सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए भोपाल गैस कांड संबंधी फैसले से हर देश प्रेमी आहत हुआ है | पचीस साल पहले राजेन्द्र राजन ने इस मसले पर कवितायें लिखी थीं , इस निर्णय के बाद यह कविता लिखी है |
भोपाल-तीन
हर चीज में घुल गया था जहर
हवा में पानी में
मिट्टी में खून में
यहां तक कि
देश के कानून में
न्याय की जड़ों में
इसीलिए जब फैसला आया
तो वह एक जहरीला फल था।
एकदम सटीक रचना है।
Similar sentiments and rage are evoked in following verse, complete verse posted at http://www.chirkutdas.wordpress.com
भोपाल भोपाल जय गोपाल.
२५ साल पहले यहाँ बरसा था काल,
जीते जागते लोग बन गए कंकाल,
भोपाल भोपाल जय गोपाल.
कुछ घंटों में था भारत के बाहर,
इतनी तेज हो गयी एंडरसन की चाल.
कोई क़ानून न पहुँच पाया उस तक,
सत्ता के कुत्ते बन गए उसकी ढाल.
ले के खड़े कंपनसेशन का कटोरा,
अमरीका से बोले प्रभु टुकड़ा तो डाल.
जुट गयी सब तरफ दलालों की भीड़,
सब साले नोचें भूखे-नंगो की खाल.
यूनियन कार्बाइड तो डूब गयी बिक गयी,
कितने बिचोलिये हो गए मालामाल.
अपंगों की एक पीढ़ी गुजर गयी,
इतनी सुस्त पड़ गयी न्याय की चाल.
भोपाल ही नहीं हुआ था सिखों का नर-संहार,
बड़ा ही भयानक था सन ८४ का साल.
मौज कर रहे उन दंगो के मुजरिम,
दयनीय है दंगों की जांच का भी हाल.
हम बेशर्म भारतीय कभी न जागना चाहें,
समस्या हो चाहे कितनी विकराल.
वो हाथ अपना पिछवाडा खुजलायें,
जिन हाथों में होनी चाहिए थी मशाल.
राजेन्द्र जी की भोपाल गैस काण्ड श्रृंखला की रचनायें आज भी स्मृति में हैं. यह भी उम्दा रचना है. प्रस्तुति के लिए बधाई.
जलियाँवाला काण्ड में इतने भारतीय नही मारे गये थे, जितने आजाद भारत में भोपाल गैस में रूपयों के चक्कर में हमारी शासक कौमों ने लोगो को हलाल करवाया, गुलाम कौमों ने जो आवाज उस वक्त बुलन्द की थी, तो इन आजाद कौमों को क्या हो गया है?
बिलकुल जायज़ आक्रोश है
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