ज्यादातर पेट्रोल पंप केन्द्र सरकार के मन्त्रालय की PSUs द्वारा संचालित हैं।
आज कल इन पंपो पर ‘कर-चोरी के खिलाफ लडाई में मेरा पैसा सुरक्षित है’ अभियान चलाया जा रहा है।इस दोगले प्रचार अभियान से आपको गुस्सा नहीं आया?
– मेरा पैसा इतना सुरक्षित है कि इसे मैं भी मनमाफिक नहीं निकाल सकता।
– मेरा पैसा इतना सुरक्षित हो गया कि मुझे स्थायी तौर पर असुरक्षित कर दिया।
-मेरा पैसा इतना सुरक्षित हो गया कि उसकी इज्जत हमारी ही नजरों में गिरा दी गई और उसका मूल्य अन्य मुद्राओं की तुलना में गिरता जा रहा है।
– अब तक कर-चोरी के खिलाफ क्या कार्रवाई हुई? CAG ने जहां अम्बानी-अडाणी की अरबों रुपयों का कर न वसूलने पर आपत्ति की है,वह भी नहीं नहीं वसूलेंगे।
– देश का पैसा चुरा कर बाहर जमा करने वालों में से जिनके नाम पनामा वाली सूची में आए उन्हें कोई सजा क्यों नहीं दी गई ? HSBC द्वारा उजागर विदेश में देश का धन जमा करने वालों को क्या सजा दी?इसमें भी इनके यार थे।
– सितंबर में खत्म हुई आय की ‘स्व-घोषणा’ में भी टैक्स चोरों को इज्जत बक्शी गयी है अथवा नहीं?
– सुप्रीम कोर्ट में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की खस्ताहाल की मुख्य वजह अम्बानी,अडाणी और वेदान्त वाले अनिल अग्रवाल जैसों की बकायेदारी को बताया गया। इस पर नोटबंदी के पहले अरुण जेटली कह चुके हैं कि सरकारी बैंकों में पैसा पंप किया जाएगा। अब जनता का पैसा हचाहच पंप हो ही रहा है। Non performing assets बढेंगे तो इन धन पशुओं को रियायत मिल जाएगी। यह आपके यारों द्वारा कर-डकैती नहीं है?
– जिन गांवों में बैंक नहीं हैं वहां पहुंच कर पैसे क्यों नहीं बदले जा रहे? क्या आपको पता है कि समाज के सबसे कमजोर तबकों के साथ उनकी गाढी कमाई की ठगी से 500 के बदले 250 तक दिए गए हैं?
Posts Tagged ‘vedanta’
कर चोरी के खिलाफ युद्ध या कर डकैतों की सुरक्षा?
Posted in तानाशाही dictatorship, capitalism, corruption, curruption, Uncategorized, tagged adani, ambani, अडाणी, अम्बानी, आर्थिक नसबन्दी, नरेन्द्र मोदी, नोटबन्दी, पनामा खाते, वेदान्त, demonetisation, economic vasectomy, HSBC, HSBC disclosure, Panama disclusure, Tax evasion, vedanta on नवम्बर 27, 2016| Leave a Comment »
NDTV पर हमले के प्रतिकार का प्रसंग पूरी तरह पवित्र नहीं हो पा रहा
Posted in तानाशाही dictatorship, capitalism, corporatisation, mining, nationalism, news, odisha, tagged censorship, coca cola, ndtv, prannoy roy, ravish, vedanta on नवम्बर 5, 2016| Leave a Comment »
