[ ‘ भारतमाता की जय ‘ का नारा लगा कर कुछ माह पहले ओड़िशा में एक नन का बलात्कार किया गया था । मंगलूर में भी यही नारा लगाने के बाद स्त्रियों के साथ अभद्र आचरण किया गया , उन्हें मारा – पीटा गया । ओड़िशा और मंगलूर से जुड़े सिपाहियों की बुजदिली का इतिहास है । राष्ट्रीय आन्दोलन के दरमियान लाखों लोग जब लाठी – गोली खाते थे , जेल जाते थे और ‘ भारत माता की जय’ का घोष करते थे तब यह बुजदिल वाइसरॉय की कार्यकारिणी में शामिल होते थे और जब देश के मजदूर-किसान-औरतें ‘ अंग्रेजों भारत छोड़ो ‘ के लिए ‘करो या मरो’ के भाव से कुर्बानी दे रहे थे तब इनके द्वारा अंग्रेजों की सेना में भर्ती हो कर सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त करने की अपील की जा रही थी ।
राष्ट्रीय आन्दोलन के एक प्रमुख नेता द्वारा ‘भारतमाता की जय’ कैसे समझाया गया यह १६ सितम्बर , १९३६ को लिखे उनके इस लेख में दिया गया है । लेखक का अनुमान पाठक लगाएंगे ? ]
सभा और जुलूसों के मारे हम दिन भर परेशान रहे । अम्बाला से चलकर करनाल पहुंचे । वहां से पानीपत फिर सोनीपत और अन्त में रोहतक । खूब जोश और भीड़ – भाड़ रही और आखिरकार पंजाब का दौरा खत्म हुआ । एक शान्ति की भावना मेरे भीतर उठी । कितना बोझ सिर पर था और कितनी थकान थी ! अब तो ऐसे लम्बे आराम की जरूरत थी जिसमें जल्दी ही कोई विघ्न – बाधा आकर न पड़े ।
रात हो गयी थी । हम तेजी से रोहतक – दिल्ली रोड की ओर बढ़े ; क्योंकि उस रात को हमे दिल्ली पहुंचकर गाड़ी पकड़नी थी । नींद मुझे बुरी तरह घेर रही थी । यकायक हमें रुकना पड़ा ; क्योंकि बीच सड़क पर आदमी और औरतों की भीड़ बैठी थी । कुछेक के हाथों में मशालें थीं वे आगे बढ़कर हमारे पास आये और जब उन्हें संतोष हो गया कि हम कौन हैं ; तब उन्होंने बताया कि दोपहर से वे बैठे – बैठे इंतजार कर रहे हैं । वे सबहृष्ट – पुष्ट जाट थे । उनमें से ज्यादातर छोटे – मोटे जमींदार थे । उनसे बिना थोड़ी-बहुत बातचीत किए बिना आगे बढ़ना मुमकिन नहीं था । हम बाहर आये और रात के धुंधलेपन में हजारों या इससे भी ज्यादा जाट मर्दों और औरतों के बीच बैठ गये ।
उनमें से एक चिल्लाया , ‘ कौमी नारा’ ! और हजारों गलों से मिल कर जोश के साथ तीन बार चिल्लाकर कहा – ‘वन्देमातरम !’ और फिर उन्होंने ‘ भारतमाता की जय ‘ के नारे लगाये।
” यह सब ‘वन्दे मातरम’ और ‘भारतमाता की जय’ किस लिए है ?” मैंने पूछा ।
कोई उत्तर नहीं । पहले उन्होंने मुझे घूरकर देखा और फिर एक दूसरे का मुँह ताकने लगे । दिखाई पड़ता था कि वे मेरे सवाल करने से कुछ परेशान हो उठे हैं । मैंने सवाल दोहराया – ” बोलिए , ये नारे लगाने से आपका क्या मतलब है ? ” फिर भी कोई जवाब नहीं मिला ।उस जगह के इंचार्ज कांग्रेस-कार्यकर्ता कुछ खिन्न-से हो रहे थे । उन्होंने हिम्मत करके सब बातें बतानी चाहीं ; लेकिन मैंने उन्हें प्रोत्साहन नहीं दिया ।
