ज्ञानवापी एक बौद्ध विहार था।वापी यानी कुंड या तालाब ।चौक की तरफ से ज्ञानवापी आने पर वापी तक पहुंचने की सीढ़ियां थीं,जैसे कुंड में होती हैं।तथागत बुद्ध के बाद जब आदि शंकराचार्य हुए तब यह बुद्ध विहार न रहा,आदि विशेश्वर मंदिर हुआ।
आदि विशेश्वर मंदिर के स्थान पर बनारस की जुमा मस्जिद है।
महारानी अहिल्याबाई ने काशी के मंदिर-मस्जिद विवाद का दोनों पक्षों के बीच समाधान कराया – काशी की विद्वत परिषद तथा मस्जिद इंतजामिया समिति के बीच।इस समाधान के तहत विश्वनाथ मंदिर बना जो करोडों लोगों का निर्वाद आस्था,पूजा ,अर्चना का केंद्र।
महाराजा रणजीत सिंह ने इस मंदिर को स्वर्ण मंडित करने के लिए साढ़े बाइस मन सोना दान दिया।कहा जाता है कि हरमंदर साहब को स्वर्ण मंडित करने के बाद यह सोना शेष था।
इस विश्वनाथ मंदिर के नौबतखाने में बाबा की शान में बिस्मिल्लाह खां साहब के पुरखे शहनाई बजाते थे।अवध के नवाब राजा बनारस के जरिए इन शहनाइनवाजों को धन देते थे।बाद के वर्षों में नौबतखाने से ही विदेशी पर्यटकों को दर्शन कराया जाता था।काशी के हिन्दू और मुसलमानों के बीच अहिल्याबाई होलकर के समय स्पष्ट सहमति बन गई थी कि मंदिर में दर्शनार्थी किधर से जाएंगे और मस्जिद में नमाज अता करने के लिए किधर से जाएंगे।इस समाधान का सम्मान तब से अब तक किया गया है । मुष्टिमेय लोग साल में एक दिन ‘श्रुगारगौरी’ की पूजा के नाम पर गिरफ्तारी देते हैं।क्या काशी की जनता अशांति,विवाद में फंसना चाहती है?इसका साफ उत्तर है,नहीं।
राष्ट्रतोडक राष्ट्रवादी मानते हैं कि करोड़ों लोगों की आस्था,पूजा के केंद्र की जगह वहां हो जाए जहां मंदिर-मस्जिद हैं।अशोक सिंघल ने विहिप की पत्रिका वंदेमातरम में कहा कि इससे ‘बाबा का प्रताप बढ़ जाएगा’।
इस प्रकार ‘तीन नहीं अब तीस हजार,बचे न एक कब्र मजार’ का सूत्र प्रचारित करने वालों की सोच महारानी अहिल्याबाई तथा महाराजा रणजीत सिंह का विलोम है।
विश्वनाथ मंदिर की बाबत ‘हिन्दू बनाम हिन्दू’ का मामला मंदिर में दलित प्रवेश के वक्त भी उठा था।लोकबंधु राजनारायण ने इसके लिए सफल सत्याग्रह की किया था और पंडों की लाठियों से सिर फुडवाया था।दलित प्रवेश को आम जनता ने स्वीकार किया लेकिन ‘धर्म सम्राट’ करपात्रीजी तथा काशी नरेश ने इसके बाद मंदिर जाना बंद कर दिया।
कल श्री नरेन्द्र मोदी ‘विश्वनाथ धाम’ का लोकार्पण करेंगे।हर बार जब वे काशी आते थे तब भाजपा के झंडे लगाए जाते थे आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के झंडे सरकारी ठेकेदारों के जरिए लगाए गए हैं।
अफ़लातून,
राष्ट्रीय महामंत्री,
समाजवादी जन परिषद
Archive for the ‘dharma chikitsa’ Category
अहिल्याबाई और रंजीत सिंह के विलोम
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विध्वंस के बाद / ज्ञानेन्द्रपति
Posted in communalism, dharma chikitsa, half pant, tagged अयोध्या, गर्भगृह, ज्ञानेन्द्रपति, विध्वंस on अक्टूबर 3, 2010| 3 Comments »
हमने एक त्रिशिर राक्षस का वध किया है
कि अपनी देव-त्रयी को बींध दिया है
हमें नहीं मालूम
हमें नहीं मालूम
कि हम खुश हैं कि उदास
सुन्न पड़ गया है हमारा हृदय हठात्
दिशाओं से चलता हमारा दशानन संवाद
एक काली चुप्पी में बदल गया है
दसो दिशाओं में एक साथ दौड़ जाना चाहते हम
दिशाहीन ठिठके खड़े हैं
अपने छोट बच्चे के सामने
कौतुक से चमकती आँखों वाला हमारा छोटा बच्चा
जिसे हम छोड़ आये थे
कंधे पर बोरे का बुभुक्षित झोला लटकाये
बचपन-वंचित उन बच्चों से तनिक दूर
जो किसी के बच्चे नहीं हैं
दिनभर बीनते कुछ-न-कुछ कूड़े-कचरे के ढेरों में
ताकते सूनी-सूखी आँखों से तमाशा
जब हम चिल्लाते गुजरे थे बलिदानी-अभिमानी टोलियों में
रामलला हम आयेंगे
रामलला हम आयेंगे
मंदिर वहीं बनायेंगे….