आपातकाल के दौरान खबर के प्रकाशन के पहले और बाद दोनों सेन्सरशिप लागू थी। रामनाथ गोयन्का के एक्सप्रेस समूह,गुजराती के सर्वोदय आन्दोलन से जुड़े ‘भूमिपुत्र’,राजमोहन गांधी के ‘हिम्मत’ ,नारायण देसाई द्वारा संपादित ‘बुनियादी यकीन’आदि द्वारा दिखाई गई हिम्मत के अलावा जगह-जगह से ‘रणभेरी’,’चिंगारी’ जैसी स्टेन्सिल पर हस्तलिखित और साइक्लोस्टाईल्ड बुलेटिन ने इसका प्रतिवाद किया था। विलायत से स्वराज नामक बुलेटिन आती थी और बीबीसी हिन्दी भी खबरों के लिए ज्यादा सुनी जाती थी। उस दौर में संवैधानिक प्रावधान द्वारा समस्त मौलिक अधिकार निलम्बित कर दिए गए थे। ‘रणभेरी’ का संपादन-प्रकाशन इंकलाबी किस्म के समाजवादी युवा करते थे । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा इसके वितरण से इस टोली को आपत्ति नहीं थी। 1977 में आई जनता पार्टी की सरकार ने आंतरिक संकट की वजह से मौलिक अधिकार को निलंबित रखने के संवैधानिक प्रावधान को संवैधानिक संशोधन द्वारा दुरूह बना दिया। संसद के अलावा दो तिहाई राज्यों में दो-तिहाई बहुमत होने पर ही आन्तरिक संकट की वजह से आपातकाल लागू किया जा सकता है। जनता पार्टी लोकतंत्र बनाम तानाशाही के मुद्दे पर चुनी गई थी।आन्तरिक आपातकाल को दुरूह बनाने का संवैधानिक संशोधन इस सरकार का सर्वाधिक जरूरी काम था।उस सरकार को सिर्फ इस कदम के लिए भी इतिहास में याद किया जाएगा।
बहरहाल,1977 की जनता सरकार में सूचना प्रसारण मंत्रालय संघ से जुडे लालकृष्ण अडवाणी के जिम्मे था। उन्होंने आकाशवाणी और दूरदर्शन में जम कर ‘अपने’ लोगों को नौकरी दी। समय-समय पर वे अपनी जिम्मेदारी खूब निभाते हैं। कहा जाता है मंडल सिफारिशों को लगू करने के बाद विश्वनाथ प्रताप सिंह जिस राष्ट्र के नाम प्रसारण में अपना इस्तीफा दे रहे थे उसे एक विशिष्ट शत्रु-कोण से खींच कर प्रसारित किया जा रहा था। निजी उपग्रह चैनल तब नहीं थे।
मौजूदा दौर 1992 में शुरु हुई वैश्वीकरण की प्रक्रिया के बाद का दौर है। जीवन के हर क्षेत्र को नकारात्मक दिशा में ले जाने वाली प्रतिक्रांति के रूप में वैश्वीकरण को समझा जा सकता है। लाजमी तौर पर सूचना-प्रसारण का क्षेत्र भी इस प्रतिक्रांति से अछूता नहीं रहा। निजी उपग्रह चैनल भी नन्हे-मुन्ने ही सही सत्ता-केन्द्र बन गए हैं। इनसे भी सवाल पूछना होगा।नरेन्द्र मोदी की सरकार ने NDTV-इंडिया को छांट कर ,सजा देने की नियत से एक असंवैधानिक आदेश दे दिया है। सभी लोकतांत्रिक नागरिकों, समूहों और दलों को इसका तीव्रतम प्रतिवाद करना चाहिए । नागरिकों के हाथ में अब एक नया औजार इंटरनेट भी है जिस पर रोक लगाना कठिन है। आपातकाल के बाद के दौर में भी बिहार प्रेस विधेयक जैसे प्रावधानों से जब अभिव्यक्ति को बाधित करने की चेष्टा हुई थी तब उसके राष्ट्रव्यापी प्रतिकार ने उसे विफल कर दिया था।
अभिव्यक्ति के बाधित होने में नागरिक का निष्पक्ष सूचना पाने का अधिकार भी बाधित हो जाता है। मौजूदा दौर में NDTV इंडिया के लिए जारी फरमान के जरिए हर नागरिक का निष्पक्ष सूचना पाने का अधिकार बाधित हुआ है। निष्पक्ष सूचनाएं अन्य वजहों से भी बाधित होती आई हैं। उन वजहों के खिलाफ इस दौर में प्रतिकार बहुत कमजोर है। इन आन्तरिक वजहों पर भी इस मौके पर गौर करना हमें जरूरी लगता है।
