दीवाल – लेखन नहीं , परचे नहीं , नुक्कड़ सभायें पहले से कहीं कम , इसके बावजूद चुनाव खर्च की ऊपरी सीमा में लगातार वृद्धि ! माना जा रहा है कि यह सब कदम गलत – राजनीति पर नकेल कसने के लिए लिए गए हैं !
पिछले ही रविवार को ही हिन्दुस्तान की सम्पादक मृणाल पाण्डे ने अपने नियमित स्तम्भ में बताया कि दुनिया के बड़े अखबार मन्दी का मुकाबला करने के लिए कैसे खुद को दीवालिया घोषित करने से ले कर छँटनी की कार्रवाई कर रहे हैं तथा –
” मीडिया की छवि बिगाड़ने वाली घटिया पत्रकारिता के खिलाफ ईमानदार और पेशे का आदर करने वाले पत्रकारों का भी आंदोलित और संगठित होना आवश्यक बन गया है । “
विश्वव्यापी मन्दी के दौर में हो रहे दुनिया के सब से बड़े लोकतंत्र के इस आम चुनाव में पूर्वी उत्तर प्रदेश में “चुनावी रिपोर्टिंग” के नाम पर प्रमुख हिन्दी दैनिक पत्रकारिता में गलीजपन की नई हदें स्थापित कर रहे हैं । न सिर्फ़ इस गलीजपन की पत्रकारिता से जनता के जानने के हक पर कुठाराघात हो रहा है अपितु इन अखबारों को पढ़ कर राय बनाने में जनता के विवेक पर हमला हो रहा है । इस प्रकार स्वस्थ और निष्पक्ष चुनावों में बाधक के रूप में यह प्रमुख हिन्दी दैनिक अपनी भूमिका तय कर चुके हैं । यह गौरतलब है इन प्रमुख दैनिकों द्वारा अनैतिक, अवैध व्यावसायिक लेन- देन को खुले आम बढ़ावा दिया जा रहा है । क्या अखबार मन्दी का मुकाबला करने के लिए इन अनैतिक तरीकों से धनार्जन कर रहे हैं ?
गनीमत है कि यह पतनशील नीति अखबारों के शीर्ष प्रबन्धन द्वारा क्रियान्वित की जा रही है और उन दैनिकों में काम करने वाले पत्रकार इस पाप से सर्वथा मुक्त हैं । आपातकाल के पूर्व तानाशाही की पदचाप के तौर पर सरकार द्वारा अखबारों के विज्ञापन रोकना और अखबारी कागज के कोटा को रोकना आदि गिने जाते थे । आपातकाल के दौरान बिना सेंसरशिप की खबरों के स्रोत भूमिगत साइक्लोस्टाइल बुलेटिन और बीबीसी की विश्व सेवा हो गये थे । “हिम्मत” (सम्पादक राजमोहन गांधी , कल्पना शर्मा ) , “भूमिपुत्र” (गुजराती पाक्षिक ,सम्पादक – कान्ति शाह ) जैसी छोटी पत्रिकाओं ने प्रेस की आज़ादी के लिए मुद्रणालयों की तालाबन्दी सही और उच्च न्यायालयों में भी लड़े । भूमिपुत्र के प्रेस पर तालाबन्दी होने के बाद रामनाथ गोयन्का ने अपने गुजराती दैनिक के मुद्रणालय में उसे छापने दिया । तानाशाही का मुकाबला करने वाली इन छोटी पत्रिकाओं से जुड़े युवा पत्रकार आज देश की पत्रकारिता में अलग पहचान रखते है – कल्पना शर्मा , नीरजा चौधरी , संजय हजारिका ।
