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मित्रों ,

इस ब्लॉग पर आप मणिपुर की जुझारू महिला सत्याग्रही इरोम शर्मिला के ऐतिहासिक अहिंसक प्रतिकार के बारे में पढ़ चुके हैं । इरोम शर्मिला की मांगों के प्रति नैतिक एकजुटता प्रकट करने के लिए समाजवादी जनपरिषद की इकाइयों ने कार्यक्रम भी लिए

इरोम शर्मिला चानू द्वारा अन्न-जल छोड़े हुए नौ साल पूरे हो चुके हैं । इस मौके पर तहलका की शोमा चौधरी ने उनके बारे में एक अच्छा आलेख लिखा है ।

इस बाबत हिन्दी चिट्ठों के पाठकों का समर्थन उनकी टिप्पणियों के द्वारा प्रकट हुआ है ।

आप सब से सादर अनुरोध है कि इस जुझारू महिला के प्राण रक्षा के लिए तथा ’आफ़्स्पा’ हटाने की उनकी मांग के सन्दर्भ में राष्ट्रपति को सम्बोधित ऑनलाईन प्रतिवेदन में हस्ताक्षर करें , समर्थन जतायें ।

प्रतिवेदन पर साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता हिन्दी लेखिका अलका सरावगी ने कहा है ,

” अपने ही देश के नागरिकों के अहिंसक सत्याग्रह और अति-मानवीय साहस को अनदेखा कर दमन की संस्कृति फैलाने वाली सरकार की भर्त्सना करती हूँ । “

ऑनलाईन प्रतिवेदन में हिन्दी में नाम ,टिप्पणी तथा संगठन का नाम दिया जा सकता है ।

सविनय ,

अफ़लातून ,

सदस्य राष्ट्रीय कार्यकारिणी , समाजवादी जनपरिषद .

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अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस के अवसर पर समाजवादी जनपरिषद ने लंका , वाराणसी में आफ़्स्पा (Armed Forces Special Power Act, AFSPA,1958 ) के खिलाफ़ धरना एवं सभा का आयोजन किया ।

धरना कवियित्री एवं जुझारू कार्यकर्ता ईरोम शर्मिला चानू के साहसिक संघर्ष के दसवें साल में प्रवेश के मौके पर उनके समर्थन में रखा गया था । सभा में केन्द्र सरकार से मांग की गयी कि आम नागरिकों के मानवाधिकारों का हनन करने वाले और सैन्य बलों को अगाध छूट देने वाले आफ़्स्पा कानून को तत्काल रद्द किया जाए । इस कानून की आड़ में पिछले 50 सालों से पूर्वोत्तर राज्यों में सेना ने अपना बर्बर राज चला रखा है । लूट , बलात्कार , मार-पीट , हत्या आदि का इस्तेमाल आम जनता के खिलाफ़ तथाकथित रूप से उग्रवाद को दबाने के लिए किया जाता है परन्तु सच तो यह है कि इन 50 सालों इस इलाके में राज्य के दमन और मुख्यधारा से काटे रखने की राजनीति के फलस्वरूप उग्रवाद बढ़ा ही है । इस कानून का असर सबसे ज्यादा महिलाओं को ही झेलना पड़ता है । सभा में उन सभी जुझारू महिलाओं को नमन किया गया जिनके संघर्ष फलस्वरूप इस कानून की नारकीय सच्चाई शेष भारत और विश्व के सामने आई ।

’आफ़्स्पा’ जम्मू और काश्मीर में भी लगाया गया है और वहां भी पिछले 25 सालों में सेना के अत्याचार तथा केन्द्र सरकार द्वारा लोकतंत्र की प्रक्रियाओं से खिलवाड़ के फलस्वरूप उग्रवाद और आतंकवाद बढ़ा है । शोपियान काण्ड में भी राज्य सरकार ने आरोपियों को बचाने का काम ही किया है ।