बगैर विचारे कि क्या रामायण के अक्षर-घर से
मानस-मंदिर से
भव्य होगा कोई बासा
दिव्य होगा कोई आलय?
हम राम-भक्त थे किसी के लिए राम-विभक्त ?
आज हमारी झुकी-झुकी आँखों के सामने है
फटी-फटी आँखों वाला हमारा छोटा बच्चा
जितनी भी हमारे भीतर वहशत उससे कई गुना है जिसके भीतर दहशत
बेजुबां दहशत जिसकी खामोश चीख से भरी जा रही है पूरी दुनिया
शोर-शराबे से भरी दुनिया एक पल को स्तब्ध
अखबारों की सुर्खियाँ आज काले मोटे हर्फ भर नहीं हैं
सचमुच लिखी हैं लहू से
जिनके नीचे वे बस पंकिल पंक्तियां नहीं
खौफ़ और गम से फटती शिरायें हैं वतन की
और हम सोच नहीं पा रहे हैं कि ऐसा कैसे हुआ
कि हम जो अपनी करुणा के कपास से
ढँक देना चाहते थे सभ्यता के चौराहे पर भटकती
काली अनंगी हड़ीली देहें
इथियोपिया और सोमालिया की
विवस्त्र-त्रस्त कर बैठे अपने ही हाथों मातृभूमि को
लज्जित और लहूलुहान
एक बड़ के बहुत पुराने पितामह पेड़ को काट देने वाली
कुल्हाड़ियाँ हैं हमारी बाहें
धूप-शीत-सधे जिसके प्रचीन छतनार शीश को अब
कभी नहीं देख सकेंगी आँखें
अब हम जानते हैं हमारी उँगलियाँ मूँगफलियों की तरह
आसानी से तोड़ सकती हैं आदमियों को
और बादाम की तरह बगैर खास दिक्कत के
मकान-दर-मकान
लेकिन हमारी हथेलियाँ अब कब
सहला सकेंगी हमारे बच्चे के काँपते कपोल
सपने की नदी में उसके डूबने को
नींद के नभ में उड़ने में बदलती हुई ?
बेघर हो गया है जो हमारे अन्त:करण के गर्भगृह में
रमने वाला देवता
उसे कितने बरस का बनवास दिया है हमने
वह कब लौटेगा अपनी अयोध्या में ?
