[ प्रथम भाग यहाँ ]
अपनी लंडन निवास के दौरान ही गांधीजीने ६२ वर्ष पूरे किये। दो अक्टूबर को उनके मित्रों द्वारा आयोजित दो कार्यक्रम इंग्लैण्ड में गांधीजी द्वारा की गयी प्रवृत्तियों, परन्तु परस्पर विरोधी लगने वाले थे। उस दिन वेस्टमिनिस्टर पैलेस रूम में इन्डिपेन्डेन्ट लेबर पार्टी, गांधी समाज तथा हिंदी महासभा संघ द्वारा दिये गये भोज में गांधीजीने इस बात पर इंगित करते हुए कि गोलमेज परिषद निष्फलता की ओर जा रही है, दिल खोलकर लेकिन कड़ी बातें कीं। वहीं शाम उन्होंने किंग्सली हॉल के इर्दगिर्द के बच्चों के बीच निरे प्रेम की लेन-देन में बितायी। दोपहर के भोजन के बाद का समारोह भारत के पुराने मित्र फ्रेन र्ब्रॉकवे की अध्यक्षता में हुआ। ३८८ लोग केवल फल और सूखा मेवा लेने और गांधीजी का भाषण सुनने इकट्ठा हुए थे। वहाँ उन्होंने जो मन का गुबार निकाला उसका कुछ अंश नीचे दिया गया है: “अंग्रेजी ‘लंच’ कैसा होता है वह मैं जीभ से न सही, आँखों से जानता हूँ। इसलिए जब मैंने फलों से भरा टेबल देखा तब मुझे इस चीज का भान हुआ कि यह नाममात्र का लंच लेने में आपने कितना त्याग किया है। आशा है कि चाय के समय तक और अंग्रेजी होटलों और रेस्टोराँ में आपको बढ़िया पकवान मिले तब तक यह त्यागवृत्ति टिकी रहेगी। इस प्रकट विनोद के पीछे गंभीरता भी छिपी है। मैं यह जानता हूँ कि आपने कुछ त्याग किया है। लेकिन यह संभव है कि आपको अधिक त्याग करना पड़े। जब मैंने यहाँ आना स्वीकारा तब मेरे मन में तनिक भी भ्रम नहीं था। लंडन आने का सबसे सबल कारण यह था कि मुझे एक आबरूदार अंग्रेज (लॉर्ड अरविन) को दिया मेरा वचन पालना था। और मैं यह भी बताना चाहता हूँ कि कांग्रेस का निर्णय पक्का है। कांग्रेस के आदेश में जो कुछ भी है वह सब मांग कर कांग्रेस के तथा हिंदुस्तान का सम्मान रखवाने के लिए मैं यहाँ आया हूँ। यहाँ हिन्दुस्तान की स्थिति के बारे में काफी अज्ञान भरा पड़ा है। सही इतिहास का काफ़ी अज्ञान भरा है।
हिंदी यह मानते हैं कि ब्रिटिश राज ने लाभ की अपेक्षा हिन्दुस्तानी प्रजा का नुकसान ही अधिक किया है। असली बात है जमा-खर्च की बाजुओं का हिसाबलगाना और यह खोज निकालना कि हिंदुस्तान का आज क्या हाल हैं। इसके लिए मैंने दो कसौटियाँ बतायी हैं, जो अचूक हैं। हिन्दुस्तान आज दुनिया में सबसे गरीब देश है। उसके करोड़ो लोग साल में छ: महीने बेकार रहते हैं। यह बात सत्य है या नहीं? न सिर्फ़ जबरदस्ती निहत्थाकर, आज़ाद देश की प्रजा को जो मौके मिलते ऐसे अनेक मौके छीन कर हिन्दुस्तान के पुरुषार्थ का हनन किया है।यह बात सच है या नहीं? इन दो मामलों में जाँच करने पर आपको यह पता चलेगा कि इंग्लैंड पूरा पूरा नहीं तो अधिकांश निष्फल साबित हुआ है, ऐसे में इंग्लैण्ड के नीति बदलने का समय आया है या नहीं
