प्रियंकर साहित्य , काम – काज की भाषा और चिट्ठेकारी इन सभी मोर्चों पर हिन्दी-सेवा में लगे हैं । अपने तजुर्बे से उन्हों ने मुझे बताया था कि तदर्थवाद ने हिन्दी का नुकसान किया है । विभूति राय प्रशासनिक अधिकारी रहते हुए सिर्फ़ साहित्य से नहीं जुड़े रहे उनके स्पष्ट , प्रतिबद्ध सामाजिक सरोकार भी रहे हैं । इसलिए तदर्थवाद की कमजोरी को वे भी समझते ही होंगे । इस सेमिनार के तदर्थवाद की बाबत निमन्त्रणकर्ताओं से जल्दबाजी की शिकायत के बारे में उन्होंने उद्घाटन सत्र की सदारत करते हुए खुद जिक्र किया तथा खेद प्रकट किया । निश्चित तौर पर किसी हद तक सेमिनार और चिट्ठेकारी ने इसका खामियाजा भुगता । स्कू्ली बच्चों को जैसे ’अधिकार के साथ कर्तव्य’ पर निबन्ध लिखवाया जाता है या ’विज्ञान : वरदान नहीं अभिशाप है’ पर वाद-विवाद करवाया जाता है उसी लहजे में नामवर सिंह ने जो विधा ही खुद अभी पल्लवित हो रही है उससे जुड़े़ लोगों को सन्देश दिया ।
लाजमी तौर पर स्मरण हो आया कि हमारे देश में अभिव्यक्ति के तमाम हक़ जिन १९ महीनों में मुल्तबी रखे गये थे तब नामवर सिंह का दल (भाकपा,इसके निशान पर वे चुनाव भी लड़े हैं) और उससे जुड़ा अध्यापक संगठन कैसे तानाशाह के छुटभैय्ये बने हुए थे । भाकपा का गद्दारी करने के बाद ’ऐतिहासिक भूल कबूलने’ का भी इतिहास है । ’७४ दिसम्बर में इलाहाबाद में तरुण शान्ति सेना द्वारा युवाओं के राष्ट्रीय सम्मेलन में ’जयप्रकाशजी आए हैं ,सन’ ’४२ लाए हैं’ के नारों से अगस्त क्रान्ति के नायक का युवजनों ने अभिवादन हमने भी किया था । अगस्त क्रान्ति ( ’४२ ) तथा दु:शासन पर्व (अपातकाल ) के गद्दारों को याद करना जरूरी नहीं है। लोहिया कहते थे ,’गद्दार या गद्दारी अपने आप में इतना खतरनाक नहीं होते । यदि जनता साथ न दे तो वे बेमानी होंगे । वे खतरनाक साबित होते हैं यदि वे जनता का समर्थन हासिल करने में कामयाब हो जाएं ’ । यह गौरतलब है कि हिन्दुत्ववादी धारा ने भी कम्युनिस्टों की तरह भारत छोड़ों आन्दोलन में हिस्सा न लेना उचित समझा था । इस उमर में अब नामवर दलों की दाएरों से ऊपर उठ गए हैं – राजस्थान की भाजपा सरकार के कोटे से हिन्दी के अंतर्रा्ष्ट्रीय सम्मेलन में शिरकत में उन्हें दिक्कत नहीं होती । काशी विश्वविद्यालय के मसले पर पूर्व छात्रों के एक प्रतिनिधिमण्डल का रामबहादुर राय के अनुरोध पर नेतृत्व करते हुए वे जब तत्कालीन प्रधान मन्त्री से मिलने गए तब अटलजी ने स्वाभाविक तौर पर उन्हें सम्मान दिया था । रामबहादुर राय साहब के गुरु से भी परस्पर पीठ खजुआने का उनका नाता है । रामबहादुर राय साहब ने जब प्रभाष जोशी का भव्य जनमदिवस आयोजन किया तो प्रमुख मेहमान नामवर थे । क्या पता सती – प्रथा एवं जाति – प्रथा पर भी इसी लिहाज से न बोलें -’ कर्व्यनिष्ठ अभिव्यक्ति की आजादी’ के तहत !
