आदिवासी
आजादी के बाद पिछले साठ साल में आदिवासी को क्या मिला ? न तो जंगल पर हक मिला न जमीन का पट्टा । आज कहने को आदिवासियों के इतने नेता , विधायक , मंत्री हैं लेकिन आदिवासी की कोई इज्जत नहीं है । सब आदिवासी को छोटा आदमी समझते हैं । आजादी की लड़ाई में आदिवासियों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया लेकिन उनका कहीं कोई नाम नहीं है । जो मध्य प्रदेश कभी आदिवासियों का प्रदेश कहलाता था वहां आज भी आदिवासी को रोजी – रोटी के लिए दर – दर भटकना पड़ता है । जो कानून आदिवासी के हित के खिलाफ़ थे उनमें कोई सुधार नहीं किया । आज भी आदिवासी अधिकारियों अधिकारियों के डंडे का शिकार होता रहता है ।
पिछले साठ सालों में बड़े पैमाने पर बांध , फैक्ट्री , शेर पालने आदि के नाम पर आदिवासियों को उनके घर , जंगल और जमीन से भगाया गया । न तो आदिवासियों के खेतों को पानी मिला न खाद – बीज । जितनी योजना आदिवासी के विकास के नाम पर आईं उसका कोई फायदा आदिवासियों को नहीं मिला । इन योजनाओं से अधिकारियों और दलालों ने अपने घर भर लिये । कुपोषण और भूख से आदिवासियों की मौत होती रही ।
- जंगल पर अधिकार इतिहास गवाह है कि किस गलत तरीके से अंग्रेजों ने आदिवासियों से उनका जंगल छीन लिया । आजादी के बाद आज तक आदिवासी को अपना खोया हुआ अधिकार नहीं मिला । आदिवासियों को उसका जंगल पर अधिकार वापस मिलना चाहिए । जंगल में उसे अपने निस्तार की लकड़ी , फाटा , चराई आदि की छूट होनी चाहिए । जंगल में नाकेदार की दादागिरी बंद होना चाहिए । सरकार को कटाई की अनुमति आसपास के गांवों से लेनी चाहिए एवं उसका आधा पैसा उस ग्राम के विकास पर खर्च होना चाहिए ।
- जमीन का पट्टा जंगल जमीन जोतने एवं उस पर फलदार पौधे लगाने का अधिकार आदिवासियों को मिलना चाहिए यह मांग समाजवादी जनपरिषद सालों से कर रही है। यह एकमात्र पार्टी है जो इस मुद्दे को लेकर वर्षों से आंदोलन कर रही है । जंगल जमीन के पट्टे देने के लिए एक नया कानून भी बन गया है । लेकिन उस कानून का कहीं कोई पालन नहीं हो रहा है । नाम करने के लिए जैसे तैसे लोगों के फार्म भर दिए । उस कानून का सही सही पालन होना चाहिए और उस कानून के अनुसार आदिवासियों से गलत तरीके से छुड़ाई गई सारी जंगल जमीन के पट्टे मिलने चाहिए। इसमें वनग्राम में लाइन सरकाकर छुड़ाई गई जमीन शामिल है ।
- तेन्दु पत्ता हर बार चुनाव के समय आदिवासियों को तेंदुपत्ता के नाम पर करोड़ों रुपये दिये जाते हैं । इसका मतलब यह है कि चार साल तक तेन्दुपत्ते की कमाई का करोड़ों रुपये सरकार में बैठे अधिकारी और मंत्री खा जाते हैं । आज मंहगाई तीन गुना बढ़ गई और बीड़ी की कीमत भी लेकिन पिछले १५ सालों से तेन्दुपत्ता कड़ाई दर मात्र दस रुपये सैंकड़ा बढ़ी । इसके साथ ही समितियों में इस समय लाखों रुपये हैं उसका हिसाब किताब दिया जाना चाहिए और वो पैसा ग्राम विकास में खर्च किया जाना चाहिए ।
