गत दस दिनों से कश्मीर घाटी से गुजरने वाले अमरनाथ यात्री ‘जमीन स्थानान्तरण विवाद’ के हिन्सक प्रतिरोध को शायद याद नहीं रखें , याद रखेंगे घाटी के मुसलमानों की गर्मजोशी भरी मेज़बानी को ।
हिंसा के कारण होटल और भोजनालय बन्द हैं फिर भी उन्हें भोजन और आसरे की तलाश में भटकना नहीं पड़ रहा । मुसलमानों ने उनके लिए सामूहिक रसोई और रात्रि विश्राम का प्रबन्ध कर रखा है ।
पवित्र गुफ़ा से लौट रहे जिन यात्रियों को पुलिस ने नुनवान और बालताल में रोका था उन्हें भी डलगेट और बूलेवार्ड के ‘लंगर’ देखने के बाद जाने दिया गया है ।
आम जनता की साम्प्रदायिक सौहार्द और भाईचारे की बात तो छोड़िए सैय्यद अली शाह गिलानी जैसे कट्टर अलगाववादी नेता भी प्रदर्शनकारियों से कह रहे हैं- ” यात्रियों को नुकसान न पहुँचे , यह इस्लाम के विरुद्ध होगा।’
” हमने देखा कि यात्री , महिलाएं और बच्चे यहाँ फँस गए हैं तो हमने फैसला लिया कि हम उनके लिए मुफ़्त भोजन और आश्रय का प्रबन्ध करेंगे। गागरीबल के एक स्वयंसेवक मोहम्मद सलीम ने पीटीआई को कहा ।
इन लोगों ने आन्दोलन के पाँचवे दिन ‘लंगर’ शुरु किए तथा हर रोज़ करीब २,००० यात्रियों को वे भोजन मुहैय्या करवाते हैं । ” हमने अमरनाथ गुफ़ा से लौट रहे हजारों हिन्दू श्रद्धालुओं को भोजन कराया है ।” सलीम ने कहा ।
अपने पति तथा बेटों के साथ गुजरात से आईं यात्री शान्तिबाई दो बार स्थानीय लोगों द्वारा मदद किए जाने की याद करती हैं ।
” मुझे भगवान शिव की गुफ़ा तक पहुँचने में एक मुसलिम तरुण ने मदद की तथा गुफ़ा से लौटते वक्त भी एक मुसलिम ने हमें भोजन और आश्रय दिया। हमने उन्हें पैसे देने चाहे परन्तु उन्होंने शलीनता से इन्कार किया ।” शान्तिबाई ने कहा ।
उधमपुर जिले की १२,७५० फुट की उँचाई पर स्थित अमरनाथ गुफ़ा के कठिन सफ़र में दिल्ली के आनन्द जैन के लिए घाटी मानों नख़लिस्तान की भाँति थी ।
” मैं कश्मीरी मुसलमानों का अत्यन्त शुक्रगुजार हूँ जिन्होंने मुझे और मेरे परिवार को भूख से निजात दिलायी। तीन दिनों के बाद हमें डलगेट के ‘लंगर’ में काएदे का ख़ाना मिला।”उन्होंने कहा।
दिल्ली से आए अन्य एक यात्री पवन शर्मा ने घाटी के लोगों द्वारा ख़ातिरदारी की भूरि-भूरि प्रशंसा की और कहा कि इन लोगों ने समस्या नहीं पैदा की, इनके द्वारा चुने गए नेताओं ने की है ।
डलगेट तथा बोलवार्ड के अलावा स्वयंसेवकों ने पहलगाँव तथा बालताल के रास्ते यात्रा की आधार कैम्प पर बने पर्यटन स्वागत केन्द्र पर भी भोजनालय बनाया है ।
प्रदर्शन के हृदय स्थल पर भी स्वयंसेवकों ने ताजी सब्जियाँ , पाँव रोटी तथा दूध वितरित किया ।
यात्रियों को बालताल ले जा रही एक गाड़ी पर अपवादस्वरूप हुए पथराव के अलावा जंगल की जमीन अमरनाथ श्राइन बोर्ड को हस्तांतरित करने के १० दिनव्यापी विरोध प्रदर्शनों कहीं भी यात्रियों को स्पर्श नहीं किया गया । – पीटीआई ( हिन्दी अनुवाद , अफ़लातून )
इस रपट को हिन्दी में लाने के लिए धन्यवाद। असली कश्मीरियत, असली हिन्दू संस्कृति में क्या फर्क है? राजनीति में सीढ़ियां चढ़ने की खातिर किस तरह भारत को एक दलदल में बदला जा रहा है, मूल्यों को हवन किया जा रहा है? इन पर भी लिखा जाना जरुरी है।
बहुत अच्छी जानकारी दी है लेकिन इन चीजों को दबाया जा रहा है। ऐसे तथ्यों को ही ज्यादा से ज्यादा प्रचारित किए जाने की जरूरत है क्योंकि माहौल खराब करने की कोशिश की जा रही है
Kashmiriyat bakwaas hai. inko pata hai ki ye Hindu Amarnath yatra karke ghar laut jayenge isliye ye sab natak hai. agar itna hi kashmiriyat hai to Kashmiri Panditon ko ghati se kyon bhagaya? Kyon unko kaha gaya zameen aur ladkiyaan chodd jao aur khud yahan se dafa ho jao? aaj Jammu mein jo sharnarthi banke baithe hain unse in Hurriyat walon ko pyar nahi hai? Hum hindustani logon ko joote bhi padenge to bhi yahi kahenge waah wah kya joote maare hain maja aa gaya aise joote to aaj tak nahi khaye
आपने अच्छा कार्य किया. इससे पहले भी एक यात्रा कर आये ब्लॉगर ने ऐसे ही अपने सुखद अनुभव लिखे थे. यह घटनाओं का दूसरा पहलु है, पहला पहलु भी एक सच्चाई है, उसे नजर-अंदाज करना मूर्खता है.
