[ कम्पनियों द्वारा संचालित जेलें ? जी , हाँ । इसकी कल्पना भी नहीं की थी। पत्रकार दीपा फर्नाण्डीज़ की ताजा किताब ‘टार्गेटेड़’ में ऐसी जेलों और उन कम्पनियों और जेल-उद्योग का तफ़सील से विवरण हैं । मैंने उनकी किताब के आधार पर लिखे गए एक लेख को हिन्दी में प्रस्तुत करने की उनसे और ‘कॉर्पवॉच’ नामक जाल-स्थल से अनुमति प्राप्त की।
कोका-कोला कम्पनी के बनारस के निकट मेंहदीगंज स्थित बॉटलिंग संयंत्र द्वारा भूगर्भ जल के दोहन के विरुद्ध चले आन्दोलन पर मेरी पहली रपट ‘कॉर्पवॉच’ ने छापी थी । यह जाल-स्थल निगमों के उत्तरदायित्व पर काम करता है।कुछ वैचारिक भिन्नताओं के बावजूद मैंने यह पाया कि निगमों की कारगुजारियों का बहुत गहराई से अध्ययन इनके द्वारा होता है। मेरे मन में यह प्रश्न इनके अध्ययनों को देखने के बाद उठा कि भारत में ‘सूचना का अधिकार’ लागू होने के बावजूद इन बड़ी-बड़ी कम्पनियों की कारगुजारियों के बारे में कितनी सूचनाएं माँगी गईं होंगी ? ]
दक्षिण – पश्चिम अमेरिका में मेक्सिको से सटा एक राज्य है , एरिज़ोना । एरिज़ोना में एक छोटा कस्बा है फ़्लोरेन्स । अमेरिका में निजी जेलों की हुई सहसावृद्धि का केन्द्र यह कस्बा है । नागफनी , लाल चट्टानें और रह – रह कर दिखने वाले पहाड़ों के करीब से गुजरने वाले एक- लेन के राजमार्ग से पहुँचा जाता है , इस रेगिस्तानी ‘कारा – कस्बे’ में। इस रास्ते से गुजरते वक्त अचानक एक सूचना पट्ट फुदक कर प्रकट होता है : ” शासकीय कारागार : हिच हाइकरों को न बैठाएं “।(हिचहाइकर- किसी दिशा में जा रही गाड़ियों से मुफ्त सवारी माँग कर यात्रा करने वालों को कहते हैं ।)
फ़्लोरेन्स में एरिज़ोना राज्य का शासकीय कारागार , निजी सुरक्षा कम्पनियों द्वारा संचालित दो कारागार और स्वदेश सुरक्षा विभाग( होमलैण्ड सिक्यूरिटि डिपार्टमेंट) द्वारा संचालित आप्रवासियों के लिए बना एक कारागार है ।
इस कस्बे में चलने वाले एकमात्र जनहित कानूनी सहायता केन्द्र की संचालिका अधिवक्ता विक्टोरिया लोपेज़ कहती हैं ,” यहाँ की अर्थव्यवस्था कारागार-केन्द्रित है और जनसाधारण की सोच और चिन्तन भी कारागार केन्द्रित हैं । एक अलग दुनिया है फ़्लोरेन्स की ।ज्यादातर स्थानीय बासिन्दे पुश्तों से जेल-व्यवस्था से जुड़े रहे हैं ।यहाँ का जीवन जेल-केन्द्रित है । ”
अमेरिका सरकार द्वारा आन्तरिक सुरक्षा उपाय लागू किए जाने के बाद जेलों में भरे जा रहे आप्रवासियों की तादाद में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है , नतीजतन निजी जेल-उद्योग की भी सहसावृद्धि हुई है । न्यू यॉर्क पर हुए ११ सितम्बर के हमलों के परिणामस्वरूप अमरीकी जेलों में बन्द कुल आबादी में आप्रवासियों का तबका सबसे तेजी से बढ़ा है । वित्तीय वर्ष २००५ में साढ़े तीन लाख से ज्यादा आप्रवासियों को अदालतों का सामना करना पड़ा । ” इनमें अमेरिका आने के बाद किसी भी अपराध मे शामिल न रहने वालों की संख्या भी उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही है ।इस वर्ष इस श्रेणी में ५३ फ़ीसदी लोग थे जबकि वर्ष २००१ ऐसे लोगों की तादाद ३७ फ़ीसदी थी। बुश प्रशासन के अधिकारियों द्वारा अपराधियों को निर्वासित कर देने को प्राथमिकता देने की नीति की बारंबार घोषणा के बावजूद ये हालात हैं ।”- डेनवर पोस्ट की रपट ।
खदानों से जेल तक