रवि भाई ने चिट्ठों के राजनैतिक होने पर अपना भय उद्घाटन सत्र के अपने प्रस्तुतीकरण में प्रकट किया । हांलाकि उनका आशय प्रचलित, भ्रष्ट और डॉ. अरविन्द मिश्र के अल्फ़ाज़ में ’बेहयाई वाली राजनीति ’ से रहा होगा । रवि रतलामी और डॉ. अरविन्द मिश्र संसदीय लोकतंत्र को क्या नक्सलवादियों की तरह पूरी तरह खारिज करते होंगे ? शायद नहीं । जैसा भी लोकतंत्र है उसे गंवा कर न सिर्फ किसी भी जन आन्दोलन को कठिनाई होगी , अरविन्द भाई के अन्धविश्वास निर्मूलन अभियान को भी होगी । क्या संसदीय लोकतंत्र बिना दलीय राजनीति के भी चल सकता है ? इससे आगे बढ़कर विभूति राय ने ’राजनैतिक न होने की राजनीति’ का जिक्र किया । उन्होंने तानाशाही सत्ता और कठमुल्लों के विरुद्ध पाकिस्तान की ब्लॉगिंग तथा चीन में जम्हूरियत स्थापित करने की इच्छा रखने वालों द्वारा ब्लॉगिंग का भी जिक्र किया । उन्होंने बताया कि कट्टर पंथी मुल्लाओं के खिलाफ़ लिखे जा रहे ब्लॉगों को पढ़ते हुए उनके रोंगटे खड़े हो जाते हैं ।
मुझे बनारस के बुनकरों के मोहल्ले में सदभाव अभियान द्वारा आयोजित गोष्ठी में बोलते विभूति राय की याद आ गई । राजस्थान के उन मुसलिम किसानों की मिसाल उन्होंने दी थी जो पारम्परिक तौर पर धोती पहनते आए हैं तथा जिन पर उन कट्टरपंथियों का असर नहीं होता जो चाहते हैं कि धोती को हिन्दू-वस्त्र मानते हुए वे पहनना छोड़ दें ।
सिद्धार्थ मिश्र के चिट्ठों की किताब का लोकार्पण हुआ । युनीकोड नेट पर विभिन्न भाषाओं को सर्वव्यापी बनाने के लिए है ,किताब छापने के लिए नहीं। बिना फिर से टंकण कराये भी वे कागजी मुद्रण के लिए फॉन्ट तब्दीली कर सकते थे । लेकिन शायद कितबिया तब दुबरा जाती । किताब पर चर्चा के लिए उन्होंने दो गैर चिट्ठेकारों को बुलवाया । चिट्ठे पढ़ने वालों ने किताब में संकलित चिट्ठे आदि पढ़े होंगे इस आधार पर वे चिट्ठेकारों को भी किताब पर चर्चा के लिए बुला सकते थे। मुझे लगा कि वे जानबूझकर ऐसा नहीं करना चाहते थे। संचालन से अलग सेमिनार के किसी भी विषय पर बोलने लायक उन्होंने खुद को नहीं समझा । ब्लॉगिंग के ’ नारद विवाद’ के दौरान भी मैंने पूर्वी उत्तर प्रदेश में कबड्ड़ी खेल में प्रचलित ’गूँगी कबड्डी’ का जिक्र किया था। (प्रथा समझने के लिए इस लिंक पर जांए ) । ’ प ’ बोलते वक्त होंठ बन्द हो जाते हैं । इसलिए ’चार सेना हड़प्प ’ बोल कर खिलाड़ी प्रतिद्वन्द्वी पाले में घुसता है । अपनी किताब का जिक्र जब सिद्धार्थ ने अपने ब्लॉग पर किया था तब किन्हीं ’बेनामी’ ने यह तथ्य अपनी टिप्पणी से प्रसारित कर दिया था कि किताब छापने वाली संस्था का कोषाध्यक्ष ही लेखक है । चिट्ठेकारी पर चर्चा के लायक तमाम जरूरी मुद्दों से ज्यादा तरजीह ’कुंठासुर’ – बेनामी वाले विषय को दी गयी थी । सिद्धार्थ को एक कविता छापने की नामंजूरी सार्वजनिक तौर पर मिली थी , घुघूती बासूती के ब्लॉग पर । एक दिन पहले किए गए सार्वजनिक आमन्त्रण से अलग निमन्त्रितों में घुघूती बासूती को नहीं शरीक किया गया था। हिन्दी चिट्ठेकारी करने वालों में दो मत न होगा कि घुघूती बासूती एक प्रमुख चिट्ठेकार है ।
