१९६७ -६९ की कुछ राजनैतिक घटनाओं की तस्वीरें मेरी याददाश्त का हिस्सा बन गयी है। मेरी उमर आठ – दस साल की । ‘६७ में गैर कांग्रेसवाद की कई सूबों में सफलता और १९६९ में गाँधी की जन्म शताब्दी । गांधी की जन्म शती के मौके पर दुनिया के कई हिस्सों के ‘गाँधी’ भारत आये थे । सरहदी गाँधी – बादशाह ख़ान , फ्रान्स के गांधी – लान्ज़ो देल्वास्तो , मेक्सिकी खेत मजदूरों के गांधी प्रभावित नेता सीज़र शावेज , इटली के दानिलो दोलची । दिल्ली के हरिजन सेवक संघ में बादशाह ख़ान का कार्यक्रम था तब उनसे मिलने देश की कई हस्तियाँ वहाँ मौजूद थीं – ‘भारत में अंग्रेजी राज’ अंग्रेजों द्वारा प्रतिबन्धित उस अमर किताब के लेखक पण्डित सुन्दरलाल – लम्बी झक दाढ़ी के साथ , अंग्रेजों की जेल में रहने के बाद नेहरू द्वारा बरसों गिरफ़्तार रखे गए शेर-ए- कश्मीर शेख़ अब्दुलाह – मेरी बा जब उनसे मिलाने ले गयी तो मैंने उनसे कहा ,’दहाड़िए’ और वे दहाड़े भी । और हिन्दी ,देवनागरी की सेवा करने वाले काका साहब कालेलकर जिन्होंने पहले पिछड़े वर्ग आयोग की सदारत की थी । इन शक्सियतों के दर्शन का यह एक लाभ तो है ही कि उनके द्वारा किए गए देश के लिए काम का स्मरण होता है ।
१९६७ में गैर कांग्रसवाद का नारा देते वक्त लोहिया यह भी चाहते थे कि वैचारिक आधार पर एक विकल्प बने। उनकी एक बात गैर कांग्रेसी मोर्चे की बाबत बहुत महत्वपूर्ण थी।“जनसंघ की एक पहाड़ साम्प्रदायिकता से कांग्रेस की एक बूँद साम्प्रदायिकता ज्यादा खतरनाक है क्योंकि वह सत्ता में है । इसी प्रकार कम्युनिस्टों की एक पहाड़ गद्दारी से कांग्रेस की एक बूँद गद्दारी ज्यादा खतरनाक है”। लगातार २० वर्षों से केन्द्र में एक दल का शासन था। केन्द्र में पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनने में और दस साल लग गए। जनसंघी पृष्टभूमि के राजबली तिवारी १९७७ में जब बनारस में विधान सभा चुनाव लड़े और जीते तब ‘रजब अली’ को जिताने में मुसलमान पीछे नहीं थे। जनसंघी सोचते थे कि ‘रजब अली’ कहने पर वोट मिलेगा । तानाशाही के खिलाफ़ जम्हूरियत को बचाए रखने के लिए केले के खम्भे को भी जनता वोट देने के लिए तैयार थी।
याद कीजिए इन्दिरा गाँधी की हत्या के बाद का चुनाव । स्वर्ण मन्दिर में सैनिक कार्रवाई की आलोचना का माने आप गद्दार हैं । भूल जाइए कि अकालियों और किसा्नों के आन्दोलन से पंजाब में हाशिए पर जा रही कांग्रेस ने भिंडरावाला को ‘सन्त’ का दरजा दिया था । एक छोटे अल्पसंख्यक समूह को ‘गद्दारी’ के साथ जोड़ कर चुनाव अभियान चलाया तो ‘संघ’ ने भी मान लिया कि हिन्दू हित कांग्रेस देखेगी , दो उसीका साथ । भाजपा आ गयी लोकसभा में दो सीटों पर । जम्मू क्षेत्र की जो सीटें आजादी के बाद से हमेशा जनसंघ जीतती थी वे भी पहली बार गईं कांग्रेस की झोली में । पहली बार रीडिफ़्यूज़न नामक बहुराष्ट्रीय कम्पनी से कांग्रेस ने प्रचार करवाया । अखबारों में पूरे-पूरे पन्ने के प्रभावशाली (भय पैदा करने में) विज्ञापन छपते थे – ‘क्या आप चाहते हैं कि देश की सीमा आपके घर की चौहद्दी तक आ जाए?’ कांग्रेस को उस बार मिली सीटें अब तक की सब से बड़ी सफलता और सबसे बड़ा बहुमत रही हैं ।
बहरहाल , अब केन्द्र में भाजपा भी सत्ता में रह चुकी है । सत्ता में रहने पर निश्चित तौर पर उसकी फिरकापरस्ती खतरनाक हो जाया करती है। पूर्वोत्तर के राज्यों और कश्मीर की बाबत ‘संघ’ के कैडरों के दिमाग में जितनी सतही नासमझी भरी रहती है उससे जिम्मेदार रूप में सरकार में रहने पर भाजपा को रहना पड़ता है । राजग सरकार भी उन अलगाववादी समूहों से बात की कोशिश करती है । जम्मू कश्मीर विधान सभा में भाजपा के कितने विधायक हैं ? और अहोम के अलावा बाकी पूर्वोत्तर के सूबों की विधान सभाओं में ? सिफ़र !
