मैं आप में क्यों नहीं?
दिल्ली में आप की अभूतपूर्व सफलता के बाद सामाजिक कार्यों से जुड़े कुछ मित्र तो मुझे सलाह दे रहे हैं कि मैं भी आप में शामिल हो जाऊं तो कई ये पूछ रहे हैं कि उन्हें क्या करना चाहिए? कुछ तो यह मान कर चल रहे हैं कि आप से मेरा निकट का सम्बंध हैं और चाह रहे हैं कि मैं उनके इलाके से लोकसभा चुनाव हेतु आप के उम्मीदवार के रूप में उनके नामों की संस्तुति कर दूं तो कुछ विषेषज्ञ अपना ज्ञान आप की सेवा में प्रस्तुत करने का प्रस्ताव रख रहे हैं। एक महिला पुलिसकर्मी ने तो फोन करके कहा कि अपनी जिन्दगी में राजनेताओं को करीब से देखने के बाद वह इस निर्णय पर पहुंची है कि इन पर भरोसा नहीं किया जा सकता और अरविंद केजरीवाल को सुरक्षा स्वीकार कर लेनी चाहिए।
मेरे आप में न होने की एक वजह यह है कि न्यायमूर्ति राजिन्दर सच्चर ने 2011 में सोषलिस्ट पार्टी को पुनर्जीवित किया तो उनके कहने पर मै उसमें शामिल हो गया। यह पार्टी डाॅ. राम मनोहर लोहिया, जय प्रकाश नारायण, आचार्य नरेन्द्र देव, अच्युत पटवर्द्धन, आदि, द्वारा बनाई गई पार्टी है जिसका 1977 में जनता पार्टी में विलय हो गया था। इसके पूर्व पिछले लोक सभा चुनाव से पहले जब कुलदीप नैयर ने लोक राजनीति मंच बनाया था तो मैं उसमें भी शामिल हुआ था। फिलहाल मैं सोषलिस्ट पार्टी और लोक राजनीति मंच, जिसमें कई अन्य छोटे-छोटे दल भी शामिल हैं, को मजबूत करने में लगा हुआ हूं। मुझे नहीं लगता कि सिर्फ इसलिए कि आज आप को सफलता मिल रही है तो हमें अपने दल छोड़ कर उसमें शामिल हो जाना चाहिए। याद रहे कि इस देष को जिन राजनीतिक बुराइयों से मुक्त कराना है उसमें से एक दल बदलने वाली अवसरवादिता भी है। दल बदलने के खिलाफ इसीलिए एक कानून भी बना है। हां, यदि विचार और कार्यशैली मिलते हों तो, गठबंधन के बारे में जरूर सोचा जा सकता है।
किंतु आप में न जाने का प्रमुख कारण यह है कि आप के लिए केन्द्रीय मुद्दा है भ्रष्टाचार। जबकि मुझे लगता है कि हमारे देष ही नहीं मनुष्य समाज का केन्द्रीय मुद्दा है गैर-बराबरी। जब तक हम एक ऐसा समाज नहीं बना लेते जिसमें हरेक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति का इतना सम्मान करने लगे जितना कि वह दूसरों से अपने लिए चाहता है तब तक हम एक मानवीय व्यवस्था कायम नहीं कर सकते। यह सिर्फ भ्रष्टाचार खत्म होने से या स्वाराज्य आ जाने से नहीं होगा।
मान लीजिए कि कल अरविंद केजरीवाल के शासन में भ्रष्टाचार एकदम समाप्त हो जाए। कहीं भी एक पैसा न तो कोई घूस लेने वाला हो न ही कोई देने वाला। यह भी मान लीजिए कि सारे निर्णय जनता की सीधी भागीदारी से होने लगे, यानी स्वराज्य आ गया। तो क्या हम संतुष्ट हो जाएंगे?
क्या जाति के आधार पर ऊंच-नीच की भावना खत्म हो जाएगी? क्या हरेक अमीर गरीब को अपने साथ बैठाने लगेगा? क्या महिलाओं के प्रति हिंसा या पितृसत्तात्मक समाज व्यवस्था समाप्त हो जाएगी और महिला अपने को सुरक्षित महसूस करने लगेगी? क्या आधे बच्चे, जो कुपोषण का शिकार हैं और इस वजह से विद्यालय स्तर की भी शिक्षा पूरी नहीं कर पाते, को पर्याप्त पौष्टिक भोजन मिलने लगेगा और वे भी उतने ही गुणवत्तापूर्ण विद्यालयों में जाने लगेंगे जिनमें अमीरों के बच्चे पढ़ते हैं? क्या हरेक गरीब को मुफ्त उतना गुणवत्तापूर्ण इलाज मिलेगा जितना अमीर लोग निजी अस्पतालों में खरीदने की क्षमता रखते हैं?
