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गतांश से आगे : गांधी जी के सचिव प्यारेलाल ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक पूर्णाहुति में सितम्बर , १९४७ में संघ के अधिनायक गोलवलकर से गांधीजी की मुलाकात , विभाजन के बाद हुए दंगों में तथा गांधी – हत्या में संघ की भूमिका का विस्तार से वर्णन किया है । गोलवलकर से गांधी जी के वार्तालाप के बीच में गांधी मंडली के एक सदस्य बोल उठे – ‘ संघ के लोगों ने निराश्रित शिविर में बढ़िया काम किया है । उन्होंने अनुशासन , साहस और परिश्रमशीलता का परिचय दिया है ।’ गांधी जी ने उत्तर दिया – ‘ परन्तु यह न भूलिये कि हिटलर के नाजियों और मुसोलिनी के फासिस्टों ने भी यही किया था ।’ उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को ‘ तानाशाही दृष्टिकोण रखनेवाली सांप्रदायिक संस्था बताया । ( पूर्णाहुति , चतुर्थ खंड, पृष्ठ : १७)
अपने एक सम्मेलन में गांधीजी का स्वागत करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेता ने उन्हें ‘ हिन्दू धर्म द्वारा उत्पन्न किया हुआ एक महान पुरुष ‘ बताया । उत्तर में गांधी जी बोले – ‘मुझे हिन्दू होने का गर्व अवश्य है । परन्तु मेरा हिन्दू धर्म न तो असहिष्णु है और न बहिष्कारवादी है । हिन्दू धर्म की विशिष्टता जैसा मैंने समझा है , यह है कि उसने सब धर्मों की उत्तम बातों को आत्मसात कर लिया है । यदि हिन्दू यह मानते हों कि भारत में अहिन्दुओं के लिए समान और सम्मानपूर्ण स्थान नहीं है और मुसलमान भारत में रहना चाहें तो उन्हें घटिया दरजे से संतोष करना होगा… तो इसका परिणाम यह होगा कि हिन्दू धर्म श्रीहीन हो जायेगा.. मैं आपको चेतावनी देता हूं कि अगर आपके खिलाफ लगाया जाने वाला यह आरोप सही हो कि मुसलमानों को मारने में आपके संगठन का हाथ है तो उसका परिणाम बुरा होगा ।’
इसके बाद जो प्रश्नोत्तर हुए उसमें गांधी जी से पूछा गया – ‘ क्या हिन्दू धर्म आतताइयों को मारने की अनुमति नहीं देता ? यदि नहीं देता , तो गीता के दूसरे अध्याय में श्रीकृष्ण ने कौरवों का नाश करने का जो उपदेश दिया है , उसके लिए आपका क्या स्पष्टीकरण है ?’
गांधी जी ने कहा – ‘ पहले प्रश्न का उत्तर ‘हां’ और ‘नहीं’ दोनों है । मारने का प्रश्न खड़ा होने से पहले हम इस बात का अचूक निर्णय करने की शक्ति अपने में पैदा करें कि आततायी कौन है ?दूसरे शब्दों में , हमें ऐसा अधिकार तभी मिल सकता है जब हम पूरी तरह निर्दोष बन जायें । एक पापी दूसरे पापी का न्याय करने अथवा फांसी लगाने के अधिकार का दावा कैसे कर सकता है ? रही बात दूसरे प्रश्न की । यह मान भी लिया जाये कि पापी को दंड देने का अधिकार गीता ने स्वीकार किया है , तो भी कानून द्वारा उचित रूप में स्थापित सरकार ही उसका उपयोग भलीभांति कर सकती है । अगर आप न्यायाधीश और जल्लाद दोनों एक साथ बन जायें , तो सरदार और पंडित नेहरू दोनों लाचार हो जायेंगे…. उन्हें आपकी सेवा करने का अवसर दीजिए , कानून को अपने हाथों में ले कर उनके प्रयत्नों को विफल मत कीजिए । ( संपूर्ण गांधी वांग्मय खंड : ८९ )
३० नवंबर ‘४७ के प्रार्थना प्रवचन में गांधी जी ने कहा , ‘ हिन्दू महासभा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का विचार है कि हिन्दुत्व की रक्षा का एक मात्र तरीका उनका ही है । हिंदू धर्म को बचाने का यह तरीका नहीं है कि बुराई का बदला बुराई से । हिंदू महासभा और संघ दोनों हिंदू संस्थाएं हैं । उनमें पढ़े – लिखे लोग भी हैं । मैं उन्हें अदब से कहूंगा कि किसी को सता कर धर्म नहीं बचाया जा सकता…