इस सेमिनार के कारण कई ब्लॉगरों और मित्रों से पहलेपहल मिलने का मौका मिला । साहित्यिक ब्लॉगर और प्रिय मित्र प्रियंकर , प्रिय सांस्कृतिक – राजनैतिक कर्मी इरफ़ान , तेज तर्रार युवा खबरनवीस विनीत कुमार , जनतंत्र वाले समरेन्द्र ,विस्फोट वाले संजय तिवारी , हिन्दुत्ववादी- वरिष्ट -युवा ब्लॉगर प्रमेन्द्र तथा प्रगतिशील ब्लॉगर रेयाज-उल-हक़ , विज्ञान ब्लॉगिंग करने वाले बाल साहित्यकार जाकिर अली रजनीश ,विज्ञान और विज्ञान गल्प ब्लॉगिंग से जुड़े डॉ. अरविन्द मिश्रा,संगीत -व्यंग्य-नाटक और एनीमेशन से जुड़े युवा वकील ब्लॉगर कृष्ण मोहन मिश्र तथा मेरे पड़ौसी जिले चन्दौली के उभरते चिट्ठा – चर्चाकार हिमान्शु पाण्डे । हिन्दी विश्वविद्यालय के सन्तोष भदौरिया चिट्ठेकार तो शायद अभी नहीं हैं लेकिन उन से मिलने में गर्म जोशी का अहसास हुआ ।
मेरे मित्र विप्लव राही का लम्बे समय से आग्रह था कि मेरी समरेन्द्र से मुलाकात हो । समरेन्द्र को अलग टिकाया गया था । हांलाकि वह जगह हमारे अतिथि भवन से दूर न थी फिर भी सतसंगति का अवसर हम चूक गये ।
अभय की फिल्म सरपत दूसरी बार देखने का अवसर मिला । स्टेशन पर अनूप से पता चला कि के.के पाण्डे से फिल्म का डीवीडी मिला था । पहले पता चलता तो मैं निश्चित ही उनसे सम्पर्क करता,मिलना चाहता । केके काशी विश्वविद्यालय में एक युवा संगठन के प्रभारी होकर आये थे । उन्होंने अपने साथी कवि महेश्वर को अपना गुर्दा प्रदान किया था ।
मसिजीवी से दिल्ली में ब्लॉगवाणी के दफ़्तर में मुलाकात हुई थी । पहली बार मंच से बोलते सुना । उनकी शैली और लहजा सुन कर मुझे लगा कि इनका निर्धारण भौगोलिक इलाकों के अलावा भी होता है। मसिजीवी दिल्ली की एक संस्था में काम कर चुके हैं । उस संस्था से मुझसे परिचित एक व्यक्ति भी जुड़ा रहा है । मुझे भारी अचरज हुआ कि इन दोनों का लहजा और शैली असाधारण तौर पर समान हैं । वैसे , साथ काम करने वालों के बोलने ढंग का असर परस्पर तो होता ही है ।
विनीत कुमार की लेखन शैली से मैं हाल ही में परिचित हुआ था और प्रभावित भी । उसने दो सत्रों में अपने विचार बहुत ही स्पष्ट और नियोजित ढंग से रखे । सेमिनार के दौरान वह सीधे लोटपोट पर नोट्स ले रहा था ।
लोटपोट का प्रयोग यहाँ जानबूझकर किया गया है । जैसे नामवर द्वारा ’चिट्ठेकारी’ के अपहरण से अनूप आहत है और शब्द के जन्मदाता को सचेत कर रहा है वैसे ही ’लोटपोट’ का इस्तेमाल बिना श्रेय दिए चिट्ठा चर्चा की हेडिंग में कर दिया है । लाजमीतौर पर जनक पीडित होंगे/होंगी । ’ताकि सनद रहे वक्त पर काम दे’ , यह बात दर्ज की गई ।
अभय के फिल्म की ग्रामीण नायिका के परदे पर आते ही मेरे बगल में बैठे युवा में तेज हरकत हुई । यह युवा अधिवक्ता कृष्ण मोहन मिश्र था । अवसर पाते ही उसने बताया कि ८-९ वर्ष पहले उसने ’मैला आंचल’ में उस अभिनेत्री (गरिमा श्रीवास्तव?)के साथ अभिनय किया था। कृष्ण मोहन अपनी गाड़ी में हमें स्टेशन / बस स्टैण्ड छोड़ने जा रहा था । गाड़ी पत्थर गिरजा से स्टेशन वाली सड़क पर घूमी तो अनूप ने कहा कि निर्माता अभय बता रहे थे कि फिल्म में कहाँ से ट्विस्ट आता है । याद करने का प्रयास करने के बावजूद कृष्ण मोहन नायिका के पति (वास्तविक जीवन में ) का नाम याद न कर सके ।
