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चिट्ठाकारी से जुड़े पत्रकार , छात्र , गृहणियाँ ,व्यवसायी ,अध्यापक और गीक १४ जुलाई ,’०७ को दिल्ली में मिले । इस माध्यम से जुड़े इन विविध पृष्टभूमि के लोगों की बातचीत में भी विविधता थी लेकिन एक अन्तर्धारा सभी को जोड़ रही थी । रचनात्मक अभिव्यक्ति के माध्यम से प्राप्त आत्म-तुष्टि के साथ सबने विचार रखे और सुने ।
संजाल का कोई मालिक कोई व्यक्ति,सरकार, कम्पनी या समूह नहीं है ।इससे जुड़े व्यवसाय में भले ही दानवाकार कम्पनियाँ मौजूद हों ।टेलिफोन कम्पनियाँ ,इन्टरनेट पर सेवाएँ देने वाली कम्पनियाँ और इन्टरनेट के सेवा देने वाली कम्पनियाँ । इन्टरनेट पर कम्पनियों के नियंत्रण का प्रयास पूँजीवाद के झण्डाबरदार देश अमेरिका में भी सफल नहीं हो सका है । ऐसी साजिशों के खिलाफ़ अभियान काफ़ी व्यापक और तीव्र रहे हैं और संसद और अमरीकी संसद के निर्णय को प्रभावित करने में भी वे सफल रहे हैं ।
इस माध्यम से जुड़ा कोई भी तंत्र लोकमत की उपेक्षा करे यह मुमकिन नहीं है ।तंत्र से जुड़े प्रबन्धक लिंकन की प्रसिद्ध उक्ति पर ध्यान न दें , तब ?
” आप लोकतंत्र में कुछ लोगों को हमेशा के लिए मूर्ख बना सकते हैं , सभी लोगों को कुछ समय के लिए मूर्ख बना सकते हैं परन्तु सभी लोगों को हमेशा के लिए मूर्ख नहीं बना सकते हैं । “
हिन्दी चिट्ठेकारी से जुड़े जिन लोगों का जमावड़ा १४ जुलाई को दिल्ली में हुआ उन सब की बातों से यह यक़ीन जरूर पुख़्ता हुआ कि इस जमात को हमेशा के लिए मूर्ख बना कर रखना असम्भव है ।
स्फुट झलकियाँ ( जिन से मैं प्रभावित हुआ )
‘कैफ़े कॉफ़ी डे’ में कॉफ़ी का बिल चुकाया जा चुका था । अमित गुप्ता को कवयित्री रचना सिंह ने अपना सहयोग देना चाहा तब अमित ने कहा कि ‘ महिलाओं से हम पहले आर्थिक सहयोग नहीं लेना चाहते।’ रचनाजी द्वारा इस विभेदकारी रवैए पर गम्भीर आपत्ति जताने के बाद अमित ने पैसे लिए।
प्रतिष्ठित चिट्ठाकार घुघूती बासूती ने चिट्ठेकारी से जुड़े मन्दकों-प्रबन्धकों से उम्मीद की कि वे ज्यादा सहनशील ,उदार और धैर्यवान बनें।
स्तंभकार आलोक पुराणिक ने घोषणा की कि वे पाँच लाख पाठक पाने के लक्ष्य के साथ चिट्ठाकारी कर रहे हैं । अमर-उजाला के वित्तीय दैनिक ‘कारोबार’ के जमाने में सलाहकार-सम्पादक के रूप में उनका घोषित लक्ष्य था सालाना एक करोड़ रुपए कमाना । चिट्ठेकारी के बारे में उनके खुले बाजार की थीसिस का प्रतिवाद में ‘कॉफ़ी-हाउस’ के भुपेन ने उनसे पूछा कि क्या वे सहकारी प्रयासों को इस खाके में में शामिल करेंगे? आलोकजी ने इस संशोधन पर अनापत्ति प्रकट की।
लगता है सृजन-शिल्पी अपनी नौकरी में सोमनाथ चटर्जी और शेखावत के सदन संचालन को बहुत गौर से देखते हैं ।शिष्टतापूर्ण आग्रह से चुप कराने के उनके औपचारिक वचनों में सोमनाथजी और शेखावतजी की झलक देखी जा सकती थी ।
उत्तर-आधुनिकता के दौर में प्रचलित ‘यदि उन्हें परास्त न कर सको तो उनके साथ शामिल हो जाओ’ सिद्धान्त को भी उन्होंने आत्मसात कर लिया है। उनकी धार्मिक भावनाओं के आहत मन ने नारद-संचालन पर व्यापक प्रश्न उठाये थे, उनका उत्तर मिला हो तो उसकी सार्वजनिक सूचना नहीं हुई।फिलहाल, ‘नारद-पत्रिका’ के वे सम्पादक हैं ।
सुनीता शानू की कम्पनी की निर्यात-श्रेणी की चाय की मसिजीवी ने तहे -दिल से प्रशंसा की।
“कुछ ही पलों में पोस्ट एग्रीगेटर पर’ के सन्दर्भ में वरिष्ट चिट्ठेकार जगदीश भाटिया ने मौजू राय व्यक्त की – ” क्या हम इतनी अल्पावधि की प्रासंगिकता वाला लेखन कर रहे हैं ?”