सभा में जमीन के हक और शराब माफ़िया , खनन एवं महाजनों की लॉबी के खिलाफ़ लड़ रहे आदिवासियों पर नारायणपटना में हुए गोली-काण्ड का विरोध किया गया । गोली काण्ड की जांच करने जा रही महिला कार्यकर्ताओं की टीम पर कम्पनियों के गुण्डों तथा सादी वर्दी में पुलिस द्वारा हमले की तीव्र आलोचना की गई ।

सभा में यह बात उभर कर आइ जब जनता जल , जंगल , जमीन और जीने के अपने अधिकारों के लिये लड़ती है तो उसे दबाने के लिए राजनैतिक सत्ता पुलिस , सेना एवं कानून का सहारा लेती है । इसलिए देश की जनता को लूट कर निजी कम्पनियों के हाथों में प्राकृतिक संसाधन सौंपने की नीतियों का विरोध करना ही होगा ।

सभा में मांग रखी गयी कि आफ़्स्पा को तकाल रद्द किया जाये , इरोम शर्मिला को रिहा किया जाये एवं जनान्दोलनों पर दमन रोका जाए ।

क्रान्तिकारी कवि गोरख पाण्डे के प्रसिद्ध गीत ’ गुलमिया अब हम नाहि बजईबो , अजदिया हमरा के भावेले ’ के गायन के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ ।

– रपटकर्ता : प्योली स्वातिजा

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यह मणिपुरी कवियत्री और कार्यकर्ता ईरोम शर्मिला चनू की भूख हड़ताल का दसवां साल है । शर्मिला अपने राज्य में पिछले ५१ सालों से लागू आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर्स एक्ट , १९५८ ( सैन्य बल विशेष शक्तियाँ कानून , १९५८ ) या ” आफ़्स्पा ” के खिलाफ़ सत्याग्रह कर रही हैं। इस राक्षसी कानून के अन्तर्गत सैन्य बलों को –

  • बिना वॉरण्ट के गिरफ़्तारी और तलाशी की छूट
  • सिर्फ शक के बिना पर गोली चलाकर जान से मारने की छूट
  • आम कानूनी कार्रवाई से छूट (दण्ड मुक्ति) मिली हुई है ।

१९४२ में भारत छोड़ो आन्दोलन को दबाने के लिए जो अधिनियम बना था लगभग हूबहू वही ’आफ़्स्पा ’ के रूप में आजाद भारत की सरकार ने अपने देश के कुछ हिस्सों पर लगाया । इस कानून की आड़ में पिछले ५० साल से सेना ने अपना बर्बर राज मणिपुर व अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में चला रखा है । लूट , बलात्कार , मार-पीट , हत्या आदि का इस्तेमाल आम जनता के खिलाफ़ तथाकथित रूप से उग्रवाद को दबाने के लिए किया जाता है परन्तु सच यह है कि पिछले ५० सालों में इस क्षेत्र में  राज्य के दमन और मुख्य धारा से काटे रखने की प्रतिक्रियास्वरूप उग्रवाद बढ़ा ही है । मालोम गाँव के बस स्टॉप पर बस के इन्तेज़ार में खडे़ १० निहत्थे नागरिकों को उग्रवादी होने के सन्देह पर मार दिया गया  – इस घटना की प्रतिक्रिया स्वरूप २ नवम्बर २००० को शर्मीला ने आफ़्स्पा हटाये जाने के लिए आमरण अनशन शुरु किया । ६ नवम्बर को उन्हें “आत्महत्या करने के प्रयास” के जुर्म में गिरफ़्तार किया गया । २० नवम्बर २०० को जबरन उनकी नाक में तरल पदार्थ डालने की कष्टदायक नली डाली गयी । पिछले ९ सालों से इसी हालत में उन्हें कैद रखा गया है ।

