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समाजवादी जन परिषद के नेता साथी सुनील की स्मृति में आयोजित 6ठे सुनील स्मृति व्याख्यान का विषय था जीवंत लोकतंत्र और मीडिया। भाषण देने वाले थे प्रख्यात पत्रकार रवीश कुमार –

जीवंत लोकतंत्र और मीडिया,रवीश कुमार : सुनील स्मृति व्याख्यान

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दीवाल  –  लेखन  नहीं , परचे नहीं , नुक्कड़ सभायें पहले से कहीं कम , इसके बावजूद  चुनाव खर्च की ऊपरी सीमा में लगातार वृद्धि !  माना जा रहा है कि यह सब कदम गलत – राजनीति पर नकेल कसने के लिए लिए गए हैं !

पिछले ही रविवार को ही हिन्दुस्तान की सम्पादक मृणाल पाण्डे ने अपने नियमित स्तम्भ में बताया कि दुनिया के बड़े अखबार मन्दी का मुकाबला करने के लिए कैसे खुद को दीवालिया घोषित करने से ले कर छँटनी की कार्रवाई कर रहे हैं तथा –

” मीडिया की छवि बिगाड़ने वाली घटिया पत्रकारिता के खिलाफ ईमानदार और पेशे का आदर करने वाले पत्रकारों का भी आंदोलित और संगठित होना आवश्यक बन गया है । “

विश्वव्यापी मन्दी के दौर में हो रहे दुनिया के सब से बड़े लोकतंत्र के इस आम चुनाव में पूर्वी उत्तर प्रदेश में “चुनावी रिपोर्टिंग” के नाम पर प्रमुख हिन्दी दैनिक पत्रकारिता में गलीजपन की नई हदें स्थापित कर रहे हैं । न सिर्फ़ इस गलीजपन की पत्रकारिता से जनता के जानने के हक पर कुठाराघात हो रहा है अपितु इन अखबारों को पढ़ कर राय बनाने में जनता के विवेक पर हमला हो रहा है । इस प्रकार स्वस्थ और निष्पक्ष चुनावों में बाधक के रूप में यह प्रमुख हिन्दी दैनिक  अपनी भूमिका तय कर चुके हैं । यह गौरतलब है इन प्रमुख दैनिकों द्वारा अनैतिक, अवैध व्यावसायिक लेन- देन को खुले आम बढ़ावा दिया जा रहा है । क्या अखबार मन्दी का मुकाबला करने के लिए इन अनैतिक तरीकों से धनार्जन कर रहे हैं ?

गनीमत है कि यह पतनशील नीति अखबारों के शीर्ष प्रबन्धन द्वारा क्रियान्वित की जा रही है और उन दैनिकों में काम करने वाले पत्रकार  इस पाप से सर्वथा मुक्त हैं । आपातकाल के पूर्व तानाशाही की पदचाप के तौर पर सरकार द्वारा अखबारों के विज्ञापन रोकना और अखबारी कागज के कोटा को रोकना आदि गिने जाते थे । आपातकाल के दौरान बिना सेंसरशिप की खबरों के स्रोत भूमिगत साइक्लोस्टाइल बुलेटिन और बीबीसी की विश्व सेवा हो गये थे ।  “हिम्मत” (सम्पादक राजमोहन गांधी , कल्पना शर्मा ) , “भूमिपुत्र” (गुजराती पाक्षिक ,सम्पादक – कान्ति शाह ) जैसी छोटी पत्रिकाओं ने प्रेस की आज़ादी के लिए मुद्रणालयों की तालाबन्दी सही और उच्च न्यायालयों में भी लड़े । भूमिपुत्र के प्रेस पर तालाबन्दी होने के बाद रामनाथ गोयन्का ने अपने गुजराती दैनिक के मुद्रणालय में उसे छापने दिया ।  तानाशाही का मुकाबला करने वाली इन छोटी पत्रिकाओं से जुड़े युवा पत्रकार आज देश की पत्रकारिता में अलग पहचान रखते है – कल्पना शर्मा , नीरजा चौधरी , संजय हजारिका ।