नीरज दीवान ने मराठी विकीपीडिया की प्रशंसा की तथा हिन्दी विकीपीडिया की विपन्नता पर चिन्ता व्यक्त की ।
अविनाश ने चिट्ठों पर प्रस्तुत सामग्री की गुणवत्ता की तकनीकी उपायों की तुलना में अधिक अहमियत पर जोर दिया ।
इस बातचीत के मेजबान ‘हिन्दी गियर’ और ब्लॉग वाणी के मैथिली गुप्त ने बहुत शिद्दत से कहा कि नेट पर हिन्दी-हित में व्यक्ति भी बड़े योगदान दे सकता है।(यह जरूरी नहीं कि ऐसे योगदान सामूहिक ही हों।)
इन्जीनियरिंग के छात्र रहे शैलेश भारतवासी के हिन्दी चिट्ठेकारी के प्रचार-प्रसार के प्रयासों की प्रशंसा हुई । फैजाबाद-इलाहाबाद में उन्होंने हाल ही में दौरा किया है ।
इलाहाबाद में उनके साथ हुई बैठक की पूर्व-सूचना चिट्ठों पर दी गई थी ।इलाहाबाद-वासी चिट्ठेकारों को भी ई-मेल पर सूचना दी गई थी। चिट्ठाकारों में सिर्फ प्रमेन्द्र पहुँचे और शैलेश ने वहाँ पहुँचे तरुणों को हिन्दी चिट्ठेकारी के बारे में बताया ।
एक बार प्रबन्धशास्त्र के प्राध्यापक ‘भारतीयम’ के अरविन्द चतुर्वेदी को बाजार में हिन्दी टाइपिंग की सुविधा नहीं मिली।संजाल पर खोज-खोज कर उन्होंने हिन्दी टंकण के औजार अपने कम्प्यूटर पर डाले और तब से हिन्दी में काम शुरु कर दिया ।
अच्छी स्फुट झलकियां हैं..
‘कैफ़े कॉफ़ी डे’ में कॉफ़ी का बिल चुकाया जा चुका था । अमित गुप्ता को कवयित्री रचना सिंह ने अपना सहयोग देना चाहा तब अमित ने कहा कि ‘ महिलाओं से हम पहले आर्थिक सहयोग नहीं लेना चाहते।’ रचनाजी द्वारा इस विभेदकारी रवैए पर गम्भीर आपत्ति जताने के बाद अमित ने पैसे लिए।
you have posted it in the right context thanks
कैफ़े कॉफ़ी डे’ में कॉफ़ी का बिल चुकाया जा चुका था । अमित गुप्ता को कवयित्री रचना सिंह ने अपना सहयोग देना चाहा तब अमित ने कहा कि ‘ महिलाओं से हम पहले आर्थिक सहयोग नहीं लेना चाहते।’ रचनाजी द्वारा इस विभेदकारी रवैए पर गम्भीर आपत्ति जताने के बाद अमित ने पैसे लिए।
you have posted it in the right context thanks
and it was a nice feeling to have met you i hope you will be gracious enogh to read few of my works and comment on the same
आपको अपना भी लिख देना चाहिए था। वो स्वयम् की प्रशंसा कहलता कहीं इस डर से तो नहीं 🙂
सही है, तिनका तिनका जुड़ कर घरौंदा बन रहा है.