‘.. कनॉट प्लेस के पास एक मस्जिद में हनुमान जी बिराजते हैं , मेरे लिए वह मात्र एक पत्थर का टुकड़ा है जिसकी आकृति हनुमान जी की तरह है और उस पर सिन्दूर लगा दिया गया है । वे पूजा के लायक नहीं ।पूजा के लिए उनकी प्राण प्रतिष्ठा होनी चाहिए , उन्हें हक से बैठना चाहिए । ऐसे जहां तहां मूर्ति रखना धर्म का अपमान करना है ।उससे मूर्ति भी बिगड़ती है और मस्जिद भी । मस्जिदों की रक्षा के लिए पुलिस का पहरा क्यों होना चाहिये ? सरकार को पुलिस का पहरा क्यों रखना पड़े ? हम उन्हें कह दें कि हम अपनी मूर्तियां खुद उठा लेंगे , मस्जिदों की मरम्मत कर देंगे । हम हिन्दू मूर्तिपूजक हो कर , अपनी मूर्तियों का अपमान करते हैं और अपना धर्म बिगाड़ते हैं ।
…’ एक मुसलमान मेरे पास परेशान हो कर आया । वह एक आधा जला कुरान शरीफ अदब से कपड़े में लपेट कर लाया । खोल कर मुझे दिखाया और चला गया । उसकी आंखों में पानी था , पर मुंह से वह कुछ बोला नहीं । जिसने कुरान शरीफ का अपमान करने की कोशिश की , उसने अपने धर्म का अपमान किया । उसके सामने मुसलमान कहीं मारपीट करके कहीं कुरान शरीफ रखना चाहे , तो वे कुरान-शरीफ का अपमान करेंगे । ‘
‘ इसलिए हिंदू महासभा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और दूसरे जो भी मुझे सुनना चाहते हैं और सिखों को बहुत अदब से कहना चाहूंगा कि सिख अगर गुरु नानक के दिन से सचमुच साफ हो गये , तो हिन्दू अपने आप सफ हो जायेंगे । हम बिगड़ते ही न जायें , हिंदू धर्म को धूल में न मिलायें । अपने धर्म को और देश को हम आज मटियामेट कर रहे हैं । ईश्वर हमें इससे बचा ले ‘। ( प्रार्थना प्रवचन ,खंड २ , पृ. १४४ – १५० तथा संपूर्ण गांधी वांग्मय , खंड : ९० )
अखिल भारतीय कांग्रेस समिति को अपने अंतिम संबोधन ( १८ नवंबर ‘४७ ) में उन्होंने कहा , ‘ मुझे पता चला है कि कुछ कांग्रेसी भी यह मानते हैं कि मुसलमान यहां न रहें । वे मानते हैं कि ऐसा होने पर ही हिंदू धर्म की उन्नति होगी । परंतु वे नहीं जानते कि इससे हिंदू धर्म का लगातार नाश हो रहा है । इन लोगों द्वारा यह रवैया न छोड़ना खतरनाक होगा … काफी देखने के बाद मैं यह महसूस करता हूं कि यद्यपि हम सब तो पागल नहीं हो गये हैं , फिर कांग्रेसजनों की काफी बडी संख्या अपना दिमाग खो बैठी है..मुझे स्पष्ट यह दिखाई दे रहा है कि अगर हम इस पागलपन का इलाज नहीं करेंगे , तो जो आजादी हमने हासिल की है उसे हम खो बैठेंगे… मैं जानता हूं कि कुछ लोग कह रहे हैं कि कांग्रेस ने अपनी आत्मा को मुसलमानों के चरणों में रख दिया है , गांधी ? वह जैसा चाहे बकता रहे ! यह तो गया बीता हो गया है । जवाहरलाल भी कोई अच्छा नहीं है । रही बात सरदार पटेल की , सो उसमें कुछ है । वह कुछ अंश में सच्चा हिंदू है ।परंतु आखिर तो वह भी कांग्रेसी ही है ! ऐसी बातों से हमारा कोई फायदा नहीं होगा , हिंसक गुंडागिरी से न तो हिंदू धर्म की रक्षा होगी , न सिख धर्म की । गुरु ग्रन्थ-साहब में ऐसी शिक्षा नहीं दी गयी है । ईसाई धर्म भी ये बातें नहीं सिखाता । इस्लाम की रक्षा तलवार से नहीं हुई है । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे में मैं बहुत-सी बातें सुनता रहता हूं । मैंने यह सुना है कि इस सारी शरारत की जड़ में संघ है । हिंदू धर्म की रक्षा ऐसे हत्याकांडों से नहीं हो सकती । आपको अपनी स्वतंत्रता की रक्षा करनी होगी । वह रक्षा आप तभी कर सकते हैं जब आप दयावान और वीर बनें और सदा जागरूक रहेंगे, अन्यथा एक दिन ऐसा आयेगा जब आपको इस मूर्खता का पछतावा होगा , जिसके कारण यह सुंदर और बहुमूल्य फल आपके हाथ से निकल जायेगा । मैं आशा करता हूं कि वैसा दिन कभी नहीं आयेगा । हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि लोकमत की शक्ति तलवारों से अधिक होती है । ‘
