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Archive for the ‘internet’ Category

15 अगस्त 2006 को ‘समाजवादी जनपरिषद’ नाम से ब्लागर पर हिन्दी चिट्ठा शुरु किया था । 14 दिनों बाद ही लगा कि निजी कम्पनी(गूगल) पर पूरी तरह आश्रित होना ठीक नहीं । सो , ‘ओपन सोर्स’ में यकीन रखने वाले वर्डप्रेस पर भी आ गया । नेट पर देवनागरी टंकण सीखने के पहले दिसम्बर 2003  में अंग्रेजी चिट्ठा बना लिया था ।
यह मेरी हिन्दी चिट्ठे की पहली पोस्ट  है । उस वक्त हिन्दी चिट्ठों की नई पोस्ट दिखाने के लिए एक मात्र संकलक या एग्रीगेटर ‘नारद’ था। मेरे चिट्ठों को नारद से जोडने में चार महीने लगे। इन चार महीनों में भूले भटके पाठक ही पहुंचते थे। कुछ दोस्तों ने अपने चिट्ठों पर लिंक दी थी , उनसे कुछ पाठक पहुंच जाते थे। साल भर पूरा किया तो उस वक्त के धुरंधर चिट्ठेकारों से भरपूर प्रोत्साहन मिला ।
वर्डप्रेस अपने ब्लगर्स को काफी तफसील में आंकडे देता है । दो साल पूरा होने पर मैंने इन आंकडों को प्रस्तुत किया –  इन्हें
१५ अगस्त की तारीख चुनने के पीछे १९४२ की एक शहादत की स्मृति थी ।

हिन्दी चिट्ठों की प्रविष्टियों को दिखाने वाला दूसरे संकलक चिट्ठाजगत और ब्लागवाणी भी आए और चले गये । संकलकों पर आश्रित हिन्दी चिट्ठेकारी का भारी नुकसान इनके बन्द हो जाने से हुआ । अपने चिट्ठों में नित्य-नूतन प्रविष्टियां डालने में जो सातत्य था वह टूटा ।लोग अपने ब्लागों पर जितना लिखते थे और जितनी गंभीरता से लिखते थे वह कम हो गया है। बने बनाये आकर्षक स्वरूप वाले फेसबुक ने रही-सही कसर पूरी कर दी है । फेसबुक पर छपी कृतियों पर लेखक का नहीं फेसबुक का हक हो जाता है – यह चिन्ता की बात है । फेसबुक के हिन्दी सदस्यों में समुदाय या समूह विकसित नहीं हुए हैं । मराठी में फेसबुक पर ‘अस्वस्थ भारत’ जैसे पृष्ट पर अच्छी बहस भी चलती है ।

हिन्दी लिखने वाले तरुण मित्रों से मेरी हार्दिक गुजारिश है कि वे चिट्ठेकारी अथवा ब्लागिंग से जुडें और उन पर सतत लिखें । पुराने ब्लागर मित्रों से भी निवेदन कर रहा हूं कि अपना सृजनात्मक लेखन अपने ब्लाग पर प्रकाशित करना न भूलें । मैं भी अपने चिट्ठों पर ज्यादा लिखने का प्रयास करूंगा ।

 

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  1. प्रेस का यह कर्तव्य होगा कि चुनाव तथा प्रत्याशियों के बारे में निष्पक्ष रिपोर्ट दे । समाचारपत्रों से अस्वस्थ्य चुनाव अभियानों में शामिल होने की आशा नहीं की जाती । चुनावों के दौरान किसी प्रत्याशी , दल या घटना के बारे में अतिशियोक्तिपूर्ण रिपोर्ट न दी जाए । वस्तुत: पूरे मुकाबले के दो या तीन प्रत्याशी ही मीडिया का सारा ध्यान आकर्षित करते हैं । वास्तविक अभियान की रिपोर्टिंग देते समय समाचारपत्र  को किसी प्रत्याशी द्वारा उठाये गये किसी महत्वपूर्ण मुद्दे को छोड़ना नहीं चाहिए और न ही उसके विरोधी पर कोई प्रहार करना चाहिए ।
  2. निर्वाचन नियमावली के अन्तर्गत सांप्रदायिक अथवा जातीय आधार पर चुनाव अभियान की अनुमति नहीं है । अत: प्रेस को ऐसी रिपोर्टों से दूर रहना चाहिए जिनसे धर्म, जाति , मत , सम्प्रदाय अथवा भाषा के आधार पर लोगों के बीच शत्रुता अथवा घृणा की भावनाएं पैदा हो सकती हों ।
  3. प्रेस को किसी प्रत्याशी के चरित्र या आचरण के बारे में या उसके नामांकन के संबंध में अथवा किसी प्रत्याशी का नाम अथवा उसका नामांकन  वापस लिये जाने के बारे में ऐसे झूटे या आलोचनात्मक वक्तव्य छापने से बचना चाहिए जिससे चुनाव में उस प्रत्याशी की संभावनाएं दुष्प्रभावित होती हों । प्रेस किसी भी प्रत्याशी/दल के विरुद्ध अपुष्ट आरोप प्रकाशित नहीं करेगा ।
  4. प्रेस किसी प्रत्याशी/दल की छवि प्रस्तुत करने के लिए किसी प्रकार का प्रलोभन – वित्तीय या अन्य स्वीकार नहीं करेगा । वह किसी भी प्रत्याशी/दल द्वारा उन्हें पेश किया गया आतिथ्य या अन्य सुविधायें स्वीकार नहीं करेगा ।
  5. प्रेस किसी प्रत्याशी/दल – विशेष के प्रचार में शामिल होने की आशा नहीं की जाती । यदि वह करता है तो वह अन्य प्रत्याशी/दल को उत्तर का अधिकार देगा ।
  6. प्रेस किसी दल/ सत्तासीन सरकार की उपलब्धियों के बारे में सरकारी खर्चे पर कोई विज्ञापन स्वीकार / प्रकाशित नहीं करेगा ।
  7. प्रेस निर्वाचन आयोग/निर्वाचन अधिकारियों अथवा मुख्य निर्वाचन अधिकारी द्वारा समय समय पर जारी सभी निर्देशों/अनुदेशों का पालन करेगा ।
  8. जब भी समाचारपत्र मतदान पूर्व सर्वेक्षण प्रकाशित करते हैं तो उन्हें सर्वेक्षण करवाने वाले व्यक्तियों और संस्थाओं का उल्लेख सावधानीपूर्वक करना चाहिए एव्म प्रकाशित होने वाली उपलब्धियों के नमूने का माप एवं उसकी प्रकृति , पद्धति में गलतियों के संभावित प्रतिशत का भी ध्यान रखना चाहिए । [ सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मतदान पूर्व सर्वेक्षणों पर रोक लगा दी गयी है ।-सं. ]
  9. अगर चुनाव अलग चरणों में हो तो किसी भी समाचारपत्र को मतदान पूर्व सर्वेक्षण चाहे वे सही भी क्यों न हो प्रकाशित नहीं करना चाहिए ।

भारत की प्रेस परिषद द्वारा चुनावों के सन्दर्भ में उपर्युक्त दिशा निर्देश जारी किए गए हैं । अपने मुख्य ब्लॉग की एक प्रविष्टी को पुष्ट करने के लिए इन निर्देशों को यहाँ प्रकाशित किया जा रहा है । उक्त प्रविष्टि के तथ्यों के प्रति भारत के चुनाव आयोग तथा सम्बन्धित अखबारों के सम्पादकों का ध्यान आकर्षित करने के लिए पत्र लिख दिए गए हैं । सम्पादकों द्वारा  उचित कार्रवाई न किए जाने पर प्रेस परिषद को लिखा जायेगा ।  मीडिया के इस गैर जिम्मेदाराना आचरण के विरुद्ध , लोकतंत्र के हक में पाठकों की आम राय प्रकट हुई है । इसकी हमें उम्मीद थी तथा इससे हमें नैतिक बल मिला है ।

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१५ अगस्त २००६ को हिन्दी का चिट्ठा शुरु किया था । एक साल पूरा होने पर मूल्यांकन किया था । इस चिट्ठे पर पिछले साल कुल १२५ पोस्ट और ३४१ टिप्पणीयाँ थीं  , इस साल ७३ पोस्ट लेकिन टिप्पणियाँ ३४१ ही हैं । अन्य दो चिट्ठे : यही है वह जगह पर इस साल ५७ पोस्ट और २२ टिप्पणियां हैं तथा शैशव पर ६४ पोस्ट तथा १८७ टिप्पणियाँ हैं । सुरे – बेसुरे गीत-संगीत का एक नया चिट्ठा पिछले साल शुरु किया उसमें ४३ पोस्ट और १७२ टिप्पणियाँ हैं ।