हमारे देश में अमूल्य प्राकृतिक संसाधनों का भंडार है जिनकी वजह से भारतीय अर्थशास्त्र के पहले पाठ में पढाया जाता था-‘भारत एक समृद्ध देश है जिसमें गरीब बसते हैं’।संसाधनों पर हक उस दौर की राजनीति तय करती है। यह दौर उन संसाधनों को अडाणी-अम्बानी जैसे देशी और अनिल अग्रवाल और मित्तल जैसे विदेशी पूंजीपतियों को सौंपने का दौर है। मुख्यमंत्री और केंद्र में बैठे मंत्री वंदनवार सजा कर इनका स्वागत करते हैं। संसाधनों पर कब्जा जमाने के लिए कंपनियां घिनौनी करतूतें अपनाती हैं। स्थानीय समूहों द्वारा इस प्रकार के दोहन का प्रतिकार किया जाता है। सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर स्थानीय आबादी के बीच जनमत संग्रह कराया गया कि वेदांत कंपनी द्वारा नियामगिरी पर्वत से बॉक्साइट खोदा जाए अथवा नहीं। एक भी वोट इंग्लैण्ड स्टॉक एक्सचेंज में पंजीकृत वेदांत कंपनी के पक्ष में नहीं पड़ा। इसी प्रकार कोका कोला-पेप्सी कोला जैसी कंपनियों द्वारा भूगर्भ जल के दोहन से इन संयंत्रों के आस पास जल स्तर बहुत नीचे चला गया है। इंसान और पर्यावरण के विनाश द्वारा मुनाफ़ा कमाने वाली वेदान्त,कोक-पेप्सी जैसी कंपनियां निजी मीडिया प्रतिष्ठानों को भारी पैसा दे कर कार्यक्रम प्रायोजित करती हैं। इस परिस्थिति में मीडिया समूह सत्य से परे होने के लिए बाध्य हो जाते हैं।
NDTV और उसके नव उदारवादी संस्थापक प्रणोय रॉय ने अपने चैनल के साथ वेदांत और कोका कोला कंपनी से गठबंधन किए हैं।लाजमी तौर पर इन कंपनियों की करतूतों पर पर्दा डालने में NDTV के यह कार्यक्रम सहायक बन जाते हैं। वेदान्त के साथ NDTV महिलाओं पर केन्द्रित कार्यक्रम चला रहा था तथा कोका कोला के साथ स्कूलों के बारे में कार्यक्रम चला रहा था। इस प्रकार के गठबंधनों से दर्शक देश बचाने के महत्वपूर्ण आन्दोलनों की खबरों से वंचित हो जाते हैं तथा ये घिनौनी कम्पनियां अपनी करतूतों पर परदा डालने में सफल हो जाती हैं।
वेदान्त का अनिल अग्रवाल मोदी और प्रणोय रॉय के बीच पंचायत कराने की स्थिति में है अथवा नहीं,पता नहीं।
संवाद से ही रुकेगा दमन / अफ़लातून
Posted in environment, mining, tagged ओडिशा, खनन, गंधमार्दन, जन आन्दोलन, नियमगिरी, बाल्को, वेदान्त, balco, gandhamardan, mining, niyamgiri, odisha, orissa, people's movement, vedanta on अक्टूबर 19, 2010| 3 Comments »
[ भारत भर में खनिज संपदा के दोहन के लिए सरकार अब दमन पर उतारू हो गई है। मध्यप्रदेश जैसे राज्य तो इस बात पर उतर आए हैं कि प्रदेश के ऐसे जिले जहां पर पूर्णतया शांतिपूर्ण आंदोलन चल रहे हैं उन्हें भी अनावश्यक रूप से नक्सल प्रभावित घोषित कर दिया जाए। प्रस्तुत आलेख सर्वोदय भावना की प्रासंगिकता को विश्लेषित कर रहा है। का.सं.,सप्रेस ]
