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Posts Tagged ‘model school’

खबर है कि भारत सरकार ने देश में नए 1000 मॉडल स्कूल खोलने का फैसला किया है। शैक्षिक रुप से पिछडे़ इलाकों में एक प्रखण्ड में एक मॉडल स्कूल खोला जाएगा। इसके पहले नवंबर 2008 में 2500 मॉडल स्कूलों की स्वीकृति दी गई थी। कुल मिलाकर देश में 6000 मॉडल स्कूल खोलने की योजना है, जिसे 11वीं पंचवर्षीय योजना में शामिल किया गया है। इसके बाद देश के हर प्रखण्ड में एक माॅडल स्कूल हो जाएगा। इन मॉडल स्कूलों पर सरकार काफी खर्च कर रही है। पिछले तीन सालों से केन्द्र सरकार के हर बजट में इनके लिए अलग राशि का प्रावधान किया जा रहा है। एक मॉडल स्कूल की स्थापना पर करीब साढ़े तीन से लेकर चार करोड़ रुपया खर्च किया जा रहा है। संचालन का व्यय अलग होगा। इस खर्च में केन्द्र सरकार का योगदान 75 प्रतिशत और राज्य सरकार का 25 प्रतिशत होगा, किन्तु कुछ खास राज्यों में केन्द्र सरकार 90 प्रतिशत खर्च उठाएगी। सरकार का कहना है कि इन मॉडल स्कूलों का मानदण्ड और स्तर केन्द्रीय विद्यालयों से कम नहीं होगा। पहली नजर में सरकार का यह कदम सराहनीय लगता है। आखिरकार सरकार को ग्रामीण और पिछड़े इलाकों की सुध आई। सरकार विज्ञप्ति में कहा गया है कि इस योजना से ग्रामीण प्रतिभाशाली विद्यार्थियों को उम्दा शिक्षा के अवसर मिलेंगें। इनकी देखादेखी एवं प्रतिस्पर्धा में और भी अच्छे स्कूल वहां पर खुलेंगे, ऐसी उम्मीद सरकार को है। मॉडल स्कूल की यह अवधारणा नई नहीं है। इसके पहले राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में जवाहर नवोदय विद्यालय शुरु किए गए थे। देश के हर जिले में एक नवोदय विद्यालय खोला गया, जिनमें 75 प्रतिशत बच्चे गांवों से लिए जाते हैं। नवोदय विद्यालय के सारे विद्यार्थी छात्रावासों में ही रहते हैं, और उनका पूरा खर्च सरकार उठाती है। आवास, भोजन, पोशाक, कॉपी-किताबें, साबुन-तेल-मंजन सब कुछ सरकार की ओर से मुफ्त मिलता है। नवोदय विद्यालय का काफी बड़ा परिसर रहता है, और उसमें बढ़िया शाला भवन के साथ शिक्षक आवास, छात्रावास, भोजनालय, प्रयोगशाला, पुस्तकालय, खेल मैदान, बाग-बगीचा सब कुछ रहता है। कह सकते हैं कि मॉडल स्कूल एक तरह से नवोदय विद्यालय का प्रखण्ड स्तरीय संस्करण होगा। पहले योजना थी कि नवोदय विद्यालय की तरह मॉडल स्कूल भी कक्षा 6से 12 तक होंगे। किन्तु अब केन्द्र सरकार ने इसे घटाते हुए राज्य सरकारों को विकल्प दिया है कि वे इसे चाहें तो कक्षा 6 से 10 तक या चाहें तो कक्षा 9 से 12 तक रख सकती है। शिक्षा के माध्यम और बोर्ड से संबद्धता का फैसला भी राज्य सरकारें करेगी। यानी सरकार विशिष्ट स्कूलों की संख्या बढ़ाते हुए भी उनका दायरा घटा रही है। जहां केन्द्रीय विद्यालय कक्षा 1 से 12 तक रहते हैं, नवोदय विद्यालय कक्षा 6 से 12 तक हैं, वहीं इन मॉडल स्कूलों की विशिष्ट पढ़ाई का लाभ बच्चों को महज चार