[ मद्रास के प्रसिद्ध पत्र संडे आबजर्वर के सम्पादक श्री पी. बालासुब्रम्ण्या ने बाबा साहब के सम्मान में , २३ दिसम्बर १९४४ को वहाँ के कन्नेमारा होटल में एक लंच दिया था । ]
मित्रों ,जहाँ तक मैंने अध्ययन किया है , मैं कह सकता हूँ कि मद्रास की अब्राह्मण-पार्टी का संगठन भारत के इतिहास की एक विशिष्ट घटना है । इस बात को बहुत कम लोग समझ सकते हैं कि यद्यपि इस पार्टी का जन्म साम्प्रदायिकता के आधार पर हुआ था , जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट झलकता है , फिर भी इस पार्टी का मौलिक आधार और वास्तविक ध्येय साम्प्रदायिक नहीं था । यह कोई महत्वपूर्ण बात नहीं है कि अब्राह्मण पार्टी का संचालन किसने किया ? भले ही इसका संचालन किसी ’मध्य वर्ग’ ने किया हो , जिसके एक सिरे पर ब्राह्मण रह रहे हैं और दूसरे सिरे पर अछूत , तो भी यदि यह पार्टी लोकतंत्र पर आश्रित न होती , तो इसका कुछ मूल्य न होता । इसीलिए हर लोकतंत्रवादी को इस पार्टी की उन्नति और विकास में दिलचस्पी रही है ।
इस देश के इतिहास में जहाँ ब्राह्मणवाद का बोलबाला है , अब्राह्मण पार्टी का संगठन एक विशेष घटना है और इसका पतन भी उतने ही खेद के साथ याद रखी जाने वाली एक घटना है । १९३७ के चुनाव में पार्टी क्यों एकदम धराशायी हो गयी , यह एक प्रश्न है , जिसे पार्टी के नेताओं को अपने से पूछना चाहिए। चुनाव से पहले लगभग २४ वर्ष तक मद्रास में अब्राह्मण-पार्टी ही शासनारूढ़ रही । इतने लम्बे समय तक गद्दी पर बैठे रहने के बावजूद अपनी किसी गलती के कारण पार्टी चुनाव के समय ताश के पत्तों की तरह उलट गई ? क्या बात थी जो अब्राह्मण-पार्टी अधिकांश अब्राह्मणों में ही अप्रिय हो उठी ? मेरे मत में इस पतन के दो कारण थे । पहला कारण यह है कि इस पार्टी के लोग इस बात को साफ नहीं समझ सके कि ब्राह्मण-वर्ग के साथ उनका क्या वैमनस्य है ? यद्यपि उन्होंने ब्राह्मणों की खुल कर आलोचना की,तो भी क्या उनमें से कोई कभी यह कह सका था कि उनका मतभेद सैद्धान्तिक है । उनके भीतर स्वयं कितना ब्राह्मणवाद भरा था । वे ’ नमम’ पहनते थे और अपने आपको दूसरी श्रेणी के ब्राह्मण समझते थे। ब्राह्मणवाद को तिलांजलि देने के स्थान पर वे स्वयं ’ब्राह्मणवाद’ की भावना से चिपटे हुए थे और समझते थे कि इसी आदर्श को उन्हें अपने जीवन में चरितार्थ करना है । ब्राह्मणों से उन्हें इतनी ही शिकायत थी कि वे उन्हें निम्न श्रेणी का ब्राह्मण समझते हैं ।
ऐसी कोई पार्टी किस तरह जड़ पकड़ सकती थी जिसके अनुयायी यह तक न जानते कि जिस पार्टी का वे समर्थन कर रहे हैं तथा जिस पार्टी का विरोध करने के लिए उनसे कहा जा रहा है ,उन दोनों में क्या-क्या सैद्धान्तिक मतभेद हैं । उसे स्पष्ट कर सकने की असमर्थता , मेरी समझ में , पार्टी के पतन का कारण हुई है । पार्टी के पतन का दूसरा कारण इसका अत्यन्त संकुचित राजनैतिक कार्यक्रम था । इस पार्टी को इसके विरोधियों ने ’नौकरी खोजने वालों की पार्टी ’ कहा है ।मद्रास के ’हिन्दू’ पत्र ने बहुधा इसी शब्दावली का प्रयोग किया है। मैं उसक आलोचना का अधिक महत्व नहीं देता क्योंकि यदि हम ’ नौकरी खोजने वाले ’ हैं, तो दूसरे भी हम से कम ’नौकरी खोजने वाले’ नहीं हैं ।
अब्राह्मण-पार्टी के राजनीतिक कार्यक्रम में यह भी एक कमी अवश्य रही कि उसने अपनी पार्टी के कुछ युवकों के लिए नौकरी खोजना अपना प्रधान उद्देश्य बना लिया था। यह अपनी जगह ठीक अवश्य था। लेकिन जिन अब्राह्मण तरुणों को सरकारी नौकरियां दिलाने के लिए पार्टी बीस वर्ष तक संघर्ष करती रही, क्या उन अब्राह्मण तरुणों ने नौकरियाँ मिल जाने के बाद पार्टी को स्मरण रखा ? जिन २० वर्षों में पार्टी सत्तारूढ़ रही ; इस सारे समय में पार्टी गांवों में रहने वाले उन ९० प्रतिशत अब्राह्मणों को भुलाये रही, जो आर्थिक संकट में पड़े थे और सूदखोर महाजनों के जाल में फँसते चले जा रहे थे ।
मैंने इन बीस वर्षों में पास किये गए कानूनों का बारीकी से अध्ययन किया है । भूमि-सुधार सम्बन्धी सिर्फ़ एक कानून को पास करने के अतिरिक्त इस पार्टी ने श्रमिकों और किसानों के हित में कुछ भी नहीं किया । यही कारण था कि ’ कांग्रेस वाले चुपके से ’ चीर हरण,कर ले गये।
ये घटनायें जिस रूप में घटी हैं , उन्हें देखकर मुझे बहुत दुख हुआ। एक बात जो मैं आपके मन में बिठाना चाहता हूं, वह यह है कि आपकी पार्टी ही आपको बचा सकती है । पार्टी को अच्छा नेता चाहिए , पार्टी को मजबूत संगठन चाहिए , पार्टी को अच्छा प्लैट-फ़ार्म चाहिए ।
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डॉ. बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर जी जैसे मूर्धन्य विद्वान, इस धरा पर कम ही हुए हैं. सवर्णों के प्रति उनके विरोधी रुख़ का ‘पॉज़िटिव-सेंस’ यह था की दलितों के साथ भेदभाव और अन्याय न हो. उनकी टिप्पणियाँ, व्यवस्था-विरोधी हुआ करती थीं, सवर्णों के जातिगत विरोध-स्वरूप कभी नहीं.
