चीन में बड़े पैमाने पर धुँआधार ‘विकास’ के खिलाफ़ एक महिला की इच्छा-शक्ति के प्रदर्शन और पराक्रम ने उस देश के करोड़ों नागरिकों का ध्यान खींचा है ।
वू पिंग नामक इस महिला ने अपने घर को उस स्थान से हटाने से इनकार कर दिया है जहाँ एक दानवाकार निर्माण होना था । वू पिंग के घर पर गौर कीजिए । एक टीले पर खड़ा उसका घर चारों ओर खोद दी गयी खाइ से घिरा है । लोहिया कहते थे , ‘ जालिम कहना मत मानो , यही सिविल नाफ़रमानी है’ । वू पिंग के इस सत्याग्रह की ओर उस देश और दुनिया का ध्यान सर्वप्रथम उस देश के चिट्ठेकारों ने खींचा । अखबार वाले और टेलिविजन वाले भी पीछे-पीछे पहुँचे । मामूली से राजनैतिक निहितार्थ वाली खबरों का उस मुल्क में जो अंजाम होता है वह इस खबर के साथ भी हुआ । खबर ग़ायब कर दी गयी , जैसे गधे के सिर से सींग । वू पिंग की दृढ़ता की वजह से से ही लोग उसके घर को ‘खूँटा-घर’ कह रहे हैं । ऐसा खूँटा जिसे उखाड़ना मुशकिल हो। चीन के चिट्ठेकारों में आज भी वह व्यापक चर्चा का विषय है । बेलगाम विकास के रईस ठेकेदारों और राजनैतिक नेतृत्व के गठजोड़ के द्वारा चीन में लाखों लोगों को उजड़ने की पीड़ा से गुजरना पड़ रहा है ।
[सभी चित्र साभार : न्यू यॉर्क टाइम्स]
औद्योगिक क्षेत्रों ,गगन चुम्बी अट्टालिकाओं ,गॉल्फ़-कॉर्स आदि के निर्माण के लिए उजाड़े गये इन लोगों के द्वारा विरोध-प्रदर्शन भी होते हैं । कई बार लोगों को पीट-पीट कर उनकी जगह से उजाड़ा जाता है तो ऐसे मामले होते हैं जब लोगों को पुलिस थाने में बुलाया जाता है और लौटने पर वे पाते हैं कि उनका घरौंदा उजाड़ा जा चुका है । इस लम्बी तीखे नाक-नक्श वाली ४९ वर्षीय रेस्टोराँ चलाने वाली इस महिला में क्या था कि उसे न उजाड़ा जा सका ? शायद उसमें ध्यानाकर्षण करा पाने की खूबी थी । चीन में आजकल मीडिय़ा द्वारा किसी मसले को पकड़ लिए जाने की बाद मामला राष्ट्र की छवि का बन जाता है और प्रशासन को उससे प्रभावित होना पड़ता है ।
” मुझे दो वर्षों से अपनी वैध सम्पत्ति तक पहुँचने से रोका गया है । ” यांग्जियापिंग नामक यह इलाका नये विकास का इलाका है। शॉपिंग मॉल , चौड़ी-चौड़ी सड़कें ,एक पटरी वाली रेल जिसके प्लैटफ़ॉर्म से प्राय: सभी सुश्री वू का टापू सा दिखने वाला खूँटा-घर देखना नहीं भूलते ।
ऊपर वाले चित्र में वू पिंग उस खुदे कन्स्ट्रक्शन साइट के बाहर बने लोहे के फाटक के सामने खड़ी है जो उसे अपने घर तक पहुँचने से रोकता है । जैसे ही इस जगह पर वू पहुँचती है, भीड़ जुटनी शुरु हो जाती है । मैले कपड़ों , और चिचुके गाले वाले श्रमिकों की यह भीड़ वू को अचरज से ताकती है । इनमें से कई अपने उजाड़े जाने की कहानी सुनाते हैं।फाटक के भीतर से सरकारी टेलिविजन वाले यह सब अपने कैमरे में कैद कर रहे हैं।’अगर ये कोई साधारण महिला होती तो गुण्डों के बल पर उसका घर भी तोड़ दिया जाता ।साधारण लोग इन लोगों से टकराने की हिम्मत नहीं करते ।’ वू अपने भाई के साथ भीड़ के बीच खड़ी थी। उसका भाई घोषणा करता है कि वू का पति जो मार्शल आर्ट का स्थानीय चैम्पियन है और जिसे उसी दिन शाम को एक लोकप्रिय प्रतियोगिता में भी भाग लेना है, आज उस मकान पर जायेगा और झन्डा फहरायेगा ।
