली नवउदारवादी नीति पर आधारित हैं।
* हरेक जिले में कम से कम एक विश्वविद्यालय स्थापित किया जाए जिसके अकादमिक एजेण्डे में आंचलिक सामाजिक, आर्थिक विकास का मकसद शामिल हो।
* विदेशी शिक्षा प्रदाता विधेयक और निजी विश्वविद्यालय विधेयक को संसद में पे्श करने के सभी प्रस्तावों को तुरंत खारिज किया जाए।
* सन 1986 से साल-दर-साल शिक्षा में किए जाने वाले पूंजी निवेश की कमी के चलते निवेश की जो चौड़ी खाई बन गई है उसको पहले पर्याप्त धनराशि देकर पाटा जाए और उसके बाद शिक्षा व्यवस्था में निरंतर गुणवत्ता बढ़ाने के लिए यथोचित धनराशि मुहैय्या की जाए। लेकिन इस धनराशि को पी.पी.पी. के जरिए कॉरपोरेट घरानों व एन.जी.ओ. को पहुंचाकर सरकारी खजाना लुटवाने पर पाबंदी रहे।
* विश्व व्यापार संगठन एवं गैट्स (जनरल एग्रीमेंट ऑन ट्रेड एंड सर्विसेज़) के पटल पर उच्च एवं प्रोफ़ेशनल शिक्षा की पेश्कश को तुरंत वापस लिया जाए अन्यथा वह अपरिवर्तनीय प्रतिबद्धता बन जाएगी और फिर विदेशी संस्थानों को भारतीय संस्थानों के समकक्ष सभी सुविधाएं देना हमारी जबरन बाध्यता हो जाएगी।
संसद मार्च के जरिए सभी राजनीतिक दलों को आह्वान किया गया कि वे संसद और विधानसभाओं में उपरोक्त एजेण्डे को पूरजोर समर्थन दें और ऐसा राजनीतिक कार्यक्रम अपनायें जिसके चलते केन्द्रीय व राज्य सरकारों को शिक्षा के जरिये एक लोकतांत्रिक, समाजवादी, धर्म निरपेक्ष, समतामूलक व प्रबुद्ध समाज बनाने के संविधानिक नजरिये को पुनरस्थापित किया जा सके।
श्री कुलदीप नैयर
प्रो. रमाकान्त अग्निहोत्री
प्रो. अनिल सद्गोपाल
सुनील , राष्ट्रीय उपाध्यक्ष , समाजवादी जनपरिषद
श्री रमेश पटनायक
डॉ. वशिष्ट नारायण शर्मा
डॉ. शाहीन अंसारी
श्री टी. सुरजीत सिंह
अरमान अंसारी , राष्ट्रीय अध्यक्ष, विद्यार्थी युवजन सभा
व अन्य.
आप सभी को ईद-मिलादुन-नबी और होली की ढेरों शुभ-कामनाएं!!
इस मौके पर होरी खेलूं कहकर बिस्मिल्लाह ज़रूर पढ़ें.
kaash ki aisa ho jaaye.