समापन सत्र के अध्यक्ष ने एक परिभाषा उद्धृत करते हुए कहा कि समस्त संचित ज्ञान – निधि साहित्य का हिस्सा है । इस प्रकार विज्ञान , कला ,खेल आदि सभी क्षेत्रों के चिट्ठों को साहित्य की परिधि में गिना जा सकता है । कृ्ष्ण मोहन ने फिर मुझे खुश होकर बताया कि इन्हें चिट्ठों के बारे में मैंने ही पहले पहल बताया था ।
मैंने उम्मीद की थी जनमत के सम्पादक रामजी राय जो उद्घाटन सत्र में मौजूद थे आगे के सत्रों में भी रहेंगे तथा हमें उनके विचार सुनने को मिलेंगे । लगता है अन्य व्यस्तताओं के कारण ऐसा न हो सका।
जो भी विषय निर्धारित किए गए थे उन पर गंभीर चर्चाएं हुई । विनीत ने बताया कि ब्लॉगों पर महिला – लेखन और स्त्री विमर्श मजबूती से हुआ है । प्रियंकर ने अनाम चिट्ठेकारों की प्रभावशाली लेखन शैली से उनके अनाम होने से बाधा कत्तई नहीं आई है ,यह कहा । संजय तिवारी ने आगाह किया कि तकनीकी के परिवर्तनों में आ रहे त्वरण का चिट्ठेकारी पर भी प्रभाव पड़ सकता है तथा इसके प्रति हमे सचेत रहना पड़ेगा । डॉ. अरविन्द मिश्रा ने सन्तुलित ढंग से हिन्दी चिट्ठेकारी में विज्ञान लेखन की स्थिति का ब्यौरा दिया । चूंकि वे विज्ञान पर लिखने वालों में प्रमुख हैं इसलिए उनके द्वारा अपने और साइंस ब्लॉगर एसोशियेशन का कार्य विवरण न देना विषय के साथ अन्याय होता । वरिष्ट चिट्ठेकार उन्मुक्त के लेखन का भी उन्होंने हवाला दिया । वे आत्म प्रचार करते नहीं दिखे। मैंने इन्टरनेट के कथित खुलेपन पर बन्दिशें लगानी की साजिशों के बारे में लिखे एक लेख का जिक्र किया ।
’ अपना ’ प्रमेन्द्र दोनों दिन घर में चल रहे मरम्मत- काम से समय निकाल कर आया था । पहले दिन साथ में अदिति भी थी । विनीत के चिट्ठे पर आने के पहले जो लिस्ट छापी गयी थी उसमें भी उसका नाम था । प्रमेन्द्र का हवाला अलग अनुच्छेद में क्योंकि कहीं सरसरी तौर पर लिखा देखा कि हिन्दुत्ववादियों को नहीं बुलाया गया ।
चिट्ठेकार खुश थे की मुख्यधारा की एक संस्था ( गांधी हिन्दी वि. वि. ,वर्धा ) ने यह सेमिनार करवा दिया । हमें विश्वास है कि इस विश्वविद्यालय से जुड़े सन्तोष भदौरिया अपनी टीम के सहयोग से सेमिनार में हुई चर्चा का दस्तावेजीकरण भी करेंगे । ऐसे आयोजनों में पहले से विभिन्न पहलुओं पर चिट्ठेकारों से परचे आमन्त्रित किए जाने चाहिए थे । प्रशिक्षण के लिए हिन्दी विश्वविद्यालय को रवि रतलामी जैसे विशेषज्ञों के सहयोग से कार्यशालायें चलाने की योजना चलानी चाहिए । ब्लॉगिंग से पहले तो इन्टरनेट की बाबत B.B.C Webwise जैसा कार्यक्रम हिन्दी में प्रस्तुत करना चाहिए ।
( ताजा कलम : अनूप ने इस रपट के बाद अपनी रपट में पुनश्च लगा कर सुधार कर लिया है।इस बहाने मुझे ता.क. चलाने का मौका मिला। गांधी के पत्रों में पुनश्च की जगह ता.क रहता था।ताजा कलम।मुझे पुनश्च से सुन्दर लगा था।हांलाकि अब कलम ही नहीं रही। )
आप की रिपोर्टिंग से बहुत नयी बातों का पता लगा।
मेरी तस्वीर के नीचे जो कैप्शन लगाया है सर,मेरी आंखों में अचानक आंसू आ गए।.