बहुत ही सुंदर जानकारी। साधुवाद।
^^ आम जनता की साम्प्रदायिक सौहार्द और भाईचारे की बात तो छोड़िए सैय्यद अली शाह गिलानी जैसे कट्टर अलगाववादी नेता भी प्रदर्शनकारियों से कह रहे हैं- ” यात्रियों को नुकसान न पहुँचे , यह इस्लाम के विरुद्ध होगा।’ ^^
श्राइन बोर्ड को जमीन भी तो तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिये ही दी जा रही थी। फिर उसमें क्या दिक्कत हो गयी?
मैं आपलोगों की पवित्र भावनाओं की कद्र करता हूं। मैं भी कह जो भी लूं, लेकिन मौका आ पड़ा तो चाहकर भी किसी इंसान के प्रति कठोर नहीं हो सकता, चाहे वह किसी भी जाति धर्म का हो। लेकिन गलत प्रवृत्ति का विरोध तो होना चाहिये। जब अपने को शरीफ कहनेवाले लोग जिम्मेवारियों से हटने लगते हैं तो गलत तत्वों को अगुवाई करने का मौका मिल जाता है।
अमरनाथ मसले पर मेरे पास दो मैसेज आए हैं बीजेपी नेताओं के.. जिनमे सिवा भ्रामक जानकारी के कुछ नहीं था. हिन्दुओं को संबोधित वो मैसेज बेहद provocative थे. जवाबन उनको मैंने मैसेज दिया है.. Hinduon, dont do anything..just vote for BJP and they will do nothing for you for five years.
मैं निजी तौर पर गिलानी वगैरह का समर्थक नहीं हूं. किंतु ये जानता हूं कि जो पीटीआई पर आया वो सच के बेहद क़रीब है. इस्लामी चरमपंथ का जवाब हिन्दू चरमपंथ हो नहीं सकता. ऐसा होना हिन्दुओं को हिन्दू होने के विपरीत ले जाएगा. भारत विशाल देश है और व्यवहारिक स्तर पर वो किया नहीं जा सकता है जो संघ परिवार की अरसे से चाह रही है.
अमरनाथ मसले पर हैरानगी मुझे पीडीपी के दोमुंहेपन पर हो रही है जहां वह पार्टी उसी सरकार की हमसफ़र है जिसने ज़मीन हस्तांतरण का फ़ैसला लिया था. उसी आज़ाद केबीनेट ने सर्वसम्मति से निर्णय लिया था. बाद में घाटी में दांव उल्ट पड़ते देख दोनों ही पार्टियों ने अपना फ़ैसला भी बदल लिया. बिल्ली के भाग छींका टूटा है और बीजेपी ने हाण्ठी अपने कब्ज़े मे ले ली है. अमरनाथ यात्रियों को भले ही इस विवाद से कोई नुकसान ना हो रहा हो लेकिन इसे बीजेपी चुनावी मुद्दा बनाकर मतदाताओं के बीच ले जा रही है. कौए की मूर्खता ने लोमड़ी को रोटी दे दी.
