मध्य प्रदेश के एक आदिवासी गांव के सरकारी स्कूल में नियुक्त शिक्षक पढ़ाने नहीं आता था।साथी राजनारायण और साथी सुनील के साथ दर्जनों आदिवासी स्त्री-पुरुषों ने ब्लॉक शिक्षा अधिकारी के यहां धरना दिया तो सरकार ने समस्या का समाधान तो नहीं किया उलटे इन सब पर ‘सरकारी काम काज में बाधा’ जैसी धारा लगा दी।मुकदमे की तारीखों पर करीब 30 – 35 किमी दूर जिला मुख्यालय पर जाना पडता था।इसलिए संगठन ने निर्णय लिया कि राजनारायण और सुनील जमानत नहीं लेंगे।दोनों साथी लंबा समय जेल में रहे। हथकड़िया पहना कर पेशी पर लाया जाता।इन साथियों के पत्र को आधार बना कर सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की गई। समता संगठन से जुड़े एक बड़े वकील साथी थे ,साथी रामभूषण मल्होत्रा,उन्होंने यह याचिका सुनील के पत्र के आधार पर दाखिल की।वे तब इलाहाबाद उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में वकालत करते थे। ‘सुनील गुप्ता व अन्य बनाम म.प्र. शासन’ के मुकदमे में बेवजह हथकड़ी पहनाने के खिलाफ ऐतिहासिक फैसला आया।
रामभूषणजी द्वारा सुप्रीम कोर्ट में लड़े गए दो अन्य सामाजिक महत्व के मुकदमों का जिक्र कर रहा हूं। IIT कानपुर में सुनील सहस्रबुद्धे नामक छात्र ने अपना शोध प्रबंध हिंदी में जमा करना चाहा था,संस्थान ने इंकार कर दिया था।इस मामले को खारिज करते हुए एक जज ने कहा था ,’मैं जानता हूं कि यह शोध छात्र अंग्रेजी में लिख सकता है लिहाजा हिंदी में शोध प्रबंध नहीं जमा करने की इजाजत नहीं दी जा रही।’ सुनील सहस्रबुद्धे ने रसायनशास्त्र में पीएच.डी जमा नहीं ही की तथा नये सिरे से समाजशास्त्र में पीएच.डी की।बरसों बाद नौसेना के एक निलंबित कर्मचारी ने जब हिंदी आरोप-पत्र मांगा तब उसे नहीं दिया गया तथा मुंबई उच्च न्यायालय ने सुनील सहद्रबुद्धे के फैसले वाले तर्क पर(कि याची को अंग्रेजी आती है) याचिका को खारिज कर दिया।इसे समाजवादी जन परिषद की साथी वकील प्योली ने सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी।फैसला हिंदी के पक्ष में आया और निलंबन वापस हुआ,याची की बहाली हुई।
काशी विश्वविद्यालय के एक चिकित्साधिकारी ने अपनी पत्नी को जला कर मार दिया था।सेशन कोर्ट से उसे फांसी की सजा हुई।पूर्वी उ प्र के एक चर्चित माफिया के लोगों हमें धमकाने का प्रयास करते थे क्योंकि हम गवाहों के साथ कचहरी जाते थे। बहरहाल,इस चिकित्सक ने जेल में तब तक प्रतीक्षा की जब तक उसके स्वजातीय इस माफिया के पांव छूने वाले जज की बेंच नहीं लगी।उच्च न्यायालय ने उसे बरी कर दिया।हम लोगों ने उ प्र शासन के विधि सचिव को हजारों दस्तखत वाला ज्ञापन दिया कि मामले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी जाए।साथी डॉ स्वाति,डॉ कमरजहां द्वारा स्थापित नारी संगठन एकता की तरफ से साथी रामभूषणजी ने हस्तक्षेप किया।सर्वोच्च न्यायालय ने पुनः उस पत्नी-हंता को दोषी पाया और आजीवन कारावास की सजा हुई।
रामभूषणजी उच्च न्यायालय के जज बन गये।उन्होंने हमें नसीहत दी थी कि मेरी बेंच में यदि मामला हो तो मिलने मत आना।हमने इस निर्देश का पालन किया।मिलते थे लेकिन मुकदमे के सिलसिले में नहीं।काशी विश्वविद्यालय द्वारा छात्र संघ को निलंबित कर दिया था। मुझे तथा छात्र संघ के दो पदाधिकारी सत्यप्रकाश सोनकर व ओमप्रकाश सिंह को भी निलंबित कर दिया था।मैंने छात्र संघ निलंबन को चुनौती दी थी।मौजूदा समय में पी यू सी एल के राष्ट्रीय अध्यक्ष समाजवादी विचार के वरिष्ठ अधिवक्ता साथी रविकिरन जैन के जरिए।रविकिरनजी को ,’वकील साहब’ संबोधित करने पर वे टोक देते हैं,’रविकिरन कहो’।बहरहाल छात्र संघ को निलंबित कर वि वि प्रशासन ने कार्यकारिणी से नया छात्र संविधान बनवा लिया था। ‘समग्र सामाजिक परिपेक्ष्य में लोकतांत्रिक असहमति प्रकट करना’ जैसे छात्र संघ के उद्देश्यों को प्रशासन ने हटा दिया था।कुछ प्रत्याशी जो पुराने संविधान के हिसाब से चुनाव लड़ सकते थे नये संविधान के तहत उन्हें चुनाव लड़ने से रोक दिया गया था।उच्च न्यायालय में इन लड़कों का मामला रविकिरनजी ने लड़ा।मैं रामभूषणजी की हिदायत को ज्यादा ही ध्यान में रखते हुए अदालत – कक्ष के बाहर टहलता रहा।वि वि के वकील ने ही मेरी याचिका का जिक्र मेरा नाम लेकर जब कर ही दिया तब मैं कक्ष के अंदर गया।रामभूषणजी ने हिंदी में आदेश दिया और प्रशासन द्वारा चुनाव लड़ने से रोके गये लड़कों को लड़ने देने स्पष्ट निर्देश दिए।कोर्ट से अनुमति पाए एक लड़के आनंद प्रधान ने चुनाव जीता।
रामभूषणजी ने जज रहते हुए एक हुए एक ऐतिहासिक फैसला फर्जी पुलिस मुठभेड़ों की बाबत था।आदित्यनाथ सरकार द्वारा दर्जनों फर्जी मुठभेड़ के मामले आजकल चर्चा में हैं।मृतकों के परिवारजनों को प्राथमिकी की नकल तक नहीं दी गई,कुछ मामलों में लाश तक नहीं सुपुर्द की गई।रामभूषणजी ने कहा था जब भी पुलिस मुठभेड़ का दावा करेगी तब – मजिस्ट्रेट द्वारा जांच की जाएगी,परिवारजनों को सूचना दी जाएगी आदि।इसके बाद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी ऐसे मामलों में पोस्टमॉर्टम का विडियो लेने आदि का निर्देश दिया है।
