राजनाथ सिंह संसद में बोल चुके हैं कि गांधीजी ने संघ की प्रशंसा की थी।संघ के जिस कार्यक्रम का राजनाथ सिंह ने दिया था उसका तफसील से ब्यौरा गांधीजी के सचिव प्यारेलाल ने ‘पूर्णाहुति’ में दिया है।पूर्णाहुति के प्रकाशन और प्यारेलाल की मृत्यु के बीच दशकों का अंतराल था।इस अंतराल में संघियों की तरफ से कुछ नहीं आया।लेख नीचे पढ़िए।
गांधी अंग्रेजों के खिलाफ़ लड़ते रहे किंतु अपने माफीनामे के अनुरूप सावरकर ने अंडमान से लौट कर कुछ नहीं कहा।नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने जब सावरकर से सहयोग मांगा तब सावरकर ने सहयोग से इनकार करते हुए कहा कि मैं इस वक्त हिंदुओं को ब्रिटिश फौज में भर्ती करा कर शस्त्र प्रशिक्षण कराने में लगा हूँ।नेताजी द्वारा खुद लिखी किताब The Indian Struggle में इस प्रसंग का वर्णन दिया हुआ है।
सावरकर 1966 में मरे जनसंघ की 1951 में स्थापना हो चुकी थी।15 साल जनसंघियों ने उपेक्षा की?
गांधी हत्या के बाद जब संघ प्रतिबंधित था और सावरकर गांधी हत्या के आरोप में बंद थे तब संघ ने उनसे दूरी बताते हुए हिन्दू महासभा में सावरकर खेमे को हत्या का जिम्मेदार बताया था।
गांधीजी की सावरकर से पहली भेंट और बहस इंग्लैंड में हो चुकी थी। हिन्द स्वराज में हिंसा और अराजकता में यकीन मानने वाली गिरोह से चर्चा का हवाला उन्होंने दिया है।
बहरहाल सावरकर और गांधी पर हांकने वाले राजनाथ सिंह का धोती-जामा फाड़ने के इतिहास का मैं प्रत्यक्षदर्शी हूँ।फाड़ने वाले मनोज सिन्हा के समर्थक थे।
राजनाथ सिंह प्यारेलाल , नेताजी और बतौर गृह मंत्री सरदार पटेल से ज्यादा भरोसेमंद हैं?
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सावरकर,नेताजी, सरदार,प्यारेलाल और बेचारे राजनाथ
Posted in तानाशाही dictatorship, communalism, dictatorship, gandhi, half pant, national movement, politics, terrorism, tagged गांधी-हत्या, गांधीजी, नेताजी, सरदार पटेल, सावरकर on अक्टूबर 14, 2021| Leave a Comment »
क्या सिर्फ़ काग़ज़ात पूछोगे?
Posted in communalism, dictatorship, half pant, tagged तानाशाही, दमन, दमनचक्र, नागरिकता on दिसम्बर 24, 2019| Leave a Comment »
आज धर्म पूछोगे, कल जात पूछोगे
कितने तरीक़ों से मेरी औक़ात पूछोगे
मैं हर बार कह दूँगा, यही वतन तो मेरा है
घुमा फिरा के तुम भी तो वही बात पूछोगे
सच थोड़े ही बदलेगा पूछने के सलीकों से
थमा के क़ुरान या फिर जमा के लात पूछोगे
मेरी नीयत को तो तुम कपड़ों से समझते हो
लहू का रंग भी क्या अब मेरे हज़रात पूछोगे
मैं यहीं था 84 में, 93 में, 02 में, 13 में
किस किस ने बचाया मुझे उस रात पूछोगे
तुम्हीं थे वो भीड़ जिसने घर मेरा जलाया था
अब तुम्हीं मुझसे क़िस्सा-ए-वारदात पूछोगे
ज़बान जब भी खुलती है ज़हर ही उगलती है
और बिगड़ जाएँगे ग़र तुम मेरे हालात पूछोगे
पुरखों की क़ब्रें, स्कूल की यादें, इश्क़ के वादे
कुछ देखोगे सुनोगे या सिर्फ़ काग़ज़ात पूछोगे
~ सुमित सप्रा
प्रेम से साझा कीजिए
बजरिए शाहिद अख़्तर