दूसरी ओर मौजूदा चुनावों में पूर्वी उत्तर प्रदेश के प्रमुख अखबार हिन्दुस्तान और दैनिक जागरण ने चुनावी विज्ञापनों को बतौर  “खबर”   छापने के लिए मुख्यधारा के दलों के हर  उम्मीदवारों से बिना रसीद अवैध रूप से दस से २० लाख रुपये लिये हैं। धन देने के बाद न सिर्फ़ विज्ञापननुमा एक – एक पृष्ट चित्र- संग्रह छापे जा रहे हैं तथा समाचार भी धन प्रभावित तरीके से बनाये जा रहे हैं ।

आम चुनावों के पहले हुए विधान परिषद के लिए हुए स्नातक सीट के निर्वाचन में प्रत्याशी रह चुके समाजवादी डॉ. सुबेदार सिंह बताते हैं कि अखबारों को आर्थिक लाभ पहुंचाने की चाह पूरी न कर पाने के कारण मतदान के एक सप्ताह पहले ही अखबारों से उनका लोप हो गया था । अम्बेडकरवादी चिन्तक डॉ. प्रमोद कुमार कहते हैं अखबारों द्वारा अपनाई गई यह चुनाव नीति लोकतंत्र के भविष्य के लिए खतरनाक है ।

समाजवादी जनपरिषद की उत्तर प्रदेश इकाई अखबारों द्वारा अपनाये जा रहे इस लोकतंत्र विरोधी आचरण के सन्दर्भ में चुनाव आयोग तथा प्रेस परिषद से हस्तक्षेप करने की अपील करती है ।  दल ने यह निश्चय किया है कि इस खतरनाक रुझान के सन्दर्भ में लोक राजनैतिक मंच के न्यायमूर्ति राजेन्द्र सच्चर तथा वरिष्ट पत्रकार कुलदीप नैयर का ध्यान भी खींचा जायेगा।

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[ इस पोस्ट में सेक्स तथा यौनिकता आदि पर भी चर्चा है। जिन्हें यह विषय अनुचित लगता हो कृपया आगे न पढ़ें ।]

उद्योग- व्यवसाय में सरकार का हस्तक्षेप  उत्तरोत्तर कम होता चला जाए – यह ग्लोबीकरण का एक प्रमुख औजार था । बहरहाल , चक्की उलटी चलनी शुरु हुई है । विभिन्न बड़े उद्योगों को दीवालिया होने से बचाने के लिए सरकारी खजानों से मदद देना शुरु हो गया है । अमेरिकी सरकार ने सब से पहले बैंक/बीमा और फिर मोटरगाड़ी उद्योग को बड़ी मदद देने की घोषणाएं की हैं ।

अमेरिकियों की यौनेच्छा को जागृत करने के लिए पोर्न उद्योग के कर्णधारों ने भी दो दिन पहले अमेरिकी सरकार से एक प्रेस कॉन्फ़रेन्स बुला कर ५ अरब डॉलर की मदद की गुहार लगाई है। इन पुरोधाओं का कहना है कि चूँकि अमेरिकी संसद प्रमुख उद्योगों को मदद देने की बात सोच रही है इसलिए १३ अरब डॉलर के इस उद्योग पर भी विचार किया जाए । ‘हसलर’ पत्रिका के मालिक लैरी फ़्लिन्ट और टेलिविजन कार्यक्रम ‘गर्ल्स गॉन वाइल्ड’ के निर्माता जो फ़्रन्सिस ने यह प्रेस कॉन्फ़रेंस बुलायी थी । फ़्लिन्ट का कहना है कि लाजमी तौर पर मन्दी के दौर में अमेरिकियों की यौनेच्छा कम हो गयी है तथा भले ही मो्टर गाड़ियां न खरीदी जाए लेकिन इस बीमारी को व्यापक होने नहीं दिया जा सकता है ।