छत्तीसगढ़,ओड़ीशा,झारखंड के इलाकों में जल,जंगल,जमीन और इनमें छुपी खनिज संपदा को कंपनियों को सौंपने की होड़ मची है।ऐसे मामलों से आदिवासी का विस्थापन भी जुड़ा है।इसका अहिंसक प्रतिकार होता आया है।नियमगिरी का वेदांत विरोधी आंदोलन अहिंसक प्रतिरोध का एक ऐतिहासिक नमूना है।इस आंदोलन ने न्यायपालिका की शरण भी ली थी।कल जब छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा भारत के मुख्य न्याधीश की तस्वीर वाले स्वागत-होर्डिंग्स की तस्वीरें आलोक पुतुल के जरिए देखीं तो मुझे लगा कि यह न्याय की निष्पक्षता को प्रभावित कर सकता है।रामभूषणजी ने तो घर पर मिलने से मना किया था किन्तु रमण सिंह सरकार तो सड़क पर वंदनवार सजाए बैठी है।मेरी मांग है कि सर्वोच्च न्यायालय को स्वयं हस्तक्षेप कर इस प्रकार के स्वागत होर्डिंग्स पर रोक लगा देनी चाहिए।एक बुरी नजीर स्थापित हो रही है ,उस पर रोक लगनी चाहिए।
Archive for the ‘madhya pradesh’ Category
जिसकी लाठी उसकी भैंस
Posted in judiciary, madhya pradesh, tagged cji, cm_chhatisgadh, students union on अगस्त 23, 2018| Leave a Comment »
म प्र के प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता ओमप्रकाश रावल का सुनील को लिखा ‘बहुत जरूरी’ पत्र
Posted in नई राजनीति, kishan patanayak, lohia, madhya pradesh, politics, tagged ओमप्रकाश रावल, जसस, वैकल्पिक राजनीति, सुनील on मार्च 30, 2016| 1 Comment »
प्रिय सुनील,
आने की इच्छा थी लेकिन संभव नहीं हुआ। कारण देना व्यर्थ है।अबकी बार आप लोगों से ही नहीं जन-आंदोलन समन्वय समिति के सदस्यों से भी भेंट हो जाती।लिखने की जरूरत नहीं है कि किशनजी से मिलना एक बड़े संतोष का विषय है।समाजवादी आंदोलन से जुड़े जो जाने पहिचाने चेहरे हैं उनमें से शायद किशन पटनायक ही ऐसे हस्ताक्षर हैं जो नई पीढ़ी को प्रेरणा देने की योग्यता रखते हैं। लोहिया का नाम लेने वाले केवल मठ बना सकते हैं,यद्यपि वे इसे भी भी नहीं बना पाये हैं लेकिन जो लोग लोहिया को वर्त्तमान सन्दर्भों में परिभाषित कर रहे हैं या लोहिया के सोच के तरीके से वर्त्तमान को समझ रहे हैं वे ही समाजवादी विचारधारा को ज़िंदा रख रहे हैं।जाने पहिचाने लोगों में मेरी दृष्टि में ऐसे एक ही व्यक्ति हैं और वह हैं ,- किशन पटनायक।
आप लोग उनके सानिध्य में काम कर रहे हैं यह बड़ी अच्छी बात है।अलग अलग ग्रुपों को जोड़ने की आपकी कोशिश सफल हो ऐसी मेरी शुभ कामना है।
आप यदि मेरी बात को उपदेश के रूप में न लें जोकि या तो बिना सोचे स्वीकार की जाती है या नजरअंदाज कर दी जाती है, तो मैं यह कहना चाहूंगा कि वर्तमान राजनैतिक दलों की निरर्थकता के कारण छोटे छोटे दायरों में काम करने वाले समूहों का महत्व और भी बढ़ गया है।केंद्रीकृत व्यवस्था का विकल्प देने के काम को ये समूह ही करेंगे।दलों का केंद्रीकृत ढांचा केंद्रीकृत व्यवस्था को कैसे तोड़ सकता है? हांलाकि लोकशक्ति तो खड़ी करनी होगी।विकेंद्रीकृत ढांचों में किस तरह लोकशक्ति प्रगट हो सके यह आज की बड़ी समस्या है।
मेरे मन में उन लोगों के प्रति अपार श्रद्धा है जो सम्पूर्ण आदर्श लेकर काम कर रहे हैं चाहे उनका दायरा छोटा ही रह जाए लेकिन शक्ति के फैलाने की जरूरत है।देश बहुत बड़ा है। लोगों के अलग अलग अनुभव होते हैं और इस कारण लिखित या मौखिक शब्द अपर्याप्त हैं।शक्ति बनाना है तो सम्पूर्ण विचारधारा पर जोर कम और सामान कार्यक्रमों में अधिक से अधिक समूहों के साथ मिलकर काम करना श्रेयस्कर है- ऐसा मेरा विचार है।
शुभ कामनाओं के साथ
ओमप्रकाश रावल
सितम्बर 15,’92
प्रति,श्री सुनील, c/o श्री किशन बल्दुआ, अध्यक्ष समता संगठन,अजंता टेलर्स,सीमेंट रोड,पिपरिया,
जि होशंगाबाद
बैतूल लोकसभा उम्मीदवार फागराम का साथ देंगे?
Posted in नई राजनीति, विस्थापन, communalism, consumerism, corporatisation, corruption, criminalisation, displacement, election, environment, globalisation, globalisation , privatisation, kishan patanayak, madhya pradesh, politics, samajwadi janparishad, tribal on मार्च 13, 2014| Leave a Comment »
क्योंकि
भ्रष्ट नेता और अफसरों कि आँख कि किरकिरी बना- कई बार जेल गया; कई झूठे केसो का सामना किया!
· आदिवासी होकर नई राजनीति की बात करता है; भाजप, कांग्रेस, यहाँ तक आम-आदमी और जैसी स्थापित पार्टी से नहीं जुड़ा है!
· आदिवासी, दलित, मुस्लिमों और गरीबों को स्थापित पार्टी के बड़े नेताओं का पिठ्ठू बने बिना राजनीति में आने का हक़ नहीं है!
· असली आम-आदमी है: मजदूर; सातवी पास; कच्चे मकान में रहता है; दो एकड़ जमीन पर पेट पलने वाला!
· १९९५ में समय समाजवादी जन परिषद के साथ आम-आदमी कि बदलाव की राजनीति का सपना देखा; जिसे, कल-तक जनसंगठनो के अधिकांश कार्यकर्ता अछूत मानते थे!
· बिना किसी बड़े नेता के पिठ्ठू बने: १९९४ में २२ साल में अपने गाँव का पंच बना; उसके बाद जनपद सदस्य (ब्लाक) फिर अगले पांच साल में जनपद उपाध्यक्ष, और वर्तमान में होशंगाबाद जिला पंचायत सदस्य और जिला योजना समीति सदस्य बना !