ओडिशा के वरिष्ठ सर्वोदयी नेता मदनमोहन साहू रोज सुबह टहलते हुए गंधमार्दन पर्वत पर स्थित नृसिंहनाथ और हरिशंकर मन्दिर पर तैनात ओडिशा मिलिटरी पुलिस के जवानों से बतियाने पहुँच जाते थे और उनसे कहते ‘यदि बाल्को कम्पनी खनन करेगी तो उसका इस इलाके की खेती पर क्या प्रभाव पड़ेगा, जानते हो?‘, ‘इस पहाड़ से निकलने वाले 22 सदा सलिला स्त्रोतों के नष्ट हो जाने पर क्या होगा?‘ तुम्हें पता है कि दिल्ली विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान के प्रोफेसर पाणिग्राही ने‘ भारत के ‘वानस्पतिक सर्वेक्षण के लिए किए गए अध्ययन में पाया था कि इस पहाड़ पर 200 से ज्यादा औषधि वनस्पतियाँ हैं?‘
मदन बाबू इसी पहाड़ के नीचे बने ‘निसर्ग-निवास‘ में अलेख पात्र जैसे गांधीजनों तथा स्वतंत्रता सेनानी के साथ रहते थे। गंधमार्दन बचाओ आन्दोलन के तहत मदन बाबू के प्रतिदिन के इस अहिंसक संवाद का यह असर पड़ा कि पहाड़ के पास से गुजरने वाले कम्पनी के वाहनों को जब महिलाएं और बच्चे रोकते थे तब भी इन जवानों ने दमनात्मक कार्रवाई नहीं की। 1987 में अपने दो बच्चों के साथ जामवती बीजरा नामक आदिवासी महिला जब कम्पनी की दर्जनों चक्कों वाली गाड़ी के सामने लेट गई तो यह आन्दोलन का चरम बिन्दु था।
इस इलाके के लोगों का मानना है कि हनुमान को इसी पहाड़ से घायल लक्ष्मण के लिए संजीवनी बूटी ले जानी थी। पहाड़ पर नृसिंहनाथ और हरिशंकर के मन्दिर हैं जिनके दर्शनार्थ पश्चिम ओडिशा और छत्तीसगढ़ से भक्त पहुंचते हैं।
यह इलाका तत्कालीन सम्बलपुर जिले में था। सार्वजनिक क्षेत्र की बाल्को कम्पनी को गंधमार्दन पर्वत से बॉक्साईट खनन की अनुमति दी गई थी। राष्ट्रीय सेवा योजना के लड़के-लड़कियां इलाके के गांवों में घर-घर जाते और ग्रामीणों के मन में प्रस्तावित बॉक्साईट खनन को लेकर जो असंतोष और भय व्याप्त था उसे समझते थे। इस पृष्ठभूमि में अगस्त 1985 में ‘गंधमार्दन सुरक्षा युवा परिषद‘ का गठन हुआ जिसके द्वारा आन्दोलन का संचालन होता था। युवा परिषद में समता संगठन और छात्र-युवा संघर्ष वाहिनी से जुडे़ तरुण थे।
देश की खनिज सम्पदा को बचाने के लिए चला यह पहला जनआन्दोलन था। गंधमार्दन पहाड़ के इलाकों में पर्यावरणीय संतुलन की सुरक्षा इसका प्राथमिक मुद्दा बना। आन्दोलन से जुडे़ समाजवादी चिन्तक किशन पटनायक ने खनन की बाबत कहा था, ‘युद्ध और आधुनिक शान-ओ-शौकत का जीवन यदि अपरिहार्य नहीं है तो बाॅक्साइट का खनन अपरिहार्य कैसे है? एल्युमिनियम के सालाना उत्पादन का कितना बड़ा हिस्सा शस्त्रास्त्रों, वायुयान और धनिकों की चका-चैंध को बढ़ाने में जाता है। यदि हम खनन को घटा कर सौंवे भाग तक ले आयेंगे तब शायद आधुनिक खनन से जुड़ी क्रूरता और चकाचैंध में कुछ कमी आ पायेगी। आदिवासी आधुनिक खनन का प्रतिकार कर रहे हैं तथा गंधमार्दन आन्दोलन में सफल भी हुए हैं। यदि वे घुटने टेक देंगे तो उनका अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा।‘
