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पिछले दिनों देबाशीष ने निरंतर पत्रिका के पुराने अंकों के बारे में एक अपील जारी की थी।अगर किसी पाठक ने संभाल कर रखे हों तो उन्हें देबाशीष ने माँगा था । अभी हाल में रविजी ने उन तरीकों के बारे में सूचना दी (कई लोग सूचना को ज्ञान का पर्यायवाची मान लेते हैं) कि संजाल पर खोज अब कितना विकसित हो गई है।
बहरहाल ,रविजी ने कल इन्टरनेट की स्मरण-शक्ति की याद दिलायी लेकिन नमूने उन्हीं पृष्टों के दिए जो आज भी संजाल पर मौजूद हैं । जिस पोस्ट को लेखक ने मेरी आपत्ति के बाद हटाया ,उस पर की गयी मेरी टिप्पणी को छापा ,मूल पोस्ट को न दे पाए।मैंने माँग की है कि वह मूल पोस्ट भी दें ।मेरे पास वह मूल पोस्ट बचा कर रखी हुई है और छाप कर भी।मैं यहाँ उसे नहीं दूँगा क्योंकि वह मुझे सार्वजनिक तौर पर प्रकट करने लायक नहीं लगती। मैंने भाषा की अभद्रता के कारण उस प्रविष्टि पर आपत्ति की थी,लगभग उसी शैली में। और रविजी का मानना था कि ‘ऐसी भाषा विरले ही पाते हैं’ । बालक को यदि अपनी अभोव्यक्ति और सृजन पर गर्व था तो उसे अपने चिट्ठे से नहीं हटाना चाहिए था।उसने हटा दी ,हटाने की बाद बहस की – जैसे राहुल की पोस्ट हटने के बाद हो रही है । उस लड़के ने मुझसे ईमेल भी चर्चा जारी रखी और गूगल चैट का भी निमन्त्रण दिया। मैं पहले बता चुका हूँ मेला-मेली और चैटा-चैटी का हवाला नहीं देना चाहता।
पोर्नोग्राफी या अभद्र भाषा की अभिव्यक्ति का मंच ‘नारद’ बने ,यह बहस फिलहाल नहीं है। रविजी चाहते हों तो चलायें,वह बहस अलग होगी। राहुल की पोस्ट पर भी मैंने उसी शैली में टिप्पणी की थी(वह पृष्ट भी बचा कर रखा है)। मैंने अन्य आपत्ति के अलावा बेंगाणी बन्धुओं के लिए प्रयुक्त अपशब्द से आहत हो उससे पूछा था ,’ क्या पानी छूना बन्द कर दिया है ?’ मेरा मानना है कि ऐसे दबाव से भी उसे वह पोस्ट हटानी पड़ती और खेद भी प्रकट करना पड़ता । चिट्ठा नहीं हटता।
रविजी , तानाशाही दक्षिणपंथी – वामपंथी या सैनिक हो सकती है – यह मेरी समझ है। कई गुण सामान्य होते हैं – हर प्रकार में पाए जाते हैं ।
उस पोस्ट पर तब जो चर्चा हुई थी , वह यहाँ दे रहा हूँ :
Aap ki aur Jitendra ji kee baten padhi. Samajhne ke liye poochh rahaa hoon- kaun se shabdon par ‘charchaa’ hai…. ?
mahendra
आप ऊर्जावान पत्रकार तो हैं ही और आपके चिट्ठे पर आपकी कविताओं एवं कमलेश्वर पर श्रद्धांजलि स्वरूप लेखों को पढ़कर कोई भी आपकी साहित्यिक एवं मानवीय संवेदना का कायल हो सकता है।
लेकिन अभी आप हिन्दी चिट्ठाकारी की व्यापक दुनिया से पूरी तरह परिचित नहीं हो पाए हैं। ऑनलाइन जगत में हिन्दी ब्लॉगिंग की शुरुआत करने और उसको लगातार समृद्ध करने में कई व्यक्तियों का अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान है, जिसमें माइक्रोसॉफ्ट से सम्मानित ब्लॉगर रविशंकर श्रीवास्तव, जिन्होंने आपके चिट्ठे को नारद से जोड़ने की संस्तुति की थी, और जीतेन्द्र चौधरी, जो दुनिया भर के हिन्दी चिट्ठाकारी पर लगातार नजर रखते हैं और उसे नारद के जरिए एकसूत्र में बाँधने का प्रयास करते हैं, का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
हिन्दी चिट्ठाकारी की अहमियत आज इतनी बढ़ गई है कि मुख्यधारा की मीडिया के बहुत से दिग्गज पत्रकार भी इसमें अब सक्रिय होने लगे हैं। इतना ही नहीं, अखबारों और न्यूज चैनलों में भी हिन्दी चिट्ठाकारों की ताकत को समझा जाने लगा है। ऑनलाइन हिन्दी जगत में यदि किसी नए चिट्ठाकार को व्यापक पाठक समुदाय तक पहुँचना है तो नारद से जुड़ना एक तरह से लाजिमी हो जाता है। कहते हैं न, अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता।
