[ मेरे नेता किशन पटनायक ने मुझसे ‘ गांधी – अम्बेडकर ‘ पर गहराई से अध्ययन करने के लिए कहा था। फलस्वरूप मैंने ‘गांधी – अम्बेडकर और मिट्टी की पट्टियाँ’ शीर्षक से लम्बा लेख लिखा । दल की पत्रिका ‘सामयिक वार्ता’ में यह अक्टूबर १९९४ में प्रकाशित हुआ तथा अन्य भाषाओं में इसका अनुवाद भी हुआ । मुझे यकीन है कि चिट्ठालोक के पाठक इसे पढ़ेंगे । – अफ़लातून ]
‘ टाइम्स ‘ के संवाददाता मैक्रे और गांधीजी की ६ फरवरी १९३३ को यरवदा जेल में एक अच्छी भेंटवार्ता हुई । गांधीजी के सिर पर लगी हुई मिट्टी की पट्टी के बारे में उसने पूछा । ‘ रिटर्न टू नेचर ‘ नामक पुस्तक पढ़कर सन १९०५ में सिर पर पट्टी बाँधना कैसे शुरु किया था , और उसके बाद सैंकड़ों मौकों पर किस तरह उस पर अमल किया , यह बापू ने उसे बताया । किसी अच्छी चीज को पढ़कर तुरन्त उस पर अमल करने की बात गांधीजी के मन में कैसे आती है इसका उदाहरण रस्किन की ‘ अन टू दिस लास्ट ‘ नामक पुस्तिका थी जिसे पढ़कर उन्होंने जीवन परिवर्तन किया । गांधीजी ने यह बातें सरल ढंग से मैक्रे को सुनाई । उसे मजेदार तो लगीं , लेकिन ये बातें ‘ टाइम्स ‘ को भेजे तो वह क्यों उन्हें छापेगा ? इसलिए उसने धीरे से पूछा – ” पर अम्बेदकर के लिए आपके पास कोई मिट्टी की पट्टियाँ हैं ? “
बापू बोले – मुझे मालूम नहीं । पर हमारे मतभेदों से दोनों के सिर चढ़ जांए तो जरूर मट्टी की पट्टियाँ ढूँढनी पडेंगी। मेरे और उनके बीच ज्यादा मतभेद की गुंजाइश नहीं है क्योंकि अधिकतर मामलों में ऐक्य है । मतभेद की मुझे परवाह नहीं है । मेरे पास सवर्णों से कर्ज अदा करवाने के सिवाय दूसरा काम नहीं है । ( महादेवभाई की डायरी ,खस्ण्ड तीन , पृ.१२८ ) ।
मायावती – कांशीराम द्वारा छेड़ी गयी बहस गांधीजी के कथित पैरवीकारों तथा डॉ. अम्बेडकर के तथाकथित उत्तराधिकारियों के सिर पर चढ़ती नजर आ रही है इसलिए मिट्टी की कुछ पट्टियाँ ढूँढ़ने का प्रयास जरूरी है ।स्वेच्छा से अछूत बनने का असाधारण दावा करनेवाले महात्मा गांधी डॉ. अम्बेडकर से विनम्रतापूर्वक यह कह सकते थे , ‘ आप मेरे लिए कोई अपमानजनक या क्रोधजनक शब्द काम में लेते हैं , तब मैं अपने दिल से यही कहता हूँ कि तू इसी लायक है। आप मेरे मुंह पर थूकें , तो भी मैं गुस्सा नहीं करूँगा । यह मैं ईश्वर को साक्षी रखकर कहता हूँ इसीलिए कि मैं जानता हूँ कि आपको जीवन में बहुत कड़वे अनुभव हुए हैं । ‘ ( महादेवभाई की डायरी , खण्द दो, पृ. ६१ ) मायावती की टिप्पणियों और गालियों के प्रति गांधीजी के पैरवीकार क्या इतने साफ़ दिल का परिचय दे रहे हैं ? इष्टदेव की प्रतिमा को विधर्मी द्वारा स्पर्श कर लेने पर भक्तगणों के हाहाकार मचाने की छवि इस मसले के साथ उभर आई है । अस्पृश्यता निवारण , सामाजिक न्याय और जातिप्रथा उन्मूलन के लक्ष्यों से वर्तमान में सरोकार न रखकर भी हम डॉ. अमेडकर या गांधीजी की पैरवी किए जा रहे हैं । एक राष्ट्रीय हिन्दी दैनिक के मुख्य सम्पादक और साहित्यकार अस्पृश्यता को पराकाष्ठा तक अपनाये हुए हैं । ‘पंक्ति-पावन’ होने के लिए