बॉक्साइट खनन और विपुल जल-स्त्रोतों का नालबद्ध नाता है। गंधमार्दन सुरक्षा हेतु गठित युवा परिषद के लिंगराज प्रधान को इलाके के एक आदिवासी किसान ने इस पहाड़ी से निकलने वाले 22 सदा सलिला स्त्रोतों के बारे में बताया था। इससे पहले उन्हें खनन से उसका सम्बन्ध पता नही था। गंधमार्दन और नियमगिरी में कई भौगोलिक समानताएं हैं। गंधमार्दन से अंग तथा सुखतेल नामक नदियां निकलती हैं जो आगे जाकर महानदी में मिल जाती हैं।
1992 में देश में उदारीकरण की नीतियों के आगाज के साथ-साथ निजी व बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को देश की बहुमूल्य खनिज सम्पदा सौंपने के लिए कानूनों में परिवर्तन किए गए। गंधमार्दन में सार्वजनिक क्षेत्र की बाल्को कम्पनी को खनन करना था। इस कम्पनी को टाटा तथा कनाड़ा की अलकान तथा अलकोआ कम्पनियों ने खरीद लिया और ओडिशा के रायगढ़ जिले के काशीपुर इलाके में इन तीनों कम्पनियों के संघ ‘उत्कल एल्युमिना‘ ने खनन की ठानी। क्षेत्रीय जनता ने वर्षों तक कम्पनी को अपने इलाके में काम करने से रोके रखा। ओडिशा के बालेश्वर जिले के बालियापाल में मिसाइल टेस्टिंग रेन्ज तथा गंधमार्दन के आन्दोलनों की सफलता से संगठित होने पर सफल होने का आत्मविश्वास लोगों में पैदा हो सका।
1997 में वेदान्त कम्पनी के साथ नियमगिरी पहाड़ पर बॉक्साइट खनन के लिए समझौता हुआ। नियमगिरी पहाड़ की रक्षा के लिए समाजवादी जनपरिषद के युवा कार्यकर्ता लिंगराज आजाद, राजकिशोर और प्रेमलाल की पहल पर ‘नियमगिरी सुरक्षा समिति‘ का गठन हुआ। वेदान्त कम्पनी ने पहली बार आन्दोलन के दमन के लिए खुलकर निजी गुंडा-वाहिनी का गठन किया। समाजवादी जनपरिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष लिंगराज प्रधान पर इन गुंड़ों ने दो बार हमला किया। लिंगराज आजाद और राजकिशोर पर भी गुंड़ों का हमला हुआ तथा वे तीन माह तक जेल में निरुद्ध भी रहे। नियमगिरी सुरक्षा समिति की पहल पर दस हजार लोगों ने एक बार मानव श्रृंखला बनाई थी। सरोज मोहंती जैसे कार्यकर्ता भी लम्बे समय तक जेल में रहे।
संघर्ष के इन प्रचलित तरीकों के अलावा दो अन्य मोर्चों पर नियमगिरी बचाने की लड़ाई लड़ी गई। गंधमार्दन बचाओ आन्दोलन के समय इन मोर्चो की आवश्यकता न थी। ये मोर्चे हैं न्यायपालिका तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर के अभियान।
केन्द्र सरकार नियमगिरी में इंग्लैंड की कम्पनी वेदान्त को खनन का निमंत्रण दे सकती है। समाजवादी जनपरिषद के नेता द्वय लिंगराज प्रधान और लिंगराज आजाद ने ऐसी किसी भी चुनौती को स्वीकार करते हुए ओड़िशा में कही भी वेदान्त द्वारा खनन न होने देने के संकल्प की घोषणा की है। महात्मा गांधी के निकट सहयोगी रहे जे.सी कुमारप्पा ने इस बात पर बल दिया था कि धातु-अयस्कों का निर्यात कतई नहीं होना चाहिए। इसका प्रतिकार भी गांधी के बताये तौर-तरीकों से ही करना होगा। (सर्वोदय प्रेस सर्विस )
‘आधुनिक तीर्थों’ के ‘पण्डा’ ?