- आदिवासी विरोधी कानूनों में बदलाव संविधान के अनुच्छेद ६ के अनुसार अगर कोई कानून आदिवासी के हितों के खिलाफ है तो प्रदेश का राज्यपाल अकेले ही उसमें जरूरी सुधार कर सकता है या उस पर रोक लगा सकता है । यह अधिकार सिर्फ आदिवासी क्षेत्र के लिए है । उदाहरण के लिए वन्य कानून १९२७ का वन्य प्राणी कानून १९७२ से आदिवासियों के जंगल पर हक खत्म होते हैं तो राज्यपाल एक आदेश से उस पर रोक लगा सकता है । लेकिन आज तक इस अधिकार का किसी राज्यपाल ने न तो उपयोग किया न किसी पार्टी ने इसकी मांग की । समाजवादी जनपरिषद इस बात के लिए लगातार अपना संघर्ष जारी रखेगी कि आदिवासी विरोधी सारे कानूनों में बदलाव किया जाये । इसके लिए राज्यपाल संविधान में दी गई शक्तियों का उपयोग कर यह काम करें और स्थाई हल के लिए संसद और विधानसभाओं के जरिए इन कानूनों में बदलाव किया जाये ।
- राष्ट्रीय उद्यान अभयारण्य देश का पर्यावरण भोग विलास भरी जिस जीवन शैली से नष्ट हो रहा है उसे बदलने की बजाए सरकार पर्यावरण बचाने के नाम पर शेर पालने की योजना लाती रहती है । शेर पालने के नाम पर आदिवासियों के गांव के गांव उजाड़े जा रहे हैं । समाजवादी जनपरिषद मानती है कि शेर और आदिवासी जमाने से साथ रहते आ रहे हैं इसके गांव उजा्ड़ने की जरूरत नहीं है और इन योजनाओं से पर्यावरण नहीं बचेगा उसके लिए हमारी विकास नीति बदलना होगा ।
दलितों के सवाल
दलितों के लिए सबसे बड़ा सवाल छुआछूत मुक्त समाज में बराबरी का स्थान पाना है। आज भी समाज में बड़े पैमाने पर छुआछूत फैली हुई है जो न सिर्फ़ गैर कानूनी है बल्कि मानवता के खिलाफ है । इसके साथ ही दलितों को अपने खोये हुए संसाधन , जमीन आदि पर हक पाना और बदलते समय में रोजगार के सही अवसर पाना है । दलितों के यह सवाल वर्तमान विकास की अंधी दौड़ और उदारीकरण की नीति से हल नहीं होंगे । आज कांग्रेस हो या भाजपा , सभी पर्टियों ने जो आर्थिक नीति अपनाई है उसमें अमीर और अमीर हो रहा है।हमारे जमीन आदि सारे संसाधन कंपनियों के हाथों सौंपे जा रहे हैं । बसपा की मायावती भी उत्तरप्रदेश में यही नीति अपनाये हुए हैं । अब आप दलितों की मुखिया होकर बड़ी पार्टियों जैसी नीतियाँ अपनायेंगी तो दलित सही अर्थों में मुक्त कैसे होगा ।
समाजवादी जनपरिषद का मानना है कि बाबा साहेब अम्बे्डकर का अधूरा सपना असल रूप में पूरा करना है । इंसान में जात-पांत , धर्म , अमीर,गरीब का भेद समाप्त होना चाहिए। छुआछूत इंसानियत के नाम पर सबसे बड़ा कलंक है । इसे जड़ से मिटाने के लिए तथा कानूनी स्तर पर भी ठोस काम होना चाहिए । व्यापक दलित समाज की आर्थिक स्थिति सुधरे इस दिशा में ठोस नीतिगत बदलाव करने होंगे । वैश्वीकरण और उदारीकरण की नीति छो्ड़कर गरीबों के हितों को साधने वाली नीति अपनाना होगी क्योंकि ज्यादातर दलित गरीब है । चूँकि दलितों के परम्परागत रोजगार नहीं रहे उन्हें जमीन दी जाना चाहिए । छोटे-छोटे उद्योगों को बढ़ावा दिया जाये जिससे दलित भी उद्यमी बन सकें । दलितों से छुड़ाई गई जमीन वापस की जाए । प्रशासनिक सुधार के जरिये दलितों पर अत्याचार के मामले में लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों पर कड़ी कार्यवाही हो ।
[ जारी ] अगले हिस्से – अल्पसंख्यक , साम्प्रदायिकता
आप का यह घोषणा पत्र सही है, पर इस से अधिक आकर्षक बीजेपी का है, दो रुपए किलो गेहूँ और 25 पैसे किलो नमक।
बीजेपी के गुण गाओ नमक रोटी खाओ।
भैया पिछले पाँच साल में क्यों न किया ये सब?
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