Posts Tagged ‘हिन्दी कविता’
कविता / तुम थे हमारे समय के राडार / राजेन्द्र राजन
Posted in globalisation, kishan patanayak, poem, politics, rajendra rajan, samajwadi janparishad, tagged राजेन्द्र राजन, सामयिक वार्ता, हिन्दी कविता, hindi, kishan pattanayak, rajendra rajan on सितम्बर 22, 2012| 2 Comments »
अयोध्या , १९९२ : कुँवरनारायण
Posted in communalism, poem, ramacharitmaanas, tagged अयोध्या, कुँवरनारायण, हिन्दी कविता, hindi poem, hindi poet, kunwar narayan on दिसम्बर 5, 2008| 13 Comments »
अयोध्या , १९९२
हे राम ,
जीवन एक कटु यथार्थ है
और तुम एक महाकव्य !
तुम्हारे बस की नहीं
उस अविवेक पर विजय
जिसके दस बीस नहीं
अब लाखों सिर – लाखों हाथ हैं
और विवेक भी अब
न जाने किसके साथ है ।
इससे बड़ा क्या हो सकता है
हमारा दुर्भाग्य
एक विवादित स्थल में सिमट कर
रह गया तुम्हारा साम्राज्य
अयोध्या इस समय तुम्हारी अयोध्या नहीं
योद्धाओं की लंका है ,
‘मानस’ तुम्हारा ‘चरित’ नहीं
चुनाव का डंका है !
हे राम , कहाँ यह समय
कहाँ तुम्हारा त्रेता युग ,
कहाँ तुम मर्यादा पुरुषोत्तम
और कहाँ यह नेता – युग !
सविनय निवेदन है प्रभु कि लौट जाओ
किसी पुराण – किसी धर्मग्रंथ में
सकुशल सपत्नीक….
अब के जंगल वो जंगल नहीं
जिनमें घूमा करते थे बाल्मीक !
– कुँवरनारायण
जल्दी में : कुंवर नारायण
Posted in industralisation, poem, tagged कुंवर नारायण, जल्दी में, हिन्दी कविता, hindi poem, kunwar narayan on जुलाई 19, 2008| 9 Comments »
प्रियजन
मैं बहुत जल्दी में लिख रहा हूं
क्योंकि मैं बहुत जल्दी में हूं लिखने की
जिसे आप भी अगर
समझने की उतनी ही बड़ी जल्दी में नहीं हैं
तो जल्दी समझ नहीं पायेंगे
कि मैं क्यों जल्दी में हूं ।
जल्दी का जमाना है
सब जल्दी में हैं
कोई कहीं पहुंचने की जल्दी में
तो कोई कहीं लौटने की …
हर बड़ी जल्दी को
और बड़ी जल्दी में बदलने की
लाखों जल्दबाज मशीनों का
हम रोज आविष्कार कर रहे हैं
ताकि दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती हुई
हमारी जल्दियां हमें जल्दी से जल्दी
किसी ऐसी जगह पर पहुंचा दें
जहां हम हर घड़ी
जल्दी से जल्दी पहुंचने की जल्दी में हैं ।
मगर….कहां ?
यह सवाल हमें चौंकाता है
यह अचानक सवाल इस जल्दी के जमाने में
हमें पुराने जमाने की याद दिलाता है ।
किसी जल्दबाज आदमी की सोचिए
जब वह बहुत तेजी से चला जा रहा हो
-एक व्यापार की तरह-
उसे बीच में ही रोक कर पूछिए,
‘क्या होगा अगर तुम
रोक दिये गये इसी तरह
बीच ही में एक दिन
अचानक….?’
वह रुकना नहीं चाहेगा
इस अचानक बाधा पर उसकी झुंझलाहट
आपको चकित कर देगी ।
उसे जब भी धैर्य से सोचने पर बाध्य किया जायेगा
वह अधैर्य से बड़बड़ायेगा ।
‘अचानक’ को ‘जल्दी’ का दुश्मान मान
रोके जाने से घबड़ायेगा । यद्यपि
आपको आश्चर्य होगा
कि इस तरह रोके जाने के खिलाफ
उसके पास कोई तैयारी नहीं….
(कविता संग्रह ‘कोई दूसरा नहीं’,राजकमल प्रकाशन से साभार)
कविता : इतिहास में जगह : राजेन्द्र राजन
Posted in poem, tagged राजेन्द्र राजन, हिन्दी कविता, hindi poem, rajendr rajan on जनवरी 22, 2008| 11 Comments »
वे हर वक्त पिले रहते हैं
इतिहास में अपनी जगह बनाने में
सिर्फ उन्हें मालूम है
कितनी जगह है इतिहास में
शायद इसीलिए वे एक दूसरे को
धकियाते रहते हैं हर वक्त
उनकी धक्कामुक्की
मुक्कामुक्की से बनता है
उनका इतिहास
इस तरह
इतिहास में अपनी जगह बना
लेने के बाद
वे तय करते हैं
इतिहास में दूसरों की जगह
जो इतिहास में उनकी बतायी
हुई जगह पर
रहने को राजी नहीं होते
उन्हें वे रह रहकर
इतिहास से बाहर कर देने की धमकियाँ देते हैं
उनकी धमकियों का असर होता है
तभी तो इतिहास में
उचित स्थान पाने के इच्छुक
बहुत-से लोग
जहां कह दिया जाता है
वहीं बैठे रहते हैं
कभी उठकर खड़े नहीं होते ।
– राजेन्द्र राजन
स्रोत : सामयिक वार्ता/जनवरी २००८