Posts Tagged ‘कविता’
इस बुरे वक्त में / राजेन्द्र राजन
Posted in bio-terror, chernobyl, environment, globalisation, industralisation, rajendra rajan, tagged कविता, नोवल करोना, बुरा वक्त, राजेन्द्र राजन on अप्रैल 25, 2020| Leave a Comment »
कुंवर नारायण की तीन कविताएं (ज्ञानपीठ की घोषणा की खुशी में)
Posted in globalisation, industralisation, kunwar narayan, poem, tagged कविता, कुंवर नारायण, ज्ञानपीठ, सामयिक वार्ता, gnanpeeth, hindi, hindi poem, hindi poet, kunwar narayan on नवम्बर 23, 2008| 10 Comments »
जल्दी में
प्रियजन
मैं बहुत जल्दी में लिख रहा हूं
क्योंकि मैं बहुत जल्दी में हूं लिखने की
जिसे आप भी अगर
समझने की उतनी ही बड़ी जल्दी में नहीं हैं
तो जल्दी समझ नहीं पायेंगे
कि मैं क्यों जल्दी में हूं ।
जल्दी का जमाना है
सब जल्दी में हैं
कोई कहीं पहुंचने की जल्दी में
तो कोई कहीं लौटने की …
हर बड़ी जल्दी को
और बड़ी जल्दी में बदलने की
लाखों जल्दबाज मशीनों का
हम रोज आविष्कार कर रहे हैं
ताकि दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती हुई
हमारी जल्दियां हमें जल्दी से जल्दी
किसी ऐसी जगह पर पहुंचा दें
जहां हम हर घड़ी
जल्दी से जल्दी पहुंचने की जल्दी में हैं ।
मगर….कहां ?
यह सवाल हमें चौंकाता है
यह अचानक सवाल इस जल्दी के जमाने में
हमें पुराने जमाने की याद दिलाता है ।
किसी जल्दबाज आदमी की सोचिए
जब वह बहुत तेजी से चला जा रहा हो
-एक व्यापार की तरह-
उसे बीच में ही रोक कर पूछिए,
‘क्या होगा अगर तुम
रोक दिये गये इसी तरह
बीच ही में एक दिन
अचानक….?’
वह रुकना नहीं चाहेगा
इस अचानक बाधा पर उसकी झुंझलाहट
आपको चकित कर देगी ।
उसे जब भी धैर्य से सोचने पर बाध्य किया जायेगा
वह अधैर्य से बड़बड़ायेगा ।
‘अचानक’ को ‘जल्दी’ का दुश्मान मान
रोके जाने से घबड़ायेगा । यद्यपि
आपको आश्चर्य होगा
कि इस तरह रोके जाने के खिलाफ
उसके पास कोई तैयारी नहीं….
क्या वह नहीं होगा
क्या फिर वही होगा
जिसका हमें डर है ?
क्या वह नहीं होगा
जिसकी हमें आशा थी?
क्या हम उसी तरह बिकते रहेंगे
बाजारों में
अपनी मूर्खताओं के गुलाम?
क्या वे खरीद ले जायेंगे
हमारे बच्चों को दूर देशों में
अपना भविष्य बनवाने के लिए ?
क्या वे फिर हमसे उसी तरह
लूट ले जायेंगे हमारा सोना
हमें दिखाकर कांच के चमकते टुकडे?
और हम क्या इसी तरह
पीढी-दर-पीढी
उन्हें गर्व से दिखाते रहेंगे
अपनी प्राचीनताओं के खण्डहर
अपने मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे?
अजीब वक्त है
अजीब वक्त है –
बिना लड़े ही एक देश-का देश
स्वीकार करता चला जाता
अपनी ही तुच्छताओं की अधीनता !
कुछ तो फर्क बचता
धर्मयुद्ध और कीटयुद्ध में –
कोई तो हार जीत के नियमों में
स्वाभिमान के अर्थ को
फिर से ईजाद करता ।
– कुंवर नारायण
[ वरिष्ट कवि कुंवर नारायण की राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित ‘कोई दूसरा नहीं’ तथा ‘सामयिक वार्ता’ (अगस्त-सितंबर १९९३) से साभार ]
शब्द , शब्द को पुकारते हैं : राजेन्द्र राजन
Posted in Uncategorized, tagged कविता, राजेन्द्र राजन, शब्द, hindi poem, rajendra rajan, shabd on जुलाई 6, 2008| 3 Comments »
जैसे बीज पुकारता है बीज को
जैसे खोज पुकारती है खोज को
जैसे राह पुकारती है राह को
शब्द, शब्द को पुकारते हैं
मैं न शब्दों को ढूंढ़ता हूं
न उन्हें गढ़ता हूं
न उन्हें चुनता हूं
न उन्हें सजाता हूं
मैं सिर्फ सुनता हूं
जब शब्द , शब्द को पुकारते हैं
और देखता हूं
शब्द आते हैं
हाथ से हाथ मिलाते
खड़े हो जाते हैं जैसे कोई दीवार हो
शत्रुओं के खिलाफ़
इस तरह मैं बचता हूं
उधार के शब्दों से .
– राजेन्द्र राजन .
१९९५.