कई मित्र यह कह रहे हैं कि आतंकवाद के खिलाफ़ लड़ाई राजनैतिक नहीं होनी चाहिए । मुख्यधारा की राजनीति की कमियों और कुछ नेताओं के अललटप्पू बयानों के कारण उनके दिमाग में यह ग़लतफ़हमी है । ‘दिल्ली के जामिया नगर में हुई पुलिस मुठभेड़ फर्जी थी ‘ कई मुस्लिम समूह और मानवाधिकार संगठन यह मान रहे हैं । इस सन्दर्भ में इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा न्यायमूर्ति रामभूषण मल्होत्रा द्वारा दिया गया एक फैसला महत्वपूर्ण है। रामभूषणजी नहीं चाहते कि उनके नाम के आगे न्यायमूर्ति लगाया जाए । चूँकि यह उनके द्वारा दिए गए फैसले की बात है इसलिए ‘न्यायमूर्ति’ लगाना उचित है। अपने फैसले हिन्दी में देने के लिए भी उन्हें याद किया जाएगा। उक्त फैसले में कहा गया था कि जब भी पुलिस ‘मुठभेड़’ का दावा करती है उन मामलों में (१) मृतकों के परिवार को पुलिस द्वारा सूचना दी जाएगी तथा (२) ऐसे सभी मामलों की मजिस्टरी जाँच होगी । यदि यह घटना जामिया नगर की जगह नोएडा में होती तो इन दोनों बातों को खुद-ब-खुद लागू करना होता।घटना की जाँच की माँग एक अत्यन्त साधारण माँग है तथा पूरी पारदर्शिता के साथ इसे पूरा किया जाना चाहिए ।
इन मानवाधिकार संगठनों और मुस्लिम समूहों से भी हम रू-ब-रू होना चाहते हैं । इतनी गम्भीर परिस्थिति में बस इतना संकुचित रह कर काम नहीं चलेगा । आतंकी घटनाओ और उसके तार देश के भीतर से जुड़े़ होने की बात पहली बार खुल के हो रही है। इसका सबसे ज्यादा खामियाजा भारत के तमाम अमनपसंद मुसलमानों को भुगतना पड़ रहा है । इन घटनाओं के बाद संकीर्ण सोच वाले साम्प्रदायिक समूह हर मुसलमान को गद्दार बताने का अभियान शुरु कर चुके हैं, आगामी लोकसभा निर्वाचन में वोटों के ध्रुवीकरण की गलतफहमी भी वे पाले हुए हैं । आतंकवाद से मुकाबले की नाम पर क्लोज़ सर्किट टेवि जैसे करोड़ों के उपकरण खरीदें जायेंगे और इज़राइली गुप्त पुलिस ‘मसाद’ से तालीम दिलवाई जाएगी । कैनाडा और अमेरिका मे रहने वाले अनिवासी भारतीयों से पूछिए कि पैसे कि ताकत पर कैसे यहूदी लॉबी नीति निर्धारण में हस्तक्षेप करती है ? इन सब से गम्भीर और नुकसानदेह बात यह है कि मेधावी तरुण यदि ‘आतंक’ में ग्लैमर देखने लगें तो उन्हें उस दिशा से रोकने और अन्याय की तमाम घटनाओं के विरुद्ध राजनैतिक संघर्ष से जोड़ने का काम कौन करेगा ? यह काम मुख्यधारा की राजनीति से जुड़ा कोई खेमा शायद नहीं करेगा।