· चार-बार सामान्य सीट से विधानसभा-सभा चुनाव लड़ १० हजार तक मत पा चुका है!
जिन्हें लगता है- फागराम का साथ देना है: वो प्रचार में आ सकते है; उसके और पार्टी के बारे में लिख सकते है; चंदा भेज सकते है, सजप रजिस्टर्ड पार्टी है, इसलिए चंदे में आयकर पर झूठ मिलेगी. बैतूल, म. प्र. में २४ अप्रैल को चुनाव है. सम्पर्क: फागराम- 7869717160 राजेन्द्र गढ़वाल- 9424471101, सुनील 9425040452, अनुराग 9425041624 Visit us at https://samatavadi.wordpress.com
समाजवादी जन परिषद, श्रमिक आदिवासी जनसंगठन, किसान आदिवासी जनसंगठन
भोपाल-तीन : राजेन्द्र राजन
Posted in bio-terror, industralisation, intellectual imperialism, madhya pradesh, poem, rajendra rajan, tagged bhopal, gas tragedy, hindi poem, poem, rajendra rajan, supreme court judgement on जून 12, 2010| 8 Comments »
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए भोपाल गैस कांड संबंधी फैसले से हर देश प्रेमी आहत हुआ है | पचीस साल पहले राजेन्द्र राजन ने इस मसले पर कवितायें लिखी थीं , इस निर्णय के बाद यह कविता लिखी है |
भोपाल-तीन
हर चीज में घुल गया था जहर
हवा में पानी में
मिट्टी में खून में
यहां तक कि
देश के कानून में
न्याय की जड़ों में
इसीलिए जब फैसला आया
तो वह एक जहरीला फल था।
– राजेन्द्र राजन
राष्ट्रमण्डल खेल बनाम शिक्षा का अधिकार
Posted in common school system, commonwealth games, corporatisation, education bill, madhya pradesh, tagged anil sadgopal, अनिल सद्गोपाल, ज्योत्सना मिलन, राष्ट्रमण्डल खेल, समान शिक्षा, सुनील, common school system, commonwealth games, jyotsana milan, sunil on जनवरी 31, 2010| 4 Comments »
शिक्षा अधिकार मंच, भोपाल के तत्वाधान में 24 जनवरी 2010 को मॉडल शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय परिसर में ’’राष्ट्रमंडल खेल-2010 बनाम शिक्षा का अधिकार’’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी में प्रख्यात समाजवादी नेता श्री सुनील द्वारा लिखित एवं समाजवादी जनपरिषद और विद्यार्थी युवजन सभा द्वारा प्रकाशित पुस्तक ’’ब्रिटिश राष्ट्रमंडल खेल-2010; गुलामी और बरबादी का तमाशा’’ पुस्तक का लोकार्पण किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता ’अनुसूया’ की सम्पादक श्रीमती ज्योत्सना मिलन ने की इसके पूर्व संगोष्ठी को संबोधित करते हुए ’’अखिल भारतीय शिक्षा अधिकार मंच’’ के राष्ट्रीय अध्यक्षीय मंडल के सदस्य एवं प्रख्यात शिक्षाविद् डॉ. अनिल सद्गोपाल ने कहा कि यह शर्मनाक बात है कि शिक्षा, स्वास्थ, पेयजल, कृषि आदि प्राथमिक विषयों की उपेक्षा करते हुए राष्ट्रमंडल खेलों की आड़ में राजधानी क्षेत्र नई दिल्ली एवं आसपास के क्षेत्रों में विकास के नाम पर अरबों रुपये खर्च किए जा रहे है। उन्होने बताया की सरकार की ऐसी जनविरोधी नीतियों के विरूद्ध आगामी 24 फरवरी 2010 को ’’अखिल भारतीय शिक्षा अधिकार मंच’’ संसद मार्च करेंगा जिसमें देश के विभिन्न संगठन हिस्सा लेंगे। इस रैली का मुख्य उद्देश्य देश की जनता को देश में हो रहे नवउदारवादी एजेण्डे के तहत नई तरह की गुलामी को थोपने वाली नीतियों से अवगत कराना होगा। जिसका एक हिस्सा ’शिक्षा अधिकार कानून 2009’ भी है। इस रैली के जरिए आम जनमानस का आह्वान किया जाएगा कि वह संगठित होकर इस दलाल चरित्र वाली सरकार को देश के हित में कार्य करने को मजबूर करें।
पुस्तक के लेखक एवं विचारक श्री सुनील ने कहा कि देश बाजारवाद एवं नई खेल संस्कृति विकसित करने की आड़ में गुलामी की ओर बढ़ रहा है, दिल्ली में 200 करोड़ रुपये खर्च किए जाने का प्राथमिक आकलन किया गया था, जिसे बढाकर 1.5 लाख करोड़ कर दिया गया है। दिल्ली में कई ऐसे स्थानों पर निर्माण कार्य किए जा रहे हैं।
संगोष्ठी में सर्व श्री दामोदर जैन, गोविंद सिंह आसिवाल, प्रो. एस. जेड. हैदर, प्रिंस अभिशेख अज्ञानी, अरुण पांडे और राजू ने अपने विचार व्यक्त करते हुए ’समान स्कूल प्रणाली’ विषयक संगठन के उद्देश्य के प्रति सहमति व्यक्त की। अंत में मंच की ओर से श्री कैलाश श्रीवास्तव ने आभार व्यक्त किया।
मध्यप्रदेश में नई राजनीति की शुरूआत : बाबा मायाराम
Posted in displacement, election, environment, madhya pradesh, news, politics, samajwadi janparishad, tribal, tagged किसान आदिवासी संगठन, पंचायत चुनाव, फागराम, मध्य प्रदेश, समाजवादी जनपरिषद, madhya pradesh, mayaram, panchayat elections, phagram, samajwadi janaparishad on जनवरी 7, 2010| 5 Comments »
आम के पेड़ के नीचे बैठक चल रही है। इसमें दूर-दूर के गांव के लोग आए हैं। बातचीत हो रही है। यह दृश्य मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले के आदिवासी बहुल केसला विकासखंड स्थित किसान आदिवासी संगठन के कार्यालय का है। यहां 5 जनवरी को किसान आदिवासी संगठन की मासिक बैठक थी जिसमें कई गांव के स्त्री-पुरुष एकत्र हुए थे। जिसमें केसला, सोहागपुर और बोरी अभयारण्य के लोग भी शामिल थे। इस बार मुद्दा था- पंचायत के उम्मीदवार का चुनाव प्रचार कैसे किया जाए? यहां 21 जनवरी को वोट पडेंगे।