शासकीय दमन के खिलाफ़ शर्मिला अकेली आवाज नहीं हैं । २००४ में असम राईफल के जवानों ने मनोरमा नाम की महिला का बलात्कार कर उसकी नृशंस हत्या कर दी । इस घटना के विरोध स्वरूप अधेड़ मणिपुरी महिलाओं ने सी आर पी एफ़ के मुख्यालय के सामने निर्वस्त्र होकर प्रदर्शन किया । इंसान से उसकी गरिमा और लोकतांत्रिक अधिकार छीन लेने वाले प्रशासन के प्रति यह इन महिलाओं के गुस्से का इजहार था और आधुनिक भारतीय राष्ट्र के लिए के शर्मनाक घटना । दूसरी तरफ शर्मिला के इस संघर्ष में कई और जांबाज साथिनें भी 10 दिसंबर 2008 से जुड़ गई हैं मणिपुर के कई महिला संगठन पिछले साल से ही रिले भूख हड़ताल पर प्रतिदिन बैठ रहे हैं. सैन्य दमन की सभी घटनाओं में सरकार द्वारा दोषियों के खिलाफ़ सन्तोषजनक कार्रवाई नहीं की गई है ।

” आफ़्स्पा ” कानून जम्मू और कश्मीर में भी लगाया गया है और पिचले २५ सालों में सेना के बढ़ते अत्याचार और केन्द्र सरकार द्वारा राज्य की लोकतांत्रिक पेक्रियाओं से खिलवाड़ की प्रतिक्रिया स्वरूप यहाँ भी उग्रवाद और आतंकवाद बढ़ता ही जा रहा है । कश्मीर पिछले कई महीनों से शोपियां काण्ड को लेकर उबलता रहा है और इस आन्दोलन में  भी काफ़ी लोगों की जानें गई हैं । सेना के जवनों द्वारा दो लड़कियों के  बलात्कार और हत्या की इस घटना में राज्य सरकार ने आरोपियों को बचाने का ही काम किया है ।

अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे लोगों को राज्य सत्ता द्वारा हमेशा ही दबाया जाता रहा है । नव-उदारवादी आर्थिक नीतियों के तहत प्राकृतिक संसाधनों की लूट देश के सभी राज्यों की सरकारों ने चला रखी है । कृषि भूमि को छीन कर एस.ई.ज़ेड (विशेष आर्थिक क्षेत्र) में बदला जा रहा है और जंगलों से आदिवासियों को खदेड़ कर खनिजों को औने-पौने दामों में निजी और बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के हवाले किया जा रहा है । जल – जंगल – जमीन के हक के लिए लोग आन्दोलन कर रहे हैं और इन जनान्दोलनों को दबाने के लिए सरकारी दमन बढ़ता ही जा रहा है । काशीपुर , कलिंगनगर , सिंगूर , नन्दीग्राम आदि में राज्य सरकारों द्वारा आंदोलनकारियों की हत्या , प्रताड़ना , बलात्कार , लूट आदि की घटनायें सामने आई हैं । इसके अलावा भी देश भर में प्रदर्शनकारियों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को झूठे आरोपों में बन्द करना और हिरासत में प्रताड़ित करना भी सरकारी रणनीति के तहत होता रहता है । इस प्रकार सरकार लोकतांत्रिक विरोध के सभी तरीके बन्द करती जा रही है ।

समाजवादी जनपरिषद यह माँग करती है कि जम्मू और कश्मीर और पूर्वोत्तर राज्यों से तत्काल ’आफ़्स्पा’हटाया जाए और जैसा कि एक लोकतांत्रिक सरकार से अपेक्षा की जाती है , इन क्षेत्रों के लोगों की मूलभूत समस्याओं का राजनैतिक समाधान किया जाए । इसके अलावा जनान्दोलनों के कार्यकर्ताओं पर पुलिसिया दमन बन्द किया जाए ।

इरोम शर्मिला को रिहा करो !          आफ़्स्पा कानून रद्द करो !!         जनान्दोलनों का सरकारी दमन बन्द करो !!!

– ले. प्योली

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