– ज्ञानेन्द्रपति
(दिसंबर ’९२ )
केरल में राष्ट्रीय आन्दोलन की याद में
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गाँधी : क्या आप मुझे यह साबित कर सकते हैं कि आपको उन्हें सड़क का इस्तेमाल करने से रोकने का हक है ? मुझे यह बात पक्की तौर पर लगती है कि इन दलित वर्गों के लोगों को सड़क के इस्तेमाल का आप जितना ही हक है ।नम्बूदरी प्रतिनिधि : महात्माजी , आप इन तबकों के लिए ’ दलित’ शब्द का प्रयोग क्यों करते हैं ? क्या आप जानते हैं कि वे क्यों दलित हैं ?गाँधी : हाँ , बिल्कुल । जिस वजह से जलियाँवाला बाग में डायर ने बेकसूरों का नरसंहार किया था उसी वजह से वे दलित हैं ।नम्बूदरी प्रतिनिधि :इसका मतलब इस रिवाज को शुरु करने वाले डायर थे ? क्या आप शंकराचार्य को एक डायर कहेंगे ?गाँधी : मैं किसी आचार्य को डायर नहीं कह रहा । परन्तु आपके इस क्रियाकलाप को मैं डायरपने की संज्ञा अवश्य देता हूँ तथा सचमुच यदि कोई आचार्य इस रिवाज की शुरुआत के लिए जिम्मेदार हो तब उसकी इस सदोष अज्ञानता को जनरल डायर की राक्षसी अज्ञानता जैसा मानना होगा ।
गांधी , अम्बेडकर और मिट्टी की पट्टियाँ (५) : अफ़लातून
Posted in ambedkar, brahminism, chikitsa, dharma chikitsa, gandhi, tagged ambedkar, अम्बेडकर, गांधी, brahminism, gandhi, puna pact on अप्रैल 21, 2008| 6 Comments »
गांधी जी और कांग्रेस ने दूसरी गोलमेज वार्ता के बाद पहली बार डॉ. अम्बेडकर को दलितों के प्रतिनिधियों के रूप में मान्यता दी । इसी लिए पूना करार में डॉ. अम्बेडकर को एक पक्ष बनाया गया । ये दोनों विभूतियाँ दलित समस्या के प्रति एक दूसरे के दृष्टिकोण से अच्छी तरह वाकिफ़ थीं । यरवदा जेल में कार्यकर्ताओं से बातचीत में गांधी जी ने स्पष्ट शब्दों में इन मतभेदों को प्रकट किया है । ‘ प्रधानमन्त्री के खिलाफ यह लड़ाई ( पृथक निर्वाचन के विरुद्ध उपवास ) न की होती , तो हिन्दू धर्म का खात्मा हो जाता । अलबत्ता , अभी तक हम लोगों की आपसी लड़ाई तो खड़ी ही है । आज अम्बेदकर चार करोड़ लोगों के लिए नहीं बोलते । मगर जब इन चार करोड़ में शक्ति आयेगी , तब वे सोच विचार नहीं करेंगे । इन चार लोगों का मन भगवान पल भर में बदल सकता है और वे मुसलमान भी बन सकते हैं । लेकिन ऐसा न हो तो वे चुन – चुन कर हिन्दुओं को मारेंगे । यह चीज मुझे अच्छी नहीं लगेगी , पर मैं इतना जरूर कहूँगा कि सवर्ण हिन्दू इसी लायक थे । ‘ गांधीजी की मान्यता थी कि सामाजिक और आध्यात्मिक स्तर पर उनके द्वारा लिए जा रहे कार्यक्रम का विकल्प दलितों को राजनैतिक सत्ता दिलाकर वैधानिक परिवर्तन कराना नहीं हो सकता । मंदिर प्रवेश और सहभोज के कार्यक्रमों में डॉ. अम्बेडकर की दिलचस्पी कम थी , लेकिन गांधी जी इन कार्यक्रमों को करोड़ों आस्तिक दलितों की दृष्टि से और हिन्दू समाज की एकता की दृष्टि से महत्वपूर्ण मानते थे । डॉ. अम्बेडकर की नीति तथा उनके स्वतंत्र नेतृत्व का गांधी जी पर दबाव था । इसी प्रकार गांधी जी के नेतृत्व का डॉ. अम्बेडकर पर दबाव था । गांधी जी ने पूना करार के बाद एक बार कहा था , ‘ मैं हरिजनों का कम छोड़ दूँ ,तो अम्बेडकर ही मुझ पर टूट पड़ें ? और जो करोड़ों बेजुबान हरिजन हैं , उनका क्या हो ? ” पूना करार के लिए डॉ. अम्बेडकर और गांधी जी की वार्ताओं के जो दौर चले थे उसका डॉ. अम्बेदकर ने अपनी पुस्तक में विवरण बिलकुल