    इस चिट्ठे पर गत एक वर्ष में निम्न स्थानों से पाठक पहुँचे , जिनके रचनाकारों का मैं शुक्रगुजार हूँ :

blogvani.com 675 More stats
narad.akshargram.com 116 More stats
blogvani.com/Default.aspx?count=100 80 More stats
uday-prakash.blogspot.com 73 More stats
blogger.com/profile/08027328950261133… 68 More stats
azdak.blogspot.com 67 More stats
hi.wordpress.com 60 More stats
WordPress Dashboard 56  
ramrotiaaloo.blogspot.com 46 More stats
anamdasblog.blogspot.com 46 More stats
maitry.blogspot.com 42 More stats
nirmal-anand.blogspot.com 39 More stats
chitthajagat.in 35 More stats
narad.akshargram.com/?show=all 32 More stats
chitthajagat.in/?chittha=samatavadi.w… 24 More stats
blogvani.com/Default.aspx?mode=blog… 24 More stats
raviwar.com 23 More stats
orkut.com/Profile.aspx?uid=8701628969… 23 More stats
samatavadi.blogspot.com 20 More stats
cafehindi.com/E-Books/globalisation-h… 18 More stats
samajwadi.blogspot.com 18 More stats
botd.wordpress.com/top-posts/?lang=hi 17 More stats
google.com/Top/World/Hindi/%E0%A4%B8%… 17 More stats
mohalla.blogspot.com 17 More stats
thumri.blogspot.com 17 More stats
kashivishvavidyalay.wordpress.com 16 More stats
blogvani.com/default.aspx?mode=new 15 More stats
blogvani.com/Default.aspx?mode=latest… 15 More stats
blogvani.com/Default.aspx?mode=latest… 14 More stats
orkut.com/CommMsgs.aspx?cmm=25608743… 14 More stats
google.com/reader/view 14 More stats
vinay-patrika.blogspot.com 14 More stats
blogvani.com/default.aspx?mode=new… 13 More stats
wordpress.com/tag/mayawati 13 More stats
blogvani.com/Default.aspx?mode=latest… 13 More stats
mail.google.com/mail/?ui=1&view=… 13 More stats
blogvani.com/?mode=new 12 More stats
tooteehueebikhreehuee.blogspot.com 11 More stats
srijanshilpi.com/?page_id=107 11 More stats
filmyblogs.com/hindi.jsp 11 More stats

इस चिट्ठे पर मौजूद निम्नलिखित कड़ियों पर उनके सामने लिखी संख्या में पाठक यहाँ से गए :

 

2007-08-15 to Today

URL Clicks
anahadnaad.wordpress.com 51 More stats
ek-shaam-mere-naam.blogspot.com 49 More stats
ghughutibasuti.blogspot.com 36 More stats
bapukigodmein.wordpress.com 33 More stats
vinay-patrika.blogspot.com 29 More stats
samatavadi.blogspot.com 26 More stats
samatavadi.files.wordpress.com/2008/0… 26 More stats
samatavadi.files.wordpress.com/2008/0… 25 More stats
kashivishvavidyalay.wordpress.com 25 More stats
samatavadi.files.wordpress.com/2008/0… 25 More stats
blogvani.com/logo.aspx?blog=samatavad… 24 More stats
samatavadi.files.wordpress.com/2008/0… 23 More stats
samatavadi.files.wordpress.com/2008/0… 22 More stats
kalpana.it/hindi/blog 19 More stats
samatavadi.files.wordpress.com/2008/0… 18 More stats
esnips.com/doc/fe3ca114-a142-42ef-adc… 18 More stats
pagdandi1.blogspot.com/index.html 18 More stats
radionama.blogspot.com 18 More stats
samatavadi.files.wordpress.com/2008/0… 17 More stats
samatavadi.files.wordpress.com/2007/1… 16 More stats
azdak.blogspot.com 16 More stats
bajaar1.blogspot.com 16 More stats
chenzhen.wordpress.com/2007/05/25/wor… 16 More stats
samajwadi.blogspot.com 15 More stats
samatavadi.files.wordpress.com/2008/0… 14 More stats
shaishav.wordpress.com 14 More stats
nirmal-anand.blogspot.com/index.html 14 More stats
aflatoon4.tripod.com 13 More stats
jajbat.blogspot.com 13 More stats
srijanshilpi.com 12 More stats
samatavadi.files.wordpress.com/2008/0… 12 More stats
samatavadi.files.wordpress.com/2007/1… 12 More stats
hindini.com/fursatiya 11 More stats
radionamaa.blogspot.com 10 More stats
samatavadi.files.wordpress.com/2007/0… 9 More stats
petitiononline.com/harda/petition.htm… 9 More stats
kashivishvavidyalay.wordpress.com/200… 8 More stats
samatavadi.files.wordpress.com/2008/0… 7 More stats
kashivishvavidyalay.wordpress.com/200… 6 More stats
tarakash.com 6 More stats

इन शब्दों को खोजते हुए ,सामने लिखी तादाद में लोग पिछले एक साल में इस चिट्ठे पर आए :

2007-08-15 to Today

Search Views
कविताएँ 265 More stats
अम्बेडकर 163 More stats
तुलसीदास 160 More stats
स्वामी विवेकान 137 More stats
नारी 99 More stats
विवेकानन्द 78 More stats
भीमराव अम्बेडक 73 More stats
गांधी 68 More stats
उत्तर प्रदेश 64 More stats
हिटलर 56 More stats
tulsidas 54 More stats
उपभोक्तावादी स 46 More stats
विवेकानन्द साह 44 More stats
industralisation 42 More stats
मायावती 39 More stats
ऑनलाइन 35 More stats
खेती 34 More stats
पानी की कमी 34 More stats
उपभोक्तावाद 28 More stats
महात्मा गांधी 28 More stats
गोस्वामी तुलसी 27 More stats
महिला दिवस 27 More stats
globalisation 27 More stats
आरक्षण 22 More stats
वैश्वीकरण 22 More stats
विवेकानन्द स्व 21 More stats
गाँधी 19 More stats
पत्रकारिता 18 More stats
vivekanand 18 More stats
हिन्दी दिवस 18 More stats
राष्ट्रीय स्वय 17 More stats
harda 17 More stats
मित्र 16 More stats
उदय प्रकाश 16 More stats
नेता 16 More stats
asterix 15 More stats
उपभोक्तावादी 15 More stats
रघुवीर सहाय 15 More stats
गांधीजी के बार 14 More stats
नरेन्द्र मोदी 14 More stats
भविष्य 14 More stats
पानी 13 More stats
rangoli 13 More stats
bbc hindi.com 13 More stats
कहानी 12 More stats
नेहरू 12 More stats
राधा 11 More stats
स्वामी विवेकान 11 More stats
वेब पत्रकारिता 10 More stats
मानवाधिकार 10 More stats

सर्च इन्जनों में इस्तेमाल किए गए उपर्युक्त शब्दों ,नामों , पदों में अम्बेडकर + भीमराव अम्बेडकर अथवा स्वामी विवेकानन्द + विवेकानन्द + vivekanand + विवेकानन्द साह अथवा  गोस्वामी तुलसीदास+ तुलसीदास + tulsidas खोजने वालों की तादाद काएदे से जोड़ कर बतायी जानी चाहिए ।

  मुझे यक़ीन है कि सर्च इन्जनों के माध्यम से भविष्य में भी लोग इन महत्वपूर्ण शब्दों , नामों , पदों को खोजते इस चिट्ठे पर मँडराएंगे ।

  पिछले एक साल की पोस्टों को वर्गीकृत कर ‘विषय सूची’ में डालने का काम अतिशीघ्र हो जाएगा।  पिछले साल यह काम किया गया था । इससे ब्लॉग के अलावा ब्लॉग में छुपी वेब साइट को भी लोग देख सकते हैं । पिछले एक साल में प्रस्तुत ऑनलाइन पुस्तिकाओं को भी एक साथ प्रस्तुत कर दिया जाएगा , ऐसे

पिछले एक वर्ष में मेरी कौन सी पोस्ट्स कितनी पढ़ी गयीं ?

