अचानक इस देश में ‘ विशेष आर्थिक क्षेत्रों ‘ ( Special Economic Zones ) की बाढ़ आ गयी है। हरियाणा व पंजाब से लेकर पश्चिम बंगाल तक और गुजरात से ले कर हिमाचल प्रदेश तक नए – नए ‘ विशेष आर्थिक क्षेत्रों ‘ के प्रस्ताव स्वीकृत होने और बनने की खबरें आ रही हैं। अभी तक कुल १६४ प्रस्ताव केन्द्र सरकार द्वारा स्वीकृत किए जा चुके हैं। भारत के विकास , समृद्धि व प्रगति के नए सोपान और सबूत के रूप में इन्हें पेश किया जा रहा है। आखिर यह है क्या चीज ?
देश के निर्यात को बढ़ाने के लिए बनाए जा रहे इन क्षेत्रों की कल्पना चीन से आई है। यह चीन की राह का अनुकरण है। पहले भारत ने ‘ निर्यात प्रसंस्करण क्षेत्र ‘ बनाए थे। फिर पिछले दस वर्षों से सुविधाएं और रियायतें बढ़ाते हुए इन्हें ‘ विशेष आर्थिक क्षेत्र ‘ का नाम दिया गया। लेकिन इनमें तेजी तब आयी , जब पिछले वर्ष २००५ में देश की संसद में विशेष आर्थिक क्षेत्र बनाने के लिए विधिवत एक कानून बना दिया गया तथा ९ फरवरी २००६ को वाणिज्य मंत्रालय ने इसकी अधिसूचना जारी कर दी।
‘ विशेष आर्थिक क्षेत्र ‘ में स्थापित होने वाले निर्यात – आधारित उद्योगों को देश के करों और कानूनों से अनेक तरह की छूटें , सुविधाएं और मदद दी जाती है। इनकी परिभाषा ही यह है कि वे व्यापार करों व शुल्कों की दृष्टि से ‘ विदेशी क्षेत्र ‘ माने जाएंगे। भारत के नियम , कानून व कर वहाँ लागू नहीं होंगे। वे एक प्रकार से भारत सरकार की संप्रभुता से स्वतंत्र , स्वयम संप्रभू इलाके होंगे। यह माना जा रहा है कि अनेक विदेशी कंपनियाँ इन क्षेत्रों की ओर आकर्षित होंगी और उनके आने से भारत का निर्यात तेजी से बढ़ेगा। विदेशी पूंजी को आकर्षित करने में भारत पिछड़ता जा रहा है। चीन भारत से बहुत आगे है। इन क्षेत्रों के बनने से वह कमी भी दूर हो जाएगी। विशेष आर्थिक क्षेत्रों में करों में रियायतों की सूची लम्बी है। ये रियायतें इन क्षेत्रों में स्थापित होने वाले उद्योगों तथा क्षेत्र का विकास करने वाली कंपनियां , दोनों के लिए होगी। वस्तुओं और सेवाओं , दोनों को प्रदान करने वाली इकाइयों को छूट मिलेगी। आयकर में छूट पन्द्रह वर्ष के लिए होगी , जिसमें पाँच वर्ष तो शत – प्रतिशत छूट होगी और अगले पाँच वर्ष भी ५० प्रतिशत छूट होगी। विदेशों से मंगाए जाने वाले कच्चे माल या उपकरणों पर कोई आयात शुल्क नहीं लगेगा। देश के अन्दर से खरीदी गई चीजों पर उत्पाद शुल्क नहीं लगेगा और केन्द्रीय बिक्री कर की राशि वापस कर दी जाएगी। लाभांश वितरण कर , न्यूनतम वैकल्पिक कर , पूंजीगत लाभ कर , ब्याज पर कर , बिक्री कर , वैट आदि में भी छूट दी गई है। इन विशेष आर्थिक क्षेत्रों में सेवा कर भी माफ़ रहेगा। जिन उद्योगों में अभी विदेशी पूंजी निवेश पर सीमा है , जैसे बीमा , दूरसंचार या निर्माण , उनमें १०० प्रतिशत विदेशी शेयरधारिता की अनुमति भी दी जाएगी। लाइसेन्स आदि की झंझटों व प्रतिबन्धों से भी मुक्ति रहेगी। विशेष आर्थिक क्षेत्रों में सस्ते कर्ज की सुविधा मिलेगी , सारी अनुमतियाँ एक जगह देने की एकल – खिड़की व्यवस्था बनाई जाएगी और विभिन्न प्रकार की निगरानी के लिए भी एक ही एजेन्सी होगी। बदले में बस एक ही शर्त रहेगी कि विशेष आर्थिक क्षेत्र की इकाइयों को कुल मिलाकर शुद्ध विदेशी मुद्रा अर्जित करने वाला होना चाहिए। वे सब आयात भी कर सकती हैं , किंतु उनके निर्यात , आयात से ज्यादा होने चाहिए। राज्य सरकार के करों व शुल्कों से विशेष आर्थिक क्षेत्रों की इकाइयों को मुक्त करने के लिए हरियाणा सरकार ने तो केन्द्रीय कानून की तर्ज पर ‘ हरियाणा विशेष क्षेत्र अधिनियम , २००५ ‘ भी पास कर लिया है।
करों व नियमों में ये छूटें न केवल विशेष आर्थिक क्षेत्रों के उद्योगों को होगी , बल्कि सेवाओं और व्यापार में भी मिलेगी। जैसे सूचना तकनालॊजी में। जो विदेशी बैंक अपनी शाखा वहाँ खोलेंगे , उनके मुनाफे पर टैक्स नहीं लगेगा। कोई कंपनी वहाँ बिजली कारखाना खोलेगी , तो उसे भी कर नही देना पड़ेगा। जो कंपनियाँ या फन्ड्स वहाँ स्थित नहीं हैं , किन्तु जिन्होंने वहाँ पूंजी लगाई है , उनके ब्याज व मुनाफ़े पर भी कर नहीं लगेगा। कुल मिलाकर ‘ विशेष आर्थिक क्षेत्र ‘ एक तरह के ‘ कर – स्वर्ग ‘ होंगे , जहाँ सरकार के करों और प्रतिबन्धों से पूरी आजादी होगी।
