दौलत की तलबगार है अखबार नवीसी |
इस दौर मेँ व्यापार है अखबार नवीसी ||
कल तक तो बात और थी लेकिन ए दोस्त आज
सत्ता की चाटुकार है अखबार नवीसी ||
फैशन ,फसाद,फिलम ,फूश और फजूलियात
इन सबकी तरफदार है अखबार नवीसी | |
मिल जायेगी दुनिया की हर एक चीज इसी मेँ |
यारोँ खुला बाजार है अखबार नवीसी ||
रुतबा जमा सका न कोई इस पे आज तक |
इतनी तो ये सरदार है अखबार नवीसी ||
उडने मेँ ,महारथ इसे हासिल है दोसतोँ |
बे पर मेँ भी परदार है अखबार नवीसी | |
पल भर मेँ बनाती है ये जालिम को मसीहा |
इस दरजा तो फनकार है अखबार नवीसी | |
मुर्गे की टाँग आज तो कल सुरा सुन्दरी |
यारोँ बडी चटखार है अखबार नवीसी ||
मिशन से अपने हटी है सलीम |
तब से ही तार तार है अखबार नवीसी ||
सलीम शिवालवी , शिवाला ,वाराणसी
अरे वाह भाई अफलातून जी
बधाई हो आपको. और बधाई भाई सलीम जी को भी. जितना जीवंत और ईमानदार विश्लेषदण किया गया है, वाकई तारीफ के लायक है.
वाह क्या बात है,सत्य और वो भी कविता मे पिरो कर.
पल भर मेँ बनाती है ये जालिम को मसीहा |
इस दरजा तो फनकार है अखबार नवीसी | |
मुर्गे की टाँग आज तो कल सुरा सुन्दरी |
यारोँ बडी चटखार है अखबार नवीसी ||
ये तो वाकई शान्दार है
कुछ लोग हैं जो ठीक से करते हैं काम
उनके लिए बस रोज़गार है अख़बारनवीसी
कुछ ऐसे भी हैं हमपेशा हमारे
जिनसे शर्मसार है अख़बारनवीसी
फिर से निकल पड़े हैं कुछ दिलसोज़ दिलावर
आदमीयत पे उनकी निसार है अखबारनवीसी ।
उनके ही दीन-ईमान से रवां है कारवां
वरना तो कारोबार है अखबारनवीसी ।
कोई कर रहा है रफ़ू तो कोई लगा रहा पैबंद
फ़टके अब पूरी ज़ार ज़ार है अख़बारनवीसी