चुनावों के करीब जाति-संगठनों के सम्मेलनों में जो प्रस्ताव पारित किए जाते हैं उनमें – ‘हमारी जाति के लोगों को सभी दल अधिक-से-अधिक टिकट दें ‘ टाइप प्रस्ताव प्रमुख होता है । इन संगठनों का एक मुख्य दावा रहता है कि वे अराजनैतिक हैं । सभी दलों से बिरादरी के लोगों के लिए टिकट मांगना अराजनीति है । चुनावों में यह जाति-संगठन अलग-अलग दलों द्वारा उनकी जाति के कितने और किन्हें उम्मीदवार बनाया गया है इसका ऐलान भी करते हैं । विभिन्न दलों के कार्यकर्ता इन संगठनों में एक साथ शामिल रहते हैं ।
एक लक्ष्यीय ‘अराजनैतिक’ संगठनों की इन जाति-संगठनों से कितनी समानता है ! ‘राजनीति धोखा है , धक्का मारो मौका है ‘ का नारा भी लगायेंगे और यह भी कहेंगे , ‘ जो दल हमारी मांग मान लेगा उसे राजनैतिक फायदा मिलेगा ‘ । स्वयंसेवी संस्थाओं के कर्ता-धर्ता तमाम भ्रष्ट दलों के भ्रष्ट नेताओं से नाता रखते हैं । सत्ता के गलियारों में अब इनकी ‘ सलाहकार परिषद ‘ की कोठरियां भी बन गई हैं । इसी प्रकार शिक्षा पर केन्द्रीय सलाहकार बोर्ड में भी स्वयंसेवी-अराजनैतिकों की नुमाइन्दगी होती है ।
जमीनी-स्तर पर काम करने वाली इन संस्थाओं का समाज-अर्थनीति की खूफियागिरी में किस प्रकार की भूमिका हो सकती है इसके कु्छ उदाहरण देखिए :
भारत में जब इलेक्ट्रानिक्स के क्षेत्र में तेज प्रगति हो रही थी तब एक विदेशी फन्डिंग एजेन्सी ने एक स्वयंसेवी संस्था को ‘इलेक्ट्रानिक्स उद्योग में महिलाओं की स्थिति ‘ पर एक प्रोजेक्ट दिया । महिलाओं के नाम पर मिले प्रोजेक्ट के बहाने फन्डिंग एजेन्सी को उद्योग से जुडे अन्य जमीनी तथ्य हासिल करने थे ।
७वें दशक की शुरुआत में गुजरात में पिछडे वर्गों को ’बक्शी-पंच’ (बक्शी आयोग) के आधार पर आरक्षण दिया गया। गुजरात के पटेलों के नेतृत्व में इसका विरोध हुआ। मेरे भाई अहमदाबाद में पत्रकार थे और अतिरिक्त आमदनी के लिए एक इंग्लैण्ड के पैसे से चलने वाली संस्था में अनुवाद का अंशकालिक काम कर रहे थे। यह संस्था उनसे गुजरात के छोटे कस्बों के अखबारों में छप रही आरक्षण विरोधी खबरों का अनुवाद करा के अपने दानदाताओं को भेज रहे थी । जो तथ्य और सूचनायें और रपट जमीनी-स्तर से मिलनी हैं उन्हें इन संस्थाओं की मदद से आसानी से हासिल किया जाता है ।
जिन बातों पर आम दिनों में ज्यादा ध्यान नहीं जाता है उन पर इस खास दौर में जाएगा , उम्मीद है ।
Archive for सितम्बर 6th, 2011
अराजनीति के खतरे
Posted in corruption, ngoisation, politics, tagged depoliticisation, ngo, ngoisation, non political on सितम्बर 6, 2011| 2 Comments »