कल 07/12/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
Satya Mitra Dubey
भाई अफलातून ! आप द्वारा दी गयी लिंक को ध्यान से पढ़ने के बाद भी, मैं अपनी कमजोरी स्वीकार करता हूँ कि मुझे यह स्पष्ट नहीं हो पाया कि यह बाबा साहब के भाषण का अंश है अथवा आप की अपनी टिप्पणी . बाबा साहब और दलित आन्दोलन की बात बिलकुल अलग है . जहाँ तक मद्रास प्रेसिडेसी के गैर–ब्राहमण आन्दोलन और जस्टिस पार्टी का सवाल है, यह अंग्रेज सरकार के जी हुज़ुरों – बड़े भूस्वामियों और राजाओं द्वारा गठित अत्यंत प्रतिक्रियावादी पार्टी थी . १९१३ में राजद्रोह नियंत्रक समिति की रिपोर्ट के बाद राष्ट्रीय आन्दोलन को कमज़ोर करने के लिए खुफिया तंत्र के प्रश्रय में इसकी स्थापना की गयी थी . इस सन्दर्भ में इसे हर संभव सहायता देने के लिए संग्रहालय में सुरक्छित तत्कालीन वाइसराय के गुप्त पत्र का अवलोकन किया जा सकता है. इस पार्टी ने अंत तक स्वराज का विरोध किया था . जलियायान वाले बाग़ हत्याकांड( १९१९) के बाद इस पार्टी ने हत्यारे जनरल डायर का अभिनन्दन किया था. जब २% ज़मींदार/ राजा वोटर होते थे तब यह मद्रास में राज ( १९१९-१९३७) करती रही . जब १३% वोटर शिक्छा के प्रसार , आजादी के आन्दोलन की प्रखरता और राजनीतिक सुधार के कारन १९३७ में हो गए तो मद्रास की देशभक्त और प्रगतिशील जनता ने इस दलाल पार्टी को दुतकार दिया था.
आजकल इतिहास के साथ रोज़ दुराचार होता है और इस तरह की बातों पर कब तक माथा पीटा जाय? लेकिन इस लिंक के साथ समाजवादी जन परिषद् ( डॉ लोहिया और किशन जी से प्रेरित) का नाम जुडा है, अतः मैं इन तथ्यों को सामने ला देना ज़रूरी समझता हूँ . इस तरह की निर्मूल बातों से समावेशी समाज बनाने का सपना खंडित होता है , इस नाते भी इसे सामने लाने की ज़रुरत समझ रहा हूँ.
आदरणीय सत्यमित्र दूबेजी,
मद्रास के प्रसिद्ध पत्र संडे आबजर्वर के सम्पादक श्री पी. बालासुब्रम्ण्या ने बाबा साहब के सम्मान में , २३ दिसम्बर १९४४ को वहाँ के कन्नेमारा होटल में एक लंच दिया था । इस लंच के समय जस्टिस पार्टी की आलोचना करते हुए बाबासाहेब ने यह भाषण दिया था | चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु द्वारा संकलित और संपादित ‘बाबासाहेब के पंद्रह व्याख्यान ‘ नामक पुस्तक से लिया गया है | प्रकाशक बहुजन कल्याण प्रकाशन , ३६०/१९३ मातादीन रोड , सआदतगंज , लखनऊ -३ | प्रथम संस्करण जुलाई , १९६५ .पृष्ट ५४ से ५७
यहाँ मेरी टिप्पणी थी…
आपकी टिप्पणी इस पोस्ट की फेसबुक की कड़ी के साथ थी है और है। अभी हमारे दिमाग पर कपि ल सिब्बल काबिज नहीं हुए।
इससे जुदा रही हो तो कृपया फिर भेजें। मैंने अपने इमेल में देख लिया,नहीं मिली।
बेहद रोचक जानकारी है…धन्यवाद्