2007-08-15 to Today

Title Views  
‘राष्ट्र की रीढ़’ 323 More stats
रघुवीर सहाय : ती 314 More stats
गोस्वामी तुलसी 307 More stats
डॊ. भीमराव अम्ब 256 More stats
‘नारी के सहभाग ब 226 More stats
ऑनलाइन पुस्तिक 218 More stats
उदय प्रकाश की क 182 More stats
औद्योगीकरण का 173 More stats
मोदी की जीत गुज 165 More stats
परिचय 164 More stats
इस चिट्ठे की वि 163 More stats
भारत भूमि पर वि 159 More stats
नारोदनिक,मार्क 157 More stats
मायावती और चरख 149 More stats
नौ ऑनलाइन पुस् 133 More stats
‘लोकतंत्र का जि 132 More stats
ईसाई और मुसलमा 129 More stats
औद्योगिक सभ्यत 121 More stats
पूर्वी उत्तर प 111 More stats
‘वेब पत्रकारित 108 More stats
“हिटलर के नाज 107 More stats
महिला दिवस का ऐ 103 More stats
औद्योगिक सभ्यत 101 More stats
हिन्दी दिवस ( १४ 100 More stats
‘शेक्सपियर गुज 100 More stats
खेती की अहमियत 99 More stats
‘पूंजी’,रोज़ा लक् 98 More stats
असल कश्मीरियत 98 More stats
‘आरक्षण की व्यव 93 More stats
‘ नारी हानि विसे 90 More stats
बाबा साहब डॉ . भ 88 More stats
हमने मोदी को वो 87 More stats
नई राजनीति के न 84 More stats
तेलुगु कहानी : म 82 More stats
कविता : इतिहास म 80 More stats
चरम गुलामी : जब 80 More stats
पानी की जंग : ले. 78 More stats
बौद्धिक साम्रा 75 More stats
शिक्षा , मलाईदा 73 More stats
गांधी – अम्बेडक 71 More stats
परमाणु बिजली न 71 More stats
‘बिजली मुफ़्त बँ 69 More stats
गांधी , अम्बेडक 69 More stats
कत विधि सृजी ना 68 More stats
गांधी , अम्बेडक 67 More stats
गांधी से प्रभा 66 More stats
तेलुगु कहानी (२) 66 More stats
गांधी , अम्बेडक 66 More stats
बम धमाके : सच के 63 More stats
डॉ. अम्बेडकर : ए 63 More stats
गांधी , अम्बेडक 62 More stats
भारत का कुलीकर 62 More stats
बौद्धिक साम्रा 57 More stats
सूर्य हमारा पर 55 More stats
उपभोक्तावादी स 55 More stats
क्या वैश्वीकरण 54 More stats
अमृत घूंट : ले. न 54 More stats
परमाणु बिजली क 51 More stats
अहमद पटेल के भर 50 More stats
वाल मार्ट पर लि 50 More stats
शब्द , शब्द को प 48 More stats
वामपंथ का व्या 48 More stats
गाँधी – नेहरू चि 47 More stats
गांधी , अम्बेडक 45 More stats
कम्युनिस्ट देश 44 More stats
नन्दीग्राम पर 44 More stats
भारत का कुलीकर 42 More stats
यह सिर्फ शब्दो 41 More stats
पत्रकारीय लेखन 41 More stats
कोला कम्पनियों 41 More stats
मनुष्यता के मो 40 More stats
भोगवाद और ‘ वामप 40 More stats
‘चरखा’ वाले अमन 39 More stats
जल्दी में : कुंव 39 More stats
कोला कम्पनियों 39 More stats
उपभोक्तावाद का 37 More stats
मिथुन दर्शनं म 37 More stats
अमृत घूंट (३)[चा 37 More stats
‘खुले विश्व’ के 37 More stats
उपभोक्तावादी स 35 More stats
सेज विरोधी आन् 35 More stats
म.प्र. राज्य सुर 35 More stats
युद्ध पर तीन कव 34 More stats
फिर न हों हिरोश 33 More stats
कोला कम्पनियों 32 More stats
दो वर्षों में य 32 More stats
गांधी , अम्बेडक 31 More stats
जे.पी. और राष्ट् 31 More stats
तत्वज्ञानी महा 30 More stats
दिल्ली चिट्ठाक 30 More stats
मीडिया प्रसन्न 30 More stats
क्या, फिर इन्डि 30 More stats
मेरी चिट्ठाकार 30 More stats
अमृत घूंट (२) : ले 28 More stats
हम इस आवाज का मत 27 More stats
कोला कम्पनियाँ 27 More stats
वामपंथ का व्या 27 More stats
पानी की जंग : गो 27 More stats
गांधी गीता और ग 26 More stats
प्रकाश व ऊष्मा , 26 More stats
पानी की जंग , ले.- 24 More stats
उसका सौन्दर्य 23 More stats
सीख वाले खेल और 23 More stats
गांधी – सुभाष : भ 22 More stats
खाद्य संकट पर प 22 More stats
राजनीति में मू 22 More stats
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उपभोक्तावादी स 21 More stats
भारत भूमि पर वि 21 More stats
भाषा पर गांधी ज 21 More stats
निजी जेल कंपनि 20 More stats
क्या वैश्वीकरण 20 More stats
अयोध्या , १९९२ : 19 More stats
‘दो तिहाई आबादी 19 More stats
गांधी पर बहस : प 18 More stats
क्रांतिकारी दि 18 More stats
गीकों की ‘गूँगी 18 More stats
‘विकास’ बनाम वू 18 More stats
अमृत घूंट (४) : ले 18 More stats
महादेव देसाई (२) 18 More stats
आयात – निर्यात औ 17 More stats
नन्दीग्राम की 17 More stats
मौजूदा चुनाव क 17 More stats
सर्वत्र भारतीय 17 More stats
वैश्वीकरण : देश 17 More stats
भारत भूमि पर वि 17 More stats
भारत और उपभोक् 16 More stats
राजनीति में मू 16 More stats
राधा – कृष्णों क 16 More stats
गांधी – सुभाष : भ 15 More stats
जंगल पर हक़ जतान 15 More stats
साल-भर की चिट्ठ 15 More stats
चिट्ठेकारी का 15 More stats
परिचर्चा पर बह 15 More stats
वस्तुओं को जमा 14 More stats
” आप चिट्ठाजगत प 14 More stats
क्या वैश्वीकरण 14 More stats
चेर्नोबिल यत्र 14 More stats
जगतीकरण क्या ह 13 More stats
उपभोक्तावादी स 13 More stats
गांधी – नेहरू ची 13 More stats
राज्य आयोग का ई- 13 More stats
‘चिट्ठाजगत’ का प 12 More stats
अपठित महान : महा 12 More stats
राष्ट्रपिता : ग 12 More stats
मैथिली गुप्तजी 11 More stats
विदेशी पूँजी स 11 More stats
चिट्ठे इन्कलाब 11 More stats
क्या वैश्वीकरण 11 More stats
कुछ और विशेष क् 11 More stats
ये परदेसी जिन् 10 More stats
आदिवासियों ने 10 More stats
कचरा खाद्य : मान 10 More stats
प्रतिबन्धित पु 10 More stats
विदेशी पूंजी स 10 More stats
गांधी पर 10 More stats
बैंक बीमा और पे 9 More stats
प्लाचीमाडा की 9 More stats
विदेशी पूंजी स 9 More stats
क्या वैश्वीकरण 9 More stats
क्या वैश्वीकरण 9 More stats
आदमी का अकेलाप 9 More stats
आर्थिक संप्रभु 9 More stats
ब्लागवाणी क्यो 9 More stats
भाषा पर गांधी औ 8 More stats
क्या वैश्वीकरण 8 More stats
चिट्ठेकारी सम् 8 More stats
‘ गन – कल्चर ‘ पर च 8 More stats
विदेशी पूंजी स 8 More stats
बातचीत के मुद् 8 More stats
श्रमिकों की हत 8 More stats
सलमान खुर्शीद 7 More stats
भारत भूमि पर वि 7 More stats
उपभोक्तावादी स 7 More stats
” डबल जियोपार 7 More stats
समाजवादी कल्पन 7 More stats
‘ परिचर्चा ‘ से स 7 More stats
पानी की जंग पर र 7 More stats
विधानसभा में व 6 More stats
बनारस तुझे सला 6 More stats
गीता पर गांधी 6 More stats
पानी की जंग ( गत 6 More stats
अकाल तख़्त को मा 5 More stats
विदेशी पूंजी स 5 More stats
स्कूलों में शी 5 More stats
शैशव में अतिक् 4 More stats
पूँजीवाद के सं 4 More stats
अखबारनवीसी – सल 4 More stats
गांधी – नेहरू ची 4 More stats
रविजी , आप भी न भ 4 More stats
दोषसिद्ध रंगभे 4 More stats
भारत भूमि पर वि 3 More stats
गुलामी का दर्श 3 More stats
इन्टरनेट पर गा 3 More stats
कोला कम्पनियों 3 More stats
चीन और विदेशी प 3 More stats
आगाज़ 3 More stats
भारत भूमि पर वि 2 More stats
हत्यारों का गि 2 More stats
रामगोपाल दीक्ष 2 More stats
विदेशी पूंजी स 2 More stats
‘ परिचर्चा ‘ की ज 1 More stats
1 More stats

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    चिट्ठाकारी से जुड़े पत्रकार , छात्र , गृहणियाँ ,व्यवसायी ,अध्यापक और गीक १४ जुलाई ,’०७ को दिल्ली में मिले । इस माध्यम से जुड़े इन विविध पृष्टभूमि के लोगों की बातचीत में भी विविधता थी लेकिन एक अन्तर्धारा सभी को जोड़ रही थी । रचनात्मक अभिव्यक्ति के माध्यम से प्राप्त आत्म-तुष्टि के साथ सबने विचार रखे और सुने ।

    संजाल का कोई मालिक कोई व्यक्ति,सरकार, कम्पनी या समूह नहीं है ।इससे जुड़े व्यवसाय में भले ही दानवाकार कम्पनियाँ मौजूद हों ।टेलिफोन कम्पनियाँ ,इन्टरनेट पर सेवाएँ देने वाली कम्पनियाँ और इन्टरनेट के सेवा देने वाली कम्पनियाँ । इन्टरनेट पर कम्पनियों के नियंत्रण का प्रयास पूँजीवाद के झण्डाबरदार देश अमेरिका में भी सफल नहीं हो सका है । ऐसी साजिशों के खिलाफ़ अभियान काफ़ी व्यापक और तीव्र रहे हैं और संसद और अमरीकी संसद के निर्णय को प्रभावित करने में भी वे सफल रहे हैं ।

    इस माध्यम से जुड़ा कोई भी तंत्र लोकमत की उपेक्षा करे यह मुमकिन नहीं है ।तंत्र से जुड़े प्रबन्धक लिंकन की प्रसिद्ध उक्ति पर ध्यान न दें , तब ?