नहीं दिया है , लेकिन महादेवभाई की डायरी ने उस दौर के इतिहास को दस्तावेज का रूप दिया है । इन वार्ताओं के दरमियान डॉ. अम्बेडकर ने गांधी जी से कहा था , ‘ मगर आप के साथ मेरा एक ही झगड़ा है , आप केवल हमारे लिए नहीं , वरन कथित राष्ट्रीय हित के लिए काम करते हैं । आप सिर्फ़ हमारे लिए काम करें , तो आप हमारे लाड़ले वीर ( हीरो ) बन जाँए । ‘ ( महदेवभाई की डायरी , खण्ड दो , पृष्ठ ६० ) पूना करार पर सहमति के तुरन्त पश्चात डॉ. अम्बेडकर गांधी जी से जेल में मिलने आये , तब जो संवाद हुए वे इस प्रकार हैं-
ठक्कर बापा – ‘अम्बेडकर का परिवर्तन हो गया ‘
बापू बोले – ‘ यह तो आप कहते हैं । अम्बेडकर कहाँ कहते हैं ? “
अम्बेडकर – ‘ हाँ, महात्मा हो गया । आपने मेरी बहुत मदद की । आपके आदमियों ने मुझे समझने का जितना प्रयत्न किया , उसके बनिस्पत आपने मुझे समझने का अधिक प्रयत्न किया । मुझे लगता है कि इन लोगों की अपेक्षा आपमें और मुझमें अधिक साम्य है । ‘
सब खिलखिलाकर हँस पड़े । बापू ने कहा , ‘ हाँ ‘ । इन्हीं दिनों बापू ने भी कहा था कि , ‘ मैं भी एक तरह का अम्बेदकर ही तो हूँ ? कट्टरता के अर्थ में । ‘ ( वही , पृ. ७१ )
पूना करार के बाद के दिनों में इन दोनों विभूतियों के निकट आने की कफ़ी संभावना थी । गांधी जी की प्रेरणा से बने अस्पृश्यता निवारण मंडल की केन्द्रीय समिति में अम्बेडकर ने रहना मंजूर किया था । इस संस्था के उद्देश्य निर्धारित करने के संदर्भ में डॉ. अम्बेडकर द्वारा समाज व्यवस्था की बाबत अपनी पैनी समझदारी प्रकट करने वाले सुझाव दिए । बाद में जब उक्त मंडल के व्यवस्थापन में दलितों की भागीदारी की बात आयी तब गांधी जी ने कहा कि प्रायश्चित करने वाले सवर्ण ही इस मंडल में कर्ज चुकाने की भावना से रहेंगे । कर्जदार को समझना चाहिए , कि उसे अपना ऋण कैसे चुकाना है । डॉ. अम्बेडकर के मन पर इन रवैए का प्रतिकूल असर पड़ा ।
गांधी , अम्बेडकर और मिट्टी की पट्टियाँ (4 ): मनु स्मृति , गीता आदि:अफ़लातून
Posted in ambedkar, brahminism, dharma chikitsa, gandhi, tagged ambedkar, gandhi, geeta, Manu smriti on अप्रैल 19, 2008| 13 Comments »
जहाँ तक मनुस्मृति , गीता आदि ग्रन्थों के दलित विरोध को पुष्ट करने का प्रश्न है , गांधी जी का दृष्टिकोण स्पष्ट है ।उन्हें यह विश्वास था कि वे हिन्दू धर्म का एक सुधरा स्वरूप भारतीय समाज से ग्रहण करवा लेंगे । उनके दृष्टिकोण को प्रकट करने वाला निम्नलिखित पत्र अलीगढ़ विश्वविद्यालय के संस्कृत के प्रोफेसर हबीबुर रहमान को लिखा गया है । इस पत्र में उन्होंने लिखा , ” हिन्दू धर्म की खसूसियत यह है कि उसमें काफी विचार स्वातंत्र्य है । और उसमें हर एक धर्म के प्रति उदार भाव होने के कारण उसमें जो कुछ अच्छी बातें रहतीं हैं , उनको हिन्दूधर्मी मान सकता है । इतना ही नहीं , परन्तु मानने का उसका कर्तव्य है ।ऐसा होने के कारण धर्म ग्रन्थों के अर्थ का दिन-प्रतिदिन विकास होता रहा है । हिन्दू धर्म के नाम से प्रचलित ग्रन्थों में जो कुछ लिखा गया है , वह सबके सब धर्मवचन हैं , ऐसा नहीं है । वेदपाठ सुननेवाले शूद्र के कान में गरम सीसा डालने की बात अगर ऐतिहासिक मानी जाए , तो मैं उस धर्म को मानने के लिए हरगिज तैयार नहीं हूँ और ऐसे असंख्य हिन्दू हैं ,जो उसे धर्म वचन नहीं मानते हैं । हिन्दू धर्म के लिए एक कसौटी रखी गयी है , जिसको एक बालक भी समझ सकता है । जो बुद्धिग्राह्य वस्तु नहीं है और बुद्धि से विपरीत है , वह कभी धर्म नहीं हो सकती है । और जो सत्य और अहिंसा के विपरीत है , वह भी धर्म नहीं हो सकती ।” ( महादेवभाई की डायरी , खण्ड दो , पृ. १७३ – १७४ )