या पांच कक्षाओं तक ही मिल सकेगा। इसका मतलब साफ है यदि पालकों को मॉडल स्कूल के पहले या बाद की कक्षाओं में अपने बच्चों को ‘उम्दा’ शिक्षा देना है, तो निजी स्कूलों की शरण में ही जाना पड़ेगा। यों भी मॉडल स्कूल शिक्षा के निजीकरण की दिशा मे एक और कदम है। यदि 5 फरवरी 2008 को भारत सरकार के मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा राज्य सरकारों को इस योजना के बारे में भेजे परिपत्र पर गौर करें, तो समझ में आता है कि छः हजार में से ढाई हजार (यानी बाकी) मॉडल स्कूल ‘निजी-सरकारी भागीदारी’ के तहत खोलें जाएंगे। इन स्कूलों को निजी फर्में खोलेंगी और चलाएगी। राज्य सरकारें जमीन दे सकती हैं। स्कूल की निर्माण लागत को केन्द्र व राज्य सरकारें दस वर्ष के अंदर चुका देगी, किन्तु फिर भी 30 वर्ष के बाद पूरी संपत्ति निजी स्कूल मालिक की हो जाएगी। दो-तिहाई सीटें राज्य सरकार के निर्देशों के तहत भरी जाएगी, जिनकी फीस वह देगी। बाकी एक तिहाई सीटें निजी संस्था अपने मनमुताबिक तरीके से भर सकेगी, जिसमें कोई आरक्षण नहीं होगा एवं मनमानी फीस होगी। शिक्षक-नियुक्ति और स्कूल संचालन में भी निजी मालिक को पूरी आजादी होगी। जाहिर है कि जनता के खर्च पर निजी क्षेत्र की मुनाफाखोरी को बढ़ावा देने की सरकार की नयी नीति का यह एक और प्रयोग है। नवोदय विद्यालय और मॉडल स्कूल में यह एक और फर्क है। हो सकता है कि सरकार धीरे-धीरे नवोदय विद्यालयों को भी इसी तर्ज पर ‘निजी-सरकारी भागीदारी’ के नाम पर निजी हाथों को सौंप दे। नवोदय विद्यालयों में कुछ वर्षों से गरीबी रेखा से ऊपर के विद्यार्थियों से फीस लेने की शुरुआत हो चुकी है। नवोदय विद्यालय और मॉडल स्कूल की ही तरह केन्द्र सरकार ने कस्तूरबा कन्या विद्यालयों की योजना भी चलाई है, जिसमें लड़कियों के लिए विशिष्ट विद्यालय बनाए गए हैं। इसी तरह कई राज्य सरकारों ने भी चुनकर कुछ स्कूलों और कॉलेजों को ‘उत्कृष्ट विद्यालय’ या ‘उत्कृष्ट महाविद्यालय’ का दर्जा दिया है, जिन्हें ज्यादा सुविधाएं, बजट, स्टाफ एवं ज्यादा ध्यान मिलता है। किन्तु इन्हीं के साथ बाकी विद्यालयों एवं महाविद्यालयों की उपेक्षा और बदहाली बढ़ती गई है। वहां सुविधाओं की कमी, शिक्षकों की कमी, पढ़ाई के स्तर में गिरावट एवं परीक्षा परिणाम में गिरावट लगातार देखी जा रही है। सवाल यह उठता है कि देश के हर स्कूल को मॉडल स्कूल क्यों न बनाया जाए ? कुछ चुनिंदा बच्चों को ही प्रतिभाशाली क्यों माना जाए और बाकी बच्चों को नालायक घोषित करके न्यूनतम गुणवत्ता की शिक्षा से भी वंचित क्यों किया जाए ? हर बच्चे में किसी न किसी तरह की प्रतिभा छुपी होती हैं। यह हमारी शिक्षा-व्यवस्था की कमी है कि वह उन प्रतिभाओं को पहचान कर खिलने का मौका नहीं दे पाती है। जब हम ‘सर्वशिक्षा अभियान’ चला रहे हैं और बच्चों के शिक्षा के अधिकार का कानून बना रहे हैं, तो फिर बच्चों मे यह भेदभाव क्यों ? मॉडल स्कूल 4 