कुछ देर बाद एक बैनर वहाँ टँगा हुआ दिखाइ पड़ता है,राष्ट्रीय ध्वज के साथ । उस पर लिखा है- ” नागरिकों की वैध सम्पत्ति पर अतिक्रमण अनुचित है ।” वू के भाई से लोगों ने पूछा कि उसका बहनोई वहाँ तक पहुँचा कैसे? उसने आँख मारी और कहा , ‘ जादू से’ ।
( प्रस्तुति हॉवर्ड फ़्रेन्च के आलेख के आधार पर )
वू के फ़ौलादी इरादे देख कर मन उनके संघर्ष के प्रति श्रद्धा से भर उठा . विकास के उन्मादियों के प्रति नफ़रत भी कुछ और बढ़ गई . ऐसा कैसा विकास जो मनुष्य को मनुष्य न समझे . वू का घर मनुष्य के अदम्य साहस और उसके संकल्प की पताका है . मानवता ऐसे ही खूंटों पर टिकी है जैसे खूंटे पर वू का घर टिका है .
वाह ! इस फौलादी इरादे और प्रतिरोध की चिन्गारी को नमन।
वाह क्या हिम्मत है।
Is samaachaar kee jyadaa tehkeekat karne se hee un kaarno ka pataa chalegaa jiski wajah se unka ghar ab bhee bachaa hai. Cheen kee kroor vyavasthaa me yeh ek ajooba khabar hai. Satyaagrah me aasthaa rakhne walon ke liye ye tehkeekaat nihaayat jarooree hai.
internet aur Blog kee takneek aise prayogon ka tej prachaar kar rahee hai. Nai Takneekon ke samarthan me yeh baat jaatee hai.
वू की हिम्मत की दाद देनी होगी. जबरदस्त और अदम्य इच्छाशक्ति-नमन. अब यह राष्ट्र के चहुमुखी विकास के लिये बाधक है या क्या हटाने का मुआवजा पूरा दिया जा रहा है -शोध किया जाना चाहिये. क्रुरता का विरोध तो खैर हर हालत में होना ही चाहिये.
यह समाचार चित्रों के साथ हमें दिखाने के लिए धन्यवाद । क्या सही है क्या गलत और असल मसला क्या है जानना काठिन है । विकास भी आवश्यक है और मानवाधिकार भी । इनके बीच तालमेल बैठाना पतली रस्सी पर चलने जैसा है, किन्तु कोई न कोई उपाय तो ढूँढना ही होगा जो सबको मान्य हो । खैर इस साहसी महिला को मेरा हार्दिक अभिनन्दन ।
घुघूती बासूती
क्या शानदार औरत होगी भई ये वू पिंग.. अकेले इतने बड़े शासन तंत्र से लोहा ले लिया.. तस्वीरें भी कमाल की हैं.. और लिखा भी अपने रस ले के.. अद्भुत रस का संचार हुआ.. धन्यवाद..
दुनिया भर के वू पिंग एक होओ!
Its unbelievable! One needs to know how she has been able to resist and how come the oppressive State machinary has not put her behind bars or finished her life in so called encounter which often happens in our democratic country. Nandigram is the latest in the series.
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