? मैं तो इतना ही कहूँगा कि कि चाहे अंधेर हो, चाहे सुराज्य, हिन्दुस्तान को तत्काल स्वातंत्र्य प्राप्त करने का हक़ है। अगर हिन्दुस्तान की स्वतंत्रता दूसरों की जिन्दगी की कीमत चुका कर, राज्यकर्ताओं का खून बहाकर खरीदनी हो तो वह हमें नहीं चाहिए।लेकिन वह स्वतंत्रता प्राप्त करने राष्ट्रसे याने हमसे यदि कोई भोग दिया जा सकता है तो आप देखेंगे कि, जिस आज़ादी को आने में बहुत विलम्ब हुआ है उसे पाने के लिए,हम अपने खून की गंगा बहाने से पीछे नहीं होंगे।मैं जानता हूँ कि आपके द्वारा मुझे दिया सम्मान मेरे अपने लिए नहीं, मेरे सिद्धान्तों के लिए है। ये सिद्धान्त जितने मुझे प्यारे हैं उतने आपको भी प्यारे हैं, शायद अधिक प्यारे होंगे। मैं आशा करता हूं कि आपकी प्रार्थना से, आपकी सहायता से, जो सिद्धान्त आज मैं घोषित करता हूँ उनका कभी इन्कार नहीं करूँगा।“ उस दिन किंग्सली हॉल के आसपास के बच्चों ने अपने अभिवावकों को इसलिए जल्दी जगाया था कि वे गांधीजी को बड़े सवेरे ‘हैप्पी बर्थडे’ कहना चाहते थे। प्रात:काल जब गांधीजी प्रार्थना के बाद टहलने निकले, तब लोगों ने अपने मकानों की खिड़कियों से झांककर उन्हें सालगिरह की बधाई दी थी। उस दिन किम्ग्सली हॉल के अनुष्ठान का वर्णन मिस लेस्टर की लेखनी से:उनके जन्मदिन की पूर्व संध्या को हम मकान के छज्जे पर बैठे। तीन और चार वर्षों के बच्चे सभी उपस्थित थे। दो साल वाले खिलौनों से खेल रहे थे। हमने इस विषय की बातें की। हम सभी को बहुत कुछ कहना था। अंत में हमने उन्हें जन्मदिन की एक चिट्ठी लिखने और भेंट भेजने का तय किया। जॉन: वे यहाँ आयेंगे?डेविड: वे हम लोगों के साथ खाने नहीं आयेंगे?जॉन: मैंने उनको सिरिल के घर की अगली खिड़की से देखा था।बर्नॉर्ड: वे जिराल्ड के घर में गये थे।मॉरिस: वे मेरे घर आये तब मैंने उन्हें मेरे सारे खिलौने दिखाये थे।जॉन: मैं उनको मि. गांधी कहता हूँ।पीटर: मैं उनको गांधी काका कहता हूँ। फिर हम सबने कहा हम उनके लिए कुछ भेंजें।किसी ने कहा हम उन्हें कुत्ते का खिलौना भेजें।एलिस: हमारा छोटा-सा सफ़ेद कुत्ता।हम सबने कहा,‘हाँ, हमारा नन्हा-सा सफ़ेद कुत्ता।’फिलिस: हम उन्हें एक जोड़ी बूट भेजें।(हमने उनके नंगे, चप्पलवाले पैर देखे थे और हमने महसूस किया था कि उन्हें ठण्ड लगती होगी।) एलिस: हम उन्हें बनयान और चड्डी भेजें।डोरिन: मैं उन्हें केक खरीदकर भेजूँगी।