भारत के कम से कम दो दर्जन कानून विशेष आर्थिक क्षेत्रों में लागू नहीं होंगे। वहाँ के विवादों और मुकदमों के फैसला करने वाली अदालतें भी अलग होंगी। यद्यपि भारत सरकार ने स्पष्ट किया है कि देश के श्रम , बैंकिंग और शेयर बाजार के कानून वहाँ लागू होंगे , किन्तु देर – सबेर वहाँ श्रम कानूनों में छूट दी जाएगी, यह तय है। चीन के विशेष आर्थिक क्षेत्रों में आने का यह एक प्रमुख आकर्षण था कि चीन के श्रम कानून वहाँ लागू नहीं होते थे। ये कंपनियाँ चाहे जब मजदूरों को लगा व निकाल सकें , ठेका मजदूर या चाहे जिस रूप में मजदूरों को लगा सकें और चाहे जो मजदूरी दें – ये आजादी विशेष आर्थिक क्षेत्र में उनको हो इसकी वकालत भारत में भी की जा रही है . गुजरात और महाराष्ट्र की सरकारों ने तो आसान श्रम कानूनों की योजना बनाई भी है। खबर है कि छ; राज्य सरकारों ने केन्द्रीय श्रम मंत्रालय के पास प्रस्ताव भेजा है कि इन क्षेत्रों में ‘ सरल ‘ श्रम कानूनों की अनुमति दी जाए। भारत के आर्थिक नक्शे पर चमकते हुए ये क्षेत्र मजदूरों के सबसे बुरे शोषण के क्षेत्र भी हो सकते हैं। इसी प्रकार , पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण – रोकथाम के नियमों को भी इन क्षेत्रों में ताक पर रखा जा सकता है।इस प्रकार से अब देश दो भागों में बंट जाएगा। एक ‘घरेलू शुल्क क्षेत्र ‘ जहाँ देश के कानून लागू होंगे ,दो ‘विशेष आर्थिक क्षेत्र ‘ जो देश के कानूनों , नियमों व लोकतांत्रिक प्रशासन से परे व ऊपर होंगे . [ अगली प्रविष्टी में जारी ]
बड़ी भयानक तसवीर है। शायद आम जनता तो कभी कुछ जान ही नहीं पाएगी।
अमीरों ने अपना वतन बेंच डाला.
हसीनों ने अपना वदन बेच डाला.
मगर क्या कहें इन कमीनों को हम
जिनने मुर्दा उठाया कफन बेंच डाला.
इन कफनचोरों का परिचय की ज़रूरत है नहीं न सब जानते हैं जैसे सांपनाथ वैसे नागनाथ.
ये फिर से देश को गुलामी की ओर लेजाने की साज़िश है. किसी उर्दू शायर ने जब आज़ादी मिली तब इन नेताओं की नीयत को भापते हुए आगाह किया था-
सूरत बता रही है सैयाद बागबां की.
ये लोग फ़स्लेगुल के कपड़ उतार लेंगे.
आज देश नंगा खड़ा है गरीब और गरीब हो रहे हैं अमीर और अमीर.ये सब अंग्रेजी औलादों की मेहरबानी है.
आज हम देख रहे हैं बकौले- दुष्यन्त-
इस तरह पाबन्दिए मज़हब का सदके आपके
जब से आज़ादी मिली है मुल्क में रमज़ान है
कल नुमाइश में मिला वो चीथड़े पहने हुए
मैंने पूछा नाम तो बोला की हिन्दोस्तान है.
मेरे हम खयालो मैं इस ग़म में शामिल ही नहीं बागी भी हूँ. क्या ये कमजर्फ हमारे शहीदों की कुर्बानी को यों ही जाया कर देंगे. नहीं ऐसा नहीं हो सकता.
सोने की चमक के कारण जनता/सरकार भूल जाते हैं कि ईस्ट इंडिया कंपनी ने कुछ ऐसा ही किया थ. परिणम हम सब जानते है. इसके बावजूद हम मरीचिकायें बना रहे है — शास्त्री जे सी फिलिप
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
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देखिए मजदुरो और कामदारो का भला तब ही होगा जब अधिक संख्या मे रोजगारी सृजना होगी । क्योकी ज्यादा रोजगारी का अर्थ है श्रमिको की ज्यादा मांग और ज्यादा मांग का परिणाम होगा ज्यादा वेतन । लेकिन भारत ने अनेक एसे कानुन बना रखे है, जो रोजगारी सृजना मे बाधक है । ऐसी स्थिती मे विशेष आर्थिक क्षेत्र के माध्यम से उद्यमी लोगो को उन कानुनो से उन्मुक्ति दी जाती है तो प्रकटत: तो लाभ उद्यमी का हो रहा है, लेकिन अप्रत्यक्ष रुप से मजदुर और कामदार भी लाभांवित हो रहे है । ……. इसके अलावा और कौन कौन से कानुन से छुट मिलने वाली है यह स्पष्ट हो तो ही कुछ कहा जा सकता है !!!
[…] भारत भूमि पर विदेशी टापू : ले. सुनील […]
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