शानदार चित्र और जानदार रिपोर्ट ! आप अफलातून ऐसे ही नहीं हैं !
आपने बढिया जानकारी दी, लेकिन मै कल से समाचार पढ रहा हुँ ब्लागर सम्मेलन का, मुझे अभी तक पता नही चला है कि आयोजन कौन था, किसने-किसको-कैसे-कब आमत्रित किया था?सम्मेलन मे उपस्थित होने की पात्रता क्या थी? ये कुछ प्रश्न अनुत्तरित हैं, कोई खुलासा कर दे जिज्ञासा शांत हो।
आप की रिपोर्टिंग का इंतज़ार था और सही था वो इंतज़ार ।
एक आयोजन के सकारात्मक पक्ष पर विशेष रूप से यह कहना चाहता हूँ कि इस आयोजन के बाद भी जितनी प्रतिक्रियाएँ आईं( और लगातार आ रही है ),कार्यक्रम के दौरान जितनी रुचि वहाँ उपस्थित और हम जैसे अनुपस्थित लोगों ने ली , कार्यक्रम का जैसा लाइव प्रस्तुतिकरण ब्लॉग्स पर हुआ ,जितनी तस्वीरें हम लोगों ने देखीं मित्रों से फोन पर और एस एम एस के माध्यम से सम्वाद हुआ , कार्यक्रम के चलते चैट और टाक से जानकारी का आदान-प्रदान हुआ, भोजन आवास के बारे मे चर्चा हुई, मुद्दों पर सीधे सुझाव दिये गये और सम्बन्धित लोगो तक प्रतिक्रियाएँ पहुंचाई गई यह मैने आज तक किसी साहित्यिक,संस्थागत या राजनीतिक कार्यक्रम के आयोजन मे नही देखा । अखबारों मे तीन कालम की खबर और टीवी पर दो मिनट की क्लिपिंग से ज़्यादा आज तक किसी कार्यक्रम को तवज़्ज़ो नही मिली ।इस बात से अन्य लोग ईर्ष्या भी कर सकते हैं । यद्यपि बहुत सारे लोगों के बहुत सारे प्रश्न अनुत्तरित रह गये ( सन्दर्भ: ललित जी की टिप्पणी ) लेकिन सभी मुद्दों पर इतने अल्प समय में बात कहाँ सम्भव है ।इस आयोजन मे मिलने वाले न सिर्फ पहले से परिचित हैं बल्कि नेट के माध्यम से उनमे रोज ही सम्वाद होता है ।तकनीकी व अन्य बातों में सब एक दूसरे का सहयोग करते हैं क्षेत्रीयता या धार्मिकता की कोई भावना नहीं है , किसी को अपने ज्ञान का दम्भ नहीं है ,लोकप्रियता का घमंड नहीं है ,पुरुषवादी मानसिकता से कोई ग्रसित नहीं है, स्त्री हो या पुरुष सभी एक दूसरे का सम्मान करना जानते हैं,यद्यपि यह इस माध्यम पर उपस्थित “हज़ारो”ब्लॉगरों के बीच एक छोटा सा समूह है । लेकिन यह सद्भाव सिर्फ और सिर्फ इस ब्लॉगर परिवार के आपसी सम्बन्ध की वज़ह से है और इसे कोई भी महान साहित्यकार ,पत्रकार ,राजनेता या प्रशासनिक अधिकारी नही समझ सकता । मै एक लेखक /कवि हूँ और विगत 30 वर्षों से ऐसे आयोजन कार्यक्रम अटेंड कर रहा हूँ । यहाँ जुडे भी एक उल्लेखनीय समय तो हो चुका है इसलिये मै कह सकता हूँ कि यह एक ऐसा समाज है जिसने यह सब अपने श्रम और ज्ञान तथा निरंतरता से अर्जित किया है इसलिये इसकी किसी से तुलना नहीं की जा सकती ।