एक मुस्लिम महिला पत्रकार और कवयित्री ने अपने चिट्ठे पर लिखा , ‘कि दिल्ली का बम काण्ड करने वाले जरूर हिन्दू रहे होंगे’। अत्यन्त सिधाई से उन्होंने यह बात कह दी। मैंने यह देखा है कि शुद्ध असुरक्षा की भावना से ऐसी बातें दिमाग में आती हैं ।‘काम गलत है, इसलिए जरूर हमारे समूह का व्यक्ति न रहा होगा’ – यह मन में आता होगा । राष्ट्रीय एकता परिषद , सर्वोच्च न्यायालय और संसद के सामने बाबरी मस्जिद की सुरक्षा की कसमे खाने वाली जमात ने जब उस कसम को पैरों तले मसलने में अपना राष्ट्रवाद दिखाया तब किसी हिन्दू के दिमाग में क्या यह बात आई होगी कि जरूर यह काम हमारे समूह से अलग लोगों ने किया होगा ? जिन्हें लगता है कि “वह काम सही था और इसीलिए हमारे समूह ने किया” – उन राष्ट्रतोड़क राष्ट्रवादियों से हमे कुछ नहीं कहना , उनके खतरनाक मंसूबों के खिलाफ़ लड़ना जरूर है ।
मैंने आतिफ़ का ऑर्कुट का पन्ना पढ़ा है जिसमें वह फक्र के साथ एक फेहरिस्त देता है कि किन शक्सियतों के आजमगढ़ से वह ताल्लुक रख़ता है – ……. राहुल सांकृत्यायन , कैफ़ी आज़मी । चार लोगों को जिन्दा जमीन में गाड़ देने वाले भाजपा नेता (पहले सपा और बसपा में रहा है) रमाकान्त यादव या भारत की सियासत के सबसे घृणित दलाल अमर सिंह का नाम नहीं लिखता ! ऐसा कोई तरुण घृणित , अक्षम्य आतंकी कार्रवाई से जुड़ता है , उन कार्रवाइयों की तस्वीरें उतारता है तो निश्चित तौर पर इसकी जिम्मेदारी मैं खुद पर भी लेता हूँ । अन्याय के खिलाफ़ लड़ने का तरीका आतंकवाद नहीं है । आजमगढ़ के शंकर तिराहे के आगे , मऊ वाली सड़क पर प्रसिद्ध पहलवान स्व. सुखदेव यादव के भान्जे के मकान में समाजवादी जनपरिषद के दफ़्तर के उद्घाटन के मौके पर आजमगढ़ के सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता और फोटोग्राफर दता ने राहुलजी का लिखा गीत दहाड़ कर गाया था – ‘ भागो मत ,दुनिया को बदलो ! मत भागो , दुनिया को बदलो ‘ । आजमगढ़ के तरुणों से यही गुजारिश है ।
शायद आज के समय में सबसे बड़ी जरुरत है है की न सिर्फ़ मुस्लिम युवक बल्कि मुस्लिम बुद्धिजीवी भी सामने आयें. जो गुमराह हो रहे हैं उन्हें सँभालने की जरुरत है
यह संक्रमण काल है, लोगों की भावनाएँ, मान्यताएँ सब कुद संक्रमित हो रही हैं। छोटी सी बात पर पूरी कौम को निशाना बनाया जा रहा है, वह भी साजिशन। आपने इन सारी स्थितियों पर ईमानदारी से लिखा है, बधाई स्वीकारें।
िलकुल नही भाग रहे अफ़लातून जी बस बम फ़ोड कर दुनिया को बदलने मे लगे है . जब आप जैसे लोग साथ मे है तो जल्दी ही बदल भी देगे
अफलातून जी आपने बिल्कुल सही व्याख्या की है हालात की, शत प्रतिशत आपके विचारों से सहमत हूँ, कृपया ये विडियो अवश्य देखें बहा के लहू इंसा का…
संदेश सही है. दुनिया बदलने की शक्ति नौजवानों में ही है. लेकिन नौजवानों का इस्तेमाल ऐसी शक्तियां कर रही हैं जिनका मकसद दुनिया बदलना नहीं, तबाह करना है.
दुआ है कि आपका यह संदेश ज्यादा से ज्यादा सही लोगों तक पहुंचे.
