Archive for the ‘rajendra rajan’ Category
इस बुरे वक्त में / राजेन्द्र राजन
Posted in bio-terror, chernobyl, environment, globalisation, industralisation, rajendra rajan, tagged कविता, नोवल करोना, बुरा वक्त, राजेन्द्र राजन on अप्रैल 25, 2020| Leave a Comment »
कविता / तुम थे हमारे समय के राडार / राजेन्द्र राजन
Posted in globalisation, kishan patanayak, poem, politics, rajendra rajan, samajwadi janparishad, tagged राजेन्द्र राजन, सामयिक वार्ता, हिन्दी कविता, hindi, kishan pattanayak, rajendra rajan on सितम्बर 22, 2012| 2 Comments »
भोपाल-तीन : राजेन्द्र राजन
Posted in bio-terror, industralisation, intellectual imperialism, madhya pradesh, poem, rajendra rajan, tagged bhopal, gas tragedy, hindi poem, poem, rajendra rajan, supreme court judgement on जून 12, 2010| 8 Comments »
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए भोपाल गैस कांड संबंधी फैसले से हर देश प्रेमी आहत हुआ है | पचीस साल पहले राजेन्द्र राजन ने इस मसले पर कवितायें लिखी थीं , इस निर्णय के बाद यह कविता लिखी है |
भोपाल-तीन
हर चीज में घुल गया था जहर
हवा में पानी में
मिट्टी में खून में
यहां तक कि
देश के कानून में
न्याय की जड़ों में
इसीलिए जब फैसला आया
तो वह एक जहरीला फल था।
– राजेन्द्र राजन
भोपाल गैस काण्ड : पच्चीस वर्ष : कवितायेँ : राजेन्द्र राजन
Posted in bio-terror, environment, industralisation, poem, rajendra rajan, samajwadi janparishad, tagged कवितायेँ, गैस काण्ड, भोपाल, राजेन्द्र राजन, bhopal, gas, poems, rajan, rajendra, tragedy on दिसम्बर 1, 2009| 11 Comments »
भोपाल गैस काण्ड के २५ वर्ष पूरे होने जा रहे हैं | दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी से जुड़े सवाल ज्यों के त्यों खड़े हैं | हाल ही में इस बाबत मनमोहन सिंह से जब प्रश्न किए गए तो उन्होंने इन सवालों को भूल जाने की हिदायत दी | राजेन्द्र राजन की ये कविताएं भी पिछले २५ वर्षों से आस्तीन के इन साँपों को बेनकाब करने की कोशिश में हैं |
१
मुनाफ़ा उनका है
श्मशान अपना है
जहर उनका है
जहरीला आसमान अपना है
अन्धे यमदूत उनके हैं
यमदूतों को नेत्रदान अपना है
हमारी आँखों में जिस विकास का अँधेरा है
उनकी आँखों में उसी विकास का सपना है
२
जितना जहर है मिथाइल आइसो साइनेट में
हाइड्रोजन साइनाइड में
फास्जीन में
उससे ज्यादा जहर है
सरकार की आस्तीन में
जिसमें हजार- हजार देशी
हजार – हजार विदेशी सांप पलते हैं ।
३
यह कैसा विकास है जहरीला आकाश है
सांप की फुफकार सी चल रही बतास है
आदमी की बात क्या पेड़ तक उदास है
आह सुन , कराह सुन , राह उनकी छोड़ तू
विकास की मत भीख ले
भोपाल से तू सीख ले
भोपाल एक सवाल है
सवाल का जवाब दो .
४
आलाकमान का ऐलान है
कि हमें पूरे देश को नए सिरे से बनाना है
और इसके लिए हमने जो योजनायें
विदेशों से मँगवाकर मैदानों में लागू की हैं
उन्हें हमें पहाड़ों पर भी लागू करना है
क्योंकि हमें मैदानों की तरह
पहाड़ों को भी ऊँचा उठाना है
५
अब मुल्क की हर दीवार पर लिखो
कोई बाजार नहीं है हमारा देश
कोई कारागार नहीं है हमारा देश
हमारे जवान दिलों की पुकार है हमारा देश
मुक्ति का ऊँचा गान है हमारा देश
जो गूँजता है जमीन से आसमान तक
सारे बन्धन तोड़ .
