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Posts Tagged ‘samajwadi janaparishad’

प्रेस विज्ञप्ति
केसला, जनवरी 9।
अघोषित छुपा धन समाप्त करने,नकली नोटों को ख़त्म करने तथा आतंकियों के आर्थिक आधार को तोड़ने के घोषित उद्देश्यों को पूरा करने में नोटबंदी का कदम पूरी तरह विफल रहा है। इसके साथ ही इस कदम से छोटे तथा मझोले व्यवसाय व् उद्योगों को जबरदस्त आघात लगा है।महिलाओं, किसानों और मजदूरों तथा आदिवासियों की माली हालत व रोजगार के अवसरों पर भीषण प्रतिकूल असर पड़ा है।इस संकट से उबरने में लंबा समय लग जाएगा।
उपर्युक्त बाते समाजवादी जनपरिषद की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की होशंगाबाद जिले के ग्राम भूमकापुरा में हुई बैठक में देश की वर्तमान परिस्थिति पर पारित प्रस्ताव में कही गयी है।इस प्रस्ताव में कहा गया है कि केंद्र सरकार का ‘नागदीविहीन अर्थव्यवस्था’ का अभियान चंद बड़ी कंपनियों को विशाल बाजार मुहैया कराने के लिए है। प्रस्ताव में कहा गया है कि जमीन, मकान तथा गहनों की खरीद फरोख्त में नागदविहीन लेन देन को अनिवार्य किए जाने से छुपे,अघोषित धन के एक प्रमुख स्रोत पर रोक लगाई जा सकती है परंतु सरकार की ऐसी कोई मंशा दिखाई नहीं दे रही है।
एक अन्य प्रस्ताव में विदेशों से गेहूं के आयात पर आयात शुल्क पूरी तरह हटा लिए जाने की घोर निंदा की गयी तथा समस्त किसान संगठनों से आवाहन किया गया कि इस निर्णय का पुरजोर विरोध करें।
दल की राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने भारत के चुनाव आयोग से मांग की है कि पांच राज्यों में होने वाले विधान सभा चुनावों के पूर्व आम बजट पेश करने पर रोक लगाए।आयोग को भेजे गए पत्र में कहा गया है कि आगामी 31 मार्च 2017 के पूर्व बजट पेश करना गैर जरूरी है तथा यह चुनाव की निष्पक्षता को प्रभावित करेगा।
दल का आगामी राष्ट्रीय सम्मलेन 29,30 अप्रैल तथा 1मई को पश्चिम बंग के जलपाईगुड़ी में होगा।सम्मलेन में नौ राज्यों के 250 प्रतिनिधि भाग लेंगे।
राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में मुख्यत: निशा शिवूरकर,संतू भाई संत,विक्रमा मौर्य, राजेंद्र गढवाल, रामकेवल चौहान,अनुराग मोदी,फागराम,अखिला,रणजीत राय,अफलातून,स्मिता,डॉ स्वाति आदि ने भाग लिया।अध्यक्षता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष जोशी जेकब ने की।
प्रेषक,
अफलातून,
राष्ट्रीय संगठन मंत्री,समाजवादी जनपरिषद।

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जब चुनाव में दलों और उम्मीदवारों की भीड़ है , तब वाराणसी कैंट विधानसभा क्षेत्र से एक और उम्मीदवार – समाजवादी जनपरिषद  के अफलातून – मैदान में क्यों ?

ताकि बुनियादी बदलाव के लिए समर्पित एक नई राजनीति कायम हो सके | जब तक मौजूदा पतनशील , मौक़ा परस्त , स्वार्थी  राजनीति देश पर हावी रहेगी , तब तक कुछ नहीं हो सकता | एक अच्छा लोकपाल क़ानून भी नहीं बन सकता |

ताकि देश में गरीबी , बेरोजगारी , महंगाई फैलाने वाली आर्थिक नीतियों को बदला जा सके | किसानों को आत्महत्या न करना पड़े |

ताकि उत्तर प्रदेश की तस्वीर बदली जा सके , जिससे यहां के नौजवानों को मुंबई और दूसरी जगह दर-दर की ठोकरें न खाना पड़े |

ताकि खुदरा व्यापार सहित जनजीवन के हर क्षेत्र में विदेशी कम्पनियों का हमला रोका जा सके |

ताकि शिक्षा में मुनाफाखोरी , व्यवसायीकरण और भेदभाव के खिलाफ मुहिम चले और सामान स्कूल प्रणाली कायम हो | केजी से पीजी तक सबको मुफ्त , उम्दा तथा सार्थक शिक्षा की सरकारी खर्च पर व्यवस्था बने |

ताकि देश से अंग्रेजी का साम्राज्य ख़त्म हो और हिन्दुस्तानी , बंगला , तमिल,तेलुगु ,भोजपुरी जैसी जनता की भाषाओं में देश का काम चले |

ताकि चिकित्सा का बाजारीकरण और मुनाफाखोरी रुके | पैसे के अभाव में कोई इलाज से वंचित न रहे |

अफलातून

अफलातून


ताकि बनारस , उत्तर प्रदेश व् देश में अमन-चैन बिगाड़ने वाली फिरकापरस्त ताकतों को कमजोर किया जाए |साझी विरासत और गंगा – जमुनी तहजीब की रक्षा करने वाली धारा मजबूत हो |ताकि एक नया भारत बने और शायर इकबाल के शब्दों में हम फिर से फख्र से कह सकें –

सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा

समाजवादी जन परिषद के जुझारू उम्मीदवार म जो जयप्रकाश आंदोलन से लेकर आज तक वैकल्पिक राजनीति के लिए संघर्ष करते रहे हैं

साथी अफलातून को वोट दें , समर्थन दें , जितायें |

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श्री लालकृष्ण आडवाणी जी के नाम खुला पत्र

आदरणीय आडवाणी जी,

सादर नमस्कार,

भ्र्रष्टाचार के विरोध मे आपकी जनचेतना यात्रा मध्यप्रदेश से गुजर रही है। इसे सफल बनाने के लिए पूरी सरकारी मशीनरी रात दिन एक कर रही है। खराब सड़कें दुरूस्त की जा रही हैं। स्वागत के लिए बंधनद्वार सजाए जा रहे हैं। सुरक्षा की माकूल व्यवस्था की जा रही है। यात्रा में पानी की तरह पैसा बहाया जा रहा है। यह करोडों रूपये कहां से आ रहा है, यह जिज्ञासा हर नागरिक के मन में है।

संघ मुख्यालय पर दण्डवत, प्रणाम और हाजिरी देकर प्रधानमंत्री पद की दावेदारी छोड़ने का भरोसा देने के बाद इस यात्रा की मंजूरी मिल पाई। पार्टी में जारी अन्र्तकलह को दरकिनार करते हुए अन्ततः यात्रा प्रारंभ हो गई। यह प्रसन्नता का विषय है।

भाजपा शासित राज्यों में भी नीचे से ऊपर तक भ्रष्टाचार का बोलबाला है।

मध्यप्रदेश में ऐसा कोई विभाग नहीं है, जहां बिना पैसे दिए काम होता हो। पटवारी से लेकर अधिकारियो, कर्मचारियों के पास करोड़ों की संपत्ति जब्त होने की खबरों से जाहिर होता है कि यहां नौकरशाही को जनता को लूटने और भ्रष्टाचार की खुली लूट मिली हुई है। मुख्यमंत्री से लेकर कई मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप पार्टी की अंदरूनी उठापटक में बाहर आते रहते हैं।

मध्यप्रदेश में किसी भी बड़े छोटे पद पर बैठा आपकी पार्टी का व्यक्ति पैसा खाने और कमाने में लगा हुआ है। नेताओं व मंत्रियों के संरक्षण में जंगल माफिया, रेत माफिया, भूमाफिया, शिक्षा माफिया, सहकारी माफिया सक्रिय होकर करोड़ों के वारे-न्यारे कर रहे है। राशन की दुकान हथियाने व राशन की कालाबाजारी करने में आपकी पार्टी पीछे नहीं हैं।

मध्यप्रदेश के किसानों की बड़ी दुर्दशा हो रही है। सरकार के तमाम दावों के बावजूद उन्हें घटिया बीज, नकली खाद, महंगे डीजल और बिजली कटौती की समस्याओं से जूझना पड़ रहा है। खेती में बढ़ती लागत और खुले बाजार की नीति के कारण किसानी घाटे में जा रही है। प्रदेश में किसानों की आत्महत्याओं का दौर जारी है। आपके सहयोगी सगठन भारतीय किसान संघ खुद किसानों के मुद्दे पर आंदोलन चला रहा है।

मध्यप्रदेश में कुपोषित बच्चों की लगातार मौतों की खबर विकास के सारे दावों की पोल खोल देती है। शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं अब पैसा कमाने का सबसे बड़ा जरिया बन गई हैं। मध्यप्रदेश के किसानों-मजदूरों को राहत और रियायत देने पर सरकार पैसे का रोना रोती रही है। जबकि देशी-विदेशी उद्योगपतियों को उनकी शर्त पर उ़घोग लगाने के लिए तमाम छूट दी जा रही है।

उत्तराखंड में अभी हाल ही में हुआ नेतृत्व परिवर्तन भ्रष्टाचार का ही परिणाम था। कर्नाटक में रेडडी बंधुओं एवं येदुरप्पा के कारनामों पर पूरी भाजपा उनके बचाव में खड़ी हो गई थी। लोकायुक्त की रिपोर्ट से भाजपा को कर्नाटक में नेतृत्व बदलने के लिए मजबूर होना पड़ा थां।

भ्रष्टाचार के बारे में भाजपा का इतिहास अच्छा नहीं रहा। भ्रष्टाचार पर दोहरे मापदण्ड अपनाना पार्टी की नीति रही है। कांग्रेस शासन के केन्द्रीय मंत्री सुखराम के मुद्दे पर संसद की कार्यवाही ठप्प करने वाली पार्टी सुखराम के कांग्रेस से निकलने के बाद ही अपना दोस्त बनाने में देर नहीं करती। जब दिल्ली में भाजपा की सरकार थी तब केन्द्रीय मंत्री, वरिष्ठ भाजपा नेता दिलीप सिंह जूदेव टी.वी. कैमरे के सामने सरेआम घूस लेते दिखाए गए और तो और भाजपा के राष्टीय अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण को रिश्वत लेते टी.वी. के माध्यम से पूरे देश ने देखा।