हकीक़त क्या है !ये न तो राजनेता समझने देते हैं और न ही मीडिया और हम आज जिस दौर से गुज़र रहे हैं अफलातून जी इसमें निस्चित तौर से मीडिया सब से ज्यादा प्रभावशाली तरीके से नेताओं की आवाज़ एक झोपडी तक में पहुंचा रहा है! अब बात आती है की मीडिया से नुक्सान कैसा है..? कोई भी खबरिया चैनल देख लीजिये उसमे झूट का बड़ा बड़ा पुलिंदा दिखाई देता है! जैसे कुछ दिनों पहल एक बड़े न्यूज़ चैनल ने दिखया था अमेरिका में नेवाडा का एरिया ५१ जहाँ एलियन के रहने का विडियोटेप दिखया जा रहा था और उसी के अग्लेदीन दुसरे बड़े चैनल ने दिखया की एरिया ५१ में बंदरों में बीमारी फ़ैल गयी थी और जो एलियन बता कर लोगों को दिखया गया वो बल झाडा बन्दर था!अब बात करते हैं इसको देखने के बाद भी मीडिया की बातों पर भरोसा कर के कैसे लोग उत्तेजित हो जाते हैं अगर यही खबर मीडिया सयम में रह कर दिखाए तो योगी आदित्यनाथ पर हमले के बाद आजमगढ़ से गोरखपुर तक मिनटों में दंगे न भड़के होते…..!
यहाँ के आगे बात करते हैं आतंकवादिओं पर जो आज शायद मुस्लिम और इस्लाम के लिए एक बहोत बड़ी मुसीबत बन कर खडी है इसलाम और मुस्लिमों का जिक्र इसलिए कर रहा हूँ की जहाँ भी धमाके हो रहे हैं या हुवे हैं वहां कोई मुस्लिम न मारा हो ऐसा नहीं कहा जा सकता आज जिस तरह से मुस्लिमो को निशाना बनाया जा रहा है चाहे वो आतंकवादी बना रहे हों या पुलिस मुस्लिम कौम दो तरफा परेशानियों से रूबरू है लेकिन इसका मतलब ये नहीं की मै मुस्लिमो को पाक साफ़ बता रहा हूँ जैचंद तो हर जगह होते हैं! आज आतंकवाद से लड़ने के लिए नेताओं की लम्बी चौडी तक़रीर की या अपने आप को देश भक्त बताने के लिए हिन्दू होने की ज़रूरत नहीं बल्कि ज़रूरत है जागरूकता की इसके लिए काम करने की लोगों के बीच जा कर सीधे संवाद कायम करने की और ऐसे जगह लोगों को जागरूक करने की जहाँ भुकमरी बेरोज़गारी और अशिछा का बोल बाला है!और मुस्लिमो को आतंकवादी बताने वाले क्या ये नहीं जानते की बिहार में रणवीर सेना,बंगाल में माओवादी,उडीसा में बजरंगदल,और पुरे भारत में जड़ जमा चुके नक्सलवादी कौन हैं इनका धर्म क्या है नॉर्थ ईस्ट में क्या हो रहा है और कौन कर रहा है लेकिन इनसब बातों से कोई फायदा नहीं आज हम सभी को मिल कर आतंकवाद के खिलाफ खडा होना होगा बिना किसी राजनेतिक दल के ……….बिना किसी भेदभाव के और ऐसे सभी लोगों से बचना होगा जो इसका राजनैतिक इस्तेमाल करते हैं!और साथ ही साथ ऐसे लोगों को नज़र अंदाज़ करना होगा जो लोगों को हमेशा बदकाने का काम करते हैं और पिरिंट मीडिया हो या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया इनको फाएर ब्रांड नेता का खिताब देती है!और ये लोग जनता को साम्प्रदायिकता की चक्की में नरेन्द्र मोदी जैसे लोगों के हाथ पिसवा देते है! तो मेरे हमवतन भाइयों आज ज़रूरत है आपस में मिल कर काम करने की नाकि एक दुसरे को देश द्रोही या देश भक्त बताने की……इसी के साथ अपनी बातें ख़त्म कर रहा हूँ अगर कोई गलती होगी तो उसके लिए मै माफ़ी चाहूँगा!
आप सभी का हमवतन भाई {गुफरान सिद्दीकी}ghufran.j@gmail.com
aapne sahee gaur farmaya hai. भागो मत ,दुनिया को बदलो ! मत भागो , दुनिया को बदलो ‘ ।
आतंकवाद के तरुणों से ही क्यों? सभी तरुणों से यही गुहार है… भागो मत दुनिया को बदलो।
अच्छा लेख.
“पूर्वोत्तर के राज्यों और कश्मीर की बाबत ‘संघ’ के कैडरों के दिमाग में जितनी सतही नासमझी भरी रहती है ”
इस पर मुझे इतना ही कहना है की सत्तर साल पहले पाकिस्तान का विचार भी लोगो को दिमागी फितुर लगता था, आज सच्चाई सबके सामने है.