दूसरी ओर मौजूदा चुनावों में पूर्वी उत्तर प्रदेश के प्रमुख अखबार हिन्दुस्तान और दैनिक जागरण ने चुनावी विज्ञापनों को बतौर “खबर” छापने के लिए मुख्यधारा के दलों के हर उम्मीदवारों से बिना रसीद अवैध रूप से दस से २० लाख रुपये लिये हैं। धन देने के बाद न सिर्फ़ विज्ञापननुमा एक – एक पृष्ट चित्र- संग्रह छापे जा रहे हैं तथा समाचार भी धन प्रभावित तरीके से बनाये जा रहे हैं ।
आम चुनावों के पहले हुए विधान परिषद के लिए हुए स्नातक सीट के निर्वाचन में प्रत्याशी रह चुके समाजवादी डॉ. सुबेदार सिंह बताते हैं कि अखबारों को आर्थिक लाभ पहुंचाने की चाह पूरी न कर पाने के कारण मतदान के एक सप्ताह पहले ही अखबारों से उनका लोप हो गया था । अम्बेडकरवादी चिन्तक डॉ. प्रमोद कुमार कहते हैं अखबारों द्वारा अपनाई गई यह चुनाव नीति लोकतंत्र के भविष्य के लिए खतरनाक है ।
समाजवादी जनपरिषद की उत्तर प्रदेश इकाई अखबारों द्वारा अपनाये जा रहे इस लोकतंत्र विरोधी आचरण के सन्दर्भ में चुनाव आयोग तथा प्रेस परिषद से हस्तक्षेप करने की अपील करती है । दल ने यह निश्चय किया है कि इस खतरनाक रुझान के सन्दर्भ में लोक राजनैतिक मंच के न्यायमूर्ति राजेन्द्र सच्चर तथा वरिष्ट पत्रकार कुलदीप नैयर का ध्यान भी खींचा जायेगा।
बढ़िया पोस्ट।
चुनाव के समय अखवारो के लिए भी अचार सहिंता होनी चाहिए . आपने बिलकुल सही लिखा है गन पॉइंट या कहे पेन पॉइंट पर वसूली करते है यह , और एक पन्ना भर रहे है उसूलो की बातो से . और प्रत्याशियों से उगाही चल रही है
समाचार पत्रों की ये हरकत घिनौनी है, निन्दनीय है.
एसा करके ये समाचार पत्र अपनी अविश्वसनीयता को और भी अधिक बढ़ा रहे है.
सब बिकता है, सबको खरीदने बेचने की आज़ादी है, डेमोक्रेसी है.
adhikansh akhabaar ab maatr vigyapan-patr ban gaye hain. panch saal ye bhi zameen taiyaar kiya karate hain. yah to fasal kaatane kaa mausam hai. fasal barabaad kaise ho jane den! so jamakar kaat rahe hain.
वाह रे समाजवादी भाई …. क्या आपकी ख़बरे ये अख़बार वाली नही छाप रहे है \ कोई बात नही अखबारों द्वारा अपनाये जा रहे इस आचरण के लिया आप आंदोलन करे हम आपके शत है
समाचार पत्र मालिक इस तरह के प्रयासों में सतत संलग्न रहते हैं। चुनावों में यह प्रयास कई गुना बढ़ जाता है।
यह बहुत ही चिंताजनक और घोर निंदनीय स्थिति है जिस पर हर किसी को अपना विरोध प्रकट करना चाहिए, ध्यान खींचने के लिए आभार.
क्या -क्या होना बाकी है अभी! मीडिया कित्ता गिरेगा !!! अच्छी पोस्ट लिखी!!!
माइकेल की वर्तनी भी पता कर लेते ‘अपने’ चंदन’जी’ !