नोट के बदले वोट का मामला हो, पैसे लेकर संसद में सवाल उठाने का मामला हो, कबूतरबाजी का आरोप हो या हवाला का, सभी में आपकी पार्टी के सांसदों ने नाम कमाया है।

नोट के बदले वोट के मामले में तो कुछ सांसद व भाजपा नेता जेल की सलाखों के पीछे हैं।

केन्द्र में लगभग 6 वर्ष तक षासन कर आप महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व निभा चुके हैं, इस अवधि मे आपने विदेशों में जमा काले धन का भारत वापिस लाने के लिए क्या प्रयास किये? भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कोई प्रभावी कानून बनाया क्या? हम इन सवालों के उत्तर जनचेतना यात्रा के माध्यम से जानना चाहते हैं।

आपकी यात्राओं में बड़ी रूचि है। इसके पूर्व राम जन्मभूमि मंदिर के मुद्दे को लेकर आपके नेतृत्व में निकाली गई रथयात्रा का स्मरण आना स्वाभाविक है। सौगंध राम की खाते है-मंदिर वहीं बनायेंगे के उद्घोष के साथ रथयात्रा ने भारत भ्रमण किया था। यात्रा देश में जहां-जहां गई, वहां-वहां नफरत, उन्माद ओर साम्प्रदायिकता फैली। दंगे हुए। यात्रा के उन्माद में भीड़ ने अन्ततः बाबरी मस्जिद ढहा दी। इस यात्रा के बाद भाजपा का राजनैतिक ग्राफ तेजी से बढ़ा। अटल जी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी। आप उपप्रधानमंत्री, गृहमंत्री जैसे महत्वपूर्ण पदों पर रहे। परंतु आपने अपने शासनकाल में राममंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद सुलझाने व राममंदिर बनवाने के लिए कोई कानून नहीं बनाया, और न ही कोई पहल की। हद तो जब हो गई जब शासन में पहुंचकर आपने मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम को अपने एजेंडा से ही बाहर कर दिया। इस संबंध मं आपकी पार्टी का ही एक नारा समर्पित हैः- जो नहीं राम का, वो नहीं किसी के काम का।

मान्यवर, भाजपा की स्थापना 1980 से लेकर आज तक पार्टी के किसी सम्मेलन, समारोह, मीटिंग में लोकनायक जयप्रकाश नारायण न कोई चित्र रखा गया, न उनका नाम लिया गया। न उनकी पुण्यतिथि मनाई गई और न उनकी जयंती मनाई गई। आपके शासनकाल में जे पी का जन्म जताब्दी वर्ष 1902-2002 था। जिस पर आप लोगों ने कोई ध्यान नहीं दिया। आज उन्हीं जे पी का नाम लेकर उनकी जन्मस्थली से यात्रा निकालना एक तरह का राजनैतिक अवसरवाद नही तो क्या है?

केन्द्र सरकार में व्याप्त भ्रष्टाचार के विरोध में आपकी पार्टी ने आज तक प्रभावी और कारगर आंदोलन नहीं किया। संसद में आपका विरोध रस्म-अदायगी जैसा लगता था। क्योंकि आपकी राज्य सरकारों के भ्रष्टाचार के कारण आपके अंदर नैतिक शक्ति नहीं बची थी। हमें लगता है कि गांधीवादी अण्णा हजारे द्वारा भ्रष्टाचार के खिलाफ हुए राष्टव्यापी आंदोलन से पैदा हुई ऊर्जा को समेटकर वोटो में बदलने के लिए, दिल्ली की गद्दी पर कब्जा जमाने व प्रधानमंत्री बनने के राजनीतिक उद्देश्य से प्रेरित होकर यह यात्रा निकाली जा रही है। इसका भ्रष्टाचार मुक्त भारत बनाने से कोई लेना-देना नहीं है। जिसमें आप सफल हो सकते हैं पर देश नहीं।

हम आपका ध्यान वर्ष 1991 में लागू की गई उदारीकरण, वैष्वीकरण की उन नीतियों की ओर दिलाना चाहते हैं जिनके चलते घोटालों की बाढ़ आ गई है। अफसोस यही है कि कांग्रेस-भाजपा दोनों प्रमुख पार्टियां इन नीतियों पर पुनर्विचार किए बगैर जोर-शोर से आगे बढ़ा रही हैं। देशी-विदेशी पूंजीपतियों, कंपनियों को लुभाने और उनका समर्थन पाने की दोनों पार्टियों में होड़ लगी है। विदेशी निवेशी के लिए लालायित नेता, मुख्यमंत्री विदेश जाकर उन्हें हर प्रकार की सुविधा देने का वादा कर रहे हैं।

स्थानीय लोगों को बेदखल कर प्राकृतिक संसाधनों जल,जंगल, जमीन, खदान, खेत-खलिहानों का सौदा किया जा रहा है। विश्व बैंक, अन्तरा्ष्ट्रीय मुद्रा कोष और एशियाई विकास बैंक जैसे साम्राज्यवादी अन्तरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाएं हमारे देश और प्रदेश के विकास की प्राथमिकताएं तय कर रही हैं। नीतियों में निहित भ्रष्टाचार कानूनसम्मत भले ही हो, पर यह ज्यादा खतरनाक है।

