एक भारतीय – मूल के अमरीकी नागरिक ने गांधीजी पर एक ‘व्यंग्य – विडियो ‘ बना कर यू-ट्यूब पर डाल दिया । भारत के कम – से – कम दो टेलिविजन चैनलों ने इस वीडियो को भरपूर दिखाया । इस सन्दर्भ में केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री श्री प्रियरंजन दासमुंशी ने कहा है कि सरकार यू-ट्यूब के जाल-स्थल पर रोक लगाने पर विचार कर रही है ।
यह गौरतलब है कि पिछले साल चन्द ‘विद्वेष फैलाने वाली ‘ और ‘ राष्ट्र-विरोधी ‘ चिट्ठों पर रोक लगाने की मंशा से ब्लॊगर के स्थल को ही कुछ समय के लिए रोक दिया गया था । हाँलाकि , चिट्ठेबाजों ने चन्द ‘उपायों’ और ‘जुगाड़ों’ द्वारा इस रोक को बेमानी कर दिया था ।
सूचना की दृष्टि से ‘ खुले विश्व ‘ के दरवाजो को पुन: बन्द करने की कोशिश होगी यदि समूचे यू-ट्यूब जाल-स्थल पर ही भारत सरकार रोक लगा देगी ।
इस प्रकरण को प्रेस की आज़ादी से जुड़ा माना जाना चाहिए । १२ जनवरी , १९२२ के ‘ यंग इन्डिया ‘ (पृष्ट २९ )में गांधीजी ने प्रेस की आज़ादी पर अपने विचार बहुत साफ़गोई से रखे हैं । संजाल के हिन्दी पाठकों का यह दुर्भाग्य है कि प्रकाशन विभाग , भारत सरकार द्वारा ‘ सम्पूर्ण गांधी वांग्मय ‘( हिन्दी में ) संजाल पर उपलब्ध नहीं कराया गया है । भारत सरकार ने अपनी प्राथमिकता का इज़हार करते हुए अंग्रेजी में इसे संजाल पर प्रस्तुत किया है ।
ब्रिटिश सरकार उस दौर में यह दावा कर रही थी कि उसके द्वारा लागू ‘ सुधार ‘ जन-भावना को रियायत देने वाले तथा ‘अधिक आज़ादी देने वाले ‘ हैं । गांधीजी अपने लेख में बताते हैं कि विपत्ति की परिस्थिति में कैसे सरकारी दावे एक-एक करके खोखले साबित होते जा रहे हैं । इस लेख में गांधीजी कहते हैं कि , ‘वाणी-स्वातंत्र्य का मतलब है कि वह अनाक्रमणीय है ,भले वाणी चोट पहुँचाने वाली हो ; प्रेस की आज़ादी की सही कद्र तब ही मानी जाएगी जब प्रेस को कड़े – से – कड़े शब्दों में टिप्पणी करने और मामलों को ग़लत तरीके से पेश करने की भी छूट हो ।मामलों को ग़लत तरीके से पेश करने पर प्रशासन द्वारा मुँह पर ताला लगाने के मक़सद से प्रेस को बन्द कराने से संरक्षण हो,प्रेस को खुला रखा जाय ,मुजरिम को सज़ा दी जाय ।’
जिन अखबारों पर सरकार दण्ड लगाती थी और छापेखाने पर ताला लगा देती थी उसके जवाब में हाथ से लिखे अखबार निकालने की ‘ वीरोचित ‘ सलाह गांधीजी देते थे । सम्पादकों से उनका कहना था कि , ‘ जब तक उनके पास ‘कहने लायक कुछ’ और एक निश्चित पाठक-वर्ग मौजूद है तब तक उसे आसानी से दबाया नहीं जा सकता है , जब तक उनका शरीर मुक्त है । सम्पादक की कैद उसका आखिरी सन्देश हो जाता है । ‘
४ अप्रैल , १९२९ के ‘ यंग इंडिया ‘ में गांधीजी मराठी अखबार ‘ नवाकाळ ‘ के सम्पादक श्रीयुत खाडिलकर का हवाला देते हैं,’ जिन्हें अपनी साहसिक पत्रकारिता के फलस्वरूप थोपे गये अर्थ दण्ड भरने के लिए राशि जुटाने के लिए नाटक लिखने पड़ते थे’ ।
आपसे हमारी अपील है कि सस्ती लोकप्रियता पाने के लिए अभिव्यक्ति की आज़ादी से छेड़-छाड़ की कोशिश न करें । गांधी का सन्देश इतना कमजोर नहीं है कि ऐसे विकृत व्यंग्य से डगमगा जाए । गांधी की बाबत जो काम सूचना एवं प्रसारण मंत्री को तत्काल करना चाहिए, वह है हिन्दी में ‘सम्पूर्ण गांधी वांग्मय ‘ को संजाल पर तत्काल पेश करना ।
[ इस सन्दर्भ में सम्बन्धित मंत्री को सम्बोधित याचिका पर आप भी अपनी सहमति और दस्तखत दे सकते हैं,यहाँ ]
“प्रसारण मंत्री को तत्काल करना चाहिए, वह है हिन्दी में‘सम्पूर्ण गांधी वांग्मय’ को संजाल पर तत्काल पेश करना”
आप सरकार से गलत उम्मिद कर रहें है. और अगर उन्होने कर भी दिया तो क्या पता वह युनिकोड़ में होगा भी की नहीं.