Shahid Akhtar
जीवंत लोकतंत्र और मीडिया : रवीश कुमार द्वारा 6ठा सुनील स्मृति व्याख्यान
Posted in democracy, dictatorship, journalism, media, tagged jnu, media, ravish kumar, sunil memorial, vibrant democracy on दिसम्बर 1, 2019| Leave a Comment »
समाजवादी जन परिषद के नेता साथी सुनील की स्मृति में आयोजित 6ठे सुनील स्मृति व्याख्यान का विषय था जीवंत लोकतंत्र और मीडिया। भाषण देने वाले थे प्रख्यात पत्रकार रवीश कुमार –
जीवंत लोकतंत्र और मीडिया,रवीश कुमार : सुनील स्मृति व्याख्यान
जम्मू-कश्मीर की संवैधानिक स्थिति से छेड़छाड़ भाजपा की धूर्त और गैर जिम्मेदाराना कार्रवाई – समाजवादी जन परिषद
Posted in Autonomy, तानाशाही dictatorship, राजनीति, communalism, democracy, dictatorship, Federalism, kashmir, nationalism, politics, samajwadi janparishad, tagged Autonomy, dictatorship, Federalism, instrument of accession, kashmir, kashmir constituent assembly, samajwadi jan parishad, section 370, sheikh abdullah on अगस्त 10, 2019| 1 Comment »
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गत 5 अगस्त को केंद्र की भाजपा नीत एनडीए सरकार ने जम्मू-कश्मीर से संविधान के विशेष प्रावधान अनुच्छेद-370 के कई प्रमुख प्रावधानों को निष्प्रभावी बना दिया। इसके साथ ही केंद्र ने जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य के दर्जे के साथ ही पूर्ण राज्य का दर्जा भी समाप्त कर उसे दो हिस्सों में केंद्र शासित प्रदेशों के रूप में विभाजित कर दिया।
केंद्र ने संसद से तीन प्रस्ताव पारित कराए हैं। इनमें से एक में संविधान संशोधन कर कश्मीरी संविधान सभा के न रहने की स्थिति में उसका अधिकार राष्ट्रपति में निहित कर दिया गया है। असल में पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा था कि अनुच्छेद 370 को हटाने का अधिकार कश्मीर की संविधान सभा को है। लेकिन 1957 में संविधान सभा के भंग हो जाने पर दूसरी बार संविधान सभा का गठन कर ही इस प्रावधान पर विचार किया जा सकता है। इस फैसले को पलटने के लिए भाजपा सरकार ने संविधान में ही संशोधन कर दिया है।
सरकार ने एक तरह से सांप्रदायिक पक्ष लेते हुए न केवल राज्य का दर्जा खत्म कर दिया है बल्कि उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित भी कर दिया है। इसके साथ ही पूरी घाटी में संचार सेवा को ठप कर करीब 50 हजार सुरक्षाबलों को तैनात कर दिया है। लोगों पर अघोषित कर्फ्यू लागू कर दिया गया है। ऐसा कर सरकार ने ऐतिहासिक भूल को सुधारने और आतंकवाद व अलगाववाद प्रभावित राज्य में शांति बहाली की उम्मीद का दावा किया है।