अच्छी शुरुआत विस्तृत रिपोर्ट की प्रतिक्षा है..:)
अफलातूनजी
आपने लिखा है-
अमर-उजाला के वित्तीय दैनिक ‘कारोबार’ के जमाने में सलाहकार-सम्पादक के रूप में उनका (आलोक पुराणिक)घोषित लक्ष्य था सालाना एक करोड़ रुपए कमाना
मुझे याद नहीं पड़ता कि मैं ऐसी घोषणा कभी की थी।
अपन तो इसके आधे में भी राजी हैं, और सालाना नहीं, दस साल में भी हो जाये इतना तो, चलेगा।
हां, पांच लाख पाठक आज से दस साल बाद आलोक पुराणिक के चिट्ठे पर आयें, ऐसा लक्ष्य है। आप शुभकामनाएं दें, ऐसी कामना है।
सादर
आलोक पुराणिक
अच्छा लगा यह चिट्ठों का चित्रहार .
तत्व-तत्व सब आपने चुन कर डाल ही दिया है. अब आपकी एक लम्बी समीक्षात्मक टिप्पणी का इन्तजार है .
जानकारी का एक नया दृष्टिकोण, नया नज़रिया.
जी हां, इस नज़रिये के साथ रिपोर्ट अब पूरी मानी जा सकती है.
” साधुवाद”
स्फुट झलकियाँ अच्छी लगीं, लेकिन मेरे संबंध में की गई टिप्पणियों में कुछ तत्व नजर नहीं आया।
सांकेतिक रूप से इससे मेरे कार्यस्थल की सूचना सार्वजनिक होती है, जिसे मेरी सहमति से ही उजागर किया जाना चाहिए था।
मेरे बारे में ऐसी टिप्पणी करने से पहले मुझे जान तो लीजिए। यदि आप अंतर्यामी हैं तो इस मामले में इतने गलत क्यों हैं?
मेरी धार्मिक भावनाएं आहत नहीं होतीं। मेरी आपत्ति क़ानूनी और नारद की नियमावली के तहत थी। नारद के प्रबंधकों द्वारा मेरी आपत्तियों के संबंध में सार्वजनिक रूप से ही उत्तर दिए गए। उनसे मैं सहमत नहीं हो सका। नारद से मेरे चिट्ठे की फीड हटाए जाने संबंधी अनुरोध अब भी उनके कर्णधारों के पास पेंडिंग है, कोई जवाब नहीं आया है। यदि आएगा और मुझे जरूरी लगेगा तो सार्वजनिक भी करूंगा।
इधर कुछ समय से मैं चिट्ठाकारी से एक दूरी बनाकर चल रहा हूँ। पिछले दो महीने में केवल तीन पोस्टें लिखी हैं। चिट्ठा जगत के किसी गुट में मैं शामिल नहीं हूं और न होना चाहता हूं। जो बात मुझे ठीक नहीं लगी और मेरे से संबंधित थी, उस पर मैंने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की। लेकिन यहां के विवादों में उलझकर अपना समय बर्बाद करना मुझे पसंद नहीं। मेरे पास करने को बहुत काम हैं। अपने चिट्ठे पर अपना परिचय” देते हुए मैंने स्पष्ट कर रखा है कि मेरी “किसी वाद, विचारधारा अथवा राजनीति के साथ कोई संबद्धता नहीं”
यह एक प्रस्तावित पत्रिका है, इस पर चर्चा चल रही है, चर्चा में मैं शामिल हूं या यों कहिए कि इस चर्चा में फिलहाल मैं सूत्रधार की भूमिका निभा रहा हूं। इस प्रोजेक्ट के आइडिया पर हमलोग पिछले एक वर्ष से समय-समय पर विचार कर रहे थे, लेकिन यह अभी तक शुरू नहीं हो सका है। नारद संबंधी इधर के विवादों से इसका कोई लेना-देना नहीं है। नारद एग्रीगेटर और उसकी टीम से भी इस पत्रिका और उसकी टीम का कोई संबंध नहीं है। इसका संचालन चिट्ठाकारों की एक टीम द्वारा किया जा रहा है और इसमें मेरी भूमिका संपादक के रूप में नहीं है।
झलकियों में झलकन है, बधाई. 🙂
बहुत बढिया जानकारी दी भाई साहब आपने ।
अफलातून जी आप से मिलकर बहुत अच्छा लगा …. आपके नाम कि ही तरह …. दमदार शक्सियत के मलिक हैं आप…. रचना जी वाला एपिसोड शर्मनाक था ….