संयुक्त राष्ट्रसंघ के समक्ष तत्कालीन हिंदुस्तानी प्रतिनिधिमण्डल की नेता श्रीमती विजयलक्ष्मी पण्डित की आवाज में आवाज मिलाकर जब पाकिस्तानी प्रतिनिधिमण्डल के नेता विदेश मन्त्री जफ़रुल्ला खां , अमरीका में पाकिस्तान के राजदूत एम. ए. एच. इरफ़ानी ने भी दक्षिण अफ़्रीका में भारतीयों पर अत्याचार का विरोध किया , तब गांधीजी अत्यन्र्त प्रसन्न हुए और १६ नवंबर ‘४७ को प्रार्थना में उन्होंने यह कहा , ‘ हिंदुस्तान(अविभाजित) के हिंदू और मुसलमान विदेशों में रहने वाले हिंदुस्तानियों के सवालों पर दो राय नहीं हैं , इससे साबित होता है कि दो राष्ट्रों का उसूल गलत है ।इससे आप लोगों को मेरे कहने से जो सबक सीखना चाहिए , वह यह है कि दुनिया में प्रेम सबसे ऊंची चीज है ।अगर हिंदुस्तान के बाहर हिंदू और मुसलमान एक आवाज से बोल सकते हैं , तो यहां भी वे जरूर ऐसा कर सकते हैं , शर्त यह है कि उनके दिलों में प्रेम हो … अगर आज हम ऐसा कर सके और बाहर की तरह हिंदुस्तान में भी एक आवाज से बोल सके , तो हम आज की मुसीबतों से पार हो जायेंगे ! ( संपूर्ण गांधी वांग्मय , खण्ड : ९० )
इन सबको याद करना उस भयंकर त्रासदायी व शर्मनाक दौर को याद करना नहीं है , बल्कि जिस दौर की धमक सुनाई दे रही है उसे समझना है । गांधीजी तब भले ही एक व्यक्ति हों , आज तो उनकी बातें कालपुरुष के उद्गार-सी लगती हैं और हमारे विवेक को कोंचती हैं । उस आवाज को तब न सुन कर हमने उस आवाज का ही गला घोंट दिया था । अब आज ? आज तो आवाज भी अपनी ही है और गला भी ! इस बार हमें पहले से भी बड़ी कीमत अदा करनी होगी ।
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मुझे डराइये मत.. मैं वैसे ही उदास हूँ..
“दुनिया में प्रेम सबसे ऊंची चीज़ है .”
यह कहते बहुत से हैं . पर गांधी ने इसमें अर्थ भरे थे अपने आचरण से . किसी की आंख के पानी की कहानी को जो समझ ले उसे क्या तो कहना और क्या न कहना . गांधी के पास जब भी जाता हूं .बहुत सारे सवाल जो मन को मथते हैं,उनके उत्तर पाकर लौटता हूं .
आपके प्रति आभार प्रकट करता हूं कि नेट पर ऐसी चीज़ें भी उपलब्ध हैं .
सामग्री चढ़ाते रहिये.. बात बढ़ाते रहिये.
अच्छा लगा पढ़ कर.
गाँधी जी की सब बातों से सहमत या असहमत होना कुछ वैसा ही है जैसे भारतीय होकर गीता रामायण से सहमत असहमत होना । जो भी हो, यह विचारधारा हमारे मन में रच बस गई है । कभी कभी क्षणिक उन्माद में लोग चाहे भूल भी जाएँ किन्तु अपनी अन्तरात्मा में वे किसी न किसी रूप में गाँधी जी को सदा पाते हैं । यदि उनके विचारों से सहमति नहीं रखते तो भी उन्हें गाँधी जी के सामने खुद के विचारों को न्याय्य ठहराना पड़ता ही है ।
एक अच्छे लेख को हमें पढ़वाने के लिए धन्यवाद ।
घुघूती बासूती
बहुत बढ़िया लेख।
आज पहली बार आपका ब्लोग पढ़ा है,..बहुत ही बेहतरीन लेख है,..
बहुत कुछ सीखने और समझने को है यहाँ,..
धन्यवाद
सुनीता चोटिया(शानू)
aaj jo gandhi ki baat karke yeha bata rahe hai ,veha yeh baat nahi karte drirasth ke baat karne wale kya gandhi je thai, aakhi hindu pittha rathe aur hind ko hi sab shant rahne ke liye kahe,gandhi ki baat un musalmaano par bhi to laagu hoti hai jinhone pakistan se hindu aur sikho ka balatkar karke nikala
[…] “हिटलर के नाजियों और मुसोलिनी के फा […]
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[…] “हिटलर के नाजियों और मुसोलिनी के फास… […]
पढ़ कर आनंद आया
I am amazed to read the thoughts of a person who lived more than half a century ago. How did he learn to be more modern than modern thought today? People of Gandhiji’s intellect are not born easily. “jada jada hi”.