बैठक में फैसला लिया गया कि कोई भी उम्मीदवार चुनाव में घर से पैसा नहीं लगाएगा। इसके लिए गांव-गांव से चंदा इकट्ठा किया जाएगा। चुनाव में मुर्गा-मटन की पारटी नहीं दी जाएगी बल्कि संगठन के लोग इसका विरोध करेंगे। गांव-गांव में साइकिल यात्रा निकालकर प्रचार किया जाएगा। यहां किसान आदिवासी संगठन के समर्थन से एक जिला पंचायत सदस्य और चार जनपद सदस्य के उम्मीदवार खड़े किए गए हैं।
सतपुड़ा की घाटी में किसान आदिवासी संगठन पिछले 25 बरस से आदिवासियों और किसानों के हक और इज्जत की लड़ाई लड़ रहा है। यह इलाका एक तरह से उजड़े और भगाए गए लोगों का ही है। यहां के आदिवासियों को अलग-अलग परियोजनाओं से विस्थापन की पीड़ा से गुजरना पड़ा है। इस संगठन की शुरूआत करने वालों में इटारसी के समाजवादी युवक राजनारायण थे। बाद मे सुनील आए और यहीं के होकर रह गए। उनकी पत्नी स्मिता भी इस संघर्ष का हिस्सा बनीं। राजनारायण अब नहीं है उनकी एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई है। लेकिन स्थानीय आदिवासी युवाओं की भागीदारी ने संगठन में नए तेवर दिए।
इन विस्थापितों की लड़ाई भी इसी संगठन के नेतृत्व में लड़ी गई जिसमें सफलता भी मिली। तवा जलाशय में आदिवासियों को मछली का अधिकार मिला जो वर्ष 1996 से वर्ष 2006 तक चला। आदिवासियों की मछुआ सहकारिता ने बहुत ही शानदार काम किया जिसकी सराहना भी हुई। लेकिन अब यह अधिकार उनसे छिन गया है। तवा जलाषय में अब मछली पकड़ने पर रोक है। हालांकि अवैध रूप से मछली की चोरी का नेटवर्क बन गया है।
लेकिन अब आदिवासी पंचायतों में अपने प्रतिनिधित्व के लिए खड़े हैं। इसमें पिछली बार उन्हें सफलता भी मिली थी। उनके के ही बीच के आदिवासी नेता फागराम जनपद उपाध्यक्ष भी बने। इस बार फागराम जिला पंचायत सदस्य के लिए उम्मीदवार हैं। फागराम की पहचान इलाके में तेजतर्रार, निडर और ईमानदार नेता के रूप में हैं। फागराम केसला के पास भुमकापुरा के रहने वाले हैं। वे पूर्व में विधानसभा का चुनाव में उम्मीदवार भी रह चुके हैं।
संगठन के पर्चे में जनता को याद दिलाया गया है कि उनके संघर्ष की लड़ाई को जिन प्रतिनिधियों ने लड़ा है, उसे मजबूत करने की जरूरत है। चाहे वन अधिकार की लड़ाई हो या मजदूरों की मजदूरी का भुगतान, चाहे बुजुर्गों को पेंशन का मामला हो या गरीबी रेखा में नाम जुड़वाना हो, सोसायटी में राषन की मांग हो या घूसखोरी का विरोध, यह सब किसने किया है?
जाहिर है किसान आदिवासी संगठन ही इसकी लड़ाई लड़ता है। किसान आदिवासी संगठन राष्ट्रीय स्तर पर समाजवादी जन परिषद से जुड़ा है। समाजवादी जन परिषद एक पंजीकृत राजनैतिक दल है जिसकी स्थापना 1995 में हुई थी। समाजवादी चिंतक किशन पटनायक इसके संस्थापकों में हैं। किशन जी स्वयं कई बार इस इलाके में आ चुके हैं और उन्होंने आदिवासियों की हक और इज्जत की लड़ाई को अपना समर्थन दिया है।
सतपुड़ा की जंगल पट्टी में मुख्य रूप से गोंड और कोरकू निवास करते हैं जबकि मैदानी क्षेत्र में गैर आदिवासी। नर्मदा भी यहां से गुजरती है जिसका कछार उपजाउ है। सतपुड़ा की रानी के नाम से प्रसिद्ध पचमढ़ी भी यहीं है।
होशंगाबाद जिला राजनैतिक रूप से भिन्न रहा है। यह जिला कभी समाजवादी आंदोलन का भी केन्द्र रहा है। हरिविष्णु कामथ को संसद में भेजने का काम इसी जिले ने किया है। कुछ समर्पित युवक-युवतियों ने 1970 के दशक में स्वयंसेवी संस्था किशोर भारती को खड़ा किया था जिसने कृषि के अलावा षिक्षा की नई पद्धति होषंगाबाद विज्ञान की शुरूआत भी यहीं से की , जो अन्तरराष्ट्रीय पटल भी चर्चित रही। अब नई राजनीति की धारा भी यहीं से बह रही है।
इस बैठक में मौजूद रावल सिंह कहता है उम्मीदवार ऐसा हो जो गरीबों के लिए लड़ सके, अड़ सके और बोल सके। रावल सिंह खुद की स्कूली शिक्षा नहीं के बराबर है। लेकिन उन्होंने संगठन के कार्यकर्ता के रूप में काम करते-करते पढ़ना-लिखना सीख लिया है।
समाजवादी जन परिषद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री सुनील कहते है कि हम पंचायत चुनाव में झूठे वायदे नहीं करेंगे। जो लड़ाई संगठन ने लड़ी है, वह दूसरों ने नहीं लड़ी। प्रतिनिधि ऐसा हो जो गांव की सलाह में चले। पंचायतों में चुप रहने वाले दब्बू और स्वार्थी प्रतिनिधि नहीं चाहिए। वे कहते है कि यह सत्य, न्याय व जनता की लड़ाई है।
अगर ये प्रतिनिधि निर्वाचित होते हैं तो राजनीति में यह नई शुरूआत होगी। आज जब राजनीति में सभी दल और पार्टियां भले ही अलग-अलग बैनर और झंडे तले चुनाव लड़ें लेकिन व्यवहार में एक जैसे हो गए हैं। उनमें किसी भी तरह का फर्क जनता नहीं देख पाती हैं। जनता के दुख दर्द कम नहीं कर पाते। पांच साल तक जनता से दूर रहते हैं।
मध्यप्रदेश में जमीनी स्तर पर वंचितों, दलितों, आदिवासियों, किसानों और विस्थापितों के संघर्श करने वाले कई जन संगठन व जन आंदोलन हैं। यह मायने में मध्यप्रदेश जन संगठनों की राजधानी है। यह नई राजनैतिक संस्कृति की शुरूआत भी है। यह राजनीति में स्वागत योग्य कदम है।
पत्रकार / चिट्ठेकार बाबा मायाराम की पुस्तक का लोकार्पण
Posted in विस्थापन, displacement, environment, madhya pradesh, tiger, tribal, tagged आदिवासी, बाबा मायाराम, वनवासी, शेर, सतपुड़ा on दिसम्बर 21, 2009| 4 Comments »