” आप लोकतंत्र में कुछ लोगों को हमेशा के लिए मूर्ख बना सकते हैं , सभी लोगों को कुछ समय के लिए मूर्ख बना सकते हैं परन्तु सभी लोगों को हमेशा के लिए मूर्ख नहीं बना सकते हैं । “

    हिन्दी चिट्ठेकारी से जुड़े जिन लोगों का जमावड़ा १४ जुलाई को दिल्ली में हुआ उन सब की बातों से यह यक़ीन जरूर पुख़्ता हुआ कि इस जमात को हमेशा के लिए मूर्ख बना कर रखना असम्भव है ।

स्फुट झलकियाँ ( जिन से मैं प्रभावित हुआ )

‘कैफ़े कॉफ़ी डे’ में कॉफ़ी का बिल चुकाया जा चुका था । अमित गुप्ता को कवयित्री रचना सिंह ने अपना सहयोग देना चाहा तब अमित ने कहा कि ‘ महिलाओं से हम पहले आर्थिक सहयोग नहीं लेना चाहते।’ रचनाजी द्वारा इस विभेदकारी रवैए पर गम्भीर आपत्ति जताने के बाद अमित ने पैसे लिए।

प्रतिष्ठित चिट्ठाकार घुघूती बासूती ने चिट्ठेकारी से जुड़े मन्दकों-प्रबन्धकों से उम्मीद की कि वे ज्यादा सहनशील ,उदार और धैर्यवान बनें।

स्तंभकार आलोक पुराणिक ने घोषणा की कि वे पाँच लाख पाठक पाने के लक्ष्य के साथ चिट्ठाकारी कर रहे हैं । अमर-उजाला के वित्तीय दैनिक ‘कारोबार’ के जमाने में सलाहकार-सम्पादक के रूप में उनका घोषित लक्ष्य था सालाना एक करोड़ रुपए कमाना । चिट्ठेकारी के बारे में उनके खुले बाजार की थीसिस का प्रतिवाद में ‘कॉफ़ी-हाउस’ के भुपेन ने उनसे पूछा कि क्या वे सहकारी प्रयासों को इस खाके में में शामिल करेंगे? आलोकजी ने इस संशोधन पर अनापत्ति प्रकट की।

लगता है सृजन-शिल्पी अपनी नौकरी में सोमनाथ चटर्जी और शेखावत के सदन संचालन को बहुत गौर से देखते हैं ।शिष्टतापूर्ण आग्रह से चुप कराने के उनके औपचारिक वचनों में सोमनाथजी और शेखावतजी की झलक देखी जा सकती थी ।

उत्तर-आधुनिकता के दौर में प्रचलित ‘यदि उन्हें परास्त न कर सको तो उनके साथ शामिल हो जाओ’ सिद्धान्त को भी उन्होंने आत्मसात कर लिया है। उनकी धार्मिक भावनाओं के आहत मन ने नारद-संचालन पर व्यापक प्रश्न उठाये थे, उनका उत्तर मिला हो तो उसकी सार्वजनिक सूचना नहीं हुई।फिलहाल, ‘नारद-पत्रिका’ के वे सम्पादक हैं ।

सुनीता शानू की कम्पनी की निर्यात-श्रेणी की चाय की मसिजीवी ने तहे -दिल से प्रशंसा की।

“कुछ ही पलों में पोस्ट एग्रीगेटर पर’ के सन्दर्भ में वरिष्ट चिट्ठेकार जगदीश भाटिया ने मौजू राय व्यक्त की – ” क्या हम इतनी अल्पावधि की प्रासंगिकता वाला लेखन कर रहे हैं ?”

नीरज दीवान ने मराठी विकीपीडिया की प्रशंसा की तथा हिन्दी विकीपीडिया की विपन्नता पर चिन्ता व्यक्त की ।

अविनाश ने चिट्ठों पर प्रस्तुत सामग्री की गुणवत्ता की तकनीकी उपायों की तुलना में अधिक अहमियत पर जोर दिया ।

इस बातचीत के मेजबान ‘हिन्दी गियर’ और ब्लॉग वाणी के मैथिली गुप्त ने बहुत शिद्दत से कहा कि नेट पर हिन्दी-हित में व्यक्ति भी बड़े योगदान दे सकता है।(यह जरूरी नहीं कि ऐसे योगदान सामूहिक ही हों।)

इन्जीनियरिंग के छात्र रहे शैलेश भारतवासी के हिन्दी चिट्ठेकारी के प्रचार-प्रसार के प्रयासों की प्रशंसा हुई । फैजाबाद-इलाहाबाद में उन्होंने हाल ही में दौरा किया है ।

इलाहाबाद में  उनके साथ हुई बैठक की पूर्व-सूचना चिट्ठों पर दी गई थी ।इलाहाबाद-वासी चिट्ठेकारों को भी ई-मेल पर सूचना दी गई थी। चिट्ठाकारों में सिर्फ प्रमेन्द्र पहुँचे और शैलेश ने वहाँ पहुँचे तरुणों को हिन्दी चिट्ठेकारी के बारे में बताया ।

एक बार प्रबन्धशास्त्र के प्राध्यापक ‘भारतीयम’ के अरविन्द चतुर्वेदी को बाजार में हिन्दी टाइपिंग की सुविधा नहीं मिली।संजाल पर खोज-खोज कर उन्होंने हिन्दी टंकण के औजार अपने कम्प्यूटर पर डाले और तब से हिन्दी में काम शुरु कर दिया ।

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ब्लागवाणी देशज भाषाओं के ब्लाग्स का भारतीय एग्रीगेटर है.

ब्लागवाणी पूरक है, सहायक है, किसी भी एग्रीगेटर का विकल्प नहीं है.
जितने भी अधिक ब्लाग्स एग्रीगेटर या देशी भाषाओं की वेबसाईटें होंगीं, उतना ही देशी भाषाओं का प्रसार और प्रचार होगा, उतने ही अधिक पाठक आयेंगे.  ब्लागवाणी भी अपने साथ पाठक समूह को समेटेगा और देशी भाषाओं के प्रसार और प्रचार में अपना योगदान देगा.

ब्लागवाणी को हमने 19 जून 2007 से बनाना शुरू किया. शुरूआत में इसको पीएचपी में बनाया जा रहा था पर 22 जून से इसे एएसपी.नेट में बनाना शुरू किया गया.  लगभग एक माह में इसे पूरा कर के अन्तरजाल पर डाल देने की योजना है.  इसकी परिकल्पना में श्री रवि रतलामी के लेख मेरा नारद कैसा हो, तेरी चाहत जैसा हो ब्लाग एग्रीगेटर के लिये 10 कमान्डमेन्ट्स  का बड़ा योगदान रहा.  हम आभारी हैं रवि जी आपके.  इसकी समस्त प्रोग्रामिंग सिरिल द्वारा की जा रही है. 

ब्लागवाणी कि परिकल्पना देशज भाषाओं के ब्लाग एग्रीगेटर के रूप में की गई है,  प्रथम चरण में हम केवल हिन्दी को ले रहे हैं.  धीरे धीरे इसमें अन्य भाषायें भी आतीं जायेंगी. सभी भाषायें लेने का उद्देश्य इतना भर है कि अन्य भाषाओं के पाठक भी एक दूसरे की भाषा को पढ़ पायें.

आप हिन्दी ब्लागर्स के संपर्क में आकर मुझे आपसे इस काम की प्रेरणा मिली, आपका आभारी हूं मैं.

