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बड़ा अफ़सर
इस विषय पर विचार का कोई प्रश्न नहीं
निर्णय का प्रश्न नहीं
फिर से समीक्षा का प्रश्न नहीं
प्रश्न से भागता गया
उत्तर देते हुए इस तरह बड़ा अफ़सर ।
प्रश्न
आमने सामने बैठे थे
रामदास मनुष्य और मानवेन्द्र मंत्री
रामदास बोले आप लोगों को मार क्यों रहे हैं ?
मानवेन्द्र भौंचक सुनते रहे
थोड़ी देर बाद रामदास को लगा
कि मंत्री कुछ समझ नहीं पा रहे हैं
और उसने निडर हो कर कहा
आप जनता की जान नहीं ले सकते
सहसा बहुत से सिपाही वहाँ आ गए ।
हमारी मुठभेड़
कितने अकेले तुम रह सकते हो
अपने जैसे कितनों को खोज सकते हो तुम
हम एक गरीब देश के रहने वाले हैं इसलिए
हमारी मुठभेड़ हर वक्त रहती है ताकत से
देश के गरीब रहने का मतलब है
अकड़ और अश्लीलता का हम पर हर वक्त हमला ।
– रघुवीर सहाय.
( साभार : प्रतिनिधि कविताएँ , राजकमल प्रकाशन , नई दिल्ली )
अफलातून जी
सही कविताएं चढ़ाई हैं ।
इस पर टिप्पणी ना करने का कोई प्रश्न नहीं ।
संजय चतुर्वेदी की एक कविता याद आ गयी
आवश्यकता है
युवा और मेहनती अफसरों की संवेदनशील हों जिंदगी में आगे ही बढ़ना चाहते हों साहित्य की तरफ थोड़ा झुकाव हो संस्कृति की तरफ कुछ ज्यादा हो मानव अधिकारों में रूचि रखते हों मगर ज्यादा नहीं ।
अफलातून जी
सही कविताएं चढ़ाई हैं ।
इस पर टिप्पणी ना करने का कोई प्रश्न नहीं ।
संजय चतुर्वेदी की एक कविता याद आ गयी
आवश्यकता है
युवा और मेहनती अफसरों की
संवेदनशील हों
जिंदगी में आगे ही बढ़ना चाहते हों
साहित्य की तरफ थोड़ा झुकाव हो
संस्कृति की तरफ कुछ ज्यादा हो
मानव अधिकारों में रूचि रखते हों
मगर ज्यादा नहीं ।
देश के गरीब रहने का मतलब है
अकड़ और अश्लीलता का हम पर हर वक्त हमला
–सभी रचनायें सुन्दर हैं. आभार पेश करने का.
अच्छी कविताएँ हैं । सरकारी काम में निर्णय लेने का मतलब है यह कहना कि आ बैल मुझे
मार ! हम उन्हें दोष तो देते हैं पर उन बेचारों की भी मजबूरी है । यदि कोई निर्णय लेंगे तो एक कमीशन बैठ जाएगा यह जानने के लिए कि इस निर्णय के पीछे उनका क्या स्वार्थ था ।
घुघूती बासूती
रघुवीर जी की इतनी अच्छी और मारक कविताएं पेश करने के लिए धन्यवाद
बहुत सही लिखा है…प्रश्न से भागता गया
उत्तर देते हुए इस तरह बड़ा अफ़सर …:)
कवितायें सभी रोचक है…हमारी मूठभेड़ भी अच्छी कविता है…
सुनीता(शानू)
bad poems
[…] रघुवीर सहाय : तीन कविताएँ […]
[…] रघुवीर सहाय : तीन कविताएँ […]
[…] रघुवीर सहाय : तीन कविताएँ […]
फ़ेसबुक से यहाँ आ गया…मुझे कविताएँ वैसे भी कम समझ आती हैं…यहाँ भी समझ नहीं आईं…
अरे वाह! आज समझ आ गई फिर पढने पर कुछ हद तक। फेसबुक पर आपने इतनी जल्दी दुबारा इसे पढवाया।