ये तो अच्छे नोट्स हैं । आप जो भी करते हैं लीक से हटकर करते हैं ।
अफ़लातून जी आपसे मिल कर हमे बेहद खुशी हुई…हम चाहते है की सभी ब्लागर्स को हम अपनी तरफ़ से एक बार चाय जरूर पिलायें,..देखते है कब माँ भगवती का फ़रमान होता है और आप सब का हमारे यहाँ आगमन होता है…
आपकी रिपोर्ट अच्छी लगी…
सुनीता(शानू)
थोड़े में बहुत कुछ बता दिया आपने, अच्छा लगा।
भाई अफ़लातून जी परिचर्चा की महफिल का एक मंदक मैं भी हूँ और इस संबंध में घुघूति बासुती जी ने जो कहा है उसके बारे में विस्तार से जानना चाहूँगा कि किन अर्थों में उन्होंने सहनशील ,उदार और धैर्यवान बनने की सलाह दी है। क्या उन्होंने इस संबंध में कुछ उदहारण, सुझाव दिये ख़ासकर महफ़िल के मद्देनजर ?
आपकी रिपोर्ट रोचक है.जब इस चिट्ठाकार मिलन (लोग मीट के चक्कर में मिलन को भूल गये) में शामिल होने का मन बनाया था तो जिन लोगों से मिलने की इच्छा थी उनमे आपका भी नाम था.नये जमाने के कॉफी हाउस में आप और हम कुर्सियों के दो ध्रुवों पर थे.दूसरे मिलन स्थल तक जाने के रास्ते में आपके कुछ अनुभव रेल यात्रा पर सुने. वहां पहुंचकर मुझे जल्दी निकलना पड़ा इसलिये ज्यादा बात नहीं हो पायी.कभी आपसे फुरसत से मिलने की इच्छा है.
@ मनीष जी , घुघूती बासूती ने ‘परिचर्चा’ पर ‘ज्वलन्त मुद्दे’ नामक स्तम्भ के उदाहरण दिए थे ,महफ़िल का कोई उदाहरण नहीं दिया था । ‘ज्वलन्त मुद्दों’ के अन्तर्गत ‘अहमदाबाद में प्रेमी-युगलों की पिटाई’ पर चल रही चर्चा को अचानक रोके जाने को मिसाल के तौर पर गिनाया था।स्थगन-पूर्व की वह चर्चा ‘परिचर्चा’ पर मौजूद है। बहस बन्द करने के प्रतिवाद में हुई चर्चा मेल पर हुई थी।
@ आदरणीय आलोकजी , ‘कारोबार’ के जमाने का जो उल्लेख मैंने किया है ,वह आप भूल गये हैं।मेरे स्रोत को आप न भूले होंगे ,उम्मीद करता हूँ।आप चाहें तो मेल द्वारा बनारस से ‘कारोबार’ में गए बच्चों की सूची भेज सकता हूँ।
आप के साथ हमारी शुभकामना तो रहेगी ही । एक फ़ीसदी चन्दे के रूप में दें,यह माँग भी ।
@ रचना जी , मैं आपकी रचनायें पढ़ता हूँ और कुछ में टिप्पणियाँ भी की हैं।
@ प्रिय चिट्ठेकार सृजनजी , आपकी टिप्पणी से आपका पक्ष भी यहाँ आ गया है।
अ-रपट पसन्द करने वाले सभी साथियों का आभार।
भई वाह, आपने तो यहाँ वहाँ से बहुत सारे कमेंट्स एकत्रित कर लिये. कहीं आप भी नया एग्रीगेटर बनाने की तो नहीं सोच रहे हैं? 🙂
एक वस्तुनिष्ट रपट के लिये शुक्रिया
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