शत-प्रतिशत कहा आपने।रत्ती भर भी झूठ नही।अखबारो की दुनिया मे एक नये तरीके पैकेज का इजाद किया गया है।पैकेज तय करते हैं मार्केटिंग वाले और रेट तय होने के बाद ही रिपोर्टर उस प्रत्याशी या पार्टी से संबंधित रिपोर्ट फ़ाईल कर सकता है। अगर पैकेज तय नही हो पाता है तो उनके खिलाफ़ नेगेटिव्ह रिपोर्टिंग का असाईनमेंट रिपोर्टरो को दिया जाता है।ये तरीका सिर्फ़ एक प्रदेश मे नही बल्कि सारे देश मे लागू है और मेरा दावा है कोई इसे झूठला नही सकता।जो पत्रकार इससे दूर रहते है उन्हे चुनाव की रिपोर्टिंग से दूर कर दिया जाता है।ये मैं सुनी-सुनाई नही देखी भोगी बता रहा हूं।मै इस पैकेज सिस्टम का घोर विरोधी हूं और आपके साथ हूं।तक़्दीर से अभी तक़ इस दलदल मे शामिल होने से खुद को बचाये रखा हूं।सालो की नौकरी मे फ़ूटी कौड़ी का राजनैतिक या दूसरा कोई विज्ञापन न लिया न कोई कमिशन लिया। आप ने सही मुद्दा उठाया है,आभार आपका।
What an eye opener.
Why is it so that we can not have some statutory law?
बहुत सही कहा है आपने. लेकिन किया क्या जाए, सवाल यही है साधो…
इन्दौर के एक अखबार कांग्रेस के पक्ष में वर्षों से लगा रहा है। इसके मालिक और सम्पादक दोनो के इसके बदले पिछली रेवड़ी-बाँट में पद्मश्री की रेवड़ी दी गयी है। उसके बाद तो वह तरह-तरह से जनता को बहका रहा है; बनावटी सर्वे निकलवा रहा है; घोर एकपक्षीय सम्पादकीय लिख रहा है।
जनता, औसतन अधिक समझदार है। पहले से अधिक।
yaar,
kaun see nai baat hai,pura medeia currupt ho gya hai.ena
phir bhi nangai ujagar karne ka sahas karne ke liye thanks.
ravi.
Bare afsos ki baat hai ki Loktantr ke chautthe stambh ki naitikta par dararein par chuki hain. Ise ujaagar arne ke liye aapko dhanyawad.
Anand
अफलातून साब आपने वाकई एक बेहद सटीक लेख लिखा, इसके लिए आपको कोटि कोटि बधाई। मीडिया के इस हरकत को आपने उजागर किया, वैसे यह गोरखधंधा हर राज्य के किसी न किसी अखबार, टीवी चै
नल में वर्षों से चला आ रहा है लेकिन यह पिछले दो तीन चुनावों से अधिक बढ़ गया है जिसकी वजह से यह सभी की नजर में आ रहा है।
जिस देश में बच्चे का ढंग की स्कूल में एडमिशन करवाने के लिए डोनेशन के नाम पर रिश्वत देनी पड़ती हो वहां ऐसे काले धंधे होंगे ही। रामलिंगा राजू, हर्षद मेहता, केतन पारेख या ढेरों घपले बाजों, कर चोरों और अनैतिक काम करने वाले ही पैदा होंगे। अर्जुन सिंह ने शिक्षा के क्षेत्र में खूब बडे बाते हांकी लेकिन डोनेशन मुक्त शिक्षा की व्यवस्था न तो सरकार करा पाई और न ही अदालत जो न्याय की डींगे मारती है। यदि मैं अपने बच्चे के एडमिशन के लिए डोनेशन देता हूं तो उसका भ्रष्टाचार में शामिल होना गलत नहीं है। आप एक आंदोलन शुरु करवाएं इस दिश में ..मैं आपके साथ हूं।
पढाई के साथ शुरु हुआ यह अवगुण हर क्षेत्र में पहुंचा है। प्राथमिक शिक्षा में डोनेशन तो अखबार वाले चुनाव में पैसा लेकर क्या गलत कर रहे हैं। संस्कार ही ऐसे हैं। क्या हमारे देश के नेता राजा हरिशचंद्र की औलादें हैं। पांच साल में पचास साल का पैसा कमा लेते हैं। पासवान को देखें सरकार दिल्ली में किसी भी दल की बनें, बस केंद्र में मंत्री बनना है। मंत्री न बनने से क्या खुजली का रोग शुरु हो जाता है। कोई नैतिकता या मापदंड नहीं…चाहें कांग्रेस हो या भाजपा…हम तो मंत्री बनेगा। आप मेरे से ज्यादा समझदार है और अधिक दुनिया देखी है। हमारे यहां के नेताओं के ही अखबार निकल रहे हैं । मीडिया मालिक अपने अपने फायदे में लगे हैं उन्हें क्या पडा है कि जनता का क्या होगा। जेबें भरो, मस्त रहो। अफलातून जी ने लिख भी दिया तो क्या। बस पैसे कमाते रहो मुन्नाभाई
dost ye koi nai bat nahi hai.madhya pradesh ke ek pratisthit akhbar ne 10-15 sal pahele hi yah paripati shuru kar dee thee.