हमें आपके सुझावों की प्रतीक्षा है
आपका
मैथिली गुप्त

सम्पर्क : 76/2 गढी़, जीके हाउस के सामने, इस्कान टेम्पल रोड
सन्त नगर ईस्ट आफ कैलाश, नई दिल्ली-110065
ई-मेल: blogvani (at) cafehindi ( dot) com

साभार : blogvani.com

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‘ धुरविरोधी ‘ के चिट्ठे पर जीतू ने कहा था , 

ये सच है कि पहले भी इस तरह की भाषा का प्रयोग होता रहा है, लेकिन हमेशा हम चुप नही रह सकते। कभी ना कभी तो निर्णय लिया ही जाना था।

ये मेरा आखिरी स्पष्टीकरण है, इसके बाद नारद की तरफ़ से कोई स्पष्टीकरण नही आएगा।

    कल जीतू ने ‘आखिरी’ के बाद फिर बोला तब हमें  हमारे अंचल में कबड्डी का जो प्रचलित रूप है उसके एक मजेदार किन्तु हिन्सक नियम की याद आ गयी । जब किसी पक्ष का सिर्फ़ एक खिलाड़ी बचा रह जाता तब उसे मौन धारण कर दूसरे पाले में जाने का विकल्प दिया जाता । इस विकल्प के तहत उस खिलाड़ी को ‘कबड्डी – कबड्डी’ या ‘हू-तू-तू’ बोलने के बजाय मौन हो कर दूसरे पाले में जाना पड़ता और सामने वाले पक्ष द्वारा पकड़ कर मौन तोड़वाने पर ही वह बाहर होता ।बगैर मौन तोड़े  सामने वाले पक्ष के जितने खिलाड़ियों को छू कर अपने पाले में वापस हो जाने पर उसके पक्ष के उतने खिलाड़ी ‘जिन्दा’ हो जाते, जितनों को ‘गूँगा’ छू कर आया होता ।

    काशी में ‘कबड्डी-कबड्डी’ या ‘हू-तू-तू’ के अलावा कुछ छन्दमय बोलों का इस्तेमाल भी होता रहा है , जैसे :

छाल कबड्डी आला

हनुमानजी क पाला

गदा घींच-घींच के मारा

गदा घींच- घींच के मारा,

मारा-मारा-मारा …..

अथवा

खटिया कचाऊ ,

हम तोर बाऊ ,

बाऊ-बाऊ-बाऊ….

तो ‘गूँगी कबड्डी’ में खिलाड़ी का मौन टूटा, यानि उसकी हो गयी हार ।

नारद-टीम के मौजूदा(चन्द्रशेखर जैसे चिर-अध्यक्ष रहे ,भले दल की मान्यता समाप्त हो गयी हो और खुद की सीट भी भाजपा या सपा के समर्थन से ही बचती हो) तथा चिर-समन्वयक जीतेन्द्र चौधरी के फिलवक्त दो सलाहकार हैं : देबाशीष और अनूप । ‘नारद’ पर चिट्ठों को प्रतिबन्धित करने के पुराने मामलों में वे रोक की अर्थहीनता के विरुद्ध स्पष्ट मत रखते आए हैं । ‘मोहल्ला’ पर रोक की माँग नामंजूर होने में भी ऐसा कुछ हुआ दिखता है। उस दौरान सुनील दीपक अपनी किसी यात्रा से लौट कर आए तब अनूप के स्टैन्ड को देख कर आश्वस्त हुए थे । उस वक्त नारद – संचालन पर बुनियादी सवाल उठाने वाले भी एक गुमटी दे कर एडजस्ट कर लिए गए । कुछ और काबिल-गीकों को ‘सर्वज्ञ’ बना लिया गया ।

    बहरहाल , हिन्दी चिट्ठालोक के सभी ‘सामूहिक’ प्रयासों में  दुकानदारियाँ तजबीजी जा सकती हैं । इन दुकानदारियों के अपने तजुर्बे को पेश कर दूँ । गीकों के अहम के टन्टे गौरतलब हैं :

गूगल-समूह ‘चिट्ठाकार’ पर मैं ‘भाषा पर गाँधी’ डाल रहा था । समूह के कई सदस्य अपने विचार व्यक्त कर रहे थे। अचानक जीतू का प्रादुर्भाव हुआ ,ऐसे :

From:
जीतू Jitu – Date:
Sun, Sep 17 2006 9:54 am
Email:
“जीतू Jitu” …@gmail.com>
साथियों, चर्चा गम्भीर होती जा रही है, आइए परिचर्चा < http://www.akshargram.com/paricharcha> पर इसे आगे बढाएं, यहाँ सिर्फ़ ६ या ७ लोग ही चर्चा कर रहे है, इसलिए चिट्ठाकार फोरम इसके लिए मुफ़ीद जगह नही। इस चर्चा का अगला थ्रेड परिचर्चा पर ही खोलिए, यहाँ मत करिए। धन्यवाद।

यानि ‘माल’ बिकाऊ दिखा तो देबाशीष के ‘चिट्ठाकार’ से अमित गुप्ता के ‘परिचर्चा’ पर आने की सलाह दी। ‘परिचर्चा’ के ‘ज्वलन्त मुद्दों’ के तहत वह बहस जरूर लोकप्रिय बनी(३१९९ बार देखा गया और ५१ उत्तर आये) लेकिन वहाँ भी दुकानदार की गीक-समझदारी और गीकी-अहंकार प्रकट हुआ ऐसे :

अमित गुप्ता स्वयं उस बहस में इस शैली में प्रकट हुए : रंजीत बाऊ, मुझे आपकी बात का उत्तर देने की कोई आवश्यकता नहीं है, कुछ बोल दिया तो गश खाकर गिर पड़ोगे, क्योंकि दुनिया का सीधा सा उसूल है, दिमाग वाली बातें उन्हीं को समझ नहीं आती जो या तो मूर्ख हैं या दिमाग का प्रयोग नहीं करते। या

‘पर वह बाद में, अभी किसी और को यह गाना गाना हो तो गा सकता है, हम तो अभी आराम से बैठे मौज ले रहे हैं, बाद में अपना असला निकालेंगे!!

घुघूती बासूती ने ‘अहमदाबाद में प्रेमी-युगलों की पिटाई की थ्रेड शुरु की तो गीकी ‘समझदारी’ फिर बहस के आड़े आई।यह चर्चा १७३० बार देखी गयी थी और २५ उत्तर आये थे। बहस का संचालन करने में विफल अमित बोले:

यह थ्रेड अब अपने विषय और पथ से भटक गया है, इसलिए इसके अब चर्चा के लिए खुले रहने का कोई प्रायोजन नहीं है, इसलिए मैं इसे बन्द कर रहा हूँ।

 प्रियंकर को लिखना पड़ा :

samvaad63
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Re: क्या हमें कुछ नये नियम बनाने चाहिये ?

अमित भाई!
हम सरकार को सेंसरशिप के लिये कोसते हैं पर खुद ऐसा जघन्य काम करते हैं . आपने सिर्फ़ मेरे अकाउंट पर इस थ्रेड को ‘रेमूव’ करके बेहद शर्मनाक  काम किया है . मैं बहुत सामान्य आदमी हूं . कहीं से भी महान नहीं हूं . और न मुझे अपने अभिजात्य का इतना मुगालता है कि जो सच समझता हूं उसे कहने से हिचकूं . पर आप तो आवाज़ का ही गला घोंट रहे हैं. मेरी ही टिप्पणी पर ही प्रति-टिप्पणियां होंगी और मैं ही उन्हें न तो देख पाऊंगा और न ही जवाब दे पाऊंगा .
अगर ऐसा है तो आप मुझे सीधे कह सकते हैं . आखिर आप इस परिचर्चा के मालिक जो ठहरे . हां एक बात जरूर कहूंगा जब दुकान खोल कर बैठे हैं तो ग्राहक का चुनाव आप पर निर्भर नहीं करता . अब और कोई टिप्पणी नहीं करूंगा . यह लिंक सृजन शिल्पी के जरिये मिला उन्हें धन्यवाद देता हूं . अफ़लातून जी को भी . वरना मुझे तो पता ही नहीं चलता . पर चलिये तकनीकी के जरिये सच को दबाने का एक उदाहरण देख पाया यह क्या कम

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samvaad63
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Re: क्या हमें कुछ नये नियम बनाने चाहिये ?

‘ताड पर मत चढो’ , ‘बेकार की बकबक’, ‘फालतू बकवास’ , ‘पता नहीं क्या बीमारी है’  यह तो अमित की खुद की बहस की भाषा का स्तर है . ऊपर से वे प्रबंधक और मंदक और न जाने क्या-क्या हैं . वही सबको नसीहत और चेतावनी देने वाले हैं. वही प्रतिवादी हैं,वही वकील हैं और वही न्यायाधीश भी . अब उनसे क्या कहा जाये .
नये साल की शुभकामनाएँ देता हूँ .