Posted in corporatisation, globalisation , privatisation, industralisation, tagged globalisation, jindal, mittal, privatisation, public sector, vedanta on अक्टूबर 22, 2008| 8 Comments »
दुनिया के सबसे अमीर लोगों में से एक लक्ष्मीनारायण मित्तल । इन्हें इस्पात-नरेश भी कहा जाता है । भारतीय मूल का होने के कारण उन पर कई मध्यम वर्गीय भारतीय फक्र करते हैं । शायद इन मध्यम वर्गीय नागरिकों से ज्यादा फक्र हमारी सरकारों को है – इन पर और इनके जैसे अनिवासियों पर । इन विभूतियों को पद्म भूषण , पद्म विभूषण जैसे अलंकरणों से नवाजा जाना भी शुरु हो चुका है ।
इस्पात और अल्युमिनियम जैसी धातुओं के अयस्क के खनन से लेकर निर्माण की प्रक्रिया में मित्तल और अनिल अग्रवाल ( वेदान्त समूह ) दुनिया के पैमाने पर चोटी के उद्योगपति हैं ।
हमारे देश में इन अयस्कों के निर्यात और तैयार धातु विदेशों से आयातित करने को देश विरोधी मूर्खता माना जाता रहा है । जिस मुल्क में कपास पैदा करवा कर मैनचेस्टर की मिलों को बतौर कच्चा माल दिया जाता रहा हो वहाँ आम आदमी इस दोहरी लूट की प्रक्रिया का अंदाज सहज ही लगा सकता है ।
आधुनिक अर्थशास्त्र के जनक माने जाने वाले मार्शल के छात्र प्रो. जे.सी. कुमारप्पा अयस्क निर्यात को गलत मानते थे । बहरहाल , अब ओड़िशा , झारखण्ड की बॉक्साइट (अल्युमिन्यम अयस्क) तथा लौह अयस्क खदानों से मनमाने ( अनियंत्रित ) तरीके से अयस्क निकालने और देश के बाहर भेजने के अनुबंध हो रहे हैं । बिना टोका-टाकी निर्यात के लिए पारादीप में एक नया बंदरगाह तक ऐसी एक कम्पनी पोस्कों (कोरियाई) का होगा ।
मेरी पिछली बोकारो यात्रा के दौरान सार्वजनिक क्षेत्र के प्रतिष्ठित प्राधिकरण स्टील ऑथॉरिटी ऑफ़ इण्डिया (सेल) के एक वरिष्ट अधिकारी से मित्तल , अग्रवाल , जिन्दल जैसों की व्यावसायिक करतूतों के बारे में सुन कर मैं हक्का-बक्का रह गया । अपने उन मित्र के प्रति हृदय से आभार प्रकट करते हुए मैं यह पोस्ट लिख रहा हूँ ।
सेल की इस्पात – जगत में बहुत अच्छी छाप है । इस प्राधिकरण से जुड़े इंजीनियर अत्यन्त योग्य , मेहनती और समर्पित माने जाते हैं । लक्ष्मीनारायण मित्तल के दुनिया भर में फैले इस्पात साम्राज्य के आधार स्तम्भ सेल के पूर्व अधिकारी हैं । भिलाई , राउरकेला , दुर्गापुर और बोकारो जैसी हमारी इस्पात नगरियों के होटल में मित्तल के ‘मछुआरे’ डेरा डालते हैं और सार्वजनिक क्षेत्र के हमारे सर्वाधिक अनुभवी और योग्यतम इंजीनियरों पर जाल फेंकते हैं । मित्तल की मेक्सिको , चेक्स्लोवाकिया और पोलैण्ड जैसी इकाइयां ही नहीं भारत में में उसकी कारगुजारियों की जिम्मेदारी भी सेल के पूर्व अधिकारियों को हाथों में है । मसलन उसके ‘ऑडिशा-ऑपरेशन्स’ की