सही!
बहुत बढ़िया लेख लिखा है आपने. सचमुच आज जिस हथियार से हमें गरीबी की बेडियाँ काटनी हैं उन से हम लोग एक दूसरे को काट रहे हैं.. बेगुनाहों का खून बहाया जा रहा है. दिशाहीन हो गयी है आज की पीढी.. सार्थक लेख के लिए आभार
बेंगाणी जी से सहमत, आजकल हर बात के लिये संघ को दोष देना भी एक फ़ैशन बन चुका है… पूर्वोत्तर की स्थिति आज कितनी बदतर है यह कोई बताने की बात नहीं है, लेकिन सेकुलर लोगों को सिर्फ़ वही दिखाई देता है जो उनके पक्ष का हो, चाहे पूर्वोत्तर में जनसंख्या सन्तुलन खतरनाक स्तर तक पहुँच जाये, या भारत में चर्चों की संख्या में अचानक वृद्धि हो जाये, कोई आँकड़ा नहीं माना जायेगा, क्योंकि संघ कह रहा है। और जब कश्मीर जैसी समस्या सिर पर आन खड़ी हो जाती है, सरेआम भारत का तिरंगा जलाया जाने लगता है उस वक्त भी संघ पर ही दोष मढ़ा जाता है…
आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूँ…भागने से कुछ हासिल नही होता, उल्टा झूठे इल्जाम हाथ आते हैं…सच्चाई अगर साबित करनी है तो सामने आना होगा…हिम्मत दिखानी पड़ेगी..माना हालत बहुत ख़राब हैं लेकिन सच्चाई कितने दिन छिपाई जासकती है…बहुत ही शानदार पोस्ट…मुबारक हो आपको..
एक चीज बड़ी शिद्दत से समझने की जरुरत है कि ये सभी का देश है यकीन मानिये दोस्तों आतंकवाद को कोई सही नही ठहराता है बस सवालों के जवाब ढूढने कि कोशिशे हैं
ये वो सवाल हैं जिनके जवाब पर हमारे समय का इतिहास बनेगा
हम में से कुछ लोग बेशक किसी एक कॉम को समस्या कि जड़ मान लेते हैं
वो कहाँ तक सही हैं हम नही कहना चाहते
हम सिर्फ़ यही कह रहे हैं कि जब हम सवालों के जवाब खोजने निकलें तो उनपर तार्किक बहसें हों
देश में लोकतंत्र है
ये लोकतंत्र सभी का है और सभी को समस्याओं के समाधान खोजने कि जरुरत है
जो भागना चाहते हैं या जो कायर तरीके अपनाते हैं, दिल्ली से कंधमाल तक और गुजरात से कश्मीर तक
उन्हें बातें समझनी होंगी
भागो नहीं, बदलों वाला आपका लेख पढ़ कर मुग्ध हो गया।
जो अनिश्चय हैं सार्वजनिक काम में उतरने के, वे कम हुए। फिर भी इस नदी में कूदते हुए बहुत डर लग रहा है। सब कुछ तैयार है, बस निर्णय का वह क्षण नहीं आ रहा जब भविष्य साफ़ नज़र आता है।
भागो नहीं दुनिया (भारत) को बदलो का संदेश भले ही आज मुसलमानों के लिए विशेष हो, पर यह तो हर समय और हर देश के लिए संदेश है। अंततः तो भागता कोई नहीं है। गौतम बुद्ध और महावीर भी इसी जमीन का अन्न खाते थे। लोग सिर्फ अपनी जिम्मेदारी से भागते हैं। भाग कर आतंक मचानेवाले अपनी इनसानियत, बौद्धिकता तथा सामाजिकता से भागते हैं। वे सोचते हैं कि बदला ले कर समस्या का हल निकाल रहे हैं। अगर वे गौर से देखना मंजूर करें, तो वे भी देख पाएंगे कि इससे समस्या बढ़ ही रही है। गांधी जी का कहना है कि अगर ‘आंख के बदले आंख’ के सिद्धांत पर सभी चलने लगें, तो पूरी दुनिया ही अंधी हो जाएगी।
रा.
बहुत अच्छा सामयिक लेख है, मुस्लिम बच्चे अपनी वेदना और भय अगर व्यक्त नहीं कर पा रहे तो सिर्फ़ हमारी संकीर्ण मानसिकता , अविश्वास का जहर इतना भीतर तक भर चुका है की कुछ भी शुभ सोचने और मानाने का प्रयत्न ही नही करना ! शुभकामनाएं !