प्रियंकर भाई ने मुझे लिखा :

भाई अफ़लातून जी,

   बद्धमूल और जड़ विचारों वाले लोगों को कैसे समझाया जाए . यह मेरी तो समझ में नहीं आ रहा है . सामान्यतः ऐसे लोग जब तक अति न कर दें  , टिप्पणी नहीं करता हूं . क्योंकि वे बहस नहीं चाहते . खुद चाहे जो लिख देंगे और फ़िर बहस समाप्ति की इकतरफ़ा घोषणा कर देंगे . खुद चाहे जो लिखेंगे और दूसरे पर माहौल खराब करने का आरोप लगाते हुए परिचर्चा का ‘थ्रेड’ बंद कर देने की घोषणा कर देंगे .

           यह टेक्नोलॉजी के सामाजिकी से दूर जाने का नतीज़ा है .  नये लोगों में तकनीकी ज्ञान तो खूब है पर समाज  के बारे में उनका ज्ञान बहुत सतही और छिछला है . इधर देश / समाज में  नये बनते इंजीनियरों में  भी कमाऊ ‘टेक्नोब्रैट’   ज्यादा हैं . यह चलन कैसे रुकेगा, यह  मेरी समझ के बाहर है . उदारीकरण और भूमंडलीकरण के तहत बहुराष्ट्रीय कम्पनियां इसे और बढा रही हैं . कितने इंजीनियरों ने गांधी की ‘हिंद स्वराज’ पढी होगी ? शायद नाम भी न सुना हो . तो उनसे क्या आशा करें .

      रहा बचा सब सांप्रदायिक सोच ने समाप्त कर दिया . यानी करेला और नीमचढ़ा .    यही स्थिति है . क्या करें ?

सादर ,

प्रियंकर

पुनश्च : अमित खुद तो अनाप-शनाप टिप्पणियां करता है और दूसरों को नसीहत देता है .  क्या किया जाये . नये बच्चे हैं . आत्मविश्वास से भरपूर पर अनुभव से रहित . अभी जीवन के धरम-धक्के खाये नही हैं इसलिये जोश कुछ ज्यादा है . वक्त सबको सिखा देता है . समीर लाल ने टिप्पणी वापस ले ली है . पंकज ने मुझे मेल किया था,जवाब दे दिया है .

‘हिन्दी के लिए आपने क्या किया ?’ अहंकार से मत्त गीक जब यह सार्वजनिक तौर पर पूछते हैं , तब क्या वे सोचते हैं कि सामने वाले के माँ या बाप में से कोई अँग्रेज होगा ?

From:
जीतू Jitu -Date:
Sat, Sep 16 2006 1:02 am
Email:
“जीतू Jitu” …@gmail.com>

हिन्दी की दुर्दशा पर तो हर कोई रो लेता है, लेकिन अफलातून भाई (निजी तौर पर मत लीजिएगा, सभी पर लागू है), अपने दिल पर हाथ रखकर बताइए, आपने हिन्दी को आगे बढाने के लिये क्या किया?

इसके उत्तर में मुझे लिखना पड़ा :

जीतूजी अब आपकी जिग्यासा पर – पारिवारिक पृष्टभूमि के कारण बचपन से हिन्दी,गुजराती,ऒडिया और बांग्ला पढ ,बोल लेता हूं.लिखता सिर्फ़ हिन्दी में हूं.अनुवाद, लेखों और भाषणों का ,इनसे और अंग्रेजी से करता हूं.’धर्मयुग’,’हिन्दुस्तान’;’जनसत्ता'(सम्पादकीय पृष्ट के लेख) और फ़ीचर सेवाओं के जरिए भी लिखता हूं. १९७७ से १९८९ के विश्वविद्यालयी जीवन में काम काज की भाषा के तौर पर हिन्दी के प्रयोग के लिए आग्रह और १९६७ के ‘अंग्रेजी हटाओ,भारतीय भाषा लाओ’ की काशी की पृष्टभूमि के कारण इस बाबत कुछ सफलता भी मिलती थी.काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के किसी भी विभाग मे हिन्दी में शोध प्रबन्ध जमा किया जा सकता है.१५ अगस्त २००६ से अब तक चार देशों मे रह रहे मात्र २३ लोगों को इंटरनेट पर हिन्दी पढना और लिखना बताया.

गीकी दम्भ से पीडित हो गिरिराज जैसे संवेदनशील सदस्य बोल उठते हैं :

amit wrote:

छोड़ो यार, किससे बहस कर रहे हो? ऐसे लोगों की कमी नहीं जो अपनी कही बात का विरोध करने वाले को गलत कह तर्कशास्त्र पढ़ाते हैं!!

गिरिराज :

आप इसी “कैटेगरी” में आते है अमित भाई, कभी वक्त मिले तो अपनी सारी पोस्ट दूबारा पढ़कर देखना।
सच कहूँ तो साहित्य प्रेम ने बांध रखा है वरना शायद अब तक अलविदा कह चूका होता परिचर्चा को ॰॰॰

मौजूदा प्रकरण में अनामदास ,प्रियंकर, प्रत्यक्षा , मसिजीवी और अभय जैसे परिपक्व लेखकों ने स्पष्ट राय रखी जो इस तरह की घटना के दूरगामी परिणाम देख सकते हैं । जीतेन्द्र चौधरी अब देबाशीष और अनूप जैसे सलाहकारों की राय से हम सब को अवगत करायें ताकि लगे कि अभी भी नारद एक समूह है ।

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चिट्ठकार राहुल जन्मना भारतीय है । उस पर भारत का संविधान लागू होता है । भारत के किस्से , कहानियाँ और कहावतें भी । एक किस्सा चर्चित है जिसमें असामी से सजा देने वाले पूछते हैं , ‘ पाँच किलो प्याज खाओगे या पचास चप्पल ? ‘ इसमें असामी को सजा पसन्द करने की छूट थी । इस छूट की लम्बी रस्सी में वह उलझ जाता है और दोनों सजाएँ भुगतता है ।

 

    राहुल ने एक पोस्ट आपत्तिजनक , ठेस पहुँचाने वाली शैली में लिखी । धुरविरोधी ने अपनी सौम्य शैली में तथा मैंने उसीकी शैली में पोस्ट पर टिप्पणियाँ की । राहुल का चिट्ठा नारद पर आने से रोक दिया गया । उसने आहत चिट्ठाकारों और पाठकों से खेद प्रकट किया । नारद ने कहा , ‘पानी अब सिर के ऊपर से जा रहा है’। एक छोटा अन्तराल बीता है और चूँकि नारद मुनि ने मौन ले लिया है इसलिए अब हमें पता भी नहीं चल रहा है कि पानी अब कहाँ से जा रहा है ?  उसका जलस्तर क्या है ? मौन के ठीक पहले ‘नारद उवाच’ और धुरविरोधी के चिट्ठों पर उनकी वाणी के बाण चले थे।सिर्फ़ ‘हाँ या नहीं में जवाब दीजिए’ वाली स्कूल – मास्टर शैली में ।

    नारद की मेज़बानी कोई अमेरिकी जालस्थल करता है । यानी अपना नारद उससे जुड़ा है – नालबद्ध । लाजमीतौर पर उसका प्रतिदावा कहता है ,” किसी भी किस्म के विवाद की स्थिति में न्यायालयीन क्षेत्र संयुक्त राज्य अमरीका (USA) रहेगा. “

    इसलिए आज अमेरिकी संविधान और कानून की चर्चा करनी पड़ रही है । अमेरिकी संविधान किसी भी जुर्म के दोहरे अभियोजन और दोहरी सजा पर रोक लगाता हैं । अभियोजन का जोखिम एक बार ही उठाना पड़े।यह रोक अमेरिकी विधि व्यवस्था की एक बहुचर्चित विशिष्टता है । इसके उल्लंघन को Double Jeopardy – डबल जियोपार्डी कहा जाता है ।

    हॉलीवुड की एक जबरदस्त फिल्म थी इसी नाम की – डबल जियोपार्डी । देखी जरूर थी, लेकिन उसका विव्ररण देने का सामर्थ्य जिनमें है उनसे कहूँगा कि इस पर फुरसत में लिखें । चिट्ठाकारी के स्वयंभू जॉर्ज क्लूनी – प्रमोद कुमार , सेरिल मुक्कदस गुप्त , विनय जैन ,सुनील दीपक  अथवा ‘ बीस साल बाद’ के असित सेन की याद दिलाने वाले समीरलाल डबल जियोपार्डी के बारे में सक्षम और रोचक तरीके से बता सकते हैं ।

    अमेरिकी कम्पनियों अथवा जालस्थल द्वारा दुनिया के अन्य भूभाग में जब कोई करतूत की जाती है तो उसके लिए एक अमेरिकी कानून है – विदेशी व्यक्ति क्षतिपूर्ति कानून । अपना राहुल विदेशी हुआ जो ‘न्याय-क्षेत्र’ नारद के विवादों के निपटारे के लिए मुकर्रर है , उनके हिसाब से । भोपाल गैस काण्ड की कसूरवार लाल एवरेडी बनाने वाली यूनियन कारबाइड ( अब कम्पनी डाओ केमिकल ने खरीद ली है) के तत्कालीन अध्यक्ष एण्डरसन के प्रत्यर्पण और कम्पनी पर क्षति-पूर्ति के  दावे के लिए भोपाल की गैस पीडित महिलाओं ने इसी कानून के तहत अमेरिका में भी एक दावा पेश किया हुआ है ।