इस देहाती-से कस्बे की स्थानीय आबादी में काफी लोगों के परिवार का कोई न कोई सदस्य चाँदी की खदानों से कभी न कभी जुड़ा रहा । धीरे-धीरे चाँदी की खदानों का काम मन्दा पड़ता गया । बीसवीं शताब्दी की शुरुआत में कस्बे में क्षेत्रीय कारागार बना। इस कस्बे में फिर जान फूँकने का काम हुआ जब देश की सबसे बड़ी जेल-कंपनियों में एक टेनेसी स्थित करेक्शन कॉर्पोरेशन ऑफ़ अमेरिका (CCA) ने फ़्लोरेन्स में दो कारागार स्थापित किए,अमेरिकी आप्रवासी एवं नागरिकता सेवा(INS) ने शुरुआत में गिरफ्तार आप्रवासियों के लिए किराये के स्थान देने चालू किए फिर दूसरे विश्वयुद्ध के युद्धबन्दियों के लिए बने कैम्प को एक कारागार बना दिया ।आप्रवासी कैदियों की बाढ़ ने कस्बे में रोजगार के नए अवसर सृजित किए ।वहाँ की स्थानीय अर्थव्यवस्था इसी के बूते चल निकली।कस्बे से सटे बाहरी इलाकों में नए-नए आवासीय संकुल बनने लगे और इनके पीछे-पीछे फुटकर व्यवसाय की बड़ी कम्पनी वॉल मार्ट का आगमन भी हुआ ।
सन २००० में निजी जेल उद्योग पर एक अरब डॉलर का कर्ज था और उसके द्वारा साख-समझौतों का उल्लंघन हो रहा था । करेक्शन कॉर्पोरेशन के शेयर ९३ फ़ीसदी तक गिर गए। बिज़नेस वीक पत्रिका ने लिखा,’सुधार उद्योग के बहारों के दिन लद चुके हैं ।’ उस दौर की गिरावट के कारण बताते हुए अमेरिकन प्रॉस्पेक्ट नामक राष्ट्रीय पत्रिका ने लिखा :
” निजी कारागार उद्योग विपत्ति में है। लगभग एक दशक तक उसके व्यवसाय में तेजी थी तथा उसके शेयरों की कीमतें लगातार चढ़ रहीं थीं क्योंकि देश भर की विधायिकाओं का आकलन था कि इससे एक ओर अपराध पर लगाम कसेगी तथा निजी कंपनियों से विधाइकाओं के समझौते वित्तीय रूप से सन्तुलित होंगे। कानूनों में दण्ड देने के ज्यादा कठोर प्रावधानों की वजह से बढ़ने वाली बन्दियों की आमद से निबटने में भी ये समझौते मददगार होंगे । लेकिन हकीकत कुछ और थी : निजी जेलों की खामियों और उनमें हो रहीं दुर्व्यवहार की घटनाओं से सम्बन्धित प्रेस-रिपोर्टों के अम्बार लग गए । इन दुर्व्यवहारों के कई मामले अदालतों में खींचे गए और लाखों डॉलर के मुआवजे भरने पड़े । गत एक वर्ष में किसी भी राज्य ने निजी जेलों के के लिए अनुबन्ध नहीं किए हैं ।कई विद्यमान अनुबन्ध निरस्त कर दिए गए। इन कंपनियों के शेयर औंधे मुँह गिरे हैं ।”
इन्हीं परिस्थितियों में न्यू यॉर्क पर ११ सितम्बर २००१ के हमले हुए । सरकार के निशाने पर गैर-नागरिक आप्रवासी आ गए ।आप्रवासी-समुदाय में थोक में गिरफ़्तारियाँ होने लगीं , बिना दस्तावेजों के सरहद पार करने वालों पर चलने वाले मुकदमे बढ़ गए तथा आपराधिक और आतंकी आरोपों को तय करने तक लोगों को कैद में रखने के आप्रवासन कानून के प्रावधान का उपयोग बढ़ गया।होमलैण्ड सिक्यूरिटी विभाग (स्वराष्ट्र सुरक्षा विभाग) का गठन हुआ ।
अमेरिका सरकार का दावा है कि जिन लोगों की कोई कानूनी हैसियत नहीं है उनके देश में घुल-मिल जाने को रोकने का सबसे अच्छा उपाय उन्हें कैद कर देना है । स्वराष्ट्र सुरक्षा विभाग के महानिरीक्षक कार्यालय की सन २००४ की एक रपट का निष्कर्ष था कि इस बात के पूर्ण प्रमाण हैं कि – ” किसी परदेशी के संभाव्य देश-निकाला के पहले उसे निरुद्ध रखना जरूरी है । इसलिए निरुद्ध लोगों को रखने का प्रभावी इन्तेजाम आप्रवास-प्रवर्तन के प्रयासों में यथेष्ट सहायक होता है । “
बुश प्रशासन द्वारा गैर-नागरिकों को कैद में डालने की रफ़्तार और विस्तार ऐसे हैं कि आप्रवासियों को कैद में रखने के के लिए जगह की जरूरत असाधारण ढंग से बढ़ गई है ।