लेकिन जब हम संविधान, लोकतांत्रिक व्यवस्था, कानून का राज जैसे सिद्धांतों और भाजपा जैसी पार्टी की सोच और चरित्र के आधार पर आकलन करते हैं तो पता चलता है कि यह सब कार्रवाई केंद्र की भाजपा- एनडीए सरकार ने संविधान का उल्लंघन करने, लोकतंत्र का गला घोंटने, संघवाद, बहुलवाद को नजरंदाज कर अपना एकत्ववादी, सांप्रदायिक हिन्दूवादी एजेंडा लागू करने के लिए ऐसा किया है। यह इस बात से भी पुष्ट होता है कि भाजपा सरकार ने यह सब राज्य की जनता को विश्वास में लिए बिना किया है, जिसका वादा जम्मू कश्मीर के विलय के वक्त किया गया था। अपनी अलोकतांत्रिक और धूर्ततापूर्ण कार्रवाई के समर्थन मे गृहमंत्री ने दिवंगत समाजवादी नेता डॉ- राम मनोहर लोहिया का नाम बिना किसी संदर्भ के लेने की धृष्टता की है कि लोहिया अनुच्छेद 370 के खिलाफ थे। इसका कांगेस के एक प्रमुख नेता ने भी समर्थन किया। हम इस अभद्रतापूर्ण बयान की निंदा करते हैं। डा लोहिया ने हमेशा भारत-पाकिस्तान महासंघ बनाने की बात की जिसमें सीमाओं को मुक्त आवागमन के लिए खुला छोड़ा जा सके।
सजप मानती है कि जम्मू-कश्मीर में पूरे देश की तरह ही जन भावना को कुचलने का काम केंद्र की सरकारें करती रही है। चाहे कांग्रेस सरकार की 1953 का कश्मीर संविधान को नजरंदाज कर भारी बहुमत से चुने गए जम्मू-कश्मीर के प्रधानमंत्री शेख अब्दुतल्ला को अपदस्थ करना और अगले बीस साल के लिए जेल में डालना रहा हो, बाद के दिनों में धांधली कर चुनाव जीतना रहा हो या भाजपा की अब की कार्रवाई हो, सरकारें राज्य में सांप्रदायिक सौहार्द से छेड़छाड़ कर ही कार्रवाई करती रही है। कहना न होगा कि भाजपा सरकार की कार्रवाई की कांग्रेस महासचिव समेत कई नेताओं ने समर्थन किया हे और कांग्रेस नेतृत्व ने मौन साध रखा है।
सजप मानती है कि केंद्र की सरकारों की तरह ही राज्य की नेशनल कांफ्रेंस- पीडीपी- भाजपा सरकार की भी इस समस्या के समाधान की कोई इच्छाशक्ति नहीं रही है। यद्यपि नेशनल कांफ्रेंस भारत विभाजन के खिलाफ रहा और उसने राज्य के सांप्रदायिक माहौल को संतुलित रखने में शुरू से ही भूमिका निभाई है लेकिन बाकी समस्याओं को दूर करने और लोगों की बेहतरी के लिए उसका भी नकारापन रहा है। नेकां और पीडीपी शुरू से जनकल्याण के काम में जुटी रहती तो आज राज्य की शैक्षणिक, आर्थिक और राजनीतिक, सामाजिक स्थिति बेहतर हुई रहती। लेकिन देश के बाकी दलों की तरह ही उनका व्यवहार भी गैर जिम्मेदाराना रहा है। इस स्थिति में देश भर में सांप्रदायिक उन्माद और वैमनस्य पैदा कर भाजपा-आरएसएस घटिया लाभ लेने की फिराक में है। सजप केंद्र सरकार की इस धोखेबाजी, असंवैधानिक, गैर जिम्मेदाराना और धूर्तता से भरी इस प्रवृत्ति की कड़ी निंदा करती है।
जम्मू-कश्मीर या किसी राज्य की स्वायतत्ता और संघात्मक ढांचे पर बात करते समय सजप का यह भी मानना है कि प्राकृतिक संसाधनों पर मूल वासियों और “लम्बे समय के वासियों” का व्यक्तिगत और सामुदायिक अपरिवर्तनीय (unquestionable) अधिकार सजप की आधार भूत मान्यताओं में है। सजप मानती रही है कि सरकार द्वारा प्रायोजित सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए भी ज़मीन, जंगल, खनिज और जल का अधिग्रहण वहाँ की स्थानीय लोकतांत्रिक सरकारों (ग्राम सभा, पंचायत, ज़िला परिषद वग़ैरह) की सहमति से ही हो सकती है।
