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Posts Tagged ‘नारायण भाई’

स्वाति और नारायण भाई
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नारायण भाई रवींद्रनाथ के गीत,कविताओं और साहित्य से अपनी प्रवासी बंगाली पुत्र वधु स्वाति से ज्यादा परिचित थे।उनके पिता ने भी गुरुदेव के गीत और शरद चटर्जी की कहानियां गुजराती में अनुदित की थीं।महादेवभाई ने गुरुदेव रचित धुन पर ही ‘एकला चलो’ का जो गुजराती अनुवाद किया वह गुजरात में अब भी लोकप्रिय है,सुंदर वीडियो भी बना है (टिप्पणी में वीडियो की कड़ी है)। नारायणभाई ने भी गुरुदेव की मूल धुन बरकरार रखते हुए ‘भेंगे मोर घरेर चाभी निए जाबी के आमारे’ का अनुवाद किया है।कुछ कविताओं का उनके द्वारा अनुवाद ‘रवि छबि’ नाम से एक संग्रह के रूप में छपा है तथा शिक्षा के विषय पर लिखे गुरुदेव के नाटक ‘अचलायतन’ का भी नारायण भाई ने अनुवाद किया था। गुजराती में नाटक उपलब्ध है अथवा नहीं,पता नहीं। बहरहाल, स्वाति को जो भी रवींद्र संगीत मालूम थे उन्हें वह गाती थी।नारायण भाई की सधी हुई गंभीर आवाज और स्वाति की मीठी आवाज साथ-साथ सुनने के अवसर सम्पूर्ण क्रांति विद्यालय के प्रार्थना अथवा मनोरंजन के सत्र में कभी कभी मिल जाते थे।
अपनी जवानी में हिंदी का विद्यार्थी रहते हुए नारायण भाई ने कविता जैसी एक पंक्ति लिखी थी,’दिवस के अवसान पर जब चाहते विश्राम हो,कार्य परिवर्तन करो’।उसी तर्ज पर वे कभी-कभी स्थान-परिवर्तन कर काशी आ जाते थे।आराम में भी मेरे हृदय की शल्य क्रिया के बाद हाल चाल लेना हो,अथवा किताब का लेखन पूरा करना हो जैसा एजेंडा नत्थी रहता था।विधिवत अपने घोषित काम से एक बार आए तब निमंत्रण स्वाति का था और आयोजन साझा संस्कृति मंच का।काशी में ‘गांधी कथा’ के सफल आयोजन के लिए।वेड़छी लौटने पर स्वाति के बनाये पकवानों का सरस जिक्र जरूर होता था।इनमें दही बड़ा जैसे आइटम भी शरीक होते थे जो स्वाति को स्वयं पसंद नहीं थे लेकिन उसे पता था कि बाउभाई को पसंद है।एकादश व्रत के ‘अस्वाद’ के मायने यह यही नहीं होता कि अच्छे स्वाद को भूल जाएं।
साथी सुनील ने कल्पना की थी कि 21वीं सदी के समाजवाद पर अच्छा सेमिनार होना चाहिए।सेमिनार में वरिष्ठतम समाजवादी डॉ जी जी पारीख,नारायण देसाई,पर्यावरणविद प्रो गाडगिल, पत्रकार अरुण त्रिपाठी,श्रुति तांबे प्रमुख अतिथि थे।इस आयोजन में स्वातिजी के साथ साथी निशा शिवूरकर और साथी जोशी जेकब भी संयोजक थे।विवि में स्वाति द्वारा बायोइंफॉर्मेटिक्स के साथ ही समाजशास्त्र और साहित्यिक गतिविधियों के सफल आयोजन के तजुर्बे का लाभ दल को भी मिला।नारायण भाई ने क्रांति में रचनात्मक कार्य के महत्व पर बोला।सेमिनार में मौजूद नियमगिरी के साथी उनका चरखा चलाना अभिभूत होकर देखते थे।इनमें से कुछ पर नवीन पटनायक सरकार ने बाद में माओवादी होने का आरोप लगाया।
गांधीजी से जुड़े मूल्यों को जीवन में उतारने के कारण हमारे सच्चीदानंद सिन्हा , रामइकबाल बरसी,कृष्णनाथजी और अशोक सेकसरिया के साथ-साथ नारायण देसाई भी स्वाति के वरेण्य थे।
स्वाति डेढ़ बरस की थीं तब उनके पिता सत्येन्द्रनाथ दत्त गुजर गए थे।लोगों ने स्वाति को बताया था कि वे उसको बहुत प्यार करते थे।स्वाति 19 वर्ष की थीं तब माँ कैंसर की शिकार हो गईं।नारायण भाई से स्वाति को भरपूर स्नेह मिला।और नारायण भाई को स्वाति से भरपूर आदर (हिंदी में)।

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