  कोलम्बिया स्थित कोकाकोला के बॉटलिंग प्लान्ट के मजदूर नेताओं की हत्याओं पर विचार भी इस कानून के तहत अमेरिका में चल रहा है । इस मसले पर अधिक जानकारी हिन्दी में तथा अँग्रेजी में उप्लब्ध है । बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की करतूतों के खिलाफ़ लड़ने के दौरान इस कानून के अध्ययन का अवसर मुझे मिला ।

   पन्ना हटाने और नारद द्वारा रोके जाने के बाद भी राहुल त्रृटिपूर्ण आलोचनाओं का शिकार है । ‘चिट्ठाकारी की आलोचना छापता था ‘ ,अपने गैर-प्रतिबन्धित चिट्ठों पर लिखता रहे’ और ‘नया चिट्ठा पंजीकृत करा ले ,उस पर लिखे’ आदि आदि। यह मानसिकता याद दिलाती है कि इतिहास में कभी चार्वाक के प्रति भी ऐसा रवैया रखने वाले लोग हुए थे और इस वजह से चार्वाक दर्शन के बहुत से हिस्से वाँग्मय से ही गायब कर दिए गए । इसी मानसिकता से बुद्ध से बुद्धू और और लुँच मुनि से लुच्चा शब्द बनाया गया । कबीर साहब को होली की गालियों के साथ – ‘ कबीरा सररर ‘ में जोड़ दिया गया ।

    मुझे सबसे ज्यादा दु:खद ‘रूस गईलं सैयाँ हमार’ (मतलब सैयाँ हैज़ गॉन टु रशिया नहीं ) वाली स्थिति लग रही है । मामला मन्ना डे के , ‘कैसे समझाऊँ?’ – इस गीत के मुखड़े के उत्तरार्ध जैसा हो रहा है । धार्मिक आस्था पर चोट से बड़ी चोट !सभव है आस्थाओं में सूक्ष्मभेद करना लोकतांत्रिक होगा।  पर्यूषण के आखिरी दिन सभी से क्षमा माँगने और क्षमा करने वाली महान जैन परम्परा की याद बार – बार आ रही है। जहाँ जैन आबादी तुलनात्मक रूप से ज्यादा है – राजस्थान ,गुजरात , महाराष्ट्र आदि में इस अवसर पर अखबारों में विज्ञापन भी छपते हैं । इन विज्ञापनों में कुछ ऐसे पद हुआ करते हैं –

क्षमा मैं चाहता सबसे,

मैं भी सबको करूँ क्षमा ,

मैत्री मेरी सभी से हो,

किसी से वैर हो नहीं ।

  कल यह पोस्ट डालनी थी। बिटिया प्योली ने बताया कि संगीत दिवस है ,फिर नारद पर युनुस भाई के पहले श्रव्य कार्यक्रम की सूचना देखी और जीमेल पर नितिन का ऐलान । कविगुरु रवीन्द्रनाथ का एक गीत है , ‘भेंगे मोर घरेर चाबी , निए जाबी के आमारे । ओ बन्धु आमार !’। इसका गुजराती अनुवाद (धुन बरकरार रख कर) नारायण देसाई ने किया है – रे मारां घरनां ताळा तोडी वाळा,लई जशे रे !’ । हिन्दी में इस धुन पर बप्पी लाहिरी का टूटे खिलौने का एक गीत १९७८ में आया था,बोल अनुदित नहीं थे।फिर भी सुन्दर थे । सोचा था कि कल का दिन चिट्ठे पर गीत डालने के लिए उचित रहेगा , दुर्भाग्य की संजाल पर मिला नहीं । मनीष ,सागर ,विनय , युनुस या मैथिली गाने की कड़ी भेज दें तब जोड़ लूँगा। आज तो सिर्फ़ मुखड़ा चिट्ठाकार राहुल और नारद को समर्पित है ,

नन्हा-सा पंछी रे तू

बहुत बड़ा पिंजरा तेरा,

उड़ना जो चाहा भी

तो न तुझे उड़ने दिया,

लेके तू पिंजरा उड़े

चले कुछ ऐसी हवा । पंछी रे!पंछी रे!

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हत्यारों के गिरोह का

एक सदस्य हत्या करता है

दूसरा उसे दुर्भाग्यपूर्ण बताता है

तीसरा मारे गए आदमी के दोष गिनाता है

चौथा हत्या का औचित्य ठहराता है

पाँचवाँ समर्थन में सिर हिलाता है

 

और अन्त में सब मिलकर

बैठक करते हैं

अगली हत्या की योजना के सम्बन्ध में ।

                                     –  राजेन्द्र राजन .

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डेरा  सच्चा सौदा की माफ़ी अकाल-तख्त ने नामंजूर की । गुरु गोविन्दसिंह से क्यों माँगी माफी ? हमसे क्यों नहीं माँगी ? लगता है ‘नारद पर प्रतिबन्धित चिट्ठे’ के लेखक द्वारा सभी आहत चिट्ठेकारों से खेद प्रकट करने और नारद के फैसले से विरोध जारी रखने में ऐसी ही कोई जिच फँस गयी है । चिट्ठेकार ही पाठक हैं तो सर्वोपरि हुए, गुरु गोविन्दसिंहजी की तरह ।

इस दुर्भाग्यपूर्ण प्रसंग पर कार्रवाई करने में नारद द्वारा जितनी चुस्ती दिखाई गई थी , वह अब नदारद है । नारद से जुड़े चिट्ठों पर स्वस्थ बहस और विचारों की अभिव्यक्ति का गला कैसे – कैसे घोंटा जाता रहा है , पहले की मिसाल पेश है :

एक मार्च , २००७ को घुघूती बासूती ने एक जबरदस्त पोस्ट अपने चिट्ठे पर छापी । पोस्ट अभी भी मौजूद है । उस पर टिप्पणीयों में हुई बहस में दो प्रतिक्रियाओं पर आपत्ति आई। चिट्ठाकार भी चाहती थीं कि आपत्तिजनक टिप्पणियाँ हटा दी जाए , अन्य टिप्पणियाँ रहें । उन्हें ऐसा खुद करने में कुछ तकनीकी दिक्कत थी , नतीजन एक जिम्मेदार व्यक्ति ने यह काम कुछ ज्यादा उत्साह में कर दिया , सभी टिप्पणियों को हटा कर । गैर आपत्तिजनक टिप्पणियों के हटने से बहस को धक्का पहुँचा , और पाठक उन्हें पढ़ने से हमेशा के लिए वंचित हो गए । इस दुर्भाग्यपूर्ण कार्रवाई के बाद तीन टिप्पणियाँ उस चिट्ठे पर अंग्रेजी में की गयी हैं , जिनमें से कोई नारद पर प्रदर्शित चिट्ठों का लेखक नहीं है ।

‘ बाजार पर अतिक्रमण ‘ को नारद से हटाने के बाद उसी चिट्ठे पर लेखक द्वारा प्रकाशित खेद वक्तव्य की पोस्ट नारद पर प्रकट नहीं हुई है । लेखक ने अन्य चिट्ठे पर भी उसे प्रकाशित किया जो अब तक नारद से नहीं हटाये गये हैं ।

‘प्रतिबन्धित चिट्ठे’ की कड़ी को आज ही अपने चिट्ठे के ब्लॉग रोल में शामिल करना मेरा प्रथम दायित्व है । उस पर भी कार्रवाई की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। उस प्रविष्टी का विरोध मैंने और अनुभवी चिट्ठाकार आदरणीय धुरविरोधी ने उक्त चिट्ठे पर किया था ।सभी आहत लोग अपनी टिप्पणी दर्ज करते तब भी यह संभव था कि लेखक द्वारा खेद प्रकट कर दिया जाता। अब वह टिप्पणियाँ भी नारद की जल्दबाजी में की गयी कार्रवाई के भेंट चढ़ गयी। ताकि सनद रहे,वक्त पर काम दे हमने उसे अपने पास बचा लिया है। ‘प्याज खाओगे या चप्पल खाओगे ?’  वाली सजा में दोनों खाना पड़ता है ।

कुछ चिट्ठेकारों ने ‘ नारद उवाच ‘ पर हुई टिप्पणियों में हुई बहस के चलते उक्त पोस्ट को भी हटाने की  माँग कर दी है।   बहस से भाग कर नारद जैसा मंच गलत दिशा में जाए इसकी सम्भावना बनती है।  उक्त टिप्पणी से यह मानसिकता प्रकट हुई है।