किसी ने कहा कि किसी देश को बरबाद करना है तो उस देश के युवा को बरबाद कर दो देश खुद ब खुद बरबाद हो जाएगा.
देश की युवाओं से यही अपील है कि धार्मिक उन्मादता छोड़कर देश को सकारात्मक बदलाव के लिए पहल करनी चाहिए.
समस्या की जडों को सामने लाने वाले ऐसे आलेख कहीं नजर नहीं आते । आपने ‘चोर’ को नहीं, ‘चोर की मां’ को पकडा है । लोग ‘मनुष्यों’ को सुधारने में लगे हैं तबकि ‘मानसिकता’ सुधारने की जरूरत है । सारी समस्या यह मानसिकता ही है । मूर्खता का जवाब मूर्खता से देने को ही राष्र्ट्रवाद मानने के अन्धातिरेक में ‘संघ’ ने ‘हिन्दू आतंकवाद’ की देन अपने खाते में जमा नहीं की, ‘दुधमुंहे शिशु की निश्छल हंसी’ जैसे हिन्दू धर्म के मायने बदलने का पातक भी अपने नाम लिख्ावा लिया है ।
प्रत्येक धर्म ‘आत्म- निरीक्षण, आत्म-परीक्षण और आत्म-शोधन’ की बात करता है लेकिन भाई लोग ‘धार्मिक पोलिसिंग’ में लग गए हैं । अपनी गरेबान में झांकने के बजाय दूसरों की गलतियां ढूंढी जा रही हैं ।
आपका आव्हान केवल मुसलमान युवकों पर ही लागू नहीं होता, हिन्दू धर्म पर कालिख पोतने पालों की हरकतों से उद्विग्न हिन्दुओं पर भी लागू होता है ।
भय से मुक्ति का एक ही उपाय है – उससे भिड जाना ।
इसके सिवाय और कोई चारा नहीं है ।
आपकी बात सुनी जाएगी, यह भरोसा किसी को हो न हो, मुझे तो है ।
भाई विजय वाते के शेर की एक पंक्ति में बदलाव करते हुए कह रहा हूं – ‘बात मेरी थी, तुमने कही, अच्छा लगा ।’
लेख अच्छा था. भारत के लीए मुसलमानों को साथ लेना जितना ज़रूरी है उतना ही मुस्लिम लोगो के लीए भी ज़रूरी है की वे भारत के साथ आये, अगर वे वास्तव में लोकतंत्र का आनंद उठाना चाहते है. और ये काम मुस्लिम बुद्धिजीवी ही कर सकते है. पर धार्मिक बुद्धिजीवी अपने आप में एक मजाक सा आज कल लगाने लगा है
किताब पर यकीन करने वाले क्या सच्चाई पर यकीन करेंगे
‘भागो मत’ लेख बहुत उम्दा है।
– – डॉ. अनिल सद्गोपाल
भोपाल
बिलकुल सटीक लिखा है आपने. एकदम निष्पक्ष. दरअसल आज कल मीडिया भी हिन्दू-मुस्लिम या सिख-इसाई के चश्मे से देखकर लिखता है. बकौल असगर वजाहत साहब (हिंदी दैनिक आज-समाज के ३० सितम्बर, २००८ के अंक में प्रकाशित एक लेख से साभार) – ” मुसलमान की सामान्य छवि एक जागरूक, बौद्धिक , संपन्न नागरिक की नहीं है. समुदाय की छवि बनाने का काम मीडिया भी करता है परन्तु प्राय: देखने में आया है कि मुस्लिम समाज सम्बन्धी नेगेटिव बिन्दुओं को तो मीडिया बहुत रूचि लेकर दिखाता है लेकिन मुस्लिम बुद्धिजीवियों की उपलब्धियों, मुस्लिम विश्व विद्यालयों के विभिन्न कार्यक्रम, देश और समाज हित में काम करने वाले मुसलमान मीडिया को नज़र नहीं आते”.
सच बात तो ये है कि मुस्लिम युवा भटक रहा है तो उसके पीछे कट्टर धार्मिकता का नहीं, अशिक्षा, बेरोज़गारी, और देश की मुख्य धारा से कटा हुआ महसूसने की कुंठा ज्यादा जिम्मेदार है, जिसका फायदा गलत लोग उठा रहें हैं. मुस्लिमों को लगातार दो मोर्चों पर लड़ना पड़ रहा है. एक तो मुस्लिमों के प्रति संकीर्ण मानसिकता रखने और उन्हें राष्ट्रविरोधी बताने वालों से, दूसरी तरफ अपने ही समुदाय के उन गलत लोगों से, जिनके गलत कामों का खामियाजा भी उसे ही भुगतना पड़ रहा है. जिनके कामों की वजह से उसे समाज से अलग थलग होने की सजा भुगतनी पड़ रही है. लेकिन उसकी इस दशा को समझने वाला कोई नहीं है. आप जैसे चंद लोग हैं जिनके साथ वो अपना दर्द बाँट लेता है.
