डॉ अम्बेडकर ने भक्ति आंदोलन पर एक लेख लिखा था। भक्ति आंदोलन के गुणों में ईश्वर की भक्ति के लिए किसी बिचौलिए तबके को गैर जरूरी बना देना,ज्ञान और अध्यात्म को जाति और लिंग विशेष के दायरे से व्यापक बना देना तो है ही।शूद्र और शूद्रातिशूद्र संत देश के हर कोने में हुए।राजघराने की मीरा रविदास की शागिर्द बनीं। तुलसीदास को सनातनियों ने संस्कृत में राम कथा न लिखने पर त्रस्त कर दिया।उनके द्वारा स्थापित अखाड़ों के अहीर पहलवानों ने उन्हें बचाया होगा।
एक प्रतिपादक,एक किताब से अलग भक्ति आंदोलन था।
बाबासाहब ने धर्म- चिकित्सा और धर्मांतरण के पहले कई आंदोलनों,धर्मों को समझा।भक्ति आंदोलन में अम्बेडकर ने पाया कि अधिकतर संत कहते हैं कि ईश्वर की नजर में सभी इंसान बराबर हैं। इस सिद्धांत का प्रतिपादन न करने वाले दो संतों से अम्बेडकर प्रभावित हुए। यह थे नानक और कबीर।अम्बेडकर ने कहा कि यह दोनों मानते हैं मानव की नजर में मानव बराबर हों।
ऐसे ही डॉ आंबेडकर ने वेद और पुराण से उपनिषदों का अलग माना है।
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