स्वराष्ट्र सुरक्षा विभाग द्वारा संचालित ‘विशेष संसाधन केन्द्र’ ऐसी विशाल दुकान की तरह हैं जहाँ एक ही ठिकाने पर आप्रवासियों को कैद रखा जा सकता है, उन पर मुकदमा चलाया जा सकता है , आप्रवासन-न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत किया जा सकता है और देश-निकाले का आदेश प्राप्त किया जा सकता है। इस स्वत:पूर्ण संकुल से बाहर जाने की कोई जरूरत नहीं है । हाँलाकि स्वराष्ट्र सुरक्षा विभाग इन केन्द्रों को ‘जेल’ कहना नहीं चाहता लेकिन फ़्लोरेन्स स्थित उनके ‘विशेष संसाधन केन्द्र’ में घेरेदार कँटीले तार,उसके बाहर सिकडियों का बाड़ा और भीतर तालाबन्द कोठरियों में ठूँसे गए आप्रवासी रहते हैं ।उन्हें जोशीले अभियोजन का सामना करना पड़ता है और कई मामलों में बिना मुकदमा , बिना सजा हुए हफ्तों और महीनों तक इन कैदखानों में घुट कर रहना पड़ता है ।
फ़्लोरेन्स का बन्दी संकुल ३०० आप्रवासियों को कैद रखने की व्यवस्था के नेटवर्क का हिस्सा है। गिरफ्तारी से देश- निकाले के बीच हर आप्रवासी औसतन ४२.५ दिन कैद रहता है ।हर कैदी के पर प्रतिदिन के खर्च के लिए ८५ डॉलर मुकर्रर होते हैं यानी सालाना ३,६१२.५० डॉलर । स्वराष्ट्र सुरक्षा विभाग ने सन २००३ में २३१,५०० लोगों को निरुद्ध किया जिसका बजट १.३ अरब डॉलर था । सन २००१ से विभाग द्वारा कैद करने की तादाद और उसका बजट उत्तरोत्तर बढ़ता जा रहा है ।सन २००३ में इस विभाग के बजट में ५ करोड़ डॉलर आप्रवासियों के लिए नई जेलें बनाने के मद में आवण्टित थे ।
आप्रवासी जेल : कुछ आँकड़े
” संघीय सरकार(केन्द्र सरकार) द्वारा पूरे देश में २६,५०० परदेशी उचित दस्तावेजों के अभाव में पकड़े गए हैं । इस साल के अन्त तक इनकी संख्या ३२,००० तक पहुँच जाएगी ।”
” साढ़े छ: करोड़ डॉलर की लागत से टेक्सस में तम्बुओं का एक शहर बनाया गया है । इन बिना खिड़कियों वाले तम्बुओं में २००० आप्रवासियों को दिन में २३ घण्टे बन्द रखा जाता है।अक्सर भोजन ,कपड़े , चिकित्सा और फोन की सुविधा का अभाव रहता है । “
” करीब १६ लाख आप्रवासी अदालती प्रक्रिया के किसी न किसी चरण में निरुद्ध हैं । इस प्रकार ‘आप्रवासन और कस्टम प्रवर्तन (इमिग्रेशन एण्ड कस्टम्स एनफ़ोर्समेंट) के तहत हर- रात क्लैरियन होटल श्रृंखला के कुल अतिथियों से अधिक अन्तेवासी-कैदी होते हैं ।इस प्राधिकरण द्वारा ग्रेहाउण्ड बस सेवा के लगभग बराबर तादाद में वाहन संचालित किए जाते हैं तथा प्रतिदिन यह प्राधिकरण कई छोटी विमान सेवाओं से अधिक लोगों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर वायुमार्ग से ले जाता है।”
” प्राधिकरण द्वारा निरुद्ध लोगों की ८० फ़ीसदी शायिकाएं , ३०० स्थानीय एवं राज्य कारावासों को भाड़े पर दी जाती हैं । इनमें ज्यादातर अमेरिका के दक्षिणी और दक्षिण-पश्चिमी हिस्से में स्थित हैं ।
” सीमा सुरक्षा बल ने पिछले साल ११ लाख गिरफ़्तारियाँ की थीं। इनमें से ज्यादातर को तत्काल वापस भेज दिया गया था । करीब ५ लाख लोग वैध तरीके से अमेरिका में आने के बाद,वीसा समाप्ति के बाद भी रह रहे हैं ।
” इनके अलावा ६३०,०० लोग देश-निकाले के आदेश को नजरंदाज करके फ़रार हैं ।करीब ३००,००० आप्रवासी छोटे-मोटे अपराधों में स्थानीय तथा राज्य कारागारों में बन्द हैं। इन्हें देश-बाहर किया जाना है किन्तु इनमें से कई सजा पूरी करने के बाद किसी न्यायिक कमजोरी के कारण टिके रह जाएंगे ।
स्रोत : वाशिंगटन पोस्ट , २ फरवरी , २००७.