बाबा मायाराम द्वारा लिखी गयीं सशक्त रिपोर्टों से चिट्ठा जगत परिचित है । ’सतपुड़ा के बाशिन्दे’ नामक उनकी किताब का लोकार्पण कल इटारसी में हुआ ।
इस अवसर पर प्रबुद्ध नागरिकों के अलावा उन क्षेत्रों के ग्रामीण भी शामिल थे, जिनके बारे में इस पुस्तक में विवरण है।
इटारसी स्थित पत्रकार भवन में पर्यावरण बचाओ, धरती बचाओ विषय पर आयोजित संगोष्ठी में इस पुस्तक का लोकार्पण वरिष्ठ साहित्यकार और प्राचार्य श्री कश्मीर उप्पल और समाजवादी जन परिषद के उपाध्यक्ष श्री सुनील ने किया। इस संगोष्ठी में पर्यावरण के कई पहलुओं पर चर्चा की गई। वनों का विनाश, नदियों का सूखना, रासायनिक खेती के दुष्प्रभाव आदि ऐसे मानव जीवन से जुड़े कई मुद्दों पर विचार-विमर्श किया गया।
बाबा मायाराम ने पिछले एक शवर्ष में उन्हें प्रदत्त दो फैलोशिप के तहत हो्शंगाबाद जिले के वनांचलों में घूम-घूमकर यह पुस्तक तैयार की है जिसमें यहां रहने वाले आदिवासियों की जिंदगी में चल रही उथल-पुथल, आकांक्षाओं और विस्थापन की त्रासदियों का जीवंत चित्रण किया गया है। इस पुस्तक की प्रस्तावना देश के जाने-माने प्रसिद्ध पत्रकार भारत डोगरा ने लिखी है और संपादन डॉ. सुशील जोशीने किया है। उल्लेखनीय है कि बाबा मायाराम पिछले दो दशकों से पत्रकारिता से जुड़े हुए हैं। पूर्व में वे कई समाचार पत्र-पत्रिकाओं से संबद्ध रह चुके हैं। विभिन्न मुद्दों पर उनके लेख, रिपोर्टस व टिप्पणियां देश के प्रतिष्ठित समाचार पत्रों में छपती रही हैं।
पुस्तक से कुछ विचारणीय मुद्दे :
- आजादी के बाद अब तक जितनी विकास परियोजनायें बनी हैं उनमें सबसे ज्यादा विस्थापन का शिकार आदिवासियों को होना पड़ा है । आंकड़ों में सिर्फ प्रत्यक्ष विस्थापन ही शामिल है । काफ़ी विस्थापन अप्रत्यक्ष होता है ।
- एक बार विस्थापित होने के बाद लोगों की जिन्दगी फिर व्यवस्थित नहीं हो पाती । उलटे लोगों की हालत बदतर हो जाती है । विस्थापन का समाधान पुनर्वास से नहीं होता ।
- वन्य प्राणी संरक्षण के सन्दर्भ में ऐसा कोई अध्ययन नहीं हुआ है कि मानवविहीन करके ही वन तथा वन्य जीवों को बचाया जा सकता है । बल्कि बोरी अभ्यारण्य के अनुभव से तो लगता है कि वन , वन्य जीव तथा वनवासियों का सहअस्तित्व संभव है ।
- वन्य जीवों के संरक्षण से जुड़ा है वन संरक्षण । जंगली जानवर जंगल में ही रहते हैं । यह विडंबना ही है कि वन्य प्राणी संरक्षण योजना की शुरुआत वनों को काट कर की जाए ।
- वन्य संरक्षण की योजनायें व नीतियां विरोधाभासी हैं । एक तरफ़ तो शेरों को बसाने के लिए लोगों को उजाड़ा जा रहा है वहीं दूसरी तरफ़ पर्यटकों के लिए सैर सपाटे के इंजाम किए जा रहे हैं ।
- एक दलील यह दी जाती है कि जंगलों में बसे आदिवासियों का विकास नहीं हो रहा है । तथ्य यह है कि जो गाँव विस्थापित किए गए हैं उनमें हर दृष्टि से लोगों की जिन्दगी पहले से बदतर हुई है ।
प्रकाशक व उपलब्धि केन्द्र – किसान आदिवासी संगठन , ग्रा/पो केसला , जिला – होशंगाबाद , मध्य प्रदेश,४६११११
मूल्य – पच्चीस रुपये ।
एक शिक्षक कैसे पढ़ाएगा पांच कक्षाओं को?/उजड़े उखड़े गाँव की कहानी/बाबा मायाराम
Posted in विस्थापन, displacement, environment, madhya pradesh, tiger, tribal, tagged adivasi, अभयारण्य, आदिवासी, कोरकू, धाई, नई धाईं, बाघ, बाबा मायाराम, मायाराम, विस्थापन, baba mayaram, bori, displacement, nayi dhain, sanctuary, tiger reserve on अक्टूबर 22, 2009| 5 Comments »
[मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले में वन्य प्राणियों के लिए तीन सुरक्षित उद्यान/अभयारण्य बनाए गए है– सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान, बोरी अभयारण्य और पचमढ़ी अभयारण्य। तीनों को मिलाकर फिर सतपुड़ा टाईगर रिजर्व बनाया गया है। तीनों के अंदर कुल मिलाकर आदिवासियों के लगभग 75 गांव है और इतने ही गांव बाहर सीमा से लगे हुए है। इन गांवों के लोगों की जिंदगी और रोजी–रोटी का मुख्य आधार जंगल है। पर अब इन गांवों को हटाया जा रहा है। बोरी अभयारण्य का धांई पहला गांव है जिसे हटाया जा चुका है। बाबा मायाराम विस्थापन झेल रहे आदिवासियों पर मेरे चिट्ठों पर लिखते रहे हैं । प्रस्तुत है इस क्रम की दूसरी कड़ी। बाबा मायाराम की अति शीघ्र प्रकाश्य पुस्तक में इस प्रकार के लेख होंगे । उन्होंने यह लेख इन्टरनेट पाठकों के लिए सहर्ष दिए हैं । कोई पत्रिका/अखबार/फीचर एजंसी/वेब साइट यदि इसे प्रकाशित करना चाहती है तो यह उम्मीद की जाती है कि पारिश्रमिक और कतरन बाबा मायाराम को भेजे। – अफ़लातून]
दोपहर भोजन की छुट्टी में बच्चे खेल रहे हैं। उछल–कूद रहे हैं। शिक्षक अपने कक्ष में बैठे कुछ लोगों से गप–शप कर रहे हैं। इसी समय मैं अपने एक सहयोगी के साथ नई धांई स्कूल पहुंचा। यह गांव नया है, जो वर्ष 2005 के आसपास ही अस्तित्व में आया है। पहले यह गांव बोरी अभयारण्य के अंदर बसा था। सतपुड़ा टाईगर रिजर्व के अंतर्गत आने वाले बोरी अभयारण्य के इस गांव को विस्थापित कर बाबई तहसील में सेमरी हरचंद के पास बसाया गया है।
