रात भर चली वार्ताओं में विश्व के राष्ट्राध्यक्ष कोपेनहेगन एक लचर सहमती पर पहुँचे जिसमें पृथ्वी के गरम होने की प्रक्रिया पर रोक लगाने के लिए उद्योगों के उत्सर्जन पर नकेल कसने के लिए कोई लक्ष्य तय नहीं किए गये हैं । यह समझौता फन्डिंग के मामले में मजबूत था परन्तु मौसम परिवर्तन की बाबत बाध्यकारी नहीं है तथा किसी वास्तविक मौसम सम्बन्धी समझौते पर पर पहुंचने के लिए इसमें किसी निश्चित तिथि की घोषणा भी नहीं की गई है । अमेरिका तथा चीन जैसे सबसे बड़े प्रदूषक मुल्क कमजओर समझौता ही चाहते थे तथा यूरोप , ब्राजील तथा दक्षिण अफ़्रीका जैसे भविष्य के प्रदू्षण चैम्पियन इन दोनों की मंशा को विफल करने के लिए कुछ खास नहीं किया ।
दुनिया के राष्ट्राध्यक्ष इतिहास न बना सके लेकिन विश्व भर की जनता ने इतिहास बनाया । मुख्यधारा की मीडिया ने जानबूझकर इनकी ढंग से चर्चा नहीं की । ऐसे मौके कई बार आते हैं । बांग्लादेश को दुनिया के किसी देश ने मान्यता जब नहीं दी थी तब लोकनायक जयप्रकाश नारायण की विश्व यात्रा में बांग्लादेश को मान्यता दिए जाने की मांग को हर जगह जनता का समर्थन मिला था । विश्व व्यापार संगठन की बैठकों का भी जगह जनता द्वारा विरोध हुआ था और वैश्वीकरण का यह प्रमुख औजार आज ठप-सा पड़ गया है । कोपेनहेगन के सम्मेलन के विरोध में जनता का पक्ष रखने के लिए दुनिया भर में हजारों रैलियाँ और प्रदर्शन हुए । समझौते पर टिप्पणी करते हुए एक अफ़्रीकी आन्दोलनकारी ने कहा , “किसी हाथी को चलवाने में बहुत बड़े प्रयास की जरूरत होती है लेकिन एक बार यदि आप सफल हो गये तो उसे रोकना आसान भी नहीं होता । हाथी डोलने लगा है । “
प्रदर्शनकारियों के समक्ष इंग्लैण्ड के प्रधान मन्त्री को कहना पड़ा , ’ आप लोगों ने दुनिया के लिए आदर्श स्थिति को प्रस्तुत किया है …..राष्ट्राध्यक्षों पर इसका जो असर हुआ है उसे कम कर न आँकिएगा । “
नोबेल पुरस्कार विजेता डेस्मन्ड टुटु ने आन्दोलनकारियों को कहा ,” इस बड़े मकसद की मशाल आप लोग जलाए रखिएगा । “
पृथ्वी को बचाने की मुहिम एक सम्मेलन से पूरी नहं होने वाली । जनता को मौजूदा औद्योगिक व्यवस्था के विकल्प तैयार करने होंगे ।
कोपेनहेगन सम्मेलन की विफलता के जश्न मिटाने वाले भी मौजूद थी- प्रदूषणकारी उद्योगों की लॉबी की पार्टियों में जश्न मना और शैम्पेन की बोतलें खुलीं । जिन लॉबियों ने दुनिया की जम्हूरी निजाम पर कब्जा जमा रखा है तथा हमारे नेताओं को खरीद रखा है उन्होंने अपनी जीत का जश्न मनाया । जश्न का जाम हाथों में लिए उन्हें भी थोड़ी चिन्ता जनता की ताकत के आधार पर खड़े हो रहे आन्दोलन की हुई होगी । जनता की इस आवाज को खामोश करने की कोशिश भी इस लॉबी के द्वारा शुरु हो चुकी है ।
सुन्दर … आप चाहते इसे और थोडा विस्तार दे सकते थे ..जल्दी में निपटा दिया है आपने.
बेहतरीन प्रस्तुति । प्रासंगिक आलेख । आभार ।
sab aawaz uthayen to achha hai. good one
Lovely ji ki bat se sahmat hoon.
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क्या आपने लोहे को तैरते देखा है?
पुरुषों के श्रेष्ठता के ‘जींस’ से कैसे निपटे नारी?
कोपेनहेगेन सम्मलेनकारी तो उद्योगपतियों के हाथों बिक गये ,चिंता मत कीजिए नुक्सान भी यही लोग झेलेंगे