आप होंगे बहुत बड़े लिक्खाड़। बहुतेरे हैं दुनिया में आप जैसे। आपकी भाषा में थोड़ी विनम्रता और शालीनता का पुट होगा तो उसकी कद्र होगी, नहीं तो आप अपना लिखा खुद ही पढ़ेंगे और अपनी सीमित चौकड़ी को खुद ही लिंक भेजकर पढ़वाएंगे।
व्यक्तिगत तौर पर मुझे आपकी उपर्युक्त पोस्ट पर कोई आपत्ति नहीं थी, और उस पोस्ट को पढ़ने के बाद ही मैंने नारद पर जोड़ने के लिए कहा था. मुझे आपके उस पोस्ट में मेरे दृष्टिकोण में ऐसी कोई खराबी नजर नहीं आई थी, परंतु समाज के अन्य लोगों के विचार निश्चित रूप से भिन्न हो सकते हैं. नारद एक सार्वजनिक मंच है, जहाँ अन्य तमाम हिन्दी के चिट्ठाकार जुड़े हैं. वह एक चौपाल है, और उसमें जीतू भाई वही करते हैं जो चौपाल के सदस्यगण सम्मिलित निर्णय लेते हैं. भाषा पर किसी का एकाधिकार नहीं होता. मेरा बचपन ऐसे स्थल पर गुजरा है जहाँ एक बच्चा मां की गाली पहले बोलना सीखता है, बजाए मां बोलने के. इसके बावजूद मेरे मुँह से गाली नहीं निकलती. मैं आपके लिखे का मुरीद हूँ, और आपका लिखा पढ़ने में तत्व भी नजर आता है.
मगर आप भी यह समझेंगे कि नारद जैसे सामाजिक सार्वजनिक स्थलों पर भाषा मर्यादामयी रहे तो अच्छा. अब आप ये न समझें मैं आपको भाषा सिखा रहा हूँ. कतई नहीं. आपके जैसे लेखन का तेवर बिरलों को हासिल होता है.
उम्मीद है आप नारद की मजबूरियां समझेंगे. अभी तक हम नारद पर जैसे भी जिस किसी को भी नए हिन्दी चिट्ठों के बारे में पता चलता था, बिना पूछे जोड़ लेते थे. आगे से ध्यान रखेंगे कि चिट्ठाकारों से पूछ लिया जाए. साथ ही, नारद एक सार्वजनिक मंच है, जिसमें अक्षरग्राम, चौपाल चिट्ठाचर्चा इत्यादि सभी सम्मिलित हैं, आपकी भी सक्रिय भागीदारी अपेक्षित है.
आपका प्रयास सराहनीय है।
बहरहाल यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप नारद से जुड़ना पसंद करते हैं या नहीं। नारद हिन्दी चिट्ठाकारों की एक सामूहिक संस्था है, जिससे 400 के करीबन हिन्दी चिट्ठे जुड़े हैं। इसी तरह गूगल ग्रुप पर चिट्ठाकार नामक समूह है जिसकी मेलिंग लिस्ट में लगभग 300 चिट्ठाकार जुड़े हैं।
चूंकि आपने नारद से जुड़ने के लिए पहले अनुरोध नहीं किया था, इसलिए आप अपनी जगह ठीक ही कह रहे होंगे। यह तो हम हिन्दी चिट्ठाकारों का ही उत्साहातिरेक है कि किसी बंदे को अच्छी हिन्दी में ऑनलाइन जगत में चिट्ठाकारी करते देख खुशी से भर जाते हैं और उसे अपने समूह में बिन बुलाए शामिल कर लेते हैं। आप इस हिन्दी-प्रेम और हिन्दी प्रेमियों से अनुराग की इस भावना को व्यंग्य करने लायक मानते हों तो बात दूसरी है।
नहीं तो सृजनशिल्पी जी की बात सच हो जाएगी। ये अंग्रेजी ब्लॉगजगत नहीं कि पाठक गूगल आदि सर्च इंजनों से आएं।
अभिषेक मीडिया-युग्म और अन्य चिट्ठों पर लिखता है । जैसी भाषा से रविजी को रस मिला वह मैंने रचनाकार भी अभी तक नहीं देखी।
ye sahi jawaab hai… net ke is khel mein rochakataa hai… maine ravi ji ki post par bhi tippani ki thi- wah kya baat hai… bahut khoob…
🙂
मुझे याद है और मैं भागने वालों में से नहीं हूँ. इसीलिए तो ये याद दिलाया था 🙂
[…] रविजी , आप भी न भूलें, भागिएगा भी नहीं […]
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क्या फालतू का लफड़ा है भाई।
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