यरवदा जेल में मथुरादास नामक कार्यकर्ता को समझाते हुए गांधी जी ने कहा , “ गुलामों से बदतर – इन लोगों को जानवर बनाया और इनका हमने यह धर्म बना दिया कि ये लोग अपने कर्मों का कुफल भोगते हैं । यह तो धर्म का राक्षसी स्वरूप है । हिन्दू धर्म का अगर यह अर्थ हो तो मैं भी गीता , मनुस्मृति सबको जला डालूँ । ( महादेवभाई की डायरी , खण्ड तीन , पृ. २६९ )
अस्पृश्यता को पाप का फल माननेवाले लोग कर्म मार्ग का सबसे बद़्आ अनर्थ करते हैं , ऐसा गांधी जी मानते थे । २५ जुलाई १९३४ को लखनऊ में एक आम सभा में गांधी जी ने कहा , ” धर्म के नाम पर दुनिया भर में अस्पृश्यता नहीं देखी है । अमरीका और दक्षिण अफ़्रीका में गोरे काले के बीच इस प्रकार का तिरस्कार और घृणा है लेकिन उसे वे धर्म कार्य नहीं कहते । हिन्दुओं ने ठेका ले रखा है । चाहे जैसा शौचाचार का पालन करने वाले छह करोड़ लोगों के साथ अस्पृश्यता और घृणा का बर्ताव किया जाता है , जैसे डॉ. अम्बेडकर ।सवर्ण अकिंचन का जो स्थान समाज में है वह अम्बेदकर का नहीं है । सवर्णों के बुद्धिमान के साथ अम्बेडकर बैठ सकते हैं । वे बुद्धि से इतने तीव्र हैं कि किसी से कम नहीं । हरिजन सेवा के लिए उनमें त्याग और बहादुरी भी है । इतना आपको सुनाना चाहता हूँ कि हमारे बीच इस सेवाकार्य में मतभेद होने पर भी उनकी बुद्धि , त्याग व बहादुरी के बारे में मुझे कोई शंका नहीं है । उनके विषय में कहना कि उनका पापी योनि में जन्म है ? चाहे जितना प्रायश्चित करें वे अस्पृश्य रहेंगे , पाप धुलेंगे नहीं ? इससे बड़ा कोई पाप नहीं है , कर्ममार्ग का इससे बड़ा अनर्थ मेरी नजर में कोई नहीं है । ” ( महादेवभाई की डायरी (गुजराती),खण्ड-२०, पृ ६३-६४ ) ।
डॉ . अम्बेडकर और महात्मा गांधी के बीच दलितों के नेतृत्व को लेकर संघर्ष था । फरवरी १९३७ में हुए प्रान्तीय विधान सभाओं के निर्वाचन परिणामों के फलस्वरूप डॉ. अम्बेडकर ने ” कांग्रेस और गांधी ने अछूतों के साथ क्या किया ” नामक पुस्तक दलित और विदेशी पाठकों के लिए लिखी । इन चुनावों में अनुसूचित जाति के लिए निर्धारित १५१ सीटों में से कांग्रेस ने ७३ सीटें जीतीं ।इन ७३ सीटों में से अनुसूचित जाति के बहुमत से जीती गयीं ३८ सीटें थीं । डॉ. अम्बे्डकर ने चुनाव के कुछ माह पूर्व ही इन्डिपेण्डेण्ट लेबर पार्टी का गठन किया था । इस पार्टी ने सिर्फ महाराष्ट्र में चुनाव लड़ा जहाँ १५ सुरक्षित सीटों में से १३ पर उसकी जीत हुई तथा २ सामान्य सीटें भी इसने हासिल कीं थीं । सिवा एक गाली के इस पुस्तक के निष्कर्षों को ही सुश्री मायावती दोहरा रही हैं ।” जाति तोड़ो : समाज जोड़ो ” का “आन्दोलन ” चला रहे श्री कांशीराम जाति तोड़ने के डॉ. अम्बेदकर द्वारा सुझाये गये चार कार्यक्रमों के सन्दर्भ में क्या कर पाए हैं ? यह उन्हें बताना चाहिए । डॉ. अम्बेडकर के अनुसार जाति-प्रथा के नाश के लिए १. अन्तर्जातीय विवाह – सवर्ण-अवर्ण ,२. धर्म की चिकित्सा ( विषमता बढ़ाने वाले तत्वों की आलोचना) ,धर्मान्तरण तथा ४. दलितों की सामाजिक-आर्थिक उन्नति – ये चार कार्यक्रम बताये गए थे ।