जिस तौर तरीके को कश्मीर में अपनाया गया उससे यह अंदेशा बनता है कि वर्तमान की कार्रवाई को केंद्र एक लिटमस टेस्ट के तौर पर ले सकता है और इसमें सफल होने के बाद वह आदिवासी इलाके, अन्य राज्यों के विशेषाधिकार और यहां तक कि विरोधी दल शासित राज्य सरकारों को कुचलने के लिए वहां भी ऐसी कार्रवाई कर सकता हैं और वहां के संवैधानिक अधिकारों को समाप्त कर सकता है और तानाशाही कायम की जा सकती है। भंग या निलंबित विधानसभा के अधिकार राज्यपाल के माध्यम से राष्ट्रपति को दे देना अलोकतांत्रिक, असंवैधानिक है। कश्मीर की संविधान सभा, विधानसभा की शक्ति राज्यपाल, राष्ट्रपति में निहित मान लेना तानाशाही का द्योतक है।
वैसे तो सजप की स्थायी मांग है कि कश्मीर समस्या के हर पहलुओं की संवेदनशीलता और अंतरराष्ट्रीय गंभीरता के साथ जांच-परख कर कूटनयिक पहल की जानी चाहिए और पूरे भारतीय समाज को इसमें संलग्न कर ऐसे समाधान की दिशा में बढ़ना चाहिए, जिससे कश्मीर और पाकिस्तान, बांग्लादेश समेत समूचे दक्षिण एशिया में शांति-सौहार्द कायम हो सके। तभी हम उम्मीद कर सकते हैं कि कश्मीर समस्या का समाधान भी आकार ले पाएगा।
लेकिन वर्तमान परिस्थिति में सजप मानती है कि जिस तरह से बन्दूक के साये में यह सब किया गया हमें उसका खुलकर विरोध किया जाए। देश के संविधान प्रदत्त संघीय ढांचे पर केंद्र सरकार ने सोच समझ कर आघात किया है। कश्मीर के अलगाववादी तत्वों को भारत सरकार के कदम से बल मिलेगा। किसी भी समुदाय से बात किए बिना उनके बारे में फैसला एकदम अलोकतांत्रिक और तानाशाही भरा है।
जहां तक कश्मीर पर अवैध कब्जे की बात है तो पीओके के अलावा चीन ने भी अक्साई चिन के बड़़े भूभाग यानी लगभग 33,000 वर्ग किलोमीटर जमीन कब्जा रखी है। इस पर सरकार ने अब तक कोई बयान भी जारी नहीं किया है। लद्दाख को केंद्र शासित बनाने पर चीन के विरोध में दिए गए बयान का भी भारत सरकार ने कोई प्रतिकार नहीं किया है। जो तत्काल किया जाना चाहिए था।
सजप मांग करती है कि
तत्कालकि तौर पर
– कश्मीर की वास्तविक स्थिति यानी तत्काल 5 अगस्त से पूर्व की स्थिति बहाल की जाए।
– वहां तत्काल विधानसभा का चुनाव कराकर लोकप्रिय सरकार गठित की जाए।
– दो पूर्व मुख्यमंत्रियों व अन्य नेताओ की गिरफ्तारी निंदनीय है। उनकी तुरंत रिहाई हो।
– सरकार की वर्तमान कार्रवाई पर उच्चस्तरीय और संवैधानिक जांच बैठाई जाए।
– अनुच्छेद 370 पर निर्णय राज्य की जनता को विश्वास में लेकर व़हां संविधान सभा गठित कर हो।
– दीर्घकालिक तौर पर
-पाकिस्तान से बातचीत शुरू कर समस्या का स्थायी समाधान खोजें।
– भारत-पाकिस्तान-बांग्लादेश का महासंघ बनाने की दिशा में स्थिति को अनुकूल करने पर काम हो।
– चीन द्वारा कब्जा किए अक्साई चिन इलाके को वापस लेने के प्रयास किए जाएं।
– किसी राज्य से राज्य का दर्जा खत्म करने का संवैधानिक प्रावधान को रद्द किया जाए।
– केंद्र- राज्य संबंधों को संघीय दृष्टि से पुनर्परिभाषित करने के लिए दूसरे ‘केंद-राज्य संबंध आयोग’ का गठन किया जाए।
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