मौजूदा व्यवस्था गैर बराबरी, शोषण, लूट और मुनाफे पर टिकी हुई है।, जो हमारे संविधान की मूल भावना के खिलाफ है। इसे बदले बगैर भ्रष्टाचार से मुक्ति पाना असंभव है। इसका एक आयाम भोगवादी संस्कृति है। जिसने हमारा पूरा जीवन दर्शन बदल दिया है। विडंबना यह है कि हमारे मौजूदा राजनैतिक दलों के एजेंडा में यह सब नहीं है।

आदरणीय, जन चेतना यात्रा के बजाय आप इस उम्र में तीर्थयात्रा करते तो ज्यादा पुण्य मिलता। मन निर्मल होता और चित्त को शांति मिलती।

आपके स्वस्थ और दीर्घजीवन की कामना के साथ

गोपाल राठी

समाजवादी जन परिषद

मध्यप्रदेश

फोन संपर्कः 9425408801

पिपरिया, दिनांक-14 अक्टूबर, 2011

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वाराणसी ,२६ जनवरी ,२०११ । समाजवादी जनपरिषद और पटरी व्यवसायी संगठन ने गणतंत्र-दिवस के मौके पर रश्मि नगर से जुलूस निकाला । जुलूस के पूर्व स्थानीय थानाध्यक्ष ने जुलूस में शामिल लोगों को भयाक्रांत करने की निष्फल करने की कोशिश । पिछले कई महीनों से नगर में बेवजह लागू धारा १४४ को बहाना बना कर जनता की लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति को दबाने के प्रयास को गणतंत्र-दिवस के मौके पर नगरवासियों ने निष्फल किया । जुलूस में शामिल लोगों ने ’देश का संविधान किसने बनाया ?- बाबासाहब; बाबासाहब ’, ’संविधान का क्या पैगाम ?- मानव-मानव एक समान’, ’कमाने वाला खायेगा; लूटने वाला जायेगा;नया जमाना आयेगा’,नया जमाना कौन लायेगा-हम लायेंगे तथा ’वोट हमारा ,राज तुम्हारा – नहीं चलेगा’,’पटरी-नीति लागू करो’ जैसे नारे लगाये ।

जुलूस विश्वविद्यालय सिंहद्वार,रविदास गेट ,अस्सी चौराहा ,दुर्गाकुंड,संकटमोचन होते हुए लंका पर समाप्त हुआ जहां एक नुक्कड सभा की गई । जुलूस और सभा में मुख्य तौर पर काशीनाथ रावत,काली प्रसाद सोनकर ,मोहम्मद भुट्टो,चन्द्रमा प्रसाद,जिलाध्यक्ष तेजबली,छांगुर राम ,नन्दलाल यादव,मंगल सोनकर, पन्नालाल ,दल के राष्ट्रीय सचिव चंचल मुखर्जी,पटरी व्यवसायी संगठन के अध्यक्ष काशीनाथ एवं अफलातून शामिल थे ।

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30 सितंबर, 2010 को अयोध्या विवाद के विषय में लखनऊ उच्च न्यायालय के फैसले के बाद देश ने राहत की सांस ली है। तीनों पक्षों को एक तिहाई – एक तिहाई भूमि बांटने के इस फैसले के कारण कोई भी पक्ष पूरी हार – जीत का दावा नहीं कर पाया। कोई खून-खराबा या उपद्रव इसलिए भी नहीं हुआ, क्योंकि देश की आम जनता इस विवाद से तंग आ चुकी है और इसको लेकर अब कोई बखेड़े, दंगों या मार-काट के पक्ष में नहीं है।
किन्तु इस फैसले से कोई पक्ष संतुष्ट नहीं है और यह तय है कि मामला सर्वोच्च न्यायालय में जाएगा और इसमें कई साल और लग सकते हैं। इस विवाद का फैसला चाहे सर्वोच्च न्यायालय से हो चाहे आपसी समझौते से, किन्तु अब यह तय हो जाना चाहिए कि इसका व इस तरह के विवादों का फैसला सड़कों पर खून – खच्चर व मारकाट से नहीं होगा। ऐसा कोई नया विवाद नहीं उठाया जाएगा। धार्मिक कट्टरता और उन्माद फैलाने वाली फिरकापरस्त ताकतों को देश को बंधक बनाने, पीछे ले जाने और अपना उल्लू सीधा करने की इजाजत नहीं दी जा सकती।
इस फैसले को लेकर कुछ चिन्ताजनक बातें हैं । एक तो यह कि इसमें जमीन एवं सम्पत्ति के मुकदमे को हल करने के लिए आस्था और धार्मिक विश्वास को आधार बनाया गया है, जो एक खतरनाक शुरुआत है। ‘भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण’ की जिस रपट का इसमें सहारा लिया गया है, वह भी काफी विवादास्पद रही है।
दूसरी बात यह है कि 6 दिसंबर, 1992 को बाबरी मस्जिद को तोड़ने की जो गुण्डागर्दी की गई, इसके दोषियों को अभी तक सजा नहीं मिली है। यह घटना करीब-करीब वैसी ही थी, जैसी अफगानिस्तान में तालिबान शासकों द्वारा बुद्ध की मूर्ति को तोड़ने की। यह भारत के संविधान के खिलाफ थी और भारत की विविधता वाली संस्कृति पर तथा इसकी धर्मनिरपेक्षता पर गहरी चोट थी। अडवाणी, सिंघल जैसे लोग इस फैसले के आने के बाद अपने इस अपराधिक कृत्य को फिर से उचित ठहरा रहे हैं। इस घटना के बाद देश में कई जगह दंगे हुए थे, किन्तु उनके दोषियों को भी अभी तक सजा नहीं मिली है। मुम्बई दंगों के बारे में श्रीकृष्ण आयोग की रपट पर भी कार्रवाई नहीं हुई है। इसी तरह से 1949 में मस्जिद परिसर में रातोंरात राम की मूर्ति रखने वालों को भी सजा नहीं मिली है। ऐसा ही चलता रहा तो भारत के अंदर इंसाफ पाने में अल्पसंख्यकों का भरोसा खतम होता जाएगा। इन घटनाओं से बहुसंख्यक कट्टरता और अल्पसंख्यक कट्टरता दोनों को बल मिल सकता है, जो भारत राष्ट्र के भविष्य के लिए खतरनाक है।
ऐसी हालत मे, समाजवादी जन परिषद देश के सभी लोगों और इस विवाद के सभी पक्षों से अपील करती है कि –
1. इस मौके की तरह आगे भी भविष्य में इस विवाद को न्यायालय से या आपसी समझौते से सुलझाने के रास्ते को ही मान्य किया जाए। यदि कोई आपसी समझौता नहीं होता है तो सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को सभी मंजूर करें।
2. किसी भी हालत में इस विवाद या ऐसे अन्य विवादों को लेकर हिंसा, मारकाट, बलप्रयोग, नफरत व उन्माद फैलाने का काम न किया जाए। धार्मिक विवादों को लेकर राजनीति बंद की जाए। जो ऐसा करने की कोशिश करते हैं, उन्हें जनता मजबूती से ठुकराए।
3. मंदिर, मस्जिद या अन्य धार्मिक स्थलों को लेकर कोई नया विवाद न खड़ा किया जाए। वर्ष 1993 में भारतीय संसद यह कानून बना चुकी है कि (अयोध्या विवाद को छोड़कर) भारत में धर्मस्थलों की जो स्थिति 15, अगस्त, 1947 को थी, उसे बरकरार रखा जाएगा। इस कानून का सभी सम्मान व पालन करें।
4. 6 दिसंबर, 1992 के बाबरी मस्जिद विध्वंस, उसके बाद के दंगो तथा ऐसी अन्य हिंसा के दोषियों को शीघ्र सजा दी जाए।