नई धांई की बसाहट पूरी हो गई है। बड़े आकार के कबेलू (खपरैल) वाले मकान बन गए हैं। घरों के पीछे बाड़ी है, जिसमें मक्का बोया गया है। आधी–अधूरी पक्की सड़कें बन गई है। गांव में घुसते ही एक बोर्ड लगा है जिसमें नई धांई का मोटा–मोटी ब्यौरा दिया गया है। सतही तौर पर देखने में यहां सुंदर बसाहट और पुनर्वास का आभास मिलता है पर यहां के बच्चों और ग्रामीणों से बात करने पर उजड़ने का दर्द छलकने लगता है।
यहां की आबादी 336 के करीब है। यहां के बाशिन्दे सभी कोरकू आदिवासी हैं। पुराना गांव धांई जंगल के अंदर था। जहां आदिवासियों का जीवन जंगल और आंशिक तौर पर खेती पर आधारित था। नई बसाहट में यहां हर परिवार को 5–5 एकड़ जमीन मिली है। पर ज्यादातर खेतों में पेड़ के ठूंठ होने के कारण खेती में अड़चन आ रही है।
छुट्टी के बाद स्कूल फिर शुरू हुआ। यहां पांच कक्षाएं और शिक्षक एक है। नियुक्ति तो एक और शिक्षिका की है पर वह 3 माह के लिए प्रसूति अवकाश पर है। स्कूल में बच्चों की कुल दर्ज संख्या 78 है। जब शिक्षक से यह पूछा कि आप अकेले 5 कक्षाएं कैसे संभालते हैं ? शिक्षक ने इसके जवाब में आसमान की ओर देखा जैसे कह रहे हो– भगवान भरोसे। फिर संभलते हुए कहा कि गांव का एक और पढ़ा–लिखा लड़का स्वैच्छिक रूप से बच्चों की पढ़ाई में मदद करता है।
एक ही कमरे में सभी पांचों कक्षाओं के बच्चे ठुंसे हुए थे। मैले–कुचैले और फटे–पुराने कपड़े पहने आपस में बतिया रहे थे। स्वैच्छिक मदद करनेवाला युवक कुर्सी पर बैठकर उन्हें पढ़ा रहा था। मैं यह नहीं समझ पा रहा था कि वह कौन सी कक्षा के छात्रों को पढ़ा रहे हैं क्योंकि उनके हाथ में कोई किताब तो थी नहीं। जाहिर है जब उनकी नियुक्ति नहीं हुई है तो उन्हें पढ़ाने–लिखाने का कोई प्रशिक्षण भी नहीं मिला होगा।
जब मैंने कक्षा में जाकर बच्चों से बात करने की इच्छा जाहिर की। वह युवक अपने आप कुर्सी छोड़कर बाहर चला गया। जैसे वह इससे मुक्त होना चाह रहा था। तत्काल कक्षा हमारे हवाले कर दी। उस कमरे में शायद ज्यादा लोगों के बैठने की जगह भी नहीं थी। मैं बच्चों के साथ टाटपट्टी पर बैठ गया। शिक्षक ने हमें बच्चों से बात करने का मौका दिया। मैंने उनसे पूछा आपकी अपने पुराने गांव की सबसे अच्छी क्या याद है? सबने कोरस में जवाब दिया–नदी की।
इसके बाद उन्होंने एक के बाद एक नदियों के नाम गिनाएं–बोरी नदी, काकड़ी नदी और सोनभद्रा। सोनभद्रा यहां की बड़ी नदी है। कई और छोटे नदी–नाले हैं। छोटे–छोटे नदी घाटों के नाम बताएं। वे आगे कहते है कि हम इनमें कूद–कूदकर नहाते थे, डंगनियां से मछली और केकड़ा पकड़ते थे। अब यहां पानी ही नहीं है। वे सब तैरना जानते हैं। इनमें से कुछ नदियां सदानीरा है। इनमें साल भर पानी रहता है। वहां तो एक नदी में मगर भी रहता था।
क्या आपको जंगल से भी कुछ चीजें खाने की मिलती थी? इसके जवाब में दिलीप, सोनू, आशा और विजय आदि ने बहुत सारे फल, फूल और पत्तों के नाम गिनाए। जैसे तेंदू , अचार (जिसे फोड़कर चिरौंजी प्राप्त होती है) , कबीट , सीताफल , गुल्ली (महुए के बीज वाला फल) , पीपल का बीज, जामुन, इमली, आम, बेर, मकोई, आंवला इत्यादि। उन्होंने कई जंगली जानवरों को भी देखा है– जैसे शेर, भालू, हाथी, सुअर, चीतल, नीलगाय, जंगली भैंसा, सोनकुत्ता, सियार, बंदर आदि।
इस बातचीत के दौरान धीरे–धीरे उनकी झिझक खत्म हो गई। उनका उत्साह बढ़ने लगा। वे वहां की कई बातें खुलकर बताने लगे। कक्षा में बहुत शोर होने लगा। हर बच्चा कुछ न कुछ बताना चाह रहा था। लड़के–लड़कियां सब कोई। उन्हें याद है वहां के पहाड़, पत्थर, पेड़, नदी और वहां का अपूर्व प्राकृतिक सौंदर्य। सोनू, दिलीप, आशा, सीमा, विनेश, विजय, रवि आदि कई बच्चों ने अपनी यादें साझा कीं। वे ऐसे बता रहे थे जैसे यह सब बातें कल की हो।
यहां का चौथी कक्षा में पढ़नेवाला अनिकेश कहता है मुझे यहां कुछ अच्छा नहीं लगता। जब वे अपने गांव से उजड़ रहे थे तब उसे पता भी नहीं था कि कहां जा रहे है। वह कहता है हम अपनी बात अपने मां–बाप से भी नहीं कह पाते। वे सुबह से काम पर चले जाते हैं। फिर उनसे क्या कहें ? जब कभी ज्यादा मन भर आता है तब दोस्तों के साथ पास ही सिद्ध बाबा चले जाते हैं। जब उससे यह पूछा कि अगर उसे कहीं और ले जाया जाए तो उसे क्या–क्या चीजें चाहिए जिनसे उसे अच्छा लगेगा। उसने जवाब दिया– नदी, जंगल, पहाड़ और गाय–बैल। मैं सोच रहा था कि इन जंगल क्षेत्र के बच्चों को अपने परिवेश, जंगल–पहाड़ कितने प्रिय हैं ? काश, उनके आसपास ये चीजें होती और उनके पाठ्यक्रम में होती।
यह साफ है कि अब इन बच्चों को वह स्वच्छ , ठंडा और खुला वातावरण नहीं मिलेगा। उन्हें जंगल, पेड़ , पहाड़ , पत्थर , नदियां नहीं मिलेगी , जिनसे वे रोज साक्षात्कार करते थे, वहां खेलते थे। जंगली जानवर नहीं मिलेंगे, जिनके संग खेलकर वे बड़े हुए थे। वे फल–फूल, पत्तियां और शहद नहीं मिलेगी , जिसे वे यूं ही तोड़कर खा लिया करते थे। अब उनकी दिनचर्या और जिंदगी बदल गई है। अब नदी की जगह उनके पास हैंडपंप हैं जिनमें ज्यादा मेहनत करने पर पानी कम टपकता है। जंगल और पहाड़ उनकी स्मृतियों में हैं। इन बच्चों को ठीक से पता भी नहीं है कि वे जंगल के गांव से यहां क्यों आ गए ?