करोड़ में बनेगा और दूसरे स्कूलों पर 20 लाख भी खर्च नहीं होगा। ऐसा क्यों ? दरअसल कुछ को विशिष्ट मानकर विशेष सुविधाएं देने में ही बाकी जनसाधारण की उपेक्षा व दुर्गति के बीज छिपे हैं। विशिष्ट स्कूल बनाकर कुछ तेज बच्चों एवं प्रभावशाली परिवारों के बच्चों की तो अच्छी व्यवस्था हो जाती है, बाकी बच्चों की विशाल संख्या के प्रति सरकार अपनी जिम्मेदारी भूल जाती है। प्रखंड स्तर पर मॉडल स्कूल खुल जाने से वहां के जागरुक अभिभावक अपने बच्चों को उसमें भेजने की उधेड़बुन में लग जाएंगे। सामान्य स्कूलों की हालत सुधारने के लिए जो थोड़ा-बहुत दबाव बन सकता है, और जो आवाज उठ सकती है, वह भी खतम हो जाएगी। इसीलिए कोठारी आयोग और कई अन्य शिक्षाशास्त्री ने ‘समान स्कूल प्रणाली’ की वकालत की है, जिसमें एक जगह रहने वाले अमीर-गरीब सभी तरह के बच्चे एक ही स्कूल में पढ़ें। दुनिया के जिन विकसित देशों ने अपनी पूरी आबादी को शिक्षित करने में सफलता पाई है, वहां कमोबेश किसी न किसी रुप में इसी तरह की व्यवस्था रही है। किन्तु भारत में शिक्षा के बढ़ते निजीकरण और खुद सरकार द्वारा कई श्रेणियों के स्कूल खोलने से हम बिलकुल उल्टी दिशा में जा रहे हैं। शिक्षा में जितना भेदभाव और श्रेणीकरण बढ़ता जाएगा, नीचे की आबादी की शिक्षा का काम उतना ही उपेक्षित होता जाएगा। उसी मात्रा में देश की तरक्की अवरुद्ध होती रहेगी। इसीलिए हाल ही में लागू ‘शिक्षा अधिकार कानून’ एक ढकोसला बन गया है। इसमें देश के सारे स्कूलों के लिए न्यूनतम मानदण्ड तो तय किए हैं, किन्तु उन्हें इतना कम रखा गया है कि साधारण सरकारी स्कूलों में एवं सस्ते निजी स्कूलों में कभी पूरे शिक्षक नहीं होंगे, बाकी सुविधाएं भी पूरी नहीं मिलेगी। दूसरी तरफ शिक्षा में भेदभाव को इसमें वैधानिकता प्रदान कर दी गई है। इस कानून में प्रारंभ में परिभाषाओं के अनुच्छेद में ‘स्कूल’ की परिभाषा में ही इस भेदभाव की बुनियाद रख दी गई है। स्कूल की चार श्रेणियां बताई गई हैं – सरकारी, सहायता प्राप्त निजी, गैरसहायता प्राप्त निजी और विशिष्ट श्रेणी के स्कूल। इस अंतिम श्रेणी में ही केन्द्रीय विद्यालय, नवोदय विद्यालय, कस्तूरबा विद्यालय और मॉडल स्कूल आते हैं। भारत के शासक वर्ग ने तय कर लिया है कि देश के कुछ बच्चे ही विशिष्ट होंगे। उन्हें पूरा ध्यान, लाड़-दुलार व जरुरी सुविधाएं मिलेंगे। बाकी बच्चे पिछले साठ साल की तरह उपेक्षित, वंचित, घटिया, अधकचरी शिक्षा पाने के लिए अभिशप्त रहेंगे। जिस देश के करोड़ो बच्चों के साथ सौतेला बरताव होगा और वे कुंठित, हीनताग्रस्त, तिरस्कृत होते रहेंगे, उसके भविष्य को अंदाज लगाया जा सकता है।

– सुनील

लेखक समाजवादी जन परिषद का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष है।

ग्राम – केसला, तहसील इटारसी, जिला होशंगाबाद (म.प्र.)

पिन कोड: 461 111

मोबाईल 09425040452

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