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समता की चाह रखने वाली जुझारू महिला आन्दोलनकारियों को याद करने का यह दिन , हमारी एकता व एकजुटता दर्शाने का भी दिन है ।
समाज में शराबी पति की मार सहने वाली , घर-परिवार के ही भूखे-दरिन्दों की काम लिप्सा को चुपचाप सहने वाली , सरेबाजार नंगी घुमा दिए जाने पर खुद को अकेला पाने वाली औरत के मन में हिम्मत और आत्मसम्मान जगाने वाला यह दिन है ।
प्रशासन व सत्ता पर काबिज लोगों को यह याद दिलाने का भी दिन है कि औरत को अकेली और असहाय मान कर उस पर जुल्म ढ़ाना बन्द करें । धर्म , वर्ग और जाति के कटघरों में औरत को नहीं बाँटा जा सकता क्योंकि समाज के अन्याय व उत्पीड़न का शिकार हर औरत हो सकती है ।
– ” गरीब की बहू सारे गाँव की जोरू” । उत्तर प्रदेश में गरीब की बहू-बेटी की इज्जत अब भी उसी पैमाने पर नापी जा रही है ।गाजीपुर जिले के गाँव कप्तानगंज के बाशिन्दे दो गरीब नोनिया परिवारों में से एक की बेटी संजू को गाँववालों ने ‘पंचायती फैसला’ सुनाते हुये पीट-पीट कर मार डाला । उसका अपराध गाँववालों ने उसका अनब्याहा मातृत्व बताया मगर क्या अनब्याहा मातृत्व इतना बड़ा अपराध है कि कोई भी व्यक्ति जाकर फैसला सुनाने के नाम पर किसी लड़की से अपनी व्यक्तिगत रंजिश के चलते उसकी हत्या कर सकता है? उत्तर प्रदेश की महिला सामाजिक कार्यकर्ताओं का एक जाँच दल कप्तानगंज गया। उनको गाँव की गरीब महिलाओं ने बताया कि संजू गर्भवती थी ही नहीं । उसके टोलेवालों को मेहनतकश , खुद्दार संजू का व्यवहार पसंद नहीं आया तो पंचायत का ढोंग रचाकर सजा सुना दी ।
– गाजीपुर जिले की सकड़्हेरी की रेनु राय को उसके चचिया ससुर ने तीन पाव मसूर घर से छिपाकर बेचने के अपराध में रात भर उल्टा टाँग दिया । दाल बिक्री के पैसे से रेनु ने अपने बेटे से गृहस्थी के लिए चीनी मँगाई थी । रेनु का कराहना सुनकर पड़ोस वाले बचाने आये तो घरवालों ने पारिवारिक मामला बताकर भगा दिया । सुबह तक मृत रेनु की लाश को उतारकर खेत में फेंक दिया गया ।मसूर की चोरी से बिक्री पर अत्याचार तो बहाना था। असली कारण चचिया ससुर की हवस को पूरा नहीं करने का ” अपराध” था । यह बयान रेनु के पति ने उसके मरणोपरान्त पुलिस को दिया ।
घर की इज्जत इन हरफ़ों के पीछे कितने मासूमों की जान जाती है । कितनी मासूम लड़कियों की लाश की बुनियाद पर यह इमारत खड़ी है !
– नौगढ़ में बुधिया भूख से मरती है तो दिल्ली में गरीबी से पस्तहाल माँ अपने तीन बच्चों के साथ खुद्कुशी कर लेती है । देश की आर्थिक नाति अमीरों के लिए समृद्धि लाती है तो गरी के लिए बेरोजगारी व भूखमरी । जब रोजगार ही खत्म किए जा रहे हैं तो औरत को मेहनत मजदूरी भी कैसे मिलेगी ?
सम्मान से जीने का हक सबका है; यह आज की तरीख में हम याद करें और रोजगार , पारिवारिक सम्पत्ति पर स्त्री का आधा हक , राजनीति में विशेष अवसर तथा औरत को सरेआम निर्वस्त्र कर घुमाने वाले के खिलाफ़ सख्त सजा के अलग कानून के माँग करें।
आज जरूरत है कि लड़कियाँ द्रौपदी के साहस व तर्कशक्ति से लैस हों ताकि अपने कुल के बड़ों से कह सकें , ‘ मैं सिर्फ़ परिवारों के बीच विनिमय की वस्तु नहीं हूँ,मुझे खरीद-फरोख्त करने का हक किसी को नहीं है’ ।लड़कों की बोली लगाने वाली दहेज प्रथा की समाप्ति अब बात तक सीमित नहीं रहे हम अपनी जिनदगी में भी उतारें। दहेज व खर्चीली शादियाँ परिवार व समाज में बरबादी लाती हैं तथा कन्या भ्रूण हत्या का कारण भी बनती हैं ।खर्चीली शादियाँ बन्द करने के लिए हमें सामाजिक दबाव बनाना पड़ेगा ।
पंचायती राज के ३३ % महिला आरक्षण से जो बदलाव ग्रामीण महिलाओं में धीरे-धीरे आ रहा है उसके दूरगामी नतीजे – स्त्री-पुरुष समता से नाति नियंता घबरा रहे हैं ।
उत्तर प्रदेश के पिछले विधान सभा में ही स्पष्ट हो गया था कि सभी पार्टियाँ महिला नेतृत्व को मौका नहीं देना चाहतीं। ७ % से अधिक महिला उम्मीदवार किसी भी पार्टी के नहीं थे ।
अब औरत अपने वजूद को मजबूत बनाने का काम खुद जनता के साथ मिलकर करेगी- आतताइयों लड़कर – शासन को ललकार कर , शासन से भीख माँग कर नहीं ।
आज़ाद देश की आज़ाद नागरिक आज़ादी से जिए इस अहसास को औरत में जगाना होगा।
हम लड़ेंगे कि अब तक लड़े क्यों नहीं –
हम लड़ेंगे कि लड़े बगैर कुछ भी नहीं मिलता । (पाश)
– स्वाति , समाजवादी जनपरिषद ।
हम लड़ेंगे कि अब तक लड़े क्यों नहीं –
हम लड़ेंगे कि लड़े बगैर कुछ भी नहीं मिलता । (पाश)
बिलकुल सही !
बहुत हदयास्पर्शी लेख है.
इतने सब के बाबजूद भी शायद कोई तो आशा की किरण दिखे?
लेख अच्छा है किन्तु यह अमीरों को हर बात में कटघरे में खड़े करने की आदत को छोड़ोगे तभी कुछ कर सकोगे । स्त्रियों के साथ अपराध गरीब, अमीर, स्त्री, पुरुष सब कर रहे हैं । यह तभी बन्द होगा जब हम चाहेंगे । वैसे गरीब पुरुष या फिर हीन भावना से ग्रसित लोग ही ऐसा अधिक करते हैं । जो पिटने के लिए सामने सिर झुकाए मिल जाए उसी को पीट कर तो मनुष्य अपनी भड़ास बाहर निकाल सकता है ।
घुघूती बासूती
इस लड़ाई का कोई विकल्प नहीं है. कोई भी समाज एक पंख से ऊंची उड़ान नहीं भर सकता .
आपकी सदिच्छा पूरी हो!
[…] महिला दिवस का ऐलान […]
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