बच्चों से संबंधित तमाम कानूनों की मोटी किताबों में बच्चों के लिए बहुत से प्रावधान हैं। संयुक्त राष्ट्र का समझौता है। संविधान में शिक्षा व पोषण का अधिकार है। बच्चों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट का समझौता है। उस पर भारत सरकार ने 12 नवंबर 1992 को दस्तख्वत कर अपनी मुहर लगाई है। उसमें बच्चों के जीने का अधिकार , विकास का , सुरक्षा और सहभागिता का अधिकार दिए गए है। लेकिन इसके बावजूद हमारे देश में बच्चों की हालत अच्छी नहीं है। मध्यप्रदेश में तो इस साल कई स्थानों से कुपोषण से मौतों की खबरें आई है। आदिवासियों में कुपोषण और भी अधिक है। विस्थापन जैसे जीवन में बड़े जीवन में बड़े बदलाव लानेवाले निर्णयों में बच्चों के बारे में विशेष ध्यान देने की जरूरत है। जीवन में उथल–पुथल लाने वाले ऐसे निर्णयों में उनकी सहभागिता होनी चाहिए। लेकिन उनसे कभी उनकी रूचियों व राय के बारे में नहीं पूछा जाता है। उनकी शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं को गंभीरता से नहीं लिया जाता है।
अक्सर विस्थापन के समय यह दलील दी जाती है कि बच्चों का भविष्य बेहतर होगा। और ग्रामीण भी अपने बच्चों का भविष्य जंगल के बाहर ही देखते हैं। यह स्वाभाविक है। लेकिन नई धांई के स्कूल को देखकर ऐसी कोई उम्मीद बंधती नजर नहीं आती। जहां पांच कक्षा और एक शिक्षक है। स्कूल के ही एक हिस्से में राशन का वितरण होता है। जबकि राशन का भंडारण बाजू में स्थित आंगनबाड़ी भवन में है। ऐसे में बच्चों के बेहतर भविष्य की उम्मीद नहीं की जा सकती।
– बाबा मायाराम
लेखक का सम्पर्क पता : अग्रवाल भवन , निकट पचमढ़ी नाका , रामनगर कॉलॉनी, पिपरिया , जिला – होशंगाबाद , मध्य प्रदेश , 461775 .
शमीम मोदी पर हमले की जाँच सी.बी.आई को
Posted in madhya pradesh, politics, samajwadi janparishad, women, tagged महाराष्ट्र सरकार, शमीम मोदी, समाजवादी जनपरिषद, सीबीआई, हमला, हरदा on अगस्त 30, 2009| 5 Comments »
महाराष्ट्र सरकार ने समाजवादी जनपरिषद की नेता शमीम मोदी पर ठाणे जिले के वाशी में हुए प्राण घातक हमले की जाँच केन्द्रीय जाँच ब्यूरो से कराने की सिफारिश की है । शेतकारी कामगार पार्टी के नेता श्री एन.डी. पाटिल के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमण्डल को महाराष्ट्र के गृह मन्त्री श्री जयन्त पाटील ने यह बात बताई है । प्रतिनिधिमण्दल में समाजवादी जनपरिषद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष संजीव साने तथा महाराष्ट्र इकाई के पूर्व अध्यक्ष शिवाजी गायकवाड़ शामिल थे ।
गौरतलब है कि समाजवादी जनपरिषद मध्य प्रदेश की उपाध्यक्ष शमीम मोदी पर गत २३ जुलाई को कातिलाना हमला हुआ था । शमीम ने आशंका प्रकट की थी कि हरदा के भाजपा विधायक और म.प्र. शासन के पूर्व मन्त्री कमल पटेल तथा जंगल की अवैध कटाई से जुड़े हरदा के आरा मशीन मालिकों के नेता नटवर पटेल का इस हमले के पीछे हाथ है । शमीम हरदा – बेतूल जिलों में मजदूरों ,महिलाओं,आदिवासी तथा किसानों के संघर्षों की रहनुमाई करती आई है ।
इस हमले की प्रतिक्रिया देश भर में हुई तथा महाराष्ट्र शासन से हमलावरों को पकड़ने की माँग की गई । स्थानीय पुलिस की असफलता को देखते हुए जांच केन्द्रीय जांच ब्यूरो से कराई जाए यह मांग जोर पकड़ रही थी ।
१० – ११ अगस्त को शमीम के कार्यक्षेत्र हरदा में हुई दल की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में तय किया गया था कि देश भर में २३ -से ३० अगस्त तक इस हमले के प्रतिकार में कार्यक्रम लिए जाएंगे । इस फैसले के अनुरूप भोपाल , मुम्बई,हरदा , खण्डवा ,बैतूल ,इटारसी,केरल और दिल्ली में धरना ,सभा ,प्रदर्शन के कार्यक्रम हुए ।
समाजवादी जनपरिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुनील , श्रमिक आदिवासी संगठन के अनुराग तथा किसान आदिवासी संगठन से जुड़े जनपद उपाध्यक्ष फागराम ने महाराष्ट्र सरकार के निर्णय का स्वागत किया है ।
ब्लॉग पाठकों द्वारा दिए गए नैतिक समर्थन का हम शुक्रगुजार हैं ।
हम लड़ेंगे – हम जीतेंगे !
