प्रकृति और पर्यावरण को हक़ देने वाला इक्वाडोर पहला देश बन गया है । २८ सितम्बर २००८ को देश के ६८ फीसदी जनता ने मतदान द्वारा इस देश के लिए एक नया संविधान मंजूर किया है। कॉलेज अथवा विश्वविद्यालय के तीसरे साल तक की मुफ़्त शिक्षा , सबके लिए मुफ़्त चिकित्सा के अलावा नदियों , जंगल , पौधों और जानवरों को भी अधिकार मिले हैं । नये संविधान की निसर्ग सम्बन्धी एक धारा कहती है – ‘इन कुदरती संसाधनों को बने रहने , फलने – फूलने और विकसित होने का अधिकार होगा ।’ इक्वाडोर की समस्त सरकारों ,समुदायों और व्यक्तियों का यह दायित्व और अधिकार होगा कि वे प्रकृति के इन अधिकारों का लागू करें । हर व्यक्ति , समुदाय और राष्ट्रीयता के लोगों को प्रकृति के इन अधिकारों को मान्यता दिलाने की माँग करने का अधिकार होगा ।
संविधान में हुई यह तब्दीलियां किसी भावुकता से प्रेरित नहीं है । विदेशी तेल और खनन कम्पनियों द्वारा प्रदूषण और दोहन से यह मुल्क तंग रहा है । इक्वाडोर सरकार टेक्सको नामक कम्पनी द्वारा दुर्लभ जंगलों में फैलाये गये एक करोड़ ७० लाख टन पेट्रोलियम कचरे के बदले मुआवजे की लड़ाई लड़ रहा है ।
सरकार को इस बात के लिए एहतियात बरतने होंगे और ऐसी रोक लगानी होगी जिनसे जैव प्रजातियां विलुप्त होने से बचें तथा नैसर्गिक चक्रों में स्थायी तौर पर तब्दीलियां न हों । जैविक सम्पदा को नष्ट करने वाले उत्पादों पर रोक होगी ।
प्रकृति के लिए एन्डीज़ देवी ‘पाचामामा’ शब्द का प्रयोग इस संविधान में किया गया है । ‘क्षिति,जल,पावक,गगन समीरा’ – पंचभूतों से ‘पाचामामा’ का कोई नाता बनता है या नहीं ?
अच्छी जानकारी दी है आपने !
थ्योरी नही बनाना चाहिए। समय देख सही निर्णय लेने वाला शासक होना चहिए।
प्रेरक जानकारी, धन्यवाद।
thanks for this information. it is good for humanity.
चलिए कहीं तो प्रकृति को स्वीकारा गया!
वनगमन के बाद पहली बार मिलने आये अपने लघु भ्राता श्री भरत को राजनीतिक उपदेश देते हुए भगवान श्री राम ने कहा-‘जहां हाथी उत्पन्न होते हैं, वे जंगल तुम्हारे द्वारा सुरक्षित है न! तुम्हारे पास दूध देने वाली गौएं तो अधिक संख्या में है न! तुम्हें हथिनियों, घोड़ों और हाथियों के संग्रह से कभी तृप्ति तो नहीं होती न!’’
हमारे अध्यात्म दर्शन में प्रकृति के साथ जीने की शिक्षा पहले ही दी जाती रही है। चूंकि प्राचीन शिक्षा सतत प्रचलन में नहीं है इसलिये कई ऐसी चीजें नयीं लगती हैं जो वास्तव में हमारे पौराणिक ग्रथों में है। जब पूंजीपतियों ने पूरे विश्व के पर्यावरण को विषाक्त कर दिया है तब उसे सुधारने की बात हो रही है पर अगर इस पर पहले ध्यान दिया जाता तो यह बुरे हाल नहीं होते।
दीपक भारतदीप
bahut achha
rochak jaankari lekar aaye hain…
इक्वाडोर का स्वास्थ्य पर किया जा रहा प्रति व्यक्ति व्यय अमेरिका में किये जारहे प्रति व्यक्ति व्यय की तुलना में बहुत नगण्य है लेकिन इक्वाडोर के रहवासियों को स्वास्थ्य समस्यायें नही हैं.
आपकी पोस्ट से पता चला कि क्यों नहीं है.
इतनी अच्छी जानकारी देने के लिए बहुत धन्यवाद
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