[मुम्बई के पास नवी मुम्बई से लगा ३५००० एकड़ का रिलायन्स का ‘ महामुम्बई विशेष आर्थिक क्षेत्र ‘ तो इतना विशाल है कि यह मुम्बई महानगर के एक तिहाई क्षेत्रफल के बराबर है। ]
गतांक से आगे
इसी प्रकार , विशेष आर्थिक क्षेत्र कानून में विनिर्माण की परिभाषा इतनी व्यापक रखी गयी है कि उसमें रेफ्रिजरेशन ( प्रशीतन ) , रंगाई , कटाई , मरम्मत करना , पुननिर्माण , पुन: इंजीनियरिंग आदि को भी विनिर्माण मान लिया गया है। इसका मतलब है कि विशेष आर्थिक क्षेत्र में वास्तविक उत्पादन न हो कर कहीं और हो , सिर्फ वहाँ एक मामूली गतिविधि की इकाई डालकर तमाम कर-छूटों का लाभ उठाया जा सकता है।
‘ विशेष आर्थिक क्षेत्र ‘ बनाने के लिए कोई भी सरकारी या निजी कंपनी आवेदन कर सकती है। राज्य सरकार से सहमति लेने के बाद केन्द्र सरकार को आवेदन किया जा सकता है। इन आवेदनों पर शीघ्र फैसला लेने के लिए , इसे काफ़ी प्राथमिकता देते हुए भारत सरकार ने रक्षा मन्त्री प्रणव मुखर्जी की अध्यक्षता मे मन्त्रियों की एक समिति बना दी है , जिसे ‘ मन्त्रियों का अधिकार प्राप्त समूह ‘ नाम दिया गया है। इन ‘ विशेष आर्थिक क्षेत्रों ‘ के लिए जमीन हासिल करने का काम वैसे तो इन्हें विकसित करने वाली कंपनियों को स्वयं खुले बाजार में करना चाहिए। लेकिन इन्हें सुविधा देने की होड़ में लगी राज्य सरकारें स्वयं भूमि अधिग्रहित करके सस्ती दरों पर इन्हें दे रही हैं। बाजार की प्रचलित दरों से काफी कम दरों पर जमीन मिलने से इन कंपनियों की पौ-बारह हो गयी है।
खूब कमाई , करों से मुक्ति , सस्ती जमीन आदि कारणों से ‘विशेष आर्थिक क्षेत्र’ बनाने के लिए अचानक दौड़ व होड़ मच गयी है। विशेष आर्थिक क्षेत्र का कानून बनने से पहले भारत में पन्द्रह विशेष आर्थिक क्षेत्र काम कर रहे थे – कांडला , सूरत , मुम्बई , कोच्चि , नोएडा , विशाखापत्तनम , इन्दौर , जयपुर , फाल्स , मनिकंचन , साल्ट लेक , और चेन्नई में तीन। अब लगभग १६४ नए प्रस्ताव केन्द्र सरकार स्वीकृत कर चुकी है। इनमें ‘ तेल व प्राकृतिक गैस आयोग ‘ तथा ‘ गुजरात औद्योगिक विकास विगम ‘ के प्रस्तावों को छोड़ कर बकी सब निजी कंपनियों के प्रस्ताव हैं। देश के सबसे बड़े उद्योगपति मुकेश अंबानी की रिलायंस कम्पनी इनमें सबसे आगे है जिसके द्वारा नवी मुम्बई , हैदराबाद , गुड़गाँव (हरियाणा) और जामनगर (गुजरात) में विशाल विशेष आर्थिक क्षेत्र विकसित किए जा रहे हैं। कलकत्ता के पास बनाने के लिए पश्चिम बंगाल सरकार से भी उसकी वार्ता चल रही है। एस्सार , भारत फोर्ज , अदारी , विप्रो , सत्यम , बायोकोन , बजाज , नोकिया , केदिला , डा. रेड्डी आदि उद्योग जगत के अनेक बड़े नाम विशेष आर्थिक क्षेत्र बनाने में लग गए हैं। दिल्ली से नजदीकी के कारण हरियाणा व पंजाब में विशेष आर्थिक क्षेत्र बनाने के लगभग ५० प्रस्ताव आ चुके हैं। मात्र गुड़गाँव के पास १२ विशेष आर्थिक क्षेत्र बनाने के प्रस्ताव हैम , जिनमें आठ को स्वीकृति मिल चुकी है। गुजरात में १९ विशेष आर्थिक क्षेत्र बनाने के लगभग ५० प्रस्ताव विचाराधीन हैं। यह दावा किया जा रहा है कि जो १४८ प्रस्ताव पहले स्वीकृत हुए हैं , वे कुल ४०,००० हेक्टेयर (अर्थात एक लाख एकड़) क्षेत्र में फैले हुए होंगे और उनमें १,००,००० करोड़ रुपए का पूंजी निवेश होगा तथा उससे लाखों लोगों को रोजगार मिलेगा।
‘ विशेष आर्थिक क्षेत्र ‘ के नाम पर ये उम्मीदें , दावे और खुशफ़हमियाँ काफ़ी सन्देहास्पद हैं। सबसे पहली बात तो यह है कि निर्यात – संवर्धन के नाम पर बनाए जा रहे इन क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर किसानों और गाँवों की जमीन अधिग्रहित की जा रही है तथा उन्हें उजाड़ा जा रहा है। मुम्बई के पास नवी मुम्बई से लगा ३५००० एकड़ का रिलायन्स का ‘ महामुम्बई विशेष आर्थिक क्षेत्र ‘ तो इतना विशाल है कि यह मुम्बई महानगर के एक तिहाई क्षेत्रफल के बराबर है। इनमें ४५ गाँवों की जमीन अधिग्रहित की जा रही है। एक बार पहले ८० के दशक में ‘नवी मुम्बई’ बनाने के लिए वहाँ विस्थापन हो चुका है। यह दूसरा विस्थापन है। इससे अनेक किसान ,मछुआरे , नमक – मजदूर और अन्य गाँववासी बरबाद हो जाएंगे। उनकी जमीन की कीमत लगभग २० से ४० लाख रुपये प्रति एकड़ है , किन्तु महाराष्ट्र सरकार सवा लाख से लेकर १० लाख रु. एकड़ की दर से उनकी जमीन ले कर रिलायन्स को देने की कोशिश में लगी है। यह कहा जा रहा है कि यह दुनिया क सबसे बड़ा ‘ विशेष आर्थिक क्षेत्र ‘ होगा। किन्तु उस क्षेत्र के लोगों के लिए तो यह सबसे बड़ा संकट बन गया है। इस प्रोजेक्ट का विरोध करने के लिए उन्होंने ‘ महामुम्बई शेतकरी संघर्ष समिति ‘ का गठन कर लिया है और विरोध में आन्दोलन शुरु कर दिया है। [ जारी ]
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