एक अच्छी पोस्ट लिखने के लिए आपका आभार!
मुस्लिम युवा क्यों भटक रहा है?
सब एकदूसरे पर ऐसे ही उंगली उठाते हैं
मेरी टिप्पणी बहुत लमबी होसकती है अफ़लातूनजी
मैं अपने चिट्ठे पर ही आपके इस लेख का जवाब दूंगा।
कुछ कहना भूल गया, आपने एक अच्छे मुद्दे पर आवाज़ उठाया है। मैं आपको मुबारकबाद देता हूं इस लेख पर।
आपकी इस पोस्ट के लिये मैं आपको तहे दिल से मुबारक बाद देती हुं।
विष्णुवैरागी जी कि बात भी सही है।
मेरा यह मानना है कि पहले ये कहा जाता था कि मुस्लिम ज्यादातर निरक्षर होते है इसीलीये बहक जाते हैं।पर अब हालात ओर है आजकल पढेलिखों पर ज़्यादा तवाइ हो रही है।मैं ये कहुंगी कि जो गुनाहगार हैं उन्हें बिल्कुल सज़ा होनी चाहिये पर …अगर निर्दोष हैं तो……….?
ऐसे निर्दोषों को फ़साकर हम सिर्फ़ उनका केरियर ही नहिं बल्कि उनके जैसे कंइ नौजवानों का केरियर बर्बाद कर रहे हैं।
हम एक ऐसा समाज पैदा कर रहे हैं जो शायद हमारे देश की “एकता” के लिये ख़तरा हो सकता है।देश विरोधी कइं ताक़तें हमारे देशको ख़ोखला कर देगीं।
ज़रूरत है सभी नेता, धर्मौपदेशक,समाज,विध्यार्थी,शिक्षक और मिडीया अपने कर्तव्य को सही दिशा तरफ ले जायें। और भटके नौजवानों को सही राह दिख़ाएं।
यहां यह बहस और सार्थक हो गयी है, क्योंकि कुछ हमारे हमवतन मुस्लिम भाईयों और बहनों ने भी अपना दर्द बयां किया है. गुफरान भाई के क्षमा मांगने से मैं अपने आप की नज़र में और अंदर कहीं टूट गया , खड्ड में गिर गया. वो सत्य कह रहे है, तो भी क्षमा क्यों मांग रहे है. हम सभी इसके लिए जिम्मेदार है.
वैसे माओवादी, नक्सलवादी या ऐसे ही संगठन उन श्रेणी में नही आ सकते जिन्हें हम धार्मिक आतंकवादी कहती है, क्योंकि उनका आतंकवाद का अजेन्डा धार्मिक नही होता. मगर है सभी ताड़न के अधिकारी.
पूर्वोत्तर राज्य के असंतुलन पर मुझे अपना एक व्यक्तिगत संस्मरण याद है, जो मुझे मेरे पिताश्री महामहोपाध्याय प्रो. प्र.ना. कवठेकर ने बताया था.
यह उन दिनों की बातें हैं जब वहां अलागाववादियोंने जोर पकड़ना शुरू ही किया था. केन्द्र में इंदिरा गांधी की सरकार थी. मेरे पिताजी तब केंद्रिय संस्कृत बोर्ड के अध्यक्ष थे.
संस्कृत के अखिल भारतीय स्वरुप को और बृहद कराने पर बैठक चल रही थी, स्वयं इंदिराजी के अध्यक्षता में. पिताजी ने यह सुझाव दिया था की पूर्वोत्तर राज्यों में हमें संस्कृत का प्रसार एक नीतिगत व्यवस्था से करना होगा, जिससे वे, हमारी संस्कृति और परम्परा से कटें नही.
इंदिराजी को सुझाव बड़ा पसंद आयाही था की एक कांग्रेसी मंत्री नें यह कह कर खलल डाला की यह बात साम्प्रदायिक लगती है. यह एक हिन्दू अजेंडा है. दुर्भाग्य से मराठी भाषी होने से पिताजी पर संघ का लेबल लगा दिया था.
