Posts Tagged ‘rajendra rajan’
कविता / तुम थे हमारे समय के राडार / राजेन्द्र राजन
Posted in globalisation, kishan patanayak, poem, politics, rajendra rajan, samajwadi janparishad, tagged राजेन्द्र राजन, सामयिक वार्ता, हिन्दी कविता, hindi, kishan pattanayak, rajendra rajan on सितम्बर 22, 2012| 2 Comments »
भोपाल-तीन : राजेन्द्र राजन
Posted in bio-terror, industralisation, intellectual imperialism, madhya pradesh, poem, rajendra rajan, tagged bhopal, gas tragedy, hindi poem, poem, rajendra rajan, supreme court judgement on जून 12, 2010| 8 Comments »
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए भोपाल गैस कांड संबंधी फैसले से हर देश प्रेमी आहत हुआ है | पचीस साल पहले राजेन्द्र राजन ने इस मसले पर कवितायें लिखी थीं , इस निर्णय के बाद यह कविता लिखी है |
भोपाल-तीन
हर चीज में घुल गया था जहर
हवा में पानी में
मिट्टी में खून में
यहां तक कि
देश के कानून में
न्याय की जड़ों में
इसीलिए जब फैसला आया
तो वह एक जहरीला फल था।
– राजेन्द्र राजन
दो कविताएं : श्रेय , चिड़िया की आंख , राजेन्द्र राजन
Posted in poem, rajendra rajan, tagged चिड़िया की आंख, राजेन्द्र राजन, श्रेय, hindi poem, rajendra rajan on फ़रवरी 26, 2009| 11 Comments »
श्रेय
पत्थर अगर तेरहवें प्रहार में टूटा
तो इसलिए टूटा
कि उस पर बारह प्रहार हो चुके थे
तेरहवां प्रहार करने वाले को मिला
पत्थर तोड़ने का सारा श्रेय
कौन जानता है
बाकी बारह प्रहार किसने किए थे ।
चिड़िया की आंख
शुरु से कहा जाता है
सिर्फ चिड़िया की आंख देखो
उसके अलावा कुछ भी नहीं
तभी तुम भेद सकोगे अपना लक्ष्य
सबके सब लक्ष्य भेदना चाहते हैं
इसलिए वे चिड़िया की आंख के सिवा
बाकी हर चीज के प्रति
अंधे होना सीख रहे हैं
इस लक्ष्यवादिता से मुझे डर लगता है
मैं चाहता हूं
लोगों को ज्यादा से ज्यादा चीजें दिखाई दें ।
– राजेन्द्र राजन
कवि राजेन्द्र राजन की कुछ अन्य ताजा प्रकाशित कवितायें :
पेड़ , जहां चुक जाते हैं शब्द , शब्द बदल जाएं तो भी , पश्चाताप , छूटा हुआ रास्ता , बामियान में बुद्ध ,
यह सिर्फ शब्दों से नहीं होगा : राजेन्द्र राजन
Posted in poem, rajendra rajan, tagged hindi poem, rajendra rajan, shabd on जुलाई 7, 2008| 6 Comments »
शब्दों में चाहे जितना सार हो
मगर बेकार है
शब्दों में चाहे जितना प्यार हो मगर बेकार है
शब्दों में चाहे जितनी करुण पुकार हो
मगर बेकार है
शब्दों में चाहे जितनी धार हो
मगर बेकार है
क्योंकि तुम्हारे सामने लोग नहीं हैं
लोगों की एक दीवार है
जिससे टकराकर
लहूलुहान हो रहे हैं तुम्हारे शब्द
पता नहीं
यह शब्दों की हार है
या बहरों का संसार
कि हर कहीं लगता है यही
कि सामने लोग नहीं हैं
लोगों की एक दीवार है
जिससे टकराकर
लहूलुहान हो रहे हैं हमारे शब्द
यह दीवार हिलनी चाहिए मित्रों,
हिलनी चाहिए
और सिर्फ शब्दों से नहीं होगा
क्या तुम्हारे पास कोई दूसरा औजार है ?
– राजेन्द्र राजन
१९९५.
राजन की ‘शब्द’ पर और कविताएं :
https://samatavadi.wordpress.com/2008/07/06/shabd3_rajendra_rajan/
शब्द , शब्द को पुकारते हैं : राजेन्द्र राजन
Posted in Uncategorized, tagged कविता, राजेन्द्र राजन, शब्द, hindi poem, rajendra rajan, shabd on जुलाई 6, 2008| 3 Comments »
जैसे बीज पुकारता है बीज को
जैसे खोज पुकारती है खोज को
जैसे राह पुकारती है राह को
शब्द, शब्द को पुकारते हैं
मैं न शब्दों को ढूंढ़ता हूं
न उन्हें गढ़ता हूं
न उन्हें चुनता हूं
न उन्हें सजाता हूं
मैं सिर्फ सुनता हूं
जब शब्द , शब्द को पुकारते हैं
और देखता हूं
शब्द आते हैं
हाथ से हाथ मिलाते
खड़े हो जाते हैं जैसे कोई दीवार हो
शत्रुओं के खिलाफ़
इस तरह मैं बचता हूं
उधार के शब्दों से .
– राजेन्द्र राजन .
१९९५.