२६ जून की तारीख आ रही है जिस दिन १९७५ में सभी मौलिक अधिकारों को स्थगित करने का दुर्भाग्यपूर्ण फैसला लिया गया था । उस दु:शासन पर्व के दिन लदे जब आजादी की कीमत पहचान कर जनता ने उस हुकूमत को पलट दिया। सभी नागरिक आजादीपसन्द चिट्ठाकार उस दिन अपनी निष्ठा और संकल्प को पुख्ता करें । हांलाकि , हम नारद संचालक मण्डल द्वारा तत्काल उस चिट्ठे को बहाल कर दिए जाने की आशा पूरी तरह छोड़ नहीं पा रहे हैं ।

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[ चिट्ठाकारी पर पिछली पोस्ट से कुछ अनुदित सामग्री सम्पादित कर प्रस्तुत की जा रही है। हिन्दी चिट्ठेकारों ने विषय में रस लिया और बहस भी चलायी । आज निकोलस कार्र के चिट्ठे से यह बहुचर्चित वक्तव्य यहाँ दिया जा रहा है । ]

मंगलाचरण

    किसी जमाने की बात है चिट्ठालोक नामक एक टापू था जिसके बीचोबीच पत्थर का एक विशाल किला था । किले के चारों ओर मीलों तक टीन , गत्ते और फूस की मड़इयों में रहने वाले किसानों की बस्तियाँ थीं ।

भाग एक

    निरीह कपट का स्वरूप

    मैं जॉन केनेथ गालब्रेथ की लिखी एक छोटी किताब पढ़ रहा था,यूँ कह सकते हैं कि यह एक निबन्ध है –  ‘  निरीह कपट का अर्थशास्त्र ‘ ( Economics of Innocent Fraud ) . यह उनकी आखिरी किताब है जिसे उन्होंने अपनी जिन्दगी के नौवें दशक में , मरने के कुछ समय पहले ही पूरा किया । ( गालब्रेथ पूँजीवाद के प्रबल प्रवक्ता , पुरोधा और झण्डाबरदार रहे हैं । – अफ़लातून )। किताब में उन्होंने समझाया है कि अमेरिकी समाज कैसे ‘पूँजीवाद’ के लिए अब ‘बाजार अर्थव्यवस्था’ शब्द का इस्तेमाल करने लगा है । नया नाम पहले वाले से कुछ मृदु और नम्र है , मानो यह अन्तर्निहित हो कि अब आर्थिक सत्ता  उपभोक्ता की हाथों में आ गयी है बनिस्पत  पूँजी के मालिकों या  उनका काम करने वाले प्रबन्धकों के । गालब्रेथ इसे निरीह कपट का सटीक उदाहरण मानते हैं ।

  निरीह कपट भी एक झूठ है जो काला नहीं सफ़ेद होता है । यह सभी को खुशफ़हमी में रखता है । यह एक ओर ताकतवर लोगों के मन माफ़िक होता है क्योंकि यह उनकी पूरी सत्ता को ढँक देता है , वहीं सत्ता विहीन लोगों के मन माफ़िक इसलिए होता है कि उनकी सत्ताहीनता को भी आवृत कर देता है ।

    चिट्ठालोक के बारे में हम खुद को कहते हैं कि – नियन्त्रित और नियन्ता जन-सम्प्रेषण माध्यम के मुकाबले यह माध्यम खुला , लोकतांत्रिक और समतामूलक है । ऐसा कहना निरीह कपट है ।

भाग दो

    लम्बी पूँछ वाले चिट्ठाकारों का अकेलापन

    निरीह कपट की विशेषता हाँलाकि यह है कि इसके आर – पार दिखाई पड़ता है , परन्तु अक्सर लोग आर – पार न देखने की कोशिश करते हैं , और कुछ लोगों के लिए कभी – यह कोशिश भी व्यर्थ रह जाती है । कुछ दिनों पहले चिट्ठाकार केन न्यूसम ने सवाल खड़ा किया : ” हमारे चिट्ठों के पाठक कौन हैं ? ” उसके जवाब में अवसाद की झलक थी :

    चिट्ठालोक में चिट्ठेकारों के बीच ध्यान खींचने की ऐसी होड़ लगी रहती है कि आभास होता है कि यह एक बहुत बड़ी-सी जगह है , मानो मछली बाजार । यह केवल आभास है दरअसल एक बड़े हॉल के आखिरी छोर पर बने एक छोटे से कमरे में हम सब पहुँच जाते हैं। जब लोग संवाद बनाने से इन्कार करते हैं किन्तु किसी हद को पार कर अपने चिट्ठे की कड़ी लगवाना चाहते हैं तब थोड़ा कष्ट जरूर होता है । यह कष्ट तब तक जारी रहता है जब तक मुझे इस बात का अहसास नहीं हो जाता कि , ‘ चलो मेरी बात न सुने भले , वास्तविक जगत में कोई उन्हें भी तो नहीं सुन रहा ‘ ।

    मुझे गलत मत समझिएगा –  लिखने में मुझे रस मिलता है । कभी – कभी जब हम कुछ लिख कर चिट्ठे पर डाल देते हैं और प्रतीक्षा करते हैं कि कोई टिप्पणी आएगी अथवा कोई उस पोस्ट की कड़ी उद्धृत कर देगा , तब एक अजीब  अवसाद-सा तिरता है , माहौल में।

    मूष्टिमेय लोगों ने इस प्रविष्टि पर अपनी राय प्रकट की जिनमें लम्बे समय से चिट्ठाकारी कर रहे सेथ फ़िन्कल्स्टीन भी थे । फ़िन्कल्स्टीन के स्वर में कहीं अधिक निराशा का पुट था।उनकी प्रतिक्रिया में तथ्य को स्वीकार कर लेने के साथ एक कटुता भी देखी जा सकती है जो किसी कपट की पोल खुलने पर प्रकट होती है  :

व्यक्तिगत तौर पर बताऊँ तो यह कह सकता हूँ कि मैं इन कारणों से लिखता था :

  1. मुझे यह कर मूर्ख बनाया गया कि चिट्ठे खुद की आवाज सुनाने के लिए तथा मीडिया का विकल्प के रूप में  होते हैं ।
  2. मुझे भ्रम था कि यह प्रभावशाली है ।
  3. कभी-कदाच ध्यान खींच लेने पर यह बहुत असरकारक साधन लगने लगता है , यथार्थ से बढ़कर ।
  4. यह स्वीकृति कष्टपूर्ण है कि आपने इतना समय और प्रयत्न जाया किया लेकिन कोई आप की सुनता नहीं ।

        चिट्ठाकारी को धार्मिक सुसमाचार (Blog Evangelist) मानने की निष्ठा अत्यन्त क्रूर होती है चूँकि वह लोगों की कुण्ठित उम्मीदों और ख्वाबों का शिकार करती है ।

       मेरा चिट्ठा कुछ दर्जन प्रशंसकों द्वारा पढ़ा जाता है । कई बार बन्द करने की नौबत आई है और आखिरकार वह चरम-बिन्दु भी आ ही जाएगा ।

    किसी निरीह कपट के स्थायी हो जाने पर ताकतवर लोगों का बड़ा  दाँव लगा होता है, ताकतहीन लोगों की बनिस्पत । ताकतहीन लोगों द्वारा इस कपट के प्रति अविश्वास को टालते रहने को निलम्बित करने के काफ़ी समय बाद तक ताकतवर इस कपट से लिपटे रहेंगे , सच के विकल्प की अनुगूँज सुनाने वाले एक  कक्ष में एक दूसरे को अन्तहीन समय तक यह सुनाते हुए ।

उपसंहार

        एक दिन एक चिट्ठा-किसान लड़के को अपनी मड़ई के निकट धूल के ढेर में एक स्फटिक का गोला पड़ा मिला । उस गोले में झाँकने पर वह चकित हो गया , उसने एक चलचित्र देखा । व्यापारिक पोतों का एक बेड़ा चिट्ठालोक के बन्दरगाह में प्रवेश कर रहा था।जहाजों पर वे नाम अंकित थे जो टापू भर में हमेशा से घृणा की दृष्टि से देखे जाते थे । टाइम-वॉर्नर और न्यूज कॉर्प और पियरसन और न्यू यॉर्क टाइम्स और वॉल स्ट्रीट जर्नल और कोन्डे नोस्ट और मैक्ग्रॉ हिल । चिट्ठा -किसान तट पर जुट गए , जहाजों पर ताने मारते हुए ,आक्रमणकारियों को ललकारा कि हमारे बड़े किले के ठाकुरों द्वारा तुम्हारा बेड़ा शीघ्र गर्क कर दिया जाएगा । व्यापारिक पोतों के जहाजों के कप्तान सोने से भरे टोकरे ले कर जब किले के द्वार तक पहुँचे , तब उन्हें ठाकुरों  की तोपों का सामना करने के बजाए तुरही-नाद सहित स्वागत मिला । चिट्ठा – किसानों को रात भर महाभोज से आने वाली ध्वनियाँ सुनाई देती रहीं ।

   

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