आप ने बिजली के दामों को आधा करने कर वायदा किया है किंतु उन लोगों का क्या जिनके पास अभी बिजली पहंुची ही नहीं है और न कभी पहुंचेगी? जितने लोग इस देष में हैं उन सबको बिजली उपलब्ध करा पाने लायक उत्पादन ही हम नहीं करते क्योंकि उतने संसाधन ही हमारे पास नहीं हैं। इसलिए प्रभावशाली या पैसे वाले तो बिजली का सपना देख सकते हैं लेकिन हरेक गरीब नहीं। खत्म होते कोयले के संसाधन से बिजली पैदा करने का यदि हमने कोई विकल्प नहीं ढूंढा तो निकट भविष्य में यह स्थिति बदलने वाली नहीं।
पानी तो प्राकृतिक संपदा है और सभी मनुष्यों को उपलब्ध है। उसपर सरकार या किसी निजी कम्पनी को पैसा कमाने की छूट नहीं होनी चाहिए। सरकार की यह जिम्मेदारी है कि जिस मनुष्य को जरूरी आवष्यकताओं जैसे पीने, सिंचाई, स्नान, कपड़ा धोने, आदि के लिए जितना चाहिए उतना उसे मिलना चाहिए। किंतु मनोरंजन, जैसे स्वीमिंग पूल, वाॅटर पार्क, गोल्फ के मैदान और बड़े-बड़े लाॅन हेतु उसका दुरुपयोग बंद होना चाहिए। सिंचाई को छोड़कर जमीन के नीचे से निजी पम्प द्वारा पानी निकालने पर प्रतिबंध होना चाहिए। यदि ऐसा हो जाए तो पानी के उपभोग पर कोई सीमा नहीं तय करनी पड़ेगी। बिना रासायनिक खाद व कीटनाषक के खेती होने लगी तो पानी की आवष्यकता भी कम हो जाएगी।
चूंकि हमारा लक्ष्य एक मानवीय व्यवस्था को कायम करना है जिसमें हिंसा के लिए कोई जगह नहीं होगी इसलिए हम एक हथियार मुक्त दुनिया की कल्पना करते हैं – व्यक्तिगत स्तर पर भी और राष्ट्रों के स्तर पर भी। इसलिए सोषलिस्ट पार्टी ने तय किया है कि हमारे सदस्य मनुष्यों में कोई भेदभाव न मानने वाले व भ्रष्टचार के खिलाफ तो होने ही चाहिए वे हथियारों के आधार पर सुरक्षा की अवधारणा को न मानने वाले भी होने चाहिए। असल में देखा जाए तो बहादुर व्यक्तियों, जैसे अरविंद केजरीवाल, को अपनी सुरक्षा के लिए हथियारों की जरूरत ही नहीं महसूस होती।
आप पार्टी के निर्माण में राष्ट्रवाद की भावना उसकी नींव में है। उसके प्रमुख नारे हैं भारतामाता की जय और वंदे मात्राम जबकि हमारा मानना है कि राष्ट्रवाद की अवधारणा तो मनुष्यों को वैसे की बांटती है जैसे कि जाति और धर्म की। राष्ट्र की सुरक्षा पड़ोसियों के साथ विष्वास पर आधारित सम्बंधों से होती है न कि परमाणु बम बनाने से।
उपर्युक्त कुछ वैचारिक मतभेदों और आप की काॅरपोरेट कार्यषैली, जिसमें व्यक्तियों को उनकी उपयोगिता के हिसाब से जोड़ा जा रहा है न कि मानवीय सम्बंधों के आधार पर, के कारण हमारे जैसे लोग आप में सहज महसूस नहीं कर सकते। हां, चूंकि आप का प्रयोग इस देष में सड़ी-गली राजनीतिक व्यवस्था की बदलने के लिए एक ताजी बयार लेकर आया है हम इसका स्वागत करते हैं और हम इसके सफलता की कामना करते हैं ताकि यह देष की राजनीति को भ्रष्टाचार और अपराधीकरण से मुक्त कराए।
लेखकः संदीप
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”…..हमारे देश ही नहीं मनुष्य समाज का केन्द्रीय मुद्दा है गैर-बराबरी।…..”
अच्छा किया आपने कि अपनी स्थिती स्पष्ट कर दिया है । ऐसी स्थिती में गठबन्धन ही हो सकता है ।
आ. आ. पा. ने घोषित किया है कि वह मोर्चा या गठबंधन नहीं बनाएगी। उन्हें सिर्फ विलय मंजूर है !