” यह ‘माता’ कौन है , जिसको आपने प्रणाम किया है और जिसकी जय के नारे लगाये हैं ? ” मैंने फिर सवाल किया । वे फिर चुप और परेशान-से हो रहे । ऐसे अजीब सवाल उनसे कभी नहीं किए गए थे । सहज भाव से उन्होंने सब बातों को मान लिया था । जब उनसे नारे लगाने के लिए कहा जाता था , वे नारे लगा देते थे । उन सब बातों के समझने की उन्होंने कभी कोशिश नहीं की । कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने नारे लगाने के लिए कहा तो वे उज्र कैसे कर सकते थे ? वे तो खूब जोर से पूरी ताकत लगाकर चिल्ला देते थे । बस , नारा अच्छा होना चाहिए । इससे उन्हें खुशी होती थी औरशायद इससे उनके प्रतिद्वन्द्वियों को कुछ डर भी होता था ।
अब भी मैंने सवाल करना बन्द नहीं किया । बेहद हिम्मत करके एक आदमी ने कहा कि ‘माता’ का मतलब ‘धरती’ से है । उस बेचारे किसान का दिमाग धरती की ओर ही गया , जो उसकी सच्ची माँ है , भला करने और भला चाहने वाली है ।
” कौन-सी ‘धरती’ ? ” मैंने फिर पूछा , ” क्या आपके गांव की ‘धरती’ या पंजाब की , या तमाम दुनिया की ?” इस पेचीदा सवाल से वे और परेशान हुए । तब बहुत-से लोगों ने चिल्लाकर कहा कि इस सबका मतलब आप ही समझाइए ? हम कुछ भी नहीं जानते और सारी बात समझना चाहते है ।
मैंने उन्हें बताया कि भारत क्या है । किस तरह वह उत्तर में काश्मीर और हिमालय से लेकर दक्षिण में लंका तक फैला हुआ है । उसमें पंजाब , बंगाल , बंबई , मदरास सब शामिल हैं । इस महाद्वीप में उनके जैसे करोड़ों किसान हैं जिनकी उन जैसी समस्याएं हैं , उन्हींकी-सी मुश्किलें और बोझ , वैसी ही कुचलने वाली गरीबी और आफतें । यही महादेश हिन्दुस्तान उन सबके लिए ‘भारतमाता’ है , जो उसमें रहते हैं और जो उसके बच्चे हैं । भारतमाता कोई सुन्दर बेबस असहाय नारी नहीं है , जिसके धरती तक लटकने वाले लम्बे-लम्बे बाल हों , जैसा अक्सर कल्पित तस्वीरों में दिखलाया जाता है ।
‘ भारतमाता की जय ! ‘यह जय बोलकर हमने किसकी जय बोली ? उस कल्पित स्त्री की नहीं जो कहीं भी नहीं है । तब क्या यह जय हिन्दुस्तान के पहाड़ों , नदियों , रेगिस्तानों , पेड़ों पत्थरों की बोली जाती है ?
“नहीं” । उन्होंने जवाब दिया । लेकिन कोई ठीक उत्तर वे मुझे न दे सके ।
” निश्चय ही हम जय उन लोगों की बोलते हैं जो भारत में रहते हैं – उन करोड़ों आदमियों की जो उसके गाँवों और नगरों में बसते हैं ।” मैंने उन्हें बताया । इस जवाब से उन्हें हार्दिक प्रसन्नता हुई और उन्होंने अनुभव किया कि जवाब ठीक भी है ।
” ये आदमी कौन हैं? निश्चय ही आप और आपके भाई । इसलिए जब आप , ‘भारतेमाता की जय बोलते हैं , तो वह अपने और हिन्दुस्तान भर के अपने भाई-बहनों की ही जय बोलते हैं । याद रखिए , ‘भारतमाता’ आप ही हैं और यह आप अपनी ही जय बोलते हैं ।”
ध्यान से उन्होंने सुना । प्रकाश की उज्जवल रेखा उनके भोले-भाले चेहरों पर उदय होती हुई दिखाई दी । यह ज्ञान उनके लिए विचित्र था कि कि वह नारा , जिसे वे इतने दिनों से लगा रहे हैं, उन्हीं के लिए था । तब आइए , एक बार फिर मिलकर पुकारें – ‘ भारतमाता की जय ‘ !”