यह् समाज बहुत ज़्यादा निराश भी नहीं होता न बहुत ज़्यादा उत्साहित होता है , न ज़्यादा उद्वेलित होता है न भयभीत होता है ।यद्यपि यहाँ संवेदंशील और कुछ हद तक भावुक लोग भी हैं (सन्दर्भ -विनीत जी की टिप्पणी ) इस समाज में आपसी तालमेल और विचारों का संतुलन ही इसकी विशेषता है । हम क्यों न इसके उजले पक्ष को सँवारते हुए इसके उज्वल भविष्य की कामना करें।
@ ललित शर्मा , यह सेमिनार महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय , वर्धा एवं इलाहाबाद की संस्था हिन्दुस्तानी अकादमी द्वारा संयुक्त रूप से किया गया था । इन दोनों संस्थाओं की तरफ़ से क्रमश: सन्तोष भदौरिया तथा सिद्धार्थ मिश्र को इस आयोजन के संयोजक एवं सह संयोजक बनाये गये थे। इन दोनों की तरफ़ से ३२ चिट्ठेकारों(जो पत्र मुझे मिला था उसकी नकल अन्य ३१ को गई थी।) को ईमेल द्वारा निमन्त्रण भेजा गया था(प्रथम निमन्त्रण १४ अक्टूबर ,२००९) । निमन्त्रण की पात्रता आदि के बार में आप को खुद जानकारी हासिल करनी होगी ।
सविनय,
अफ़लातून.
धन्यवाद अफ़लातुन जी, आपने जो कुछ भी सक्षिप्त जानकारी दी उसके लिए मैं आपका आभारी हुं, यदि और किसी ब्लागर भाई या बहन को पुर्ण जानकारी है तो देने की महती कृपा कर अनुग्रहित करें,
ांअपकी रिपोर्ट बहुत विस्त्रित है और तस्वीरोम ने प्रभावित किया है । शरद जी की यही टिप्पणी मैं तीसरी जगह पढ रही हूँ कापी पेस्ट जिन्दावाद । शुभकामनायेांउर बधाईयां
आपकी रिपोर्ट ने रपटने से बचा लिया है
जो रपटने वाले थे
वे सब सहम गए हैं
कुछ तो थम गए हैं
वैसे कुछ ब्लॉगिंग में जमे हुए हैं
विनीत तो और भी विनीत हो गए हैं सच्चाई जानकर।
नई जानकारी और सन्दर्भ के साथ विशलेषणपूर्ण रपट है.
बढिया बेबाक रिपोर्ट के लिए आभार॥
जय हो। धांसू च फ़ांसू रपट। मौज आ गयी। विनीत के बारे में सही लिखा। अच्छा लगा और लोगों के साथ विनीत से मिलना। बहुत दिन बाद आपसे मुलाकात हुई। बावजूद मना करने के आप मेरे अनुरोध पर इलाहाबाद आये यह मेरे लिये अतिरिक्त खुशी की बात है।
और जहां तक रही लोटपोट की बात तो ई अनूप शुक्ल ने बहुतै गड़बड़ कर दिया। उधर नामवरजी ने चिट्ठाकारी शब्द का अपहरण किया इधर अनूप ने आपका लोटपोट चुरा लिया। शरारत करना कब छोड़ेंगे बालक!