मिलते – जुलते सन्दर्भों में भारतीय मीडिया और यौन- उद्योगपर दृष्टिपात करें । मेरे अन्दाज से भारतीय यौन-उद्योग बाजार का असंगठित क्षेत्र अखबार और टेलिविजन से प्रभावित नहीं होता । मजमा लगा कर जन सम्प्रेषण हेतु ‘लकड़ी पर मारोगे बोलेगा खट – खट , लोहे पर मारोगे बोलेगा टन टन्न’ जैसे मन्त्रोच्चार द्वारा जरूरतमन्दों को अपने उत्पाद बेचने वाले समूह आधुनिकता के इस दौर में पूरी तरह लुप्त नहीं हुए हैं । बल्कि,हिन्दी अखबार मन्दी के इस दौर में यौन-मन्दी को  एक व्यापक महामारी का दरजा देते हुए लगता है अपनी मन्दी दूर करना चाहते हैं । मेरे घर हिन्दुस्तान अखबार आता है और यह अखबार ऐसे विज्ञापनों से अटा पड़ा रहता है । अखबार की की्मत तीन से साढे तीन करते वक्त बिड़ला का यह अखबार हॉकरों का कमीशन नहीं बढ़ाता है और विज्ञापन की आमदनी के लिए इन विज्ञापनों द्वारा युवाओं में भ्रम झूट और भय फैलाने में गुरेज नहीं करता ।

हास्यास्पद यह है कि यही विज्ञापन उसी प्रकाशन के अंग्रेजी अखबार Hindustan Times में नहीं छपते ! क्या अंग्रेजी जा्नने वाले इन ‘व्याधियों’ से पीड़ित नहीं होते? या उन्हें इन झोला छाप डॉक्टरों तथा भ्रामक उत्पादों की आवश्यकता नहीं होती? वे बड़े अस्पतालों के प्रजनन क्लीनिकों में जाते होंगे !

इन विज्ञापनों की एक बानगी देखें :

सदियों से स्त्री की सुंदरता को देखकर पुरुष युवावस्था में अपने मन में अलग-२ विचारधाराएं बनाता और सोचता है और मनघडंत खयालों में उलझ कर उस पर मोहित होता आया है । जिसके फलस्वरूप कामदेव के तीर के प्रभाव में आकर वह अपने हाथों से अपने जोश को शांत करने की कोशिश में अलग-२ प्रक्रियाएं करता अहता है । अपनी अज्ञानता व नासमझी के कारण वह इन्द्रियों व नसों के विकास को रोक देता है और विभिन्न प्रकार की व्याधियों जैसे कि स्वप्नावस्था में ही शरीर की सबसे कीमती धातु का निकल जाना,… आदि को जाने अनजाने में निमन्त्रण दे बैठता है ।

—  मैं पी.के. चतुर्वेदी उम्र ४५ वर्ष अपनी कुछ कमजोरियों व बचपन की गलतियों की वजह से वैवाहिक जीवन का सुख न तो ले पा रहा था नाही पत्नी को वैवाहिक जीवन का सुख दे पा रहा था ।—— फिर मुझे ऐसा लगा कि मेरी कमजोरी की वजह से मेरी पत्नी दूसरों की तरफ आकर्षित होने लगी है । … जापानी तेल लगाना शुरु करने के बाद मुझे कुछ आराम मिलना शुरु हुआ । सुबह शाम रोजाना लगाना शुरु किया जिससे मेरा आत्म वि्श्वास बढ़ना शुरु हुआ और एक महीने के अन्दर सालों पुरानी मेरी समस्या जिसके कारण मेरी पत्नी मुझसे दूर हो रही थी उस समस्या से मुझे जापानी तेल से बहुत आराम मिला।

इसी तेल का एक अन्य विज्ञापन कहता है ,’आप के शरीर का एक एक अंग अनमोल है कृपया साधारण तेल लगाने से बचें ।

इन विज्ञापनों द्वारा तरुणों में हस्त मैथुन , स्वप्नदोष की बाबत भ्रम , भय फैलाने और उस आधार पर अपने उत्पाद बेचने की मंशा रहती है । क्या इन अखबारों के प्रकाशन हेतु जिम्मेदार इन सामान्य से तथ्यों को नहीं जानते कि यह विज्ञापन भ्रामक ,झूटे और भय पैदा करने वाले हैं तथा हस्त मैथुन किसी स्थायी व्याधि का कारण नहीं है ?

क्या प्रेस काउंसिल ऑफ़ इण्डिया ऐसे मामलों में हस्तक्षेप नहीं कर सकती ?

हिन्दी अखबारों के विज्ञापनों में यौनिकता की विकृतियों के बारे में कभी और चर्चा करेंगे ।


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