dost bilkul sach likha hai apne.
The News paper has taken a new shape these days and become a product for some big banners which is a dangerous sign for the society.
इस गोरखधंधे में कई अन्य राज्यों के कई अन्य अखबार भी शामिल हैं. हाल ही में पुण्य प्रसून वाजपैई ने इलेक्ट्रोनिक मीडिया के ऐसे कार्यों की भी चर्चा की थी. आम जनता की जागरूकता और छोटे मागत तटस्थ अखबार ही कोई सकारात्मक प्रयास कर सकते हैं.
bikaner main dainik bhaskar ne vidhansabha chunaw main 75 lakh rupees impact features ke naam se kamaye. itni rakam kamane ki khushi main ek party bhi rakhi gai jisme sharab se lagakar shabab tak tha.
आपके द्वारा इस मामले में निर्वाचन आयोग, भारतीय प्रेस परिषद और मृणाल पांडेय को पत्र लिखने के बाद कोई कार्रवाई हुई हो, या कोई उत्तर आया हो तो कृपया सूचित कीजिएगा।
[…] आम धज्जियाँ उड़ाने के बारे में मैंने ४ अप्रैल , २००९ को लिखा था । प्रेस परिषद की शिकायत प्रक्रिया […]
SARAHNIYA PRAYAS HAI APKA..BAHUT BAHUT BADHAI HO..APKI POST PADHKAR AKHABARON ME ANDARKHANE CHAL RAHE KHEL KA PATA CHAL RAHA HAI..
loksabha chunav me u.p. ke akakhbaron ke ye halat patrakarita ko kha le jayegi ye samajh se pare hai,magar ye daur bada ghatak dikhta hai janpaksiye patrakarita ke liye.
[…] विचार और प्रचार के बीच भेद ही नहीं रह गया है. पाठक को यह बताने के लिए कि प्रकाशित […]
[…] चुनावों में अखबारों की गलीज भूमिका […]
ऊपर की टिप्पणियों में मेरे नाम से एक टिप्पणी लिखी गई है, जो कि गलत है। मैंने ऐसी कोई टिप्पणी नहीं की है, किसी व्यक्ति ने शरारत की है, मैंने अब तक अपने लेखन में किसी व्यक्ति अथवा संस्था विशेष के बारे में कुछ भी नहीं लिखा है। मैं वो लिखना भी नहीं चाहता जिसका मेरे पास तथ्य नहीं हो। इस तरह की शरारत करने वाले को भगवान सद़बुद्वि दे।
[…] चुनावों में अखबारों की गलीज भूमिका […]
[…] चुनावों में अखबारों की गलीज भूमिका […]
[…] चुनावों में अखबारों की गलीज भूमिका […]
[…] अफलातून ने समाजवादी जन परिषद के ब्लाग पर अखबारों द्वारा प्रत्याशियों से पैसे लेने की घटना का विस्तार से वर्णन किया है। उसे पढ़ने के लिए क्लिक करें- चुनाव में अखबारों की गलीज भूमिका […]
[…] अफलातून जी (aflatoon@gmail.com) रहते हैं जो आजकल बड़े अखबारों की गंदी हरकत के खिलाफ अपने ब्लाग पर लगातार लिख रहे हैं और […]