वैसे मेरी समझ में मैंने लिखा था कि लोटपोट अफ़लातून जी का बताया शब्द है। यही सोचकर हड़काने के लिये टिपियाने आया था। फ़िर सोचा कि पहले देख लिया तो ससुर उहां लोटपोट गायब है। बहरहाल, अब उधर संसोधन करे देते हैं। मस्त रहिये।
कुछ मित्रों से यादगार मुलाकात इलाहाबाद यात्रा की उपलब्धि रही।
सभी के लिए हार्दिक आभार
ब्लागर-मीट का सफ़ल आयोजन के लिए हार्दिक आभार
आप आयोजकों का आभार सच आयोजन का कष्ट उठाने
का सामर्थ्य सबमें नहीं होता ….. आपने जो साहस किया उसके लिए
आभारी हूं…. आज़ जबलपुर के सभी ब्लागर्स इस पहल पर अभिभूत
हैं…
पढ़े, गड़े, फिर कहींयो उठ भी पड़े.
बहुत मन से रिपोर्ट लिखी है। बधाई।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
आपने मुझे अपना माना बहुत अच्छा लगा, जब से अर्कुट पर आपने हमें निकाला तब से लगा कि मतभेत मन भेद की ओर चले गये है। वैचारिक दूरियाँ जैसी भी हो ये दिलो को पास जरूर लाती है, एक लम्बा अरसा बीच गया आपसे बात किये, पर कार्यक्रम में मिलना सु:खद रहा।
आपने मुझे ‘अपना’ प्रमेन्द्र कहा, बहुत खुशी हुई,
अरे वाह, बिना वहां पहुंचे मेरी भी चर्चा हो गयी। अरविन्द जी को मेरी याद रखने का और आपको बताने का शुक्रिया।
आभार होगा यदि आप बता सकें कि चित्र के नीचे कैप्शन में कैसे लिखा है।
इलाहाबाद में आपसे बेहद अनौपचारिक मुलाकात बड़ी अच्छी लगी । सभी चिट्ठाकारों से मुलाकात आयोजन से ज्यादा यादगार रही ।
आदरणीय उन्मुक्तजी ,
आगमन के लिए आभार | आज कल वर्डप्रेस वालों ने चित्र के साथ कैप्शन और टाइटल देने का प्रावधान दे रखा है | प्रणाम
याद करने का प्रयास करने के बावजूद कृष्ण मोहन नायिका के पति (वास्तविक जीवन में ) का नाम याद न कर सके ।
sir G “Yogesh Vikrant” naam hai Garima Srivastava ke husband ka. Aajkal Yaddast waqt par haat khade kar de rahi hai.
Zabardust reporting ki apne karykarm ki. Shaandar, ek dum Vinit ki tarah.
Aap ka blog zaburdust hai. Aata rahoonga.
I liked it. So much useful material. I read with great interest.
[…] अफ़लातून भैया कान में कुछ खोंसे हुये गाना-ऊना सुनते […]
“समरेन्द्र को अलग टिकाया गया था । हांलाकि वह जगह हमारे अतिथि भवन से दूर न थी फिर भी सतसंगति का अवसर हम चूक गये।”
shayad isliye ki samrendra avinash namak ek shakhs ke saath ruke honge.
kshmaa kijiyega. avinash naam se sachet taur par bache rahne ki aapki koshish me badha aayi hogi. lekin samarendra se nahi mil paane ke aapke afsos se sahanubhuti jatana jaroori laga…
yah comment filhaal “moderation” me hai. aapke paas abhi bhi mauka hai bach sakne ka. ise delete kar de sakte hain…
[…] इलाहाबाद गोष्ठी / स्फुट झलकियाँ /स्फुट… […]
[…] इलाहाबाद गोष्ठी / स्फुट झलकियाँ /स्फुट… […]
krishna mohan ji yahan aapse roobroo hokar puraane din yaad aa gaye…hamari yaaddaasht dhokha nahin de rahi hai abhi…allahabad ab bhi mere bheetar waise hi shiddat se bas hai…apne shahar ki ye sargarmiyan aaj bhi mujhe waise hi romanchit kar rahi hai…waise allahabad mein pratibha ko vilupt karaane ki ghatna pauranik yug se hai…sarasvati poori nadi hi lupt ho gayi…
yogesh vikrant
[…] इलाहाबाद गोष्ठी / स्फुट झलकियाँ /स्फुट… […]