तब डा. करण सिंग ने, जो बोर्ड के तत्कालीन पूर्व अध्यक्ष थे , इसका जोरदार विरोध किया था. भारतीय संस्कृति और परम्परा, या संस्कार और साम्प्रदायिकता में फरक है, इस पर ही बहस चल पडी और मुद्दा ख़त्म हो गया. बैठक में एम् जी आर भी उपस्थित थे, जो हिंदी से बड़े द्वेष भाव रखते थे, मगर उन्होनें भी संस्कृत के लिए इस बात की पुरजोर वकालत की थी.
यहां उपरोक्त बात का इस परिप्र्येक्ष में महत्व है, कि हमारे यहाँ समीकरण बडी जल्दी बन जाते है, और लेबल लगाना एक आम शगल है. साम्प्रदायिकता का अर्थ अपने अपने तईं, अपने अपने स्वार्थ की बिना पर लगाए जा रहे है. मुस्लिम नवयुवक/युवतियां और बाकी सभी भी इससे लढे. अफलातून भी बधाई के पात्र है, जो यहां अपनी बात बेबाक रख तो रहे है.
मेरे ब्लॉग मानस के अमोघ शब्द पर ऐसी ही कुछ जंग मैंने भी छेड़ी है.कहीं तो कुछ होगा अवश्य.
bhago mat lek achha laga….lekh keval musalman bhaiyo par hi nahi varan un hindu bahiyo ke liye bhi hai jinka rajnitik hinsa me istemaal ho raha hai…jaroorat hai khud ke andar dekhne ki.
Orkut में जाकर आतिफ अमीन की प्रोफाइल देख लेते तो शायद नहीं छापते। बताओ कि कहां लिखा है आजमगढ़ की मूर्धन्य हस्तियों का नाम? सांप्रदायिकता से लड़ने का मतलब यह नहीं कि बिना जांचे परखे मासूम आतंकवादी कह मारें। फिर से देखो भैया और कहो। मेरा मतलब यह कतई नहीं है कि मुसलमान आतंकी है मगर इतना कहूंगा कि कोई मुस्लिम देश लोकतांत्रिक व्यवस्था नहीं बना पाया है। अब तो तुर्की में तक बंटाधार कर रखा है। दरअसल, हिन्दुस्तान में आप जैसे लोगों की वजह से हिन्दू राष्ट्र नहीं बना है। जो अच्छी बात है किंतु इस्लामी राष्ट्र में बुद्धीजीवियों के लिए कोई जगह नहीं है। अच्छा होगा कि उन्हें लताड़ो जिनकी चुप्पी या मौन की वजह से तालीबान हावी हो रहे हैं। हिन्दुस्तान के परिप्रेक्ष्य में आपकी भूमिका सराहनीय है जो मैं स्वीकारता हूं। पता है, हम लोग इस्लामी मान्यताओँ को बिला वजह सम्मान देते फिर रहे हैं जबकि दूसरी ओर हिन्दुओं से जुड़ी कुरीतियों को निशाना बनाने में जरा भी चूकते नहीं। अच्छा है कि हम अपनी बुराई देख लेते हैं किंतु हमे यह समझना होगा कि धार्मिक मूढ़ताएँ ही इन सबकी वजह हैं। ब्रह्मा को लताड़ने वाले कबीर दिखते हैं तो प्रोफेंट को रसिक कहने वाले सलमान का जिक्र करने से परहेज क्यों? समय आ गया है कि हम इन पौराणिक और धर्मपुरूषों को आज प्रासंगिक मानने से इंकार कर दे।
[…] […]
[…] […]
[…] मुसलिम नौजवानों-’भागो मत , दुनिया को … […]
मेरी समझ में यह लेख कम आया या नहीं आया। द्विवेदी जी की बात सही है कि सब लोगों के लिए मंत्र है- भागो मत, दुनिया को बदलो।
यह चिन्ता की बात है कि यह लेख आपको कम या नहीं समझ आया ।
भागो मत , दुनिया को बदलो’- राहुल सांकृत्यायन गीत की पंक्ति है,द्विवेदीजी की नहीं ।
राहुल जी का उपन्यास ही है भागो मत, दुनिया को बदलो। लेकिन यहाँ द्विवेदी जी की बात का जिक्र इसलिए किया क्योंकि सिर्फ़ मुस्लिम नवजवान ही क्यों, सभी युवाओं के लिए यह मंत्र आदर्श है।
[…] मेरा लेख पढ़ कर प्रख्यात शिक्षाविद एवं […]