जिम्मेदारी राउरकेला स्टील प्लान्ट के पूर्व निदेशक देखते हैं । एक अनुमान के अनुसार सेल में एक्सिक्यूटिव डाइरेक्टर के स्तर के व उससे ऊपर के २५ फीसदी अधिकारी मित्तल के चंगुल में आ जाते हैं । भविष्य में सार्वजनिक क्षेत्र का यह पूरा प्राधिकरण मित्तल के हाथों में चला जाए तो चौंकिएगा नहीं । अलबत्ता , तब इन अधिकारियों से ऊपर बिकने को तैयार बैठे मन्त्री की भूमिका गौरतलब हो जाएगी ।
अल्युमिनियम/फौलाद की इंग्लैण्ड की विशाल कम्पनी वेदान्त/स्टरलाइट के मालिक अनिल अग्रवाल ओड़िशा के कई छोटे पहाड़ों को खा जाने का ठेका नवीन पटनायक से पा चुके हैं । अनिल अग्रवाल के पिता साठ के दशक में पटना में लोहे की सरिया बेचते थे । उदारीकरण के दौर में ही यह संभव है कि एक पीढ़ी में ही अचानक इतनी दौलत इकट्ठा हो जाए । कई बार सरकारों के छोटे से फैसले से अथवा किसी जालसाजी कदम से कोई व्यक्ति राजा से रंक बन जाता है। अम्बानी , सुब्रत राय , अमर सिंह इसके उदाहरण हैं । क्या ३० – ३५ साल पहले इनमें से कोई भी टॉप टेन पूँजीपतियों में था ? उ.प्र. के पूर्व मुख्य मन्त्री वीरबहादुर सिंह की इकट्ठा दौलत का प्रबन्धन देखते-देखते अमर सिंह उनके मरने पर अमीर हो गया और उसके बेटे सड़क पर आ गए , ऐसा माना जाता है । हमारे गाँवों का गरीब सूती कपड़े पहनता था । अमेरिका में टेरलीन / टेरीकॉट सूती से सस्ता है यह जान कर तब आश्चर्य होता था । कपड़ा नीति में फेरबदल से सूती कपड़ा उद्योग से जुड़े किसान बुनकर , श्रमिक संकट में आ गये । सूती कपड़ों की जगह सिंथेटिक कपड़े गरीबों के तन पर आ गए – इससे अम्बानी देश का सबसे बड़ा औद्योगिक समूह हो गया ।
लोहे की पटरियां भिलाई में बनती हैं । १०० मीटर की पटरियां बनाने की एक परियोजना वहां शुरु हो नी थी । १०० मीटर की पटरियों से फिश प्लेट , नट , बोल्ट आदि जोड़ने के पुर्जों की आवश्यकता कम हो जाएगी , यह मकसद था । भिलाई के तकालीन प्रबन्ध निदेशक ने इस परियोजना को जानबूझकर लटकाए रखा । जब पता चला का निजी क्षेत्र की जिन्दल- समूह भी १०० मीटर की पटरियां बना रहा है तब उक्त अधिकारी से जवाब तलब किया गया । महोदय , इस्तीफा दे कर एक महीने के भीतर उक्त निजी कम्पनी में शामिल हो गये ।
देश के लिए अनिवार्य केन्द्रित बड़े उद्योग सिर्फ सार्वजनिक क्षेत्र में होने चाहिए । इन कारखानों में ठेकेदारी-प्रथा आदि भ्रष्टाचार की जड़ों पर डॉ. लोहिया करते थे । इन्हें आधुनिक तीर्थ कहने वाले नेहरू इन आलोचनाओं से सबक लेने के बजाए कम्युनिस्टों से लोहिया को गाली दिलवाते – मानों उन तीर्थों के मन्दिरों में कोई विधर्मी घुस गया हो । मन्दी के मौजूदा दौर में फिर राष्ट्रीयकरण द्वारा मदद की नौबत आ गयी है – इस प्रक्रिया को कभी आगे समझने की कोशिश होगी ।