बर्नॉर्ड: मैं उन्हें पलने झूलता छोटा बालक ले कर भेजूँगा। हमने उन्हें इस प्रकार चिट्ठी लिखी: प्यारे गांधी काका,आपका जन्मदिन सुखमय बीते। हम सब कह रहे हैं सुखमय बीते। हम आपके लिये जन्मदिन का गीत गाने वाले हैं। हम आपको उपहार भेजेंगे। आपको अगर वर्षगाँठ पर आइसक्रीम वाला केक मिले तो कैसा अच्छा होगा? आप अपनी बरसगाँठ पर यहाँ आना। हम बैण्ड निकालेंगे। उस पर तरह-तरह के गाने बजायेंगे और मोमबत्तियाँ जलायेंगे। आपके प्यारे…हम सारे बच्चों का प्यार। इस चिट्ठी के साथ हमने एक छोटी टोकरी भेजी। उसमें दो ऊनी कुत्ते, तीन गुलाबी रंग की मोमबत्तियाँ, एक टिन की तश्तरी, एक नीली पेन्सिल और थोड़ी मिठाई रखी। म्युनिसीपालटी की शाला में दस साल के बच्चों को गांधीजी के बारे में निबंध लिखने को कहा गया था। हमारे बालमंदिर के बिली सेविल नामक एक लड़के का निबंध अखबार में छपा था: “मि. गांधी हिंदी हैं। १८९० में में वे लंडन में कानून का अध्ययन करते थे।अपने देश को सुखी स्थिति में लाने के लिए उन्होंने उसे छोड़ दिया।वे विलायत गोलमेज परिषदमें हिंदुस्तान का व्यापार वापस पाने आये हैं। वे कोशिश करते हैं कि ब्राह्मण लोग ‘हरिजनों’ को मंदिरोंमें आने दें।लगभग साठ लाख लोग ऐसे हैं जिन्हें यह पता नहीं है कि अच्छा खाना कैसा होता है। गांधीने अपनी सारी संपत्ति त्यज दी है और हिंद के सबसे गरीब लोग जैसा बनने की कोशिश करते हैं। इसीलिए वे कच्छ पहनते हैं।बकरी का दूध, फल, साग–सब्जी- यह उनकी खुराक है। वे मांस या मच्छी नहीं खाते क्योंकि किसी की जान लेना वे पसंद नहीं करते। गांधी ख्रिस्ती हिंदी हैं।मि. गांधी अपना सूत कातते हैं। वे इंग्लैण्ड में रोज एक घंटा कातते हैं। जब अस्पतालमें थे तब भी कातते थे। अभी-अभी वे लंकाशायर की मिलें देख आये हैं।वे रविवार शाम को सात बजे से सोमवार शाम सात बजे तक प्रार्थना करते हैं और उनसे बोलें तो जवाब नहीं देते। वे जब लोगों से मिलने निकले तब मेरे घर आये थे। मेरी माँ कपड़े को लोहा करती थी। लेकिन गांधी नेकहा, “काम बंद मत कीजिए क्योंकि मुझे भी यह करना पड़ा है। मैंने उनसे हाथ मिलाये। ‘हलो‘ या ‘गुड बाई‘ के लिए हिंदी शब्द ‘नमस्कार’ है।” गांधीजी जब स्वदेश लौटे तब उन्होंने उपहारमें मिली बहुत सारी चीजें तो इंग्लैण्ड में ही छोड़ दी थीं, मगर किंग्सली हॉल के बच्चों के खिलौने के खिलौने वे सम्भाल कर अपने साथ लाये थे।
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गांधी ने जो बेरोजगारी का आरोप अंग्रेजों पर लगाया उसके लिए आज की देशी सरकार भी उतनी ही जिम्मेदार है. कोई अंतर नही.
अतुल
बापू और बच्चों के बीच का यह अदेखा प्यार तो मेरी आँखें भर गया….एक दो ही छोटी भूलें हैं,….पर अनुवाद तो लग ही नहीं रहा….बहुत बहती हुई भाषा है….आनन्द आया…यह ख्रिस्ती हिंदी क्या मामला है….
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Dhanyavad aflooji