* ” जो सरकार किसी भी प्रकार के लोकमत से चुनी गई हो ,चाहे वह फर्जी लोकमत ही क्यों न हो तथा कम से कम संवैधानिक- कानूनी दिखने वाली होगी वहाँ गुरिल्ला विद्रोह को बढ़ावा नहीं दिया जा सकता,चूँकि शान्तिपूर्ण संघर्ष की संभावनाओं को पूरी तरह आजमाया नहीं जा चुका होता है । ” चे ग्वारा, गुरिल्ला वॉरफ़ेयर ,भाग १ ,पृष्ट १४। नेट पर
** संपूर्ण क्रान्ति के दौर में लोकनायक जयप्रकाश नारायण लाखों की सभा में कहते थे , ’ माओ ने कहा कि राजनैतिक शक्ति का जन्म बन्दूक की नली से होता है । कितने लोगों को बन्दूक दिला सकते हो ? कोई थाना फूँक दोगे , डाकखाना फूँक दोगे,ये छिट-पुट छिट-पुट से काम नहीं चलेगा। हिंसा की बड़ी ताकत सरकार के पास है।बड़ी हिंसा छोटी हिंसा को दबाया दिया करती है। उसका मुकाबला अहिंसा से ही हो सकता है। ’जेल से ही स्वराज्य पैदा हुआ है । जेल से ही तुम्हारे अधिकार प्राप्त होंगे , जनता के अधिकार प्राप्त होंगे और सच्चा स्वराज्य मिलेगा।’ उन्होंने ५ जून ,१९७४ के ऐतिहासिक भाषण में कहा , ’यह संघर्ष अगर जन-संघर्ष है तो यह पुलिस के जवानों का भी है। क्या उनके सामने महँगाई का प्रश्न नहीं है, गरीबी का प्रश्न नहीं है ? उन्हें भी परिवार का पोषण करना है,बेटे की पढ़ाई का खर्च देना है ,बेटी की शादी करनी है ।’
भाकपा (माओवादी) हिंसा का रास्ता छोड़े । हिंसक कार्रवाई के लिए उसे साधन देश के बाहर से ही मिल रहे हैं । वैश्वीकरण और देश की प्राकृतिक सम्पदा की लूट के खिलाफ़ जहाँ जन आन्दोलन चल रहे हैं उन्हें सरकारी हिंसा के बल पर दबाने का अवसर माओवादियों की रणनीति से मिल रहा है ।
माओवादियों का मार्ग गलत है। उस का कड़ाई से विरोध किया जाना चाहिए। लेकिन साथ ही माओवादी पैदा होने के कारणों के विरुद्ध भी मोर्चा खोला जाना चाहिए।
जानकारीपरक आलेख।
भाकपा (माओवादी) हिंसा का रास्ता छोड़े । हिंसक कार्रवाई के लिए उसे साधन देश के बाहर से ही मिल रहे हैं।
माओवादी कम्युनिस्ट पार्टी तथा अन्य आतंकवादी गैंगों का ह्त्या, तस्करी और आतंक का मार्ग गलत है। उस का कड़ाई से विरोध किया जाना चाहिए। माओ और उसके बुतपरस्त सिर्फ गोली की भाषा समझते हैं। कोई भी “but-परन्तु-लेकिन-किन्तु…” इन हत्यारों को बढ़ावा ही देगी।
[…] This post was mentioned on Twitter by Vikram Kumar, afloo. afloo said: हिंसक रणनीति की सीमा: http://wp.me/p1BM2-ez […]
सही है!
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कोई भी वाद आदर्श ओर नैतिकता के झंडे तले शुरू होता है ….फिर गुजरते वक़्त के साथ .सत्ता ओर ताक़त का स्वाद जीभ से लगते ही …भटकने लगता है .लोग इस्तेमाल होते है ….कोई भी सरकार बुरी नहीं होती .उसको चलाने वाले लोग बुरे होते है ….जो हम आप जैसे लोग है …..तो बदलाव की कहाँ जरुरत है …..उसे लाने के लिए एक नया सामान्तर सिस्टम खड़ा करना जो गुजरते वक़्त के साथ इसी इन्फेक्शन का शिकार होने वाला है .खतरे को ओर बढा देना है ….अक्सर बुद्दिजीवी मार्क्सवाद को सपोर्ट करते है इसकी विचारधारा के तहत….पर बाद में मुद्दे ओर विचार हाइजेक हो जाते है…ओर इस रूप में सामने आते है …..