(क्रमश:)
आंखे खोलदेने वाला लेख हैं. श्री अफ़लातून जी ने इसे हिन्दी मे प्रतुत करके सराहनीय काम किया है.
अपने देश को परदेश सवाराने जाते है,
गोरो की करतूतो से ठगे रह जाते है।
परदेश मे जाकर ये पदेशी हो जाते है,
अपने देश के पराये वन जाते है।
करते है पर देश की तन मन धन से सेवा,
पर इन पर होती है रंग भेद की टिप्पणी।
ये करते है राष्ट्र की उन्नति
पर होती है इनकी जेलों मे र्दुगति।
आपने सटीक लेख लिखा है
साधुवाद
आपने आईना दिखाया है। जान्दार लेख
बिलकुल नई जानकारी दी है आपने।
Mere liye bhi yah jaankari ekdam nayi hai…Apravasiyon ko jail me rakhna aur pragati ka itna vibhatsa rup…dusari kadi ki pratiksha rahegi…
ये जानकारी बिल्कुल नई होने के साथ ही चोंकाने वाली भी है। अप्रवासियों के साथ इस तरह का व्यवहार ,अमेरीका के काले कारनामों का एक और उदाहरण हमारे सामने प्रस्तुत करता है।अमेरीका कितना विकसित राष्ट्र है ये कहकर उसकी चापलूसी और नकल करने वालों अब तो आँखें खोलो और उसकी करतूतों को मानवता और नैतिकता के तराजू से तोलकर देखो।
निजी जेलों की मैने भी कभी कल्पना नही की थी किन्तु इसमें आश्चर्यजनक कुछ भी नहीं है। यदि निजी कम्पनियाँ न्यूक्लीयर रियेक्टर बना और चला सकती हैं, स्वास्थ्य सेवायें चला सकती हैं तो इसमे इतना आश्चर्य क्यों?
अन्तर केवल सोच का है। अभी हाल तक अपने देश में भी सोचा जाता था कि रेडियो, टेलिविजन, यातायात, बैन्क आदि सरकार को ही चलाना चाहिये। अब लोगों को समझ मे आया है कि सरकार द्वारा इनका संचालन निम्न-दक्षता(low efficiency) और भ्रष्ताचार का घर बन जाता है।
मेरे खयाल से अधिक से अधिक क्षेत्रों को निजी हाथो द्वारा संचालित करना एक नवाचारी सोच है, एक साहसिक कदम है। इसको आजमाना लाभदायक सिद्ध होने की काफी गुंजाइश है।
yah european colonizers ki 400 saal ki ladai he. ameircan indian ka katal abhi bhi chal raha he. america ki arth vyavastha slavery per hi adharit he.
american indian ka dharma parivartan bhi kiya gaya he. asal mein america mercenary outfit he. yah ashcharya ki baat he ki pade likhe bharatiyon ko iske bare mein kuch nahin pata. NCERT ki book mein koi vivaran nahin he. romila thapar se poochana chahiye.
आपका लेख एकदम अलग विषयवस्तु पर नज़र डालता है। मुझे अमरीका में ही रह कर इस बारे में कोई भी जानकारी नहीं है। लेकिन एसा लगता है कि ये अधिकतर आप्रवासी मेक्सिको के हैं जो कि अमेरिका में वैसी ही समस्या बनते जा रहे हैं जैसे भारत में बांग्लादेशी।
मैंने साधारणतया भारतीयों को एसे आपराधिक या एसी तकलीफदेह जगहों पर नहीं ही देखा है।
अनुराग
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