पिछला भाग दुनिया को दुर्घटना की सूचना इससे फैले विकिरण ने ही दी । स्वीडन के बाल्टिक सागर के तट पर एक परमाणु संयंत्र स्थापित है ।इस संयंत्र से सुरक्षित स्तर से अधिक विकिरण तो नहीं हो रहा है इसकी पड़ताल के लिए करीब चार किलोमीटर दूर ‘रेडिएशन डिटेक्टर’ स्थापित है । विकिरण की मात्रा प्रति घण्टे ढाई मिलिरेम से नीचे होने पर नीली बत्ती जलती है , ढाई से १०० मिलिरेम तक पीली तथा १०० मिलिरेम से ज्यादा विकिरण फैल रहा हो तब लाल बत्ती जलने लगती है ।
२८ अप्रैल की सुबह यह डिटेक्टर प्रति घण्टे १० मिलिरेम दिखाने लगा । तत्काल सुरक्षा के कदम उठाए जाने लगे । संयंत्र बन्द कर दिया गया । परन्तु धीरे धीरे यह समझ में आया कि यह विकिरण स्वीडन के किसी संयंत्र से नहीं हो रहा है , अन्यत्र कहीं दूर से आ रहा है ।ज्यदा जाँच से पता चला कि विकिरण के विस्फोट के पहले चिह्न २७ तारीख़ को दोपहर दो बजे के करीब प्रकट हुए थे । अनुमान लगाया गया कि २६ तारीख़ रात से २७ तारीख़ सुबह के बीच कहीं कोई घटना हुई होनी चाहिए । क्या चीन ने वातावरण में परमाणु परीक्षण कर दिया ? परन्तु नहीं , इस विकरण का प्रकार इशारा दे रहा था कि किसी परमाणु संयंत्र से यह हो रहा है । यह भी लगा कि इसका स्रोत सोवियत रूस में है ।
स्वीडन ने अमेरिका को सावधान किया । अमेरिका ने उपग्रह द्वारा निरीक्षण करने की अपनी समूची प्रणाली को काम पर लगा दिया। इससे पता चला कि रूस के कीव इलाके में परमाणु संयंत्र में दुर्घटना की संभावना है । पहले अमेरिकी वैज्ञानिक यह मान ही नहीं सके कि इतनी बड़ी दुर्घटना हो सकती है । २९ तारीख़ की भोर में फौजी जासूसी उपग्रह से उस इलाके के फोटो खीचे गए । फोटो देख कर वैज्ञानिक स्तब्ध रह गए ! परमाणु संयंत्र की छत उड़ गयी थी। धुँए से आकाश में बादल छा गए । अब छुपा कर रखने लायक कुछ शेष न था। अन्तत: रूस को भी दुर्घटना की बात कबूलनी पड़ी ।
रूस ने दुर्घटना के बाद पूरी कार्यक्षमता दिखायी । चेर्नोबिल में तैनात दमकल कर्मी , इन्जीनियर तथा डॉक्टरों ने जान जोखिम में डाल कर विकिरण की बौछार के बीच अपना फर्ज अदा किया । इनमें से अधिकतर विकिरण जनित बीमारियों के शिकार बने अथवा उनसे मारे गए ।
चेर्नोबिल के पास के कस्बे प्रिप्यात की ४५ हजार आबादी को एक हजार बसों में मात्र तीन घण्टे में हटा दिया गया । इन्हें गृहस्थी का पूरा सामान छोड़ कर जाना पड़ा क्योंकि विकिरण से दूषित हो कर वह मानव उपयोग के लायक नहीं रह गया था ।
इसके बाद संयंत्र के केन्द्र से ३०० वर्ग मील का इलाका भी खाली करा दिया गया । ९० हजार लोग हटाए गए । इस प्रकार कुल १,३५,००० लोगों को हटा कर बावन नगरों में बसाया गया ।
यह ३०० वर्ग मील का क्षेत्र मनुष्य के रहने लायक नहीं रह गया । दुर्घटना के बाद के दिनों में इस क्षेत्र में विकिरण सामान्य से ढाई हजार गुना अधिक हो गया था । हजारों एकड़ जमीन , वृक्ष विकिरण से दूषित हो गए ।
विकिरण हजारों मील दूर फ्रांस व इंग्लैंड तक भी फैला । विकिरण से दूषित साग-सब्जियां , दूध , मछलियां , मांस वगैरह नष्ट करने पड़े । इतना ही नहीं उस समय दूषित चारा अथवा दूषित भूमि पर बाद में उगे चारे को जिन पशुओं ने खाया उनके दूध में भी विकिरण का भारी असर था । योरोप के देशों में ऐसे अन्न आहार पर प्रतिबन्ध लगाया गया ।
चेर्नोबिल रिएक्टर की आग १२ दिन तक काबू में नहीं आई थी। इसके बाद पाँच हजार टन सीमेन्ट , बालू,सीसा , मट्टी , आदि ऊपर से डाल कर उसे पाटा गया । आस पास छोटी – बड़ी आग लगी रही तथा हजारों टन सीमेन्ट आदि के नीचे दबा रिएक्तर अंदर अंदर खदबदाता रहा ।
चेर्नोबिल में जो घटित हुआ , वह कहीं भी , कभी भी हो सकता है । चेर्नोबिल के बाद जर्मनी के लोगों की ज़ुबान पर एक नारा चढ़ गया था : ‘चेर्नोबिल इज़ एवरीव्हेयर !’ चेर्नोबिल यत तत्र सर्वत्र है ।