सही कहा जी, इन लोगों को इन्टरनेट की कुछ समझ तो है नहीं। बस सस्ती लोकप्रियता पाने की राह तलाशते हैं। यूट्यूब के भारत में इतने प्रयोगकर्ता हैं। इस पर प्रतिबंध लगाना किसी भी तरह से उचित नहीं। फिर यूट्यूब पर प्रतिबंध लगाने से वह वीडियो साइट से तो हट नहीं जाएगा।
[…] इन्टरनेट पर गांधी […]
[…] इन्टरनेट पर गांधी […]
हाँ, हिन्दी में तो नहीं लेकिन अंग्रेजी में सब कुछ उपलब्ध है। हिन्दी में ‘हिन्द स्वराज’ और उनकी आत्मकथा भी उपलब्ध है। मैंने हिन्दी के वांगमय पर बात की थी तो जवाब आया था कि एक सीडी की कीमत है 100 रूपये, वह भेज दी जाएगी जिसमें सारे खंड हैम उस वांगमय के। अब सोचिए कि जब एक सीडी में सारे खंड आ सकते हैं, तब संजाल पर डालने में क्या कष्ट है। वैसे मैं सवाल और वह उत्तर जो मुझे आया था, यहाँ डाल रहा हूँ।–
Sent: Monday, May 30, 2011 3:04 AM
To: info@mkgandhi.org
Subject: jankari
गाँधी जी की किताबें भी क्यों अंग्रेजी में डाउनलोड करने के लिए उपलब्ध हैं और हिन्दी में नहीं। अंग्रेजी में complete works मुफ़्त में और हिन्दी में अभी तक कुछ पता नहीं।
प्रचार करना है तो किताबें आदि मुफ़्त में मिलनी चाहियें कम से कम इंटरनेट पर।
गाँधी जी हिन्दी के पक्षधर थे लेकिन आज भी उनके नाम पर नौटंकी ही चल रही है। आपलोग आज तक हिन्दी में संपूर्ण वांगमय आदि उपलब्ध नहीं करा पाए। लेकिन अंग्रेजी में सारे के सारे हैं। इसका मतलब तो यही निकाला जाय कि हिन्दी जाननेवाला और गरीब आदमी गाँधी जी को नहीं पढ़े। सौ खंड खरीद कर पढ़ना आसान नहीं है। ध्यान दें।
चंदन कुमार मिश्र
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अब उनका जवाब
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Dear brother Chandanbhai,
Greetings.
Received your email.
CD of ‘Collected Works of Mahatma Gandhi’ is available with us in HINDI. We can provide it at the cost of Rs. 100/- to you.
We have a Gandhi website in Hindi http://www.hindi.mkgandhi.org. You may visit it for hindi articles.
But we are hardly getting 10 visitors in a week for hindi website while 400 visitors per day for English website http://www.mkgandhi.org. It’s a fact.
With warm regards, peace and love,
TRK Somaiya
Bombay Sarvodaya Mandal / Gandhi Book Centre
299, Tardeo Road, Nana Chowk,
Mumbai – 400 007 India.
Tel: 22 23872061 / 23884527
Email: info@mkgandhi.org
Website: http://www.mkgandhi.org
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आगे मैंने लिखा
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फिर यह जवाब आया था कि कैसे वह सीडी मिलेगी। तो कोई महाशय मंगाकर इसे संजाल पर डाले देने का कष्ट करें। क्योंकि एक सीडी को अपलोड करना मेरे यहाँ और इतनी कम गति पर असम्भव सा है फिलहाल।
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Dear brother Chandan,
Greetings.
Kindly deposit Rs. 100/- directly in our Bank of India S/B Ac. no. 003610100027458 in the name of ‘Bombay Sarvodaya Mandal’ (IFSC Code: BKID0000036) and let us know by email. We will send the CD as soon as we receive the payment.
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यही बातें हैं।
गलत जगह खटखटाया ,आपने , चन्दन भाई । मैं प्रकाशन विभाग द्वारा छापी गई पुस्तक और CD की बात कर रहा हूं। सोमैय्या पुस्तक विक्रेता है,प्रकाशक नहीं । यदि वे प्रकाशन विभाग द्वारा जारी CD अभी भी बेच रहे हैं तो सरकार के निर्णय का उल्लंघन कर रहे हैं। उन्हें बताइए कि नारायण देसाई की अध्यक्षता वाली समिति ने निर्णय लिया है कि राजग सरकार द्वारा संशोधित वांग्मय की CD बाजार से वापस ले ली जाएगी तथा पुन: असम्पादित रूप में जारी की जाएगी ।
मुझे पता नहीं था… आपने बताया भी नहीं। वह तो मैं यहाँ आ गया, इसलिए पता भी चल गया।