शमीम मोदी पर प्राण घातक हमला
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[ इस चिट्ठे के पाठक हमारे दल समाजवादी जनपरिषद की प्रान्तीय उपाध्यक्ष साथी शमीम मोदी की हिम्मत और उनके संघर्ष से अच्छी तरह परिचित हैं । हिन्दी चिट्ठों के पाठकों ने शमीम की जेल यात्रा के दौरान उनके प्रति समर्थन भी जताया था ।
गत दिनों उन्होंने प्रतिष्ठित शोध संस्थान टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज़ ,मुम्बई में बतौर एसिस्टेन्ट प्रोफेसर काम करना शुरु किया है । वे अपने बेटे पलाश के साथ मुम्बई के निकट वसई में किराये के फ्लैट में रह रही थीं ।
मध्य प्रदेश की पिछली सरकार में मन्त्री रहे जंगल की अवैध कटाई और अवैध खनन से जुड़े माफिया कमल पटेल के कारनामों के खिलाफ़ सड़क से उच्च न्यायालय तक शमीम ने बुलन्द आवाज उठाई । फलस्वरूप हत्या के एक मामले में कमल पटेल के लड़के को लम्बे समय तक गिरफ़्तारी से बचा रहने के बाद हाल ही में जेल जाना पड़ा ।
गत दिनों जिस हाउसिंग सोसाईटी में वे रहती थीं उसीके चौकीदार द्वारा उन पर चाकू से प्राणघातक हमला किया गया । शमीम ने पूरी बहादुरी और मुस्तैदी के साथ हत्या की नियत से हुए इस हमले का मुकाबला किया । उनके पति और दल के नेता साथी अनुराग ने इसका विवरण भेजा है वह दहला देने वाला है । हम शमीम के साहस , जीवट और हिम्मत को सलाम करते हैं । आप सबसे अपील है कि महाराष्ट्र के मुख्यमन्त्री को पत्र या ईमेल भेजकर हमलावर की गिरफ़्तारी की मांग करें ताकि उसके पीछे के षड़यन्त्र का पर्दाफाश हो सके । कमल पटेल जैसे देश के शत्रुओं को हम सावधान भी कर देना चाहते हैं कि हम गांधी – लोहिया को अपना आदर्श मानने वाले जुल्मी से टकराना और जुल्म खत्म करना जानते हैं । प्रस्तुत है अनुराग के पत्र के आधार पर घटना का विवरण । ]
मित्रों ,
यह शमीम ही थी जो पूरे शरीर पर हुए इन घातक प्रहारों को झेल कर बची रही । ज़ख्मों का अन्दाज उसे लगे ११८ टाँकों से लगाया जा सकता है । घटना का विवरण नीचे मुताबिक है –
२३ जुलाई को हाउसिंग सोसाइटी का चौकीदार दोपहर करीब सवा तीन बजे हमारे किराये के इस फ्लैट में पानी आपूर्ति देखने के बहाने आया । शमीम यह गौर नहीं कर पाई कि घुसते वक्त उसने दरवाजा अन्दर से लॉक कर दिया था । फ्लैट के अन्दर बनी ओवरहेड टंकी से पानी आ रहा है या नहीं यह देखते वक्त वह शमीम का गला दबाने लगा। उसकी पकड़ छुड़ाने में शमीम की दो उँगलियों की हड्डियाँ टूट गईं । फिर उसके बाल पकड़कर जमीन पर सिर पटका और एक बैटन(जो वह साथ में लाया था) से बुरी तरह वार

भोपाल में शमीम की रिहाई के लिए
करने लगा । वह इतनी ताकत से मार रहा था कि कुछ समय बाद वह बैटन टूट गया । शमीम की चोटों से बहुत तेजी से खून बह रहा था । शमीम ने हमलावर से कई बार पूछा कि उसे पैसा चाहिए या वह बलात्कार करना चाहता है । इस पर वह साफ़ साफ़ इनकार करता रहा । शमीम ने सोचा कि वह मरा हुआ होने का बहाना कर लेटी रहेगी लेकिन इसके बावजूद उसने मारना न छोड़ा तथा एक लोहा-काट आरी (जो साथ में लाया था ) से गले में तथा कपड़े उठा कर पेट में चीरा लगाया । आलमारी में लगे आईने में शमीम अपनी श्वास नली देख पा रही थी । अब शमीम ने सोचा कि बिना लड़े कुछ न होगा । उसने हमालावर से के हाथ से आरी छीन ली और रक्षार्थ वार किया । इससे वह कुछ सहमा और उसने कहा कि रुपये दे दो । शमीम ने पर्स से तीन हजार रुपये निकाल कर उसे दे दिए । लेकिन उसने एक बार भी घर में लॉकर के बारे में नहीं पूछा । अपने बचाव में शमीम ने उससे कहा कि वह उसे कमरे में बाहर से बन्द करके चला जाए । वह रक्तस्राव से मर जाएगी । शमीम अपना होश संभाले हुए थी । वह पलाश के कमरे में बन्द हो गयी (जो कमरा हकीकत में अन्दर से ही बन्द होता है )। हमलावर बाहर से कुन्डी लगा कर चला गया । शमीम ने तय कर लिया था कि वह होशोहवास में रहेगी और हर बार जब वह चोट करता , वह उठ कर खड़ी हो जाती । हमलावर के जाने के बाद वह कमरे से बाहर आई और पहले पड़ोसियों , फिर मुझको और अपने माता-पिता को खबर दी। अस्पताल ले जाते तक वह पूरी तरह होश में रही ।

दाँए से बाँए:शमीम,पन्नालाल सुराणा,स्मिता
कुछ सवाल उठते हैं : चौकीदार ने लॉकर खोलने की कोशिश नहीं की जो वहीं था जहाँ वह शमीम पर वार कर रहा था । उसने पैसे कहां रखे हैं इसके बारे में बिलकुल नहीं पूछा । वह गालियाँ नहीं दे रहा था और उसके शरीर को किसी और मंशा से स्पर्श नहीं कर रहा था । यदि वह मानसिक रोगी या वहशी होता तो शायद शमीम उससे नहीं निपट पाती । वह सिर्फ़ जान से मारने की बात कह रहा था । शमीम के एक भी सवाल का वह जवाब नहीं दे रहा था । सेल-फोन और लैपटॉप वहीं थे लेकिन उसने उन्हें नहीं छूआ । इन परिस्थितियों में हमें लगता है कि इसके पीछे कोई राजनैतिक षड़यन्त्र हो सकता है ।
शमीम को मध्य प्रदेश के पूर्व राजस्व मन्त्री कमल पटेल और उसके बेटे सन्दीप पटेल से जान से मारने की धमकियाँ मिलती रही हैं । इसकी शिकायत हमने स्थानीय पुलिस से लेकर पुलिस महानिदेशक से की हैं । मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के निर्देश पर २००५ की शुरुआत से २००७ के अन्त तक उसे सुरक्षा मुहैय्या कराई गई थी । इसलिए हमें उन पर शक है । हमले के पीछे उनका हाथ हो सकता है ।
पेशेवर तरीके से कराई गयी हत्या न लगे इस लिए इस गैर पेशेवर व्यक्ति को इस काम के लिए चुना गया होगा । जब तक राकेश नेपाली नामक यह हमलावर गिरफ़्तार नहीं होता वास्तविक मन्शा पर से परदा नहीं उठेगा ।
हम सबको महाराष्ट्र शासन और मुख्यमन्त्री पर उसकी गिरफ़्तारी के लिए दबाव बनाना होगा ।
अनुराग मोदी
शमीम मोदी के संघर्ष से जुड़ी खबरें और आलेख :
’सत्याग्रही’ शिवराज के राज में