इसके बाद हम अन्धकार में दिल्ली की ओर बढ़े । रेल मिली और उसके बाद खूब आराम भी ।
१६ सितम्बर , १९३६. (स्रोत – हिन्दुस्तान की समस्याएं,सस्ता साहित्य मंडल प्रकाशन )
vaastav mein bharatmaata har us shaks ki mata hai jo bhaarat ki paridhi mein aata hai. yahi to dor hai hamaare bandhutwa ki..
लोग कई अपवित्र काम, बलि भी भगवान का नाम लेकर देते है. इससे भगवान का नाम अपवित्र नहीं हो जाता.
‘भारतमाता की जय’ किस लिए है ?” यह नेहरू ने पूछा होगा.
भारत माता की जय.
Is this written by Nehru ji?
भारत माता के बारे में नेहरू के ये विचार कई साल पहले किसी संकलन में पढ़े थे। इसे फिर पढ़वाने के लिए शुक्रिया। नेहरू की यही विश्लेषण पद्धति भारत एक खोज और विश्वइतिहास की झलक में भी है।
बहुत सुंदर आलेख ।
सार यह हुआ कि हम भारत माता कि जय बोलकर अपने ही देश के नागरिकों की स्वतंत्रता छीन नहीं सकते, उन्हें दबा नहीं सकते। यदि ऐसा करेंगे तो भारत माता की पराजय होगी।
यदि इसे पढ़कर कुछ लोगों की आँखें खुलें तो अच्छा होगा। वैसे मुझे नहीं लगता कि यहाँ वहाँ लोगों के अधिकार छीनते, हमला करते लोग गहन अध्ययन करते होंगे।
घुघूती बासूती
पारदर्शी, तर्कपूर्ण और कितना संवेदनशील।
Inspiring thoughts !!!!!!!!!!
बहुत खूब.
हां। बहुत खूब।
‘वे लोग’ और थे जो देश को ‘जीते’ थे। उन्हें गाली देने वाले ‘ये लोग’ और हैं। ये देश को ‘जहमते’ हैं। ‘ये लोग’ लोकतन्त्र की सीढियां चढकर सत्ता में पहुंचते हैं और वहां जाकर लोकतन्त्र को लतियाते हैं।
बेंगाणीजी ने बिलकुल ठीक कहा- ‘लोग कई अपवित्र काम, बलि भी भगवान का नाम लेकर देते है। इससे भगवान का नाम अपवित्र नहीं हो जाता।’
लगता है, ‘ये लोग’ तब तक लगे रहेंगे जब तक कि भगवान का नाम अपवित्र नहीं हो जाता और जन सामान्य भगवान के नाम से तौबा न करने लगें।
‘भारत माता की जय’ तथा ‘वन्दे मातरम्’ को इनका यही विनम्र योगदान होगा।
जवाहरलाल जी की यही विश्लेषण पद्धति है जो उन्हें बार बार पढने और समझने की उत्सुकता जगाती है. भारतमाता की ही भांति अन्य कई चीजों को समझने यह जानना बेहद जरूरी है कि धार्मिक होने का क्या मतलब है यह जानना जरूरी है कि धर्म में आस्था का क्या मतलब होता है और सबसे ज्यादा जरूरी है कि एक राष्ट्र के रूप में सफल होने के लिए एक एक नागरिक के अधिकार कितने जरूरी हैं
राष्ट्रभक्ति के नारे राष्ट्रभक्ति नही होते राष्ट्रभक्ति का अर्थ है राष्ट्र के मूल्यों में आस्था
[…] ‘ भारतमाता की जय ‘ […]
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आज 09/09/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!