लिंगराज सुनील सोमनाथ त्रिपाठी अजित झा
अध्यक्ष उपाध्यक्ष महामन्त्री मन्त्री

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आम के पेड़ के नीचे बैठक चल रही है। इसमें दूर-दूर के गांव के लोग आए हैं। बातचीत हो रही है। यह दृश्य मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले के आदिवासी बहुल केसला विकासखंड स्थित किसान आदिवासी संगठन के कार्यालय का है। यहां 5 जनवरी को किसान आदिवासी संगठन की मासिक बैठक थी जिसमें कई गांव के स्त्री-पुरुष एकत्र हुए थे। जिसमें केसला, सोहागपुर और बोरी अभयारण्य के लोग भी शामिल थे। इस बार मुद्दा था- पंचायत के उम्मीदवार का चुनाव प्रचार कैसे किया जाए? यहां 21 जनवरी को वोट पडेंगे।

बैठक में फैसला लिया गया कि कोई भी उम्मीदवार चुनाव में घर से पैसा नहीं लगाएगा। इसके लिए गांव-गांव से चंदा इकट्ठा किया जाएगा। चुनाव में मुर्गा-मटन की पारटी नहीं दी जाएगी बल्कि संगठन के लोग इसका विरोध करेंगे। गांव-गांव में साइकिल यात्रा निकालकर प्रचार किया जाएगा। यहां किसान आदिवासी संगठन के समर्थन से एक जिला पंचायत सदस्य और चार जनपद सदस्य के उम्मीदवार खड़े किए गए हैं।

सतपुड़ा की घाटी में किसान आदिवासी संगठन पिछले 25 बरस से आदिवासियों और किसानों के हक और इज्जत की लड़ाई लड़ रहा है। यह इलाका एक तरह से उजड़े और भगाए गए लोगों का ही है। यहां के आदिवासियों को अलग-अलग परियोजनाओं से विस्थापन की पीड़ा से गुजरना पड़ा है। इस संगठन की शुरूआत करने वालों में इटारसी के समाजवादी युवक राजनारायण थे। बाद मे सुनील आए और यहीं के होकर रह गए। उनकी पत्नी स्मिता भी इस संघर्ष का हिस्सा बनीं। राजनारायण अब नहीं है उनकी एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई है। लेकिन स्थानीय आदिवासी युवाओं की भागीदारी ने संगठन में नए तेवर दिए।

इन विस्थापितों की लड़ाई भी इसी संगठन के नेतृत्व में लड़ी गई जिसमें सफलता भी मिली। तवा जलाशय में आदिवासियों को मछली का अधिकार मिला जो वर्ष 1996 से वर्ष 2006 तक चला। आदिवासियों की मछुआ सहकारिता ने बहुत ही शानदार काम किया जिसकी सराहना भी हुई। लेकिन अब यह अधिकार उनसे छिन गया है। तवा जलाषय में अब मछली पकड़ने पर रोक है। हालांकि अवैध रूप से मछली की चोरी का नेटवर्क बन गया है।