खुद के बरतन लेकर चलते हैं मानो स्वयं को ‘अस्पृश्य’ बना लिया हो । इलाहाबाद के दौना गाँव की दलित महिला शिवपती को निर्वस्त्र करनेवाले दबंग पिछड़ों का बचाव इसी जाति का बसपा विधायक खुले आम करता है । शरीर श्रम की अप्रतिष्ठा दिलों में भर कर मंदल विरोधी छात्र सड़कों पर जूता-पॉलिश करने ,कपड़े धोने और सब्जी बेचने को ‘अहिंसक प्रतिकार पद्धतियों में शामिल करा चुके हैं । मौजूदा परिस्थिति की इन दुखद झलकियों को धुंधला करके इस विषय पर बहस करना बेमानी है और बेईमानी भी ।
अंबेडकर जी व गाँधी जी दोनों को हमारी पीढ़ी व हमारे बच्चों की पीढ़ी के लिए समझना बहुत आवश्यक है । हम उन्हें इतने सतही तौर पर जानते हैं कि बिना समझे ही हम उनके विरुद्ध बोल जाते हैं , जबकि ऐसा करने के लिए हमें उनके बारे में बहुत कुछ समझना होगा । हमें उनके विचारों से अवगत कराने के लिए धन्यवाद ।
घुघूती बासूती
मिट्टी की पट्टी ताप हरती है. शायद मायावती का भी इससे कुछ भला हो.
गांधी जी का अम्बेडकर के बारे में यह कथन गांठ बांधने लायक है कि ” मेरे और उनके बीच ज्यादा मतभेद की गुंजाइश नहीं है क्योंकि अधिकतर मामलों में ऐक्य है । मतभेद की मुझे परवाह नहीं है । मेरे पास सवर्णों से कर्ज अदा करवाने के सिवाय दूसरा काम नहीं है ।”
हम अगर इस तथ्य पर ठीक-ठीक ध्यान दें तो समझ के आईने पर जमी धूल तो हटेगी ही , दिमाग के जाले भी साफ़ हो जाएंगे .
दरअसल गांधी ही मिट्टी की वह पट्टी हैं जिसका प्रयोग भारतीय समाज अपने माथे पर करे– उसे अपने माथे पर धरे — तो प्राकृतिक रूप से बिना किसी पश्चिमी ढंग को अपनाए उसका उपचार हो सकता है .
अफ़लातून भाई! आपके प्रति आभार ही प्रकट कर सकता हूं , इस समझदारी से भरे बेहद ज़रूरी लेख के लिए . न पढता तो दरिद्र रहता .
मायावती – कांशीराम द्वारा छेड़ी गयी बहस गांधीजी के कथित पैरवीकारों तथा डॉ. अम्बेडकर के तथाकथित उत्तराधिकारियों के सिर पर चढ़ती नजर आ रही है इसलिए मिट्टी की कुछ पट्टियाँ ढूँढ़ने का प्रयास जरूरी है
सही बात.
[…] भाग १ […]
[…] भाग १ […]
[…] भाग १ […]
[…] भाग १ […]
dalit sattaseen neta दलितों के हितों की हिफाजत के नाम पर अपनी अति उच्च राजनैतिक मह्त्वाकान्छा पूरी करने में लगा हैं
gaandhi yahan jhooth kah rahe the
ambedkar se unka aikya kaise ho skta tha?
gandhi varna vyavasthhak the ke samrthhak the aur ambedkar katu virodhi…
[…] गांधी – अम्बेडकर और मिट्टी की पट्टिय… […]
[…] गांधी – अम्बेडकर और मिट्टी की पट्टिय… […]
kis kis mudde par ekmat the ,,kis par matbhed pls ise bataye
both leaders are karmyogi and they want that his followers understand reality
[…] […]
[…] गांधी – अम्बेडकर और मिट्टी की पट्टिय… गांधी , अम्बेडकर और मिट्टी की […]
Reblogged this on तिरछी नजरिया and commented:
गांधी बनाम आंबेडकर की बहस में श्री अफलातून की यह लेखमाला एक आवश्यक संदर्भ है। सात खंडों की यह लेख माला इस विषय में रुचि रखने वालों के लिए एक महत्वपूर्ण पक्ष सामने रखती है।