– राजेन्द्र राजन
दो कविताएं : श्रेय , चिड़िया की आंख , राजेन्द्र राजन
Posted in poem, rajendra rajan, tagged चिड़िया की आंख, राजेन्द्र राजन, श्रेय, hindi poem, rajendra rajan on फ़रवरी 26, 2009| 11 Comments »
श्रेय
पत्थर अगर तेरहवें प्रहार में टूटा
तो इसलिए टूटा
कि उस पर बारह प्रहार हो चुके थे
तेरहवां प्रहार करने वाले को मिला
पत्थर तोड़ने का सारा श्रेय
कौन जानता है
बाकी बारह प्रहार किसने किए थे ।
चिड़िया की आंख
शुरु से कहा जाता है
सिर्फ चिड़िया की आंख देखो
उसके अलावा कुछ भी नहीं
तभी तुम भेद सकोगे अपना लक्ष्य
सबके सब लक्ष्य भेदना चाहते हैं
इसलिए वे चिड़िया की आंख के सिवा
बाकी हर चीज के प्रति
अंधे होना सीख रहे हैं
इस लक्ष्यवादिता से मुझे डर लगता है
मैं चाहता हूं
लोगों को ज्यादा से ज्यादा चीजें दिखाई दें ।
– राजेन्द्र राजन
कवि राजेन्द्र राजन की कुछ अन्य ताजा प्रकाशित कवितायें :
पेड़ , जहां चुक जाते हैं शब्द , शब्द बदल जाएं तो भी , पश्चाताप , छूटा हुआ रास्ता , बामियान में बुद्ध ,
कविता / इतिहास पुरुष अब आएं / राजेन्द्र राजन
Posted in poem, rajendra rajan, tagged hindi poem, rajendr rajan on अगस्त 31, 2008| 4 Comments »
काफी दिनों से रोज़ – रोज़ की बेचैनियां इकट्ठा हैं
हमारे भीतर सीने में भभक रही है भाप
आंखों में सुलग रही हैं चिनगारियां हड्डियों में छिपा है ज्वर
पैरों में घूम रहा है कोई विक्षिप्त वेग
चीज़ों को उलटने के लिए छटपटा रहे हैं हाथ
मगर नहीं जानते किधर जाएं क्या करें
किस पर यक़ीन करें किस पर सन्देह
क्या कहें किससे किसकी बांह गहें
किसके साथ चलें किसे आवाज़ लगाएं
हम नहीं जानते क्या है सार्थक क्या है व्यर्थ
कैसे लिखी जाती है आशाओं की लिपि
हम इतना भर जानते हैं
एक भट्ठी – जैसा हो गया है समय
मगर इस आंच पर हम क्या पकाएं
ठीक यही वक़्त है जब अपनी चौपड़ से उठ कर
इतिहास पुरुष आएं
और अपनी खिचड़ी पका लें
– राजेन्द्र राजन .
यह सिर्फ शब्दों से नहीं होगा : राजेन्द्र राजन
Posted in poem, rajendra rajan, tagged hindi poem, rajendra rajan, shabd on जुलाई 7, 2008| 6 Comments »
शब्दों में चाहे जितना सार हो
मगर बेकार है
शब्दों में चाहे जितना प्यार हो मगर बेकार है
शब्दों में चाहे जितनी करुण पुकार हो
मगर बेकार है
शब्दों में चाहे जितनी धार हो
मगर बेकार है
क्योंकि तुम्हारे सामने लोग नहीं हैं
लोगों की एक दीवार है
जिससे टकराकर
लहूलुहान हो रहे हैं तुम्हारे शब्द
पता नहीं
यह शब्दों की हार है
या बहरों का संसार
कि हर कहीं लगता है यही
कि सामने लोग नहीं हैं
लोगों की एक दीवार है
जिससे टकराकर
लहूलुहान हो रहे हैं हमारे शब्द
यह दीवार हिलनी चाहिए मित्रों,
हिलनी चाहिए
और सिर्फ शब्दों से नहीं होगा
क्या तुम्हारे पास कोई दूसरा औजार है ?
– राजेन्द्र राजन
१९९५.
राजन की ‘शब्द’ पर और कविताएं :
https://samatavadi.wordpress.com/2008/07/06/shabd3_rajendra_rajan/