यहां यह भी जोड़ दूं कि पिछले दिनों मेरे हाथ यासीन मलिक (जो मॉडरेट माने जाते हैं.. गिलानी तो गरमदल वाले हैं) का भाषण लगा था.. जो उन्हीं के द्वारा दी गई ओरीजिनल कॉपी थी. यह भाषण उन्होंने दिल्ली में आयोजित एक सेमीनार में दिया था.. उस कॉपी में जहां-जहां कश्मीर का ज़िक्र था.. वहां अलग से (पेन से) ऊपर में जम्मू शब्द लिखा गया था.. कुछ कहता है यह फ़र्क़?
बाकी सारे पहलू तो लोग खुशी खुशी उछाल रहे हैं मगर जो ज़मीनी सच्चाई है उसे हाशिये पर डाल दिया। इस सच्चाई से अवगत कराने के लिये धन्यवाद।
शुभम।
अच्छे लोग हर जगह हैं और रहेंगे पर पर सवाल ये भी है कि जमीं का हस्तांतरण न होने देने के लिए श्रीनगर की सड़्कों पर इतना हो हल्ला क्यूँ। अगर सचमुच ये विरोध वहाँ की आम जनता कर रही है तो इसे किस तरह कश्मीरियत का प्रतीक माना जाए ?
अमरनाथ यात्रा हिंदुओं के लिए पवित्र है तो वहीं वो हजारों मुसलमानों को रोजगार का जरिया भी मुहैय्या कराती है। जमीन की जगह पर विवाद एक बात है पर जमीं देने से साफ इनकार कर देना बीजेपी के हाथ में एक मसला थमा देना है जिसे वो अपने फायदे के लिए तो इस्तेमाल करेगी ही।
अच्छा लगा इसे पढ़कर।
यह एक बहुत ज़रूरी रिपोर्ट है. आम लोग, किसी भी धर्म के हों, कट्टर नहीं होते. न ईसाई, न मुसलमान, न हिंदू न कोई और. सियासत ही उन्हें एक दूसरे पर संदेह का पाठ पढ़ाती है. इंसानियत के नाम पर यह खेल अब बंद होना चाहिये. बहुत हो चुका.
आपको बधाई इसे हम तक पहुंचाने के लिए.
ऐसी खबरें प्रकाश में लाकर आपने अत्यन्त सराहनीय कार्य किया है.साधारणतया आम जनता असहिष्णु नही होती चाहे वह किसी भी धर्म को मानने वाली हो.अधिकाँश मुद्दे अपने हित साधने में हर पल जुटे मौके के तलाश में भटकते वोट की राजनीती करने वाले राजनैतिक दलों द्वारा खड़ा किया गया बखेडा होता है.
Darasal Hinduon ko 800 saal Musalamano ki gulami aur phir 200 saal tak angrezon ki gulami karate karate jootey khane ki adat pad gayi hai, unke ander ka atma visjwas mar chuka hai, atma samman kya chij hai unako ye sab bhul chuke hain. Ahamad shah gilani ne kah diya ki yatriyon ko koi nukasan na pahunche, isake pichche yah bhi jod diya ki “Islam” mein isaki ijajat nahin. Isaka matalab yah hua ki Agar Islam mein ijajat na hoti to shayad ye yatri mare jate.
Islam shayad yah ijajat deta hai ki apane padosi Kashmiri panditon ko bhagao, unaka katla karo. Islam yah chahata hai ki sabhi hindu wadi sangathan unaki chatukaraita karein , unaki tel palish karein, kashmiri netaon ki joothan uthavein. Islam kya chahata hai , ye Islamavalambi nahin janatey ? Islam ke naam par Jo netagiri ho rahi hai, usake taar kahan se jude hain.
Swabhavik hai, yah “chchadma dharmnirpechchta” aur “sampradayikta” ka mudda kewal vote bank na khisak jaye, isake liye uthaya ja raha hai. Agar Hinduwadi sangathan in sabaka virodha kar rahe hain, to kya ise bhi rok diya jaye, jaban sil li jaye aur hinduon ke saath atyachar hota rahe, hindu virodh bhi na karein, musalman moochchon par taav dekar hinduon ko chidhatey rahein, ve ham par hanse aur ham koi shikayat na karein aur in sab baton par kuchch bhi na kaha jaye, kewal tamasha dekha jaye?
पढ़कर बहुत खुशी हुई। परन्तु जब ये सब इतने ही अच्छे हैं तो क्या कारण रहा होगा कि लगभग सारे पंडितों को कश्मीर छोड़ना पड़ा ? क्या उन्हें शौक चर्राया होगा अपने बसे बसाए घर छोड़ने का ? अब यह मत कहिएगा कि यह भी हिन्दुत्व वालों की चाल थी। धर्म नहीं मानती, राजनीति नहीं जानती, परन्तु जो हो रहा है उसे देख व थोड़ा बहुत समझ अवश्य सकती हूँ।
घुघूती बासूती
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