लेकिन अब आदिवासी पंचायतों में अपने प्रतिनिधित्व के लिए खड़े हैं। इसमें पिछली बार उन्हें सफलता भी मिली थी। उनके के ही बीच के आदिवासी नेता फागराम जनपद उपाध्यक्ष भी बने। इस बार फागराम जिला पंचायत सदस्य के लिए उम्मीदवार हैं। फागराम की पहचान इलाके में तेजतर्रार, निडर और ईमानदार नेता के रूप में हैं। फागराम केसला के पास भुमकापुरा के रहने वाले हैं। वे पूर्व में विधानसभा का चुनाव में उम्मीदवार भी रह चुके हैं।

संगठन के पर्चे में जनता को याद दिलाया गया है कि उनके संघर्ष की लड़ाई को जिन प्रतिनिधियों ने लड़ा है, उसे मजबूत करने की जरूरत है। चाहे वन अधिकार की लड़ाई हो या मजदूरों की मजदूरी का भुगतान, चाहे बुजुर्गों को पेंशन का मामला हो या गरीबी रेखा में नाम जुड़वाना हो, सोसायटी में राषन की मांग हो या घूसखोरी का विरोध, यह सब किसने किया है?

जाहिर है किसान आदिवासी संगठन ही इसकी लड़ाई लड़ता है। किसान आदिवासी संगठन राष्ट्रीय स्तर पर समाजवादी जन परिषद से जुड़ा है। समाजवादी जन परिषद एक पंजीकृत राजनैतिक दल है जिसकी स्थापना 1995 में हुई थी। समाजवादी चिंतक किशन पटनायक इसके संस्थापकों में हैं। किशन जी स्वयं कई बार इस इलाके में आ चुके हैं और उन्होंने आदिवासियों की हक और इज्जत की लड़ाई को अपना समर्थन दिया है।

सतपुड़ा की जंगल पट्टी में मुख्य रूप से गोंड और कोरकू निवास करते हैं जबकि मैदानी क्षेत्र में गैर आदिवासी। नर्मदा भी यहां से गुजरती है जिसका कछार उपजाउ है। सतपुड़ा की रानी के नाम से प्रसिद्ध पचमढ़ी भी यहीं है।

होशंगाबाद जिला राजनैतिक रूप से भिन्न रहा है। यह जिला कभी समाजवादी आंदोलन का भी केन्द्र रहा है। हरिविष्णु कामथ को संसद में भेजने का काम इसी जिले ने किया है। कुछ समर्पित युवक-युवतियों ने 1970 के दशक में स्वयंसेवी संस्था किशोर भारती को खड़ा किया था जिसने कृषि के अलावा षिक्षा की नई पद्धति होषंगाबाद विज्ञान की शुरूआत भी यहीं से की , जो अन्तरराष्ट्रीय पटल भी चर्चित रही। अब नई राजनीति की धारा भी यहीं से बह रही है।

इस बैठक में मौजूद रावल सिंह कहता है उम्मीदवार ऐसा हो जो गरीबों के लिए लड़ सके, अड़ सके और बोल सके। रावल सिंह खुद की स्कूली शिक्षा नहीं के बराबर है। लेकिन उन्होंने संगठन के कार्यकर्ता के रूप में काम करते-करते पढ़ना-लिखना सीख लिया है।

समाजवादी जन परिषद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री सुनील कहते है कि हम पंचायत चुनाव में झूठे वायदे नहीं करेंगे। जो लड़ाई संगठन ने लड़ी है, वह दूसरों ने नहीं लड़ी। प्रतिनिधि ऐसा हो जो गांव की सलाह में चले। पंचायतों में चुप रहने वाले दब्बू और स्वार्थी प्रतिनिधि नहीं चाहिए। वे कहते है कि यह सत्य, न्याय व जनता की लड़ाई है।

फागराम

अगर ये प्रतिनिधि निर्वाचित होते हैं तो राजनीति में यह नई शुरूआत होगी। आज जब राजनीति में सभी दल और पार्टियां भले ही अलग-अलग बैनर और झंडे तले चुनाव लड़ें लेकिन व्यवहार में एक जैसे हो गए हैं। उनमें किसी भी तरह का फर्क जनता नहीं देख पाती हैं। जनता के दुख दर्द कम नहीं कर पाते। पांच साल तक जनता से दूर रहते हैं।

मध्यप्रदेश में जमीनी स्तर पर वंचितों, दलितों, आदिवासियों, किसानों और विस्थापितों के संघर्श करने वाले कई जन संगठन व जन आंदोलन हैं। यह मायने में मध्यप्रदेश जन संगठनों की राजधानी है। यह नई राजनैतिक संस्कृति की शुरूआत भी है। यह राजनीति में स्वागत योग्य कदम है।

– बाबा मायाराम की रपट । साभार जुगनु

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[ इस चिट्ठे के पाठक हमारे दल समाजवादी जनपरिषद की प्रान्तीय उपाध्यक्ष साथी शमीम मोदी की हिम्मत और उनके संघर्ष से अच्छी तरह परिचित हैं । हिन्दी चिट्ठों के पाठकों ने शमीम की जेल यात्रा के दौरान उनके प्रति समर्थन भी जताया था ।

गत दिनों उन्होंने प्रतिष्ठित शोध संस्थान टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज़ ,मुम्बई में बतौर एसिस्टेन्ट प्रोफेसर काम करना शुरु किया है । वे अपने बेटे पलाश के साथ मुम्बई के निकट वसई में किराये के फ्लैट में रह रही थीं ।

मध्य प्रदेश की पिछली सरकार में मन्त्री रहे जंगल की अवैध कटाई और अवैध खनन से जुड़े माफिया कमल पटेल के कारनामों के खिलाफ़ सड़क से उच्च न्यायालय तक शमीम ने बुलन्द आवाज उठाई । फलस्वरूप हत्या के एक मामले में कमल पटेल के लड़के को लम्बे समय तक गिरफ़्तारी से बचा रहने के बाद हाल ही में जेल जाना पड़ा ।

गत दिनों जिस हाउसिंग सोसाईटी में वे रहती थीं उसीके चौकीदार द्वारा उन पर चाकू से प्राणघातक हमला किया गया । शमीम ने पूरी बहादुरी और मुस्तैदी के साथ हत्या की नियत से हुए इस हमले का मुकाबला किया । उनके पति और दल के नेता साथी अनुराग ने इसका विवरण भेजा है वह दहला देने वाला है । हम शमीम के साहस , जीवट और हिम्मत को सलाम करते हैं । आप सबसे अपील है कि महाराष्ट्र के मुख्यमन्त्री को पत्र या ईमेल भेजकर हमलावर की गिरफ़्तारी की मांग करें ताकि उसके पीछे के षड़यन्त्र का पर्दाफाश हो सके । कमल पटेल जैसे देश के शत्रुओं को हम सावधान भी कर देना चाहते हैं कि हम गांधी – लोहिया को अपना आदर्श मानने वाले जुल्मी से टकराना और जुल्म खत्म करना जानते हैं । प्रस्तुत है अनुराग के पत्र के आधार पर घटना का विवरण । ]

मित्रों ,

यह शमीम ही थी जो पूरे शरीर पर हुए इन घातक प्रहारों को झेल कर बची रही ।  ज़ख्मों का अन्दाज उसे लगे ११८ टाँकों से लगाया जा सकता है । घटना का विवरण नीचे मुताबिक है –

२३ जुलाई को हाउसिंग सोसाइटी का चौकीदार दोपहर करीब सवा तीन बजे हमारे किराये के इस फ्लैट में पानी आपूर्ति देखने के बहाने आया । शमीम यह गौर नहीं कर पाई कि घुसते वक्त उसने दरवाजा अन्दर से लॉक कर दिया था । फ्लैट के अन्दर बनी ओवरहेड टंकी से पानी आ रहा है या नहीं यह देखते वक्त वह शमीम का गला दबाने लगा। उसकी पकड़ छुड़ाने में शमीम की दो उँगलियों की हड्डियाँ टूट गईं । फिर उसके बाल पकड़कर जमीन पर सिर पटका और एक बैटन(जो वह साथ में लाया था) से बुरी तरह वार

भोपाल में शमीम की रिहाई के लिए

भोपाल में शमीम की रिहाई के लिए

करने लगा । वह इतनी ताकत से मार रहा था कि कुछ समय बाद वह बैटन टूट गया । शमीम की चोटों से बहुत तेजी से खून बह रहा था । शमीम ने हमलावर से कई बार पूछा कि उसे पैसा चाहिए या वह बलात्कार करना चाहता है । इस पर वह साफ़ साफ़ इनकार करता रहा ।  शमीम ने सोचा कि वह मरा हुआ होने का बहाना कर लेटी रहेगी लेकिन इसके बावजूद उसने मारना न छोड़ा तथा एक लोहा-काट आरी (जो साथ में लाया था ) से गले में तथा कपड़े उठा कर पेट में चीरा लगाया । आलमारी में लगे आईने में शमीम अपनी श्वास नली देख पा रही थी ।  अब शमीम ने सोचा कि बिना लड़े कुछ न होगा । उसने हमालावर से के हाथ से आरी छीन ली और रक्षार्थ वार किया । इससे वह कुछ सहमा और उसने कहा कि रुपये दे दो । शमीम ने पर्स से तीन हजार रुपये निकाल कर उसे दे दिए । लेकिन उसने एक बार भी घर में लॉकर के बारे में नहीं पूछा । अपने बचाव में शमीम ने उससे कहा कि वह उसे कमरे में बाहर से बन्द करके चला जाए । वह रक्तस्राव से मर जाएगी । शमीम अपना होश संभाले हुए थी । वह पलाश के कमरे में बन्द हो गयी (जो कमरा हकीकत में अन्दर से ही बन्द होता है )। हमलावर बाहर से कुन्डी लगा कर चला गया । शमीम ने तय कर लिया था कि वह होशोहवास में रहेगी और हर बार जब वह चोट करता , वह उठ कर खड़ी हो जाती । हमलावर के जाने के बाद वह कमरे से बाहर आई और पहले पड़ोसियों , फिर मुझको और अपने माता-पिता को खबर दी। अस्पताल ले जाते तक वह पूरी तरह होश में रही ।

दाँए से बाँए:शमीम,पन्नालाल सुराणा,स्मिता

दाँए से बाँए:शमीम,पन्नालाल सुराणा,स्मिता

कुछ सवाल उठते हैं :   चौकीदार ने लॉकर खोलने की कोशिश नहीं की जो वहीं था जहाँ वह शमीम पर वार कर रहा था । उसने पैसे कहां रखे हैं इसके बारे में बिलकुल नहीं पूछा । वह गालियाँ नहीं दे रहा था और उसके शरीर को किसी और मंशा से स्पर्श नहीं कर रहा था । यदि वह मानसिक रोगी या वहशी होता तो शायद शमीम उससे नहीं निपट पाती । वह सिर्फ़ जान से मारने की बात कह रहा था । शमीम के एक भी सवाल का वह जवाब नहीं दे रहा था ।  सेल-फोन और लैपटॉप वहीं थे लेकिन उसने उन्हें नहीं छूआ । इन परिस्थितियों में हमें लगता है कि इसके पीछे कोई राजनैतिक षड़यन्त्र हो सकता है ।

शमीम को मध्य प्रदेश के पूर्व राजस्व मन्त्री कमल पटेल और उसके बेटे सन्दीप पटेल से जान से मारने की धमकियाँ मिलती रही हैं । इसकी शिकायत हमने स्थानीय पुलिस से लेकर पुलिस महानिदेशक से की हैं । मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के निर्देश पर २००५ की शुरुआत से २००७ के अन्त तक उसे सुरक्षा मुहैय्या कराई गई थी । इसलिए हमें उन पर शक है । हमले के पीछे उनका हाथ हो सकता है ।

पेशेवर तरीके से कराई गयी हत्या न लगे इस लिए इस गैर पेशेवर व्यक्ति को इस काम के लिए चुना गया होगा । जब तक राकेश नेपाली नामक यह हमलावर गिरफ़्तार नहीं होता वास्तविक मन्शा पर से परदा नहीं उठेगा ।

हम सबको महाराष्ट्र शासन और मुख्यमन्त्री पर उसकी गिरफ़्तारी के लिए दबाव बनाना होगा ।

अनुराग मोदी

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साभार : NDTV , Youtube.

शमीम की गिरफ्तारी पर मेरी रपट पढ़ें ।

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    उत्तर भारत की राजनीति पर नज़र रखने वाले बसपा के गाँधी-विरोधी तेवर से परिचित होंगे। राजनीति की इतनी खबर रखने वाले यह भी जानते होंगे कि नक्सलबाड़ी उत्तर बंगाल का वह गाँव है जहाँ मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी से अलग हो कर भा.क.पा. ( मा-ले ) की स्थापना हुई और इस नई जमात द्वारा ” बुर्जुआ लोकतंत्र को नकारने तथा वर्गशत्रु के खात्मे” के सिद्धान्तों की घोषणा हुई ।

    उत्तर बंगाल के इन्हीं चार जिलों ( कूच बिहार , उत्तर दिनाजपुर , जलपाईगुड़ी , दार्जीलिंग ) से एक अन्य जनान्दोलन भी गत तीन दशकों में उभरा जिसने उत्तर बंग को एक आन्तरिक उपनिवेश के रूप में चिह्नित किया और बुलन्दी से इस बात को कहा कि आजादी के बाद विकास की जो दिशा तय की गई उसमें यह अन्तर्निहित है कि बड़े शहरों की अय्याशी उत्तर बंगाल , झारखण्ड , पूर्वी उत्तर प्रदेश , उत्तराखन्ड , छत्तीसगढ़ जैसे देश के भीतर के इन इलाकों को ‘आन्तरिक उपनिवेश’ बना कर,  लूट के बल पर ही मुमकिन है । नक्सलबाड़ी में वर्ग शत्रु की शिनाख्त सरल थी । खेती की लूट का शिकार छोटा किसान भी है और उसे खेत मजदूर के साथ मिल कर इस व्यवस्था के खिलाफ़ लड़ना होगा इस समझदारीके साथ उत्तर बंग में जो किसान आन्दोलन उभरा उसके प्रमुख नेता थे साथी जुगलकिशोर रायबीर जुगलदा की अगुवाई में उत्तर बंगाल के किसान आन्दोलन के दूसरी प्रमुख अनूठी बात थी कि इस जमात में अनुसूचित जाति और जनजाति के लोग जुटे जो अम्बेडकर की सामाजिक नीति के साथ गाँधी की अर्थनीति को लागू करने में यकीन रखते हैं। बंगाल के अलावा कर्नाटक का ‘दलित संघर्ष समिति’ ऐसी जमात है जिसके एक धड़े ने बहुजन समाज पार्टी में विलय से पहले  कांशीरामजी के समक्ष शर्त रखी थी कि आप गांधी की  आलोचना नहीं करेंगे।

    नई राजनैतिक संस्कृति की स्थापना के मकसद से १९९२ में जब समाजवादी जनपरिषद की स्थापना हुई तब लाजमी तौर पर इसके पहले अध्यक्ष साथी जुगलकिशोर रायबीर चुने गए और इस बार ( सातवें सम्मेलन में ) पुन: राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए। आज सुबह साढ़े चार बजे उनकी मृत्यु हुई । वे रक्त कैन्सर से जूझ रहे थे । अपने क्रान्तिकारी साथी की मौत पर हम संकल्प लेते हैं